आमतौर पर जेल को लेकर कई सारे पूर्वाग्रह होते हैं। यह मान लिया जाता है कि एक बार जो जेल चला गया उसकी मानसिकता उसी तरह की हो जाती है लेकिन ऐसा नहीं है। देहरादून सुद्दोवला के जिला कारागार के बारे में शायद आपने सुना हो। यहां जेल में मौजूद कई कैदी जाने अनजाने किसी अपराध में संलिप्त हो गए। लेकिन आज आपको पता चलेगा कि किस तरीके से कैदियों को दोबारा मुख्य धारा में जोड़ने की पहल की जा रही है, इसी की तलाश में ‘तीरंदाज’ की टीम जा पहुंची सुद्दोवाला जेल। आइए मिलते हैं एक ऐसी शख्सियत से, जो कई साल से इस पर काम कर रही हैं। उनकी यह कोशिश है कि जब ये कैदी बाहर दुनिया में मुख्य धारा से जुड़ेंगे तो एक बेहतर इंसान बनकर, अच्छी सोच और पॉजिटिव एनर्जी के साथ यहां से बाहर जाएं।
डीआईजी जेल दधिराम मौर्य बताते हैं कि जिला कारागार सुद्दोवाला में अंडर ट्रायल प्रिजनर्स हों या फिर कैदी हों, उन सभी के पुनर्वास के लिए, वे सभी एंजायटी से दूर रहें और एक हेल्दी लाइफ जी सकें, इसके लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इसके लिए तमाम गोस और समाज के प्रतिष्ठित लोगों से संपर्क कर उनके लिए संसाधन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। सभी के सहयोग से ध्यान योग, स्किल डेवलपमेंट कार्यक्रम के जरिए कैदियों के मानसिक चरित्र और नैतिक उत्थान के लिए विभिन्न गतिविधियां समय-समय पर आयोजित करते रहते हैं।
सुद्दोवाला जेल के जेलर पीके कोठारी ने बताया कि यहां लगभग 1500 कैदी हैं। जब कैदी यहां पर आता है तो हम यह जानने का प्रयास नहीं करते कि उसने क्या अपराध किया है। हमें यह मालूम है कि वह मानसिक रूप से टूटा हुआ होता है। कैदी को स्ट्रेस रहता है जिसे दूर करने के लिए विभिन्न संगठन कम कर रहे हैं। समाजसेविका और कॉस्मिक हीलर गिरिबाला जुयाल लगातार 4 साल से सुबह 8:00 बजे से 3 बजे तक यहां रहती हैं। इस दौरान वह कैदियों से इंटरेस्ट करती हैं, कैदियों को नैतिक शिक्षा देती हैं। वह कैदियों की हीलिंग, उनको पैनिक हीलिंग के कोर्स करना और संगीत के जरिए कैदियों का स्ट्रेस दूर करने का लगातार प्रयास कर रही हैं। इससे कारागार प्रशासन को बंधिया की एनर्जी को पॉजिटिव रखने में बहुत ज्यादा मदद मिलती है। ये बातें सुनते हुए ‘तीरंदाज की टीम’ को यह जानने की इच्छा जगी कि उन लोगों के लाइफ में क्या बदलाव आए हैं।
गिरिबाला ने कहा, ‘एजुकेशन की बात करें तो मैं एमएससी फिजिक्स और पीएचडी की है। डॉक्टरेट करने से पहले कई सारी भ्रांतियां होती हैं कि यह सब कुछ कहीं होता है। हीलिंग करने से हम अपने भगवान को महसूस करते हैं। हम अपने शरीर के अंदर बीमारियों को सेल्फ सेंस कर सकते हैं और उन्हें ठीक भी कर सकते हैं। हमें किसी भी डॉक्टर के पास जाने की आवश्यकता नहीं है। अब से पहले हम हीलिंग प्रोसेस को एक भ्रांति के रूप में देखे थे। लेकिन जब से हमने हीलिंग प्रोसेस को सीखा है हमें अपनी पुरानी पद्धतियां याद आ गई है।’
हीलिंग सीखने वाले एक शख्स ने बताया कि मुझे यहां कम से कम 18 महीने हो चुके हैं। इन 18 महीनों में मैं 3 महीने टिहरी में रहा हूं। उसके बाद फिर मेरा ट्रांसफर यहां हो गया। उसके बाद मैं काफी डिप्रेशन में चला गया था। कैदी अक्सर डिप्रेशन में ही रहता है। यहां आने के बाद किसी के माध्यम से पता चला कि यहां पर हीलिंग क्लासेस होती हैं। इसके बाद हमने हीलिंग क्लासेस जॉइन कर लिया। जब से मैं हीलिंग क्लासेस जॉइन किया तब से मैं इसके साथ जुड़ा हूं और तब से मैं कभी डिप्रेशन में नहीं जाता हूं। हीलिंग के माध्यम से हमें सेंसिंग करना सिखाया जाता है। हम यहां स्पिरिचुअलिटी सीखते हैं जो कहीं किसी क्लासेस में नहीं सिखाई जाती है।
यहां आने से पहले मुझ में बहुत ज्यादा नेगेटिविटी थी। लगभग सभी कैदियों में नेगेटिविटी होती है। पहले मैं योग क्लासेस में जाता था। फिर यहां हीलिंग क्लासेस के बारे में पता चला। बाहर हमें इसके बारे में कुछ भी नहीं पता था। शुरुआत में हमने सोचा था कि टाइम पास हो जाएगा। एक-दो घंटा कट जाएगा शुरुआत में एक-दो दिन तो ऐसे ही चला। धीरे-धीरे हमें इसके बारे में पता चला। इसमें नेचुरल पद्धतियां, नेचुरली इलाज और अध्यात्म से जुड़ना सिखाया गया। हमें यह नहीं पता होता है कि अगर हम भगवान का स्मरण कर रहे हैं तो हमें कैसे करना चाहिए। लेकिन हीलिंग से यह सब ज्ञान प्राप्त होता है। अब अंदर हमारा मन नहीं लगता है। हम यह सोचते हैं कि संडे को भी हीलिंग क्लासेस लगे और क्लास में चले जाएं।
हीलिंग सीखने वाला एक कैदी
एक अन्य शख्स ने अपने अनुभवों को शेयर करते हुए बताया कि पिछले साल 8 अक्टूबर को यहां आना हुआ। जैसे कि सभी को पता है कि यहां आने के बाद कोई भी इंसान डिप्रेशन में ही रहता है। मुझे यहां बैरक में ऐसी सीट मिली जहां मुझे लगभग 4 महीने तक नींद नहीं आई। एक दिन मुझे मिस्टर रंजीत ने आकर कहा कि आप हीलिंग कर लो। मैंने कहा कि यह हीलिंग क्या है? मुझे नाम तो पता था लेकिन इसके बारे में ज्यादा कुछ विस्तार से नहीं पता था। जब मैं उनके साथ यहां आया और ट्रेनर मैडम से मिला तो मैंने उन्हें बताया कि मुझे इतने समय से नींद नहीं आ रही है। तब उन्होंने मुझे प्रेयर सिखाई और कहा कि जब तक आपको नींद नहीं आती तब तक आप प्रेयर कीजिए। उसे जगह पर मुझे बड़े खराब सपना आया करते थे। प्रेयर करने के बाद मुझे नींद आई और मुझे बिलीव हो गया कि हीलिंग में बहुत ज्यादा पावर है। मेरी समझ में हीलिंग एक जांच है, मैं हीलिंग को एक जांच की संज्ञा दूंगा। हीलिंग क्लास में आने के बाद हम प्राणिक ऊर्जा से चीजों की जानकारियां प्राप्त होने लगती है। और धीरे-धीरे हमारे शरीर के जितने भी रोग हैं उन सब की जानकारी यहां आकर होने लगी। इस क्लास के हम जितने भी पुराने लोग हैं अपनी डायरेक्ट में जाकर हम अपनी हीलिंग भी करते हैं और दूसरों की मदद भी करते हैं। काफी लोगों को बीमारियों से मुक्त भी कराया है।
जब मैं जेल के अंदर आया तो मुझे काफी सारी टेंशन थी। मैं बाहर के बारे में भी सोचता था जिससे मेरे सर में बहुत ज्यादा दर्द रहता था। जिसके बाद मैं हीलिंग क्लासेस जॉइन की। क्लासेस में आकर मैम ने मुझे चक्र के बारे में बताया जिससे मैं सर की सेंसिंग की। इसके बाद मुझे फायदा होने लगा। फिर मुझे पता चला कि हीलिंग क्लासेस से काफी फायदा होता है। लेकिन उसके बाद भी मैं क्लासेस जाने में थोड़ी लापरवाही करता था। इसके बाद अनुराग सर और सौरभ सर ने मुझे हीलिंग क्लासेस में जाने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि मुझे इससे काफी फायदा मिलेगा। क्लासेस में आकर वाकई मुझे काफी फायदा हुआ और अच्छा भी लगा। अब मेरी काफी सारी टेंशन कम हो गई हैं।
कैदी ने बताए हीलिंग के अनुभव
एक अन्य कैदी ने कहा कि आई एम हेयर से सींस थ्री एंड हॉफ मंथ्स। जब मैं यहां पर आया तो शुरुआत में मैं बहुत ज्यादा डिप्रेशन में था। मैं सोचता था कि मैं कहां आ गया। मैं वेल एजुकेटेड हूं, मैंने एमबीए किया है और बैंकों में नौकरी की है और मुझे ऐसी जगह आना पड़ जाएगा। मेरे घर से भी लोग पुलिस में थे और यह कैसे विडंबना है कि मुझे यहां आना पड़ गया। मैं डायरेक्ट में काफी सुस्त और उदास रहता था। मेरे ही बैरक के एक व्यक्ति मिस्टर अमित ने मुझे बताया कि यहां पर हीलिंग क्लासेस होती है और हम वहां पर जाते हैं। उन्होंने बताया कि यहां पर काफी सारी चीज हैं जो आप कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि यहां पर योगा क्लासेस भी होती हैं। तब मैंने कहा कि आई एम रेडी टू डू इट। जिसके बाद मेरी मुलाकात मैडम से हुई। मैंने उनसे बातचीत की और मैं काफी इंप्रेस हुआ। शुरुआत में प्राण को देखना सीखना बताया गया। जिसके बाद मेरा दिमाग जो काफी बंद था वह खुलना शुरू हुआ। मेरा दिमाग थोड़ा विस्तार करने लगा। देन स्लोली स्लोली ई स्टार्टड लर्न अबाउट इट।
अंदर अपराधी आपको डर नहीं लगता?
हां, हमने गिरिबाला जुयाल से यही सवाल पूछ लिया। हमने कहा कि इस काम का आइडिया आपको कैसे आया? जेल में जो कैदी रहते हैं उनमें से बहुत सारे अंडर ट्रायल हैं, बहुत सारे ऐसे हैं जिनसे जाने- अनजाने अपराध हुए हैं और कुछ आदतन अपराधी भी हैं। आपको कब ऐसा लगा कि आपको इनके साथ काम करना है और क्या कभी आपको डर नहीं लगा? गिरिबाला जुयाल ने बेबाक तरीके से कहा कि मैं डरती नहीं हूं। मुझे लगता है जो भी प्रॉब्लम है उसका सॉल्यूशन भी है। यह लोग भी इंसान हैं। जब मेरे हस्बैंड कंजर्वेशन से पेंशनल साइंटिस्ट रिटायर हुए तब हमने जेल के आसपास घर बनाया। बाय चांस हमें यह जगह मिली। जब मैं यहां लोगों को बंद देखती थी, कोई भी बाहर नहीं दिखता था तो मुझे लगता था कि उनकी जिंदगी कैसी होगी। यहां से मुझे यह भावना आई कि मुझे इनके लिए कुछ करना है। हम लोग सेंसिटिव हैं तो हमें यह पता है कि कोई इंसान अगर बंद है तो वह कितनी परेशानी में होगा, उसकी फैमिली कितनी परेशान होगी। यह सोचकर मैं अपनी फ्रेंड नीना कैंथोला के साथ यहां पर आई। उस वक्त यहां वर्मा जी थे। मैंने उनसे पूछा कि मुझे यहां पर अपनी सर्विस देनी है। मैंने उनसे कहा कि मैं एक योगा टीचर हूं और मैं प्राणिक हीलिंग करवाती हूं। तब उन्होंने कहा कि यह बहुत अच्छी बात है, हमें बहुत ज्यादा जरूरत है, क्योंकि यहां पर बहुत सारे लोग डिप्रेशन का शिकार है खासकर महिलाएं उन्होंने मुझे महिलाओं पर फोकस करने को कहा।
इसके बाद मैंने यहां शुरुआत की। पहले सामना करने में दिक्कत जरूर आई क्योंकि हमें नहीं पता कि सामने वाला व्यक्ति क्या सोच रहा है। कई बार मेरे साथ वालों ने उनसे सवाल किया तो उन्होंने कहा कि क्या हम देखने की चीज हैं। तब मुझे लगा कि यह बहुत सेंसिटिव है और हमें बहुत ध्यान से काम करना चाहिए। हमसे कभी भी यह नहीं पूछते कि आप यहां पर क्यों आए। प्राणिक हीलिंग हमें बड़े ही संवेदनशीलता के साथ बात करने के लिए प्रेरित करता है। यह चीज इन लोगों को इफेक्ट करती है और यह लोग मेरे साथ खुला मिलकर रहते हैं।
इंसान अपने हिसाब से सोच तो सकता है लेकिन परिवार का भी एक प्रेशर होता है। जब हमने गिरिबाला जी से पूछा कि इस काम को लेकर कभी उनके घरवालों ने रोका नहीं, उन्होंने कहा कि यह काम करते हुए 33 साल हो गए हैं। सपोर्ट से शुरू किया था। ऐसे बच्चे थे जो ठंड में बिना कपड़ों के, नंगे पांव आते थे मैंने वहां से शुरू किया। मेरे पति को कोई दिक्कत नहीं थी। मैंने जब यहां भी काम शुरू किया तो उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई। उन्होंने ज्यादा दिमाग नहीं लगाया कि मैं कहां जा रही हूं। उन्हें यह पता है कि मैं कोई गलत काम नहीं करूंगी। मुझे मेरे घर से पूरा सपोर्ट है और मैं भी पूरी कोशिश करती हूं कि मैं घर में सपोर्ट करूं। मुझे परिवार से काफी ज्यादा सपोर्ट मिलता है इसीलिए मैं काम कर पा रही हूं। आपको फाइनेंशली, फिजिकलऔर इमोशनली स्ट्रांग होना पड़ता है। मुझे घर से सपोर्ट मिलता है इसलिए मैं यह काम कर रही हूं।
जेल में कैस-कैसी एक्टिविटीज
गिरिबाला बताती हैं कि मनोरभव भाव की शुरुआत ऐसे हुई…मैं अब तक 13 जरूरतमंत बच्चे जिनके मां- बाप उन्हें पालने में समर्थ नहीं थे, उनको मैं घर पर पढ़ा चुकी हूं। उनमें से एक बच्चे के एडमिशन के लिए मुझे सरकारी स्कूल जाना था, मैंने देखा कि वहां बहुत बुरी हालत है। यह बात आज से 30 साल पहले की है। मैंने देखा कि वहां बच्चों के पास खाने को नहीं होता था। मां बाप मजदूरी के लिए जा रहे हैं और बच्चे भूखे स्कूल आ रहे हैं। कई बार बच्चे बिना खाए भूख से चक्कर खाकर गिर जाते थे। कई बच्चे ठंड में बिना कपड़ों के आते थे। वहां से मुझे लगा कि हमें कुछ करना चाहिए और हमारे पास बहुत कुछ है जिसका एक हिस्सा निकालकर हम उनके लिए कुछ कर सकते हैं। हमारी एक सीनियर साइंटिस्ट पार्वती कटियार, मिसेज श्रीवास्तव, बिना गर्ग, आशा बहुगुणा के साथ ही कई और लोगों का हमारा एक ग्रुप था, उन लोगों से मैं बात की और थोड़ा-थोड़ा पैसा जमा किया। इससे हमें उन बच्चों के लिए चना मुरमुरा की व्यवस्था की। अभी स्कूलों में मिड डे मील मिलता है लेकिन पहले इसकी व्यवस्था नहीं थी। वहीं जो बच्चे सड़क पर आवारा घूम रहे होते थे, सड़क से उठाकर बीड़ी पी रहे हैं और यहां तक की अपने पापा के पाउच से शराब पी रहे हैं, उन्हें देखकर मुझे बहुत बुरा लगता था। तब हमने उनके लिए काम करना शुरू किया। स्कूल के बाद जो खाली वक्त होता था उसमें उनके लिए इवनिंग क्लासेस शुरू की। आज तक हमारा वह काम जारी है। बच्चे बहुत अच्छा रिजल्ट दे रहे हैं।
एक मुस्लिम लड़का रोते रहता था…
अगला सवाल यह उठता है कि अभी तक गिरिबाला जी ने जितने लोगों को ट्रेनिंग दी है, उनमें से क्या कभी कोई ऐसा व्यक्ति मिला जिसे देखकर आपको ऐसा लगा हो कि यह मेरी लाइफ का सबसे ज्यादा चैलेंजिंग कैदी था? उन्होंने कहा कि ये बच्चे जो गलती से आपराधिक गतिविधियों में आ जाते हैं या नासमझी से आ जाते हैं, खासकर जो बच्चे दूसरे शहरों के होते हैं, उनको सबसे ज्यादा डिप्रेशन होता है, वह रोते रहते हैं। कुछ बच्चों को परवाह नहीं होती जैसे कि नशे वाले बच्चे, जिन्हें चोरी की आदत होती है। ऐसा ही भींगल साइड का एक केस मेरे पास था। एक 19 साल का मुस्लिम लड़का उसकी शादी उसकी मौसेरी बहन से कर दी गई थी और वह यहां अपने भाईयों के साथ कमाने के लिए आया था। उन लोगों ने कुछ गलती की और यह भी उनके साथ जेल में बंद था। वह रोता रहता था। मैंने उसे कई बार कहा कि क्लास में आकर बैठो। लेकिन वह एक किनारे बैठकर रोता रहता था जब मैं उससे पूछा तो पता चला कि उसका एक बच्चा होने वाला था। उसके घर में उसके पापा को यह पसंद नहीं था कि उसकी मम्मी ने उसकी शादी करा दी और उसकी बीवी को मारते पीटते थे और यह कहते थे कि तेरा पति तुझे छोड़कर भाग गया। लेकिन वह यहां जेल में बंद था और वह अपने परिवार वालों से कांटेक्ट नहीं कर पा रहा था।
फिर मैंने उसकी पत्नी से कांटेक्ट किया उसका हाल-चाल पूछा तो वह बहुत रो रही थी और कह रही थी कि मैं सुसाइड कर लूंगी। मैंने उसकी थोड़ी फाइनेंशली हेल्प की और उसे बोला कि घर में यह कहो कि उसके पास अभी काम नहीं है और वह जल्द ही घर आएगा। उधर मैंने उसकी हेल्प की और इधर इसको मोटिवेट किया और इसको हीलिंग क्लासेस में लाई। जिसके बाद वह लड़का अपने घर चला गया। उसने अपना घर बना लिया है और वह अपना काम कर रहा है। वहीं उसकी बीवी मुझसे इतना अटैच हो गई थी कि जिद करने लगी कि मुझे मैडम के साथ रहना है।
मैडम जी ने जो सिखाया है…
दूसरे केस में जुबेर नाम का लड़का जाते-जाते एक लेटर लिखकर गया। उसमें लिखा था कि मैंने यहां बहुत अच्छा माहौल देखा। मैं कभी गलती नहीं करूंगा और जो मैडम ने सिखाया है उसे जिंदगी भर याद रखूंगा। ना कभी गलती करूंगा और ना ही किसी को करने दूंगा। ये लेटर एक बहुत बड़ी अचीवमेंट है।
प्योरिटी की क्लास!
गिरिबाला आगे बताती हैं कि हीलिंग क्लासेस में मैक्सिमम वो लोग आते हैं जो इनोसेंट होते हैं। ऐसे लोग जिनकी गलती कम होती है और किसी कारण से वह फंस जाते हैं। यहां वैसे लोग नहीं आते जो मन से क्रिमिनल होते हैं। यह एक स्पिरिचुअल क्लास है इसमें प्योरिटी मायने रखती है। इस क्लास में जो लो अच्छ हैं, बाय चांस उनसे गलती हो जाती है और वह पश्चाताप करना चाहते हैं वही लोग यहां आ पाते हैं। जो क्रिमिनल यहां आए वह अच्छे बनने की प्रक्रिया में होते हैं। वो लोग इतने सेंसिटिव होते हैं की उन्हें औरा में कलर दिखने लग जाते हैं। एक केस है जिसमें एक बच्चा है जो बहुत अच्छे घर का है लेकिन उसे गुस्सा बहुत ज्यादा आता है। वह अभी जेल में एक मर्डर करके आया है। उसे एक ने हर्ट किया और उसने गुस्से में उस व्यक्ति को कैची मार दी। जेलर सर को उस पर बहुत ज्यादा गुस्सा आया और उसे अकेला कर दिया। उसके लिए वह माहौल बहुत ज्यादा खराब हो रहा था। उसके पेरेंट्स को बुलाया गया। कुछ समय पहले उसके पापा की भी डेथ हो गई जो कि पुलिस में थे। उसके लिए मैंने जिम्मेदारी ली और मैंने परमिशन मांगी कि मैं इस बच्चे की काउंसलिंग करूंगी ताकि उसके आगे की लाइफ खराब ना हो क्योंकि जेल में रहने के दौरान भी उसे कई बार गुस्सा आ गया था।
2 महीने की हीलिंग क्लासेस के बाद मेरे ग्रुप के लोगों ने उसकी हीलिंग की और मैंने उसकी काउंसलिंग की। उसे कई सारी मोटिवेशनल बुक्स दीं और आज वह खुद कहता है कि मैं अंदर से बहुत ज्यादा बदल गया हूं। जेल में उसकी तन्हाई का जो पनिशमेंट था वह भी खत्म हो गया। उसके पेरेंट्स भी थैंक्स करते हैं कि उसमें बहुत ज्यादा बदलाव आ गया।
जज साहब के बेटे की भी हीलिंग
गिरिबाला कहती हैं कि कुछ लोगों को अवेयरनेस होती है कि वहां गलती कर रहे हैं लेकिन वह हैबिचुअल होते हैं, लेकिन उन्हें प्यूरिटी के बारे में पता होता है और वह यह सोचते हैं कि मुझे अच्छे काम करने हैं। वह यहां कोशिश कर सकते हैं। यहां पर बहुत अच्छी हीलिंग की गई है। एक केस में जज साहब के बेटे की हीलिंग की गई जो की बहुत ज्यादा रेयर केस था। बच्चे को ब्रेन की प्रॉब्लम थी। वह बच्चा 50% एक दो हीलिंग में ठीक हुआ। लेकिन बाहर जाकर उसका फिर से वही माइंडसेट हो गया। उसने कोई गलती नहीं की लेकिन बाहर जाकर उसके अंदर वह प्योरिटी नहीं रही। जिस तरह से रोजाना नहाने खाने से ग्रोथ होती है ठीक उसी तरह से स्पिरिचुअलिटी के भी रोजाना प्रेक्टिस करने से ही ग्रोथ होती है। उसके बहुत अच्छे रिजल्ट हैं बाहर जाकर भी लोग कांटेक्ट में रहते हैं और बताते हैं कि वह क्या क्या कर रहे हैं।
कैदियों के बच्चों की स्कूल की फीस भरती हैं?
गिरिबाला ने बताया कि मैं यह काम बहुत पहले से कर रही हूं जब मेरे बच्चे छोटे थे। फकोट से अभी तक मेरे पास 13 बच्चे पढ़ चुके हैं। इस कारण मैं अपने बच्चों के लिए कभी कुछ स्पेशल नहीं ला पाई, यहां तक की एक टॉफी तक नहीं ला पाई, क्योंकि मुझे सबको देखना है। मेरी बेटी बहुत ही जायदा सेंसिटिव है। तो मेरी बेटी हमेशा कहती थी कि क्या हम हमेशा ऐसे ही रहेंगे। मैं कभी भी ऐसे बच्चों को बुलाने नहीं गई। मुझे किसी ने बताया कि बच्चे अच्छे घर से हैं और सड़क पर यहां वहां घूम रहे हैं। बच्चों की मां स्लो लर्नर है पापा अल्कोहलिक है। रात को शराब पीकर घर से बाहर निकाल देते हैं। तो मैंने बच्चों को अनाथ आश्रम छोड़ा था लेकिन उनकी आदतों की वजह से उन्हें वहां नहीं रखा गया क्योंकि उन्हें कुछ सिखाया नहीं गया था।
बच्चों के पिता भी लड़ने लगे कि मेरे बच्चों को कहां छोड़ा है वापस लेकर आओ। उनमें से एक बच्चा काफी सेंसिटिव था। वह अपने रिलेटिव के यहां पर पड़ता था, लेकिन रिलेटिव्स उससे पढ़ाई की बजाय काम करवाते थे। मैं उसको लेकर आई। वह बहुत अच्छा बच्चा निकला। वह बच्चा नवोदय स्कूल में पढ़ा। इसके बाद उसने पॉलिटेक्निक कोर्स किया और आज वहां अपना मशरूम का बिजनेस कर रहा है। आज वह बहुत अच्छा कर रहा है। मुझे लगता है अगर मेरे एक टुकड़ा देने से कुछ फर्क पड़ेगा तो मैं जरूर दूंगी। इसमें मेरा परिवार मेरा पूरा साथ देता है। पहले मेरी बेटी को दिक्कत होती थी उसे लगता था कि मम्मी पूरा टाइम बाहर देती हैं। लेकिन अब वह शेयरिंग करना सीख गई है और अब वह मुझे फाइनेंशियली भी सपोर्ट करती है।
डिप्रेशन के वो केस
गिरिबाला ने आगे बताया कि जब मैं जिला कारागार में आई तो सर ने मुझे दो डिप्रेशन के केस बताए थे। एक लेडी टिहरी की। वह हमेशा यह कहती थी कि तू मुझे यहां से निकाल दे मुझे इस मिट्टी में नहीं मरना है। वह महिला इनोसेंट थी। वह अपने हस्बैंड की गलती के कारण फंस गई थी। वह हमेशा रोती रहती थी। उन्हें काफी मोटिवेट किया गया एक तरह से उन्हें अडॉप्ट किया गया। जेल प्रशासन से परमिशन लेकर हम उनकी छोटी-मोटी जरूरत को पूरा करते थे। इसके बाद में हैप्पीनेस आई और वह मुझे यही बोलती थी कि तुम मुझे किसी भी तरह यहां से बाहर ले जा। बाय चांस वह जेल से बाहर निकल गई लेकिन उन्हें रिसीव करने वाला ना तो उनका कोई बच्चा था और ना ही कोई और रिश्तेदार। उनके हस्बैंड के ऊपर भी मर्डर का केस था। फिर मैं उन्हें लेकर गई, मैंने उनके गांव के प्रधान से बात की तो प्रधान ने उन्हें गांव में रखने से साफ मना कर दिया क्योंकि जिन लोगों ने उसके खिलाफ केस किया था वह उसके बहुत ज्यादा अगेंस्ट थे जबकि सबको पता था कि गलती उनकी नहीं है। फिर मैंने उन्हें 2 महीने अपने पास रखा। जिसके बाद हमारे ग्रुप के लोग पुलिस की परमिशन लेकर उस महिला को उनके गांव छोड़कर आए। आज उनकी एक झोपड़ी बना दी है। एक सज्जन ने सपोर्ट किया। इसके साथ ही यहां डॉक्टर्स और लोगों में भी मदद की। आज वह खुद अपना खाना बनाकर खा रही है। गांव वाले भी उनकी मदद कर रहे हैं। हमारे लिए यह बहुत बड़ा अचीवमेंट है।
सवाल – समाज में बहुत सारे लोग साइलेंटली काम करते हैं।
मैं ऊपर जाऊंगी तो अफसोस नहीं होगा
गिरिबाला कहती हैं कि मुझे लगता है मैं किसी भी टाइम ऊपर जाऊंगी तो मुझे अफसोस नहीं होगा क्योंकि मैंने अपने जीवन का सही यूज किया है।
आखिर में दो बात
इस स्टोरी को बताने का हमारा मकसद यह था कि जेल को लेकर हमारे मन में कुछ पूर्वाग्रह होते हैं। जेल में कई तरह के लोग आते हैं। कुछ ऐसे जो जघन्य अपराध के चलते जेल में आते हैं तो कुछ ऐसे होते हैं जो कुछ कारणवश अपराध में फंस जाते हैं या कोई जाने अनजाने अपराध कर बैठते हैं। लेकिन वह अपनी सजा काटने के बाद जब यहां से जाएं, उन्हें एक बेहतर इंसान बनकर सोसाइटी में भेजा जाए ताकि वह फिर से उसे सोसाइटी का हिस्सा बन सके कुछ ऐसी ही कोशिश गिरिबाला जुयाल जी कर रही हैं। आज हमने आपके साथ जो देखा, समझा उसे देखकर जेल को लेकर हमारे भी मन में जो धारणा थी वो भी टूटी और कई सारी एक्टिविटीज यहां हो यही हैं। यहां आर्ट्स पेंटिंग हो रही है, लोग लकड़ियों पर काम कर रहे हैं, वीविंग हो रही है। इसके साथ ही खेल प्रशासन कितना अच्छा काम कर रहा है यह भी हमें देखने का मौका मिला। उनसे बात करके यह पता चला कि अगर आप चेंज लाना चाहते हैं तो पॉजिटिव चेंज कहीं भी लाया जा सकता है।