Uttarakhand … अब इसे क्या कहा जाए। लापरवाही और अनदेखी जैसे शब्द छोटे जान पड़ रहे हैं। जागेश्वर धाम के निकट चार गांवों की बात हो रही है। इनके नाम हैं भागरतौला, चमूवा, कपूकोली, पापगड़ और कदौरी। इनके संपर्क मार्ग को पक्का करने का काम 2016 से चल रहा है। 2025 अप्रैल तक जारी है। नौ सालों बाद भी ग्रामीणों में उम्मीद नजर नहीं आ रही है। क्योंकि काम ठप है। नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD) के तहत स्वीकृत चार करोड़ 71 लाख की इस योजना उद्देश्य था कि इन दुर्गम गांवों को मुख्य बाजार और अल्मोड़ा की सड़कों से जोड़ा जाए। लेकिन आठ किलोमीटर सड़क काटने के बाद काम थम गया। न नालियां बनीं, न रिटेनिंग वॉल, और न ही डामरीकरण हुआ। वहीं, इसके निकट जागेश्वर धाम में लाखों के काम लगातार हो रहे हैं। सवाल उठता है कि आखिर इन ग्रामीणों का क्या दोष है कि उन्हें एक पक्की सड़क तक नहीं मिल पा रही है। कुछ ग्रामीण कहते हैं, यहां वोट कम है, इसलिए विकास कार्य नहीं हो रहे हैं। यह टिप्पणी शासन प्रशासन के मुंह पर तमाचे जैसी है। क्या विकास का पैमाना वोटरों की संख्या पर आधारित हो गई है। इनका आक्रोश बेवजह नहीं है।
स्थानीय किसान प्रकाश चंद्र भट्ट कहते हैं, 2016 में उम्मीद जगी थी, लेकिन नौ साल बाद भी सड़क बस एक खतरनाक रास्ता है। वाहन वाले इस रास्ते पर आने से कतराते हैं, और अगर आते भी हैं तो किराया दोगुना लेते हैं। हम खुद को ठगा महसूस करते हैं। बारिश के मौसम में यह अधूरी सड़क जानलेवा साबित होती है। दर्जनों लोग फिसल कर घायल हो चुके हैं, और अब तो गांव वाले हल्की बारिश में भी घर से निकलने से डरते हैं।
यहीं के गणेश भट्ट की आवाज में बेबसी साफ झलकती है, वह कहते हैं-हमारे खेतों में भरपूर सब्जियां होती हैं, लेकिन जब उन्हें बाजार तक ले ही न जा सकें तो क्या फायदा? हमने अफसरों से लेकर मंत्रियों तक गुहार लगाई, पत्र लिखे, फोन किए — लेकिन कहीं से कोई जवाब नहीं मिला। सड़क न होने की मार केवल रोजमर्रा की दिक्कतों तक सीमित नहीं। गांवों से पलायन तेज हुआ है। एक समय जो गांव रौनक से भरपूर थे, वहां अब ताले लगे मकान और सूनी गलियां हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य और मूलभूत सुविधा के लिए लोग शहरों का रुख कर चुके हैं।
सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल उठते हैं जब जागेश्वर धाम के नाम पर करोड़ों खर्च हो रहे हैं, और पास के गाँवों की सिसकियां अनसुनी रह जाती हैं। भागरतौला के रमेश चंद्र कहते हैं, हमारी पीड़ा क्या किसी को दिखाई नहीं देती। मुख्यमंत्री ने खुद श्रावणी मेले के दौरान कहा था कि सड़क बनेगी। मगर वो वादा, वादा ही रह गया।
इस मामले में PWD के सहायक अभियंता हरीश जोशी का कहना है कि कार्य में देरी हुई है। डामरीकरण प्रस्तावित है, लेकिन औपचारिक स्वीकृति अभी नहीं मिली। वन विभाग ने कुछ आपत्तियां लगाई थीं, जिससे काम धीमा पड़ा। हम कोशिश कर रहे हैं समाधान निकालने की।
लेकिन सवाल वहीं का वहीं है, आखिर और कितनी देर तक इंतजार करेंगे हम? इन गांवों की आवाज कोई नहीं सुनता, शायद इसलिए क्योंकि यहां वोट कम और दर्द ज्यादा है।