उत्तराखंड राज्य आंदोलन … दो अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर जो कुछ हुआ उसे बिसर पाना उत्तराखंडवासियों के लिए मुश्किल है। वाकये को तीस साल बीत चुके हैं। मगर, इसका जख्म अभी तक नहीं भरा है। यहां पुलिस की फायरिंग में सात लोगों ने अपनी जान गंवाई थीं। महिलाओं के साथ अभद्रता की सारी हदें पार कर दी गईं। आरोप दुष्कर्म का भी है। आज हम आपके सामने मुफ्फरनगर कांड की सबसे बड़ी गवाही पेश करने जा रहे हैं। राज्य आंदोलनकारी और घटना की सीबीआई गवाह ऊषा भट्ट ने उस दिन की घटना को जिस तरह बयान किया है, जो भी सुनेगा सिहर जाएगा।
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ऊषा भट्ट बताती हैं, बस जैसे ही मुफ्फरनगर तिराहा पहुंचती है। वहां मौजूद सैकड़ों पुलिसकर्मी बस को घेर लेते हैं। बस पर लाठी-डंडे बरसाने लगते हैं। इससे बस के सामने का कांच टूट जाता है। खिड़कियों के भी कांच टूट जाते हैं। मैं आगे की सीट पर बैठी थी। उठ कर कंडक्टर के पास वाली सीट तक पहुंच गईं। कंडक्टर की सीट के सामने जो रॉड होता है उसे और गेट को पकड़ लिया। उधर, पुलिस वाले दरवाजे पर जोर-जोर से धक्के मार रहे थे। डंडे से प्रहार कर रहे थे। एक डंडा मेरे दाहिने हाथ पर पड़ गया। इससे हाथ दरवाजे से छूट जाता है। पांच-छह पुलिसकर्मी बस में दाखिल होते हैं। हमें मरने का डर नहीं था। हमारे साथ पांच-छह छात्राएं थीं। हमें उनकी इज्जत बचाने की चिंता थी।
उत्तराखंड आंदोलन के दौरान मुजफ्फरनगर में क्या हुआ था महिलाओं के साथ, सुन लीजिए सबसे बड़ी गवाही। @Thirdpolelive शुक्रिया ये बताने के लिए इस राज्य के लिए क्या-क्या कुर्बानियां दी गई हैं। @mannu_rawat @pradeepsati_ #UttarakhandFoundationDay pic.twitter.com/K1QeO7jJ5N
— Arjun Rawat (@teerandajarjun) November 9, 2024
(यू-ट्यूब चैनल थर्ड पोल ने ‘उत्तराखंड राज्य निर्माण की समरगाथा’ नाम से एक डॉक्यूमेंट्री में राज्य आंदोलनकारियों के अनुभवों और आपबीती को पेश किया है… ऊषा भट्ट जी का वक्तव्य उसी का अंश है। )
वह बताती हैं, बस में मौजूद अन्य महिलाओं ने सूझबूझ दिखाते हुए अपनी बिंदी उन छात्राओं को पहना दीं। अपना दुपट्टा-शॉल उन्हें ओढ़ा दिया। उन्हें किनारे बैठा दिया। ताकि, हम पर आंच आए लेकिन लड़कियां सुरक्षित रहे। पुलिसकर्मी बस में चढ़ते ही महिलाओं को गलत तरीके से छूने लगे। गाली तो वह दे ही रहे थे। कह रहे थे बड़े आए राज्य लेने वाले। रं…कही की।
एक पुलिसकर्मी करीब 30-32 साल का था। वह एक लड़की पर हाथ डाला। लड़की ने दीदी कहकर चिल्लाई। मैं उसके पास पहुंची। पुलिस वाले को दूर झटका। मैंने उसे गाली दी। उससे कहा, तुम्हारी मां-बहन होती तब भी तुम ऐसे ही हाथ लगाते। माचिस से तीली निकालकर उसे धमकी दी कि हम लोग अपने को आग लगा लेंगे। इसके बाद वे बाहर निकले।
सारी महिलाएं चिल्ला रही थीं। सभी भूख-प्यास से तड़प रहे थे। हमारे पास पानी तक खत्म हो गया था। अब बाहर कौन जाएं। सब दहशत में थे। पास में एक पेड़ के पास नल था। बड़ी हिम्मत कर कुछ महिलाएं पानी के लिए उतरीं। उनके साथ क्या हुआ? (यह कहते हुए उनका गला रुंध आया) दो घंटे बाद ये लोग लौटीं, क्या हुआ होगा? आप समझ सकते हैं। कुछ बताने लायक नहीं है। इन महिलाओं ने सीबीआई के सामने अपना बयान दर्ज कराया है।
बस ड्राइवर को सीट के नीचे छिपाया
ऊषा भट्ट बताती हैं, जब पहले वाले पुलिसकर्मी चले गए। कुछ देर बाद कुछ और पुलिस वाले आए… भद्दी-भद्दी गाली देने लगे। कुछ देर बाद हमारा बस का ड्राइवर वापस आया। वह गुस्से में था। उसने बस से एक रॉड निकाली। कहने लगा अब चाहे जो हो जाए इन लोगों को नहीं छोड़ूगा। ये हमारी मां-बहनों को गाली कैसे दे सकते हैं। हम लोगों ने उसे किसी तरह समझाया। उसे एक सीट के नीचे किसी तरह लिटा दिया। सीट के ऊपर हम लोग बैठ गए। हमें लगा कि पुलिस वालों के हाथ ये लग गया तो इसे मार ही डालेंगे।
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घटना के 30 साल बीतने के बावजूद आंदोलन में शहीदों के स्वजन आज भी इंसाफ को भटक रहे हैं। घटना के बाद दर्ज छह में से चार केस की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में चल रही है। दुष्कर्म से जुड़े दो मुकदमों की सुनवाई अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश-7 कोर्ट में चल रही है।
मुजफ्फनगर कांड…
तीन दशक पहले पहाड़ों में अलग उत्तराखंड की मांग धीरे-धीरे जोर पकड़ने लगी थी। आंदोलनकारियों ने अक्टूबर 1994 में उत्तराखंड निर्माण के लिए दिल्ली कूच का कार्यक्रम तय किया था। दो अक्टूबर को मौजूदा उत्तराखंड से गाड़ियों में भरकर आंदोलनकारियों ने दिल्ली के लिए कूच किया। शाम के समय जैसे ही आंदोलनकारियों की गाड़ियां मुजफ्फरनगर के छपार थाना क्षेत्र के रामपुर तिराहा पर पहुंची, तो उन्हें बेरीकैड कर रोक लिया गया। पुलिस के रोके जाने से आंदोलनकारियों में गुस्सा पैदा हो गया। विरोध उग्र होता देख पुलिस ने फायरिंग कर दी। इसमें 7 आंदोलकारी शहीद हुए। आरोप था कि महिलाओं के साथ अभद्रता की गई, रेप के भी आरोप लगे।
देहरादून नेहरू कालोनी निवासी रविंद्र रावत उर्फ गोलू, भालावाला निवासी सतेंद्र चौहान, बदरीपुर निवासी गिरीश भदरी, अजबपुर निवासी राजेश लखेड़ा, ऋषिकेश निवासी सूर्यप्रकाश थपलियाल, ऊखीमठ निवासी अशोक कुमार और भानियावाला निवासी राजेश नेगी ने पुलिस की फायरिंग में अपनी जान गंवाई। जब यह घटना हुई तब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। 1995 में पूरे घटनाक्रम की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी। जांच कर सीबीआई ने 7 मामलों में चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की थी। इनमें छह मुकदमे आज भी विचाराधीन हैं।
एडीजे शक्ति सिंह की कोर्ट में चल रहे दो मुकदमे
हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने आरोपियों पर दर्ज मुकदमों की विवेचना कर कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी। इनमें सीबीआई बनाम ब्रजकिशोर, सीबीआई बनाम राजवीर, सीबीआई बनाम एसपी मिश्रा और सीबीआई बनाम राजेन्द्र सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट में विचाराधीन हैं।
महिलाओं से रेप से संबंधित केस सीबीआई बनाम राधामोहन द्विवेदी और सीबीआई बनाम मिलाप सिंह अपर जिला एवं सत्र न्यायधीश-7 शक्ति सिंह की कोर्ट में विचाराधीन हैं। एडीजे-7 कोर्ट में दोनों मुकदमों की फाईल अप्रैल 2023 में ट्रांसफर की गई थी। सीबीआई बनाम मिलाप सिंह मामले में 28 वर्ष के दौरान केवल एक चश्मदीद की गवाही हो पाई थी। लेकिन एडीजे-7 कोर्ट में केस ट्रांसफर होने के बाद से मामले में तेजी आई और इस दौरान उक्त मुकदमा अंतिम पड़ाव पर पहुंच गया। हालांकि, इंसाफ का इंतजार आज भी है।