Job में प्रेशर बहुत है। छुट्टी नहीं मिल रही। ये बातें हम लोग अक्सर सुनते रहते हैं। लेकिन, आपको बताते चले कि देश में ऐसी भी नौकरियां हैं जहां मोटी तनख्वाह तो मिलती है, साथ में अपने पालतू जानवरों के साथ वक्त बिताने के लिए छुट्टियां भी मिल जाया करती हैं। ये कंपनियां अपने कर्मचारियों के जिम का फीस भी भरती हैं। सिकनेस लीव की कोई लिमिट नहीं। मानसिक हेल्थ के लिए अलग से छुट्टी। वाकई यह सब सुनकर प्राइवेट नौकरी करने वाले आम कर्मचारी को रश्क हो जाए। ये नुख्शे टेक कंपनियां अपने Gen Z स्टाफ को लुभाने के लिए कर रही हैं। इनका मानना है कि इससे कर्मचारियों की उत्पादकता बढ़ेगी और वे कंपनी के साथ लंबे समय तक जुड़े रहेंगे।
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अब आप सोच रहे होंगे कि Gen Z किसे कहा जाता है। बतादें कि, 1997 से 2012 के बीच पैदा लोगों के Gen Z रूप में परिभाषित किया गया है। टेक की दुनिया में इन्हें जूमर्स भी कहा जाता है। दरअसल, यह वह पीढ़ी है जो पैसों के साथ ही अपनी जीवनशैली को बहुत महत्व दे रही है। पैसे ठीक मिल रहे हों, लेकिन माहौल अच्छा नहीं है तो ये नौकरी को किक मार दे रहे हैं। नौकरी के साथ-साथ ये जीवन का भरपूर आनंद लेना चाहते हैं। आईटी कंपनियों में प्रेशर आम नौकरियों की तुलना में ज्यादा माना जाता है। इस सेक्टर में युवा एक कंपनी में कम समय ही बिताते हैं। यानी, नौकरी बदलने की दर बहुत ज्यादा है।
ये टेक कंपनियां अपने युवा कर्मचारियों की प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिए उन्हें अपने दादा-दादी के साथ रहने तक का समय दे रही हैं। डेलॉइट इंडिया और नैसकॉम के इंडिया टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री कॉम्पेंसेशन बेंचमार्किंग सर्वे 2024 के अनुसार, कई फर्म वेलबीइंग डे तय करती हैं और जॉइनिंग बोनस भी देती हैं। हालांकि, इसके साथ कुछ शर्तें भी जुड़ी होती हैं। जैसे- दो साल तक नौकरी नहीं छोड़ सकते हैं।
डेलॉइट इंडिया और नैसकॉम के इंडिया टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री कॉम्पेंसेशन बेंचमार्किंग सर्वे में देश भर की 200 से अधिक टेक कंपनियां शामिल थीं। सर्वे के बाद आई रिपोर्ट में कहा गया है कि जेन जेड पीढ़ी सिर्फ पैसों के पीछे नहीं भाग रही है। वह लाइफ बैलेंस, मेंटल हेल्थ और प्रोफेशनल ग्रोथ को तवज्जो दे रही है। यही वजह है कि कंपनियां नई पीढ़ी के टैलेंट को आकर्षित करने और अपने साथ बनाए रखने के लिए नजरिए को बदल रही है।
सर्वे के मुताबिक, टेक कंपनियों का मानना है कि इस तरह के लाभ देने से युवा कर्मचारियों की क्षमता बढ़ेगी, उनका काम में मन लगेगा और वे कंपनी के साथ लंबे वक्त तक बने रहेंगे। इसके साथ ही कंपनियां एआई के साथ तालमेल बनाकर कर्मचारियों की आगे बढ़ने में भी मदद कर रही हैं।
क्या है वेलबीइंग
लेख की शुरुआत में एक शब्द आपने पढ़ा होगा-वेलबीइंग। इसका मतलब होता है मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल। बड़ी कंपनियों में यह कॉमन होता जा रहा है। कुछ कंपनी ऐसी भी हैं, जो वेलबीइंग वीक मनाती हैं। इस दौरान कर्मचारियों को मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल के लिए एक दिन की छुट्टी मिलती है। मानसिक स्थिति की देखभाल से संबंधित उपकरण की खरीद के लिए ये कंपनियां वर्ष में एक बार 25 हजार रुपये अलग से भुगतान करती है। सर्वे में बताया गया है कि इस पहल के नतीजे सकारात्मक हैं।
काम के बोझ से प्रभावित हो रहा था स्वास्थ्य
2021 में एन्वायरनमेंट इंटरनेशनल जर्नल में छपे विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने एक शोध किया था। इसमें बताया गया कि 2016 में लंबे घंटों तक काम करने के कारण 194 देशों में 7,45,194 लोगों की दिल के दौरे और दिमागी स्ट्रोक से मौत हो गई। यह वर्ष 2000 के मुकाबले 29 फीसद ज्यादा है। अध्ययन में बताया गया था कि जो लोग हर हफ्ते 55 घंटे या उससे ज्यादा काम करते हैं, उनमें स्ट्रोक होने का 35 फीसद और दिल के दौरे से मरने का 17 फीसद ज्यादा खतरा होता है। जबकि, हर हफ्ते 35-40 घंटे काम करने वालों में ऐसा नहीं होता। Gen Z पीढ़ी ने इस समस्या को सबसे अधिक झेला। इससे इनके काम की क्षमता प्रभावित होने लगी। युवा तेजी से नौकरी बदलने लगे। कंपनियों का काम भी प्रभावित होने लगा। इसलिए कुछ कंपनियों ने यह तरीका अपनाया है।