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    Startup हो तो ऐसा, उत्तराखंड से दुनिया में बजा रहे टैलेंट का डंका

    साल 2017 में तीन दोस्तों ने इस सोच के साथ अपना Startup शुरू किया कि पहाड़ के लोगों को ही रोजगार देना है। 4 लोगों से शुरू हुआ यह सफर 80 लोगों की प्रोफेशनल टीम तक पहुंच गया है। आज ये लोग अमेरिका, ब्रिटेन, मिडिल ईस्ट के कई देशों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
    Arjun Singh RawatBy Arjun Singh RawatAugust 5, 2024Updated:August 5, 2024No Comments
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    आज के दौर में जब देश में हर तरफ नौकरी मांगने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, रोजाना देश के अलग-अलग हिस्सों में रोजगार के लिए आंदोलन हो रहे हैं, ऐसे समय में ‘अतुल्य उत्तराखंड’ आपको पहाड़ के ऐसे युवाओं से रूबरू करा रहा है, जिन्होंने अच्छी खासी नौकरी छोड़कर घर वापसी की। अपनी मेहनत के दम पर न केवल एक Startup कह लीजिए या एक बड़ी कंपनी खड़ी की, बल्कि 80 से ज्यादा लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। आज इन युवा उद्यमियों की अगुवाई वाली टीमें अमेरिका, इंग्लैंड, इस्राइल, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अपनी सेवाएं दे रही है। बड़ी बात यह है कि अब ये लोग क्लाइंट के पास नहीं जाते, क्लाइंट इन्हें खुद अप्रोच करते हैं। यह कहानी रिवर्स पलायन और स्टार्टअप का बेहतरीन उदाहरण है।

    हमने अपने परिवार, आसपास देखा है कि किस तरह घर के बड़े-बुजुर्ग अपने लोगों को आगे बढ़ाते हैं। मेरे दिमाग में भी यही सोच है, क्यों न अपने राज्य के लोगों के लिए कुछ किया जाए। – अमित रावत, को-फाउंडर, स्टीलएरा

    देहरादून में इस कंपनी का दफ्तर किसी बड़े शहर के कॉर्पोरेट ऑफिस का अहसास कराता है। मगर, किसी कर्मचारी से बात करते ही पता चल जाता है कि यहां काम करने वाले सारे लोग तो अपने पहाड़ के हैं। ये युवाओं की एक ऐसी पेशेवर टीम है, जिसमें कंपनी के फाउंडर्स से लेकर कर्मचारी तक, सभी 35 साल से कम उम्र के हैं। ये लोग अमेरिका, इंग्लैंड, इस्राइल समेत मिडिल ईस्ट के कई देशों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इस कंपनी का नाम है – स्टीलएरा स्ट्रक्चर्स प्राइवेट लिमिटेड। यह कंपनी स्टील स्ट्रक्चर्स की डिटेल डिजाइनिंग का काम करती है।

    दुनिया के बड़े देशों में बिजनेस कर रही यह कंपनी तीन युवा दोस्तों राहुल रावत, अमित रावत और सौरभ सिंह की सोच का परिणाम है, जिन्होंने बहुत कम उम्र में यह ठान लिया कि अपना काम करना है और अपने ही राज्य में करना है। तीनों पहले बाहर नौकरी करते थे, बड़ी कंपनी थी, अच्छा पैकेज था। लेकिन, मन में था कि अपने लोगों के बीच कुछ किया जाए। कुछ लोगों को रोजगार दें। पहाड़ से पलायन रोकने में अपना योगदान दें। इसी सोच के साथ तीनों देहरादून आए।

    हमारा उद्देश्य यही था कि लोगों को रोजगार दें। समाज की मदद करें। इसमें काफी हद तक सफल रहे हैं। आज हम 80 लोगों की टीम हैं। भविष्य में यह टीम और बड़ी होने वाली है। हमें खुशी होती है कि सोसाइटी के लिए कुछ कर पा रहे हैं। – राहुल रावत, को-फाउंडर स्टीलएरा

    बात 2014 के आसपास की है। देहरादून से 240 किलोमीटर दूर देश की राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा में गढ़वाल के राहुल और अमित की मुलाकात हुई। उस समय शायद इन दोनों को भी यह अंदाजा नहीं रहा होगा कि उनकी जोड़ी आने वाले समय में कितना बड़ा काम करने वाली है। दोनों एक प्रतिष्ठित कंपनी में अच्छा जॉब कर रहे थे। पौड़ी गढ़वाल के सैन्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले राहुल रावत कहते हैं, सोच में हमेशा से यह रहा कि हम देश के लिए क्या कर रहे हैं? मैंने उत्तराखंड में पढ़ाई करने के बाद बहुत दिन नौकरी ढूंढ़ी। नहीं मिली तब यहां से बाहर निकलना पड़ा। वह कहते हैं, उत्तराखंड के लोगों के लिए रोजगार सबसे बड़ा कंसर्न रहा है। यहां पर उतने मौके नहीं हैं। 2014 को जब मैंने पहली जॉब की, तब से यह दिमाग में था कि अपने राज्य के लोगों के लिए कुछ किया जाए। नोएडा में ही सौरभ और अमित से मुलाकात हुई। हम लोगों के बीच अच्छा तालमेल बैठ गया। हम अक्सर यह सोचते थे कि कुछ अपना किया जाए। कहां किया जाए… इस बारे में मेरी और अमित की सोच थी कि क्यों न उत्तराखंड में ही किया जाए। नोएडा या अन्य शहरों के मुकाबले यहां पर हम किफायती कंपनी शुरू कर सकते थे। इसपर हम लोगों ने करीब तीन साल तक प्लानिंग की। इसके बाद 2017 में हमने अपनी कंपनी शुरू की। वह कहते हैं- हर कंपनी के तीन स्टेज होते हैं-स्ट्रगल, स्टेबिलिटी और ग्रोथ। बकौल राहुल, स्ट्रगलिंग के स्टेज से हम बाहर आ गए हैं। अब हम स्टेबिलिटी की ओर बढ़ रहे हैं। अब हम अपने स्टॉफ को अच्छी सैलरी भी ऑफर कर पा रहे हैं। इसके बाद जब हम ग्रोथ स्टेज में आ जाएंगे तो हम भी बाहर वाली यानी जो सैलरी दिल्ली, बेंगलुरू जैसे दूसरे बड़े शहरों में मिल रही है, उसे दे पाएंगे।

     

    राहुल कहते हैं, हम चार लोगों ने शुरुआत की, फिर 4 से 40 हुए और 40 से 80 हो गए। यहां के युवा उत्तराखंड में बैठे-बैठे दुनिया भर में अपनी मेधा का परचम लहरा रहे हैं। बहुत कम उम्र में लोगों को रोजगार देने का सपना देखा था…आज हम दुनिया भर में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

    वहीं, सौरभ सिंह कहते हैं-पहाड़ हमेशा से आकर्षित करते थे। लेकिन, पहली बार 2017 में उत्तराखंड घूमने का मौका मिला। मुझे यहां का वातावरण बहुत अच्छा लगा। यहां के लोग पसंद आए। राहुल और अमित हमेशा से क्लीयर थे। यहां आने के बाद मुझे भी लगा कि यहां हम काम कर सकते हैं। अब तो मैं भी पहाड़ों का हो गया हूं। लगता ही नहीं मैं दिल्ली से हूं। मुझे पहाड़ी बोली समझ में आने लगी है। काफी कुछ बोल भी लेता हूं।

    अमित पौड़ी के नैनीडांडा ब्लॉक के मैंदोली गांव के रहने वाले हैं। किनगोड़ीखाल इंटर कालेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पहले सल्ट महादेव से आईटीआई किया और फिर दिल्ली जाकर सिविल में डिप्लोमा और ग्रेजुएशन की। वहीं, राहुल नैनीडांडा ब्लॉक के ही गौलीखाल (भट्या) के मूल निवासी हैं।

    शुरुआती चुनौतियों का जिक्र करते हुए राहुल करते हैं कि कंपनी शुरू करने के दो वर्ष के भीतर कोरोना आ गया। तब हमारी 35 लोगों की टीम थी। सब नए थे। यह हमारे लिए एक बड़ा गतिरोध था। 35 लोगों का काम हम सात लोगों ने पूरा किया। उस समय हमें बहुत काम करने को मिला। एक्सपोजर भी मिला। एक वर्ष बाद कोरोना की दूसरी लहर आ गई।  फिर हमें वैसी ही परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। दौर तो मुश्किल था। लेकिन, हमें सर्वाइव करना आ गया और जिसको सर्वाइव करना आ गया वह बिजनेस में ग्रोथ करेगा ही करेगा।

    किसी भी कंपनी की सफलता उसके कर्मचारियों की योग्यता पर ही निर्भर करती है। जब कंपनी बनाने की बात आई तो किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा, देहरादून में कॉलेज से निकले युवाओं को कैसे तैयार किया, इस सवाल पर राहुल बताते हैं- पहाड़ के अधिकांश लोग हिंदी मीडियम से होते हैं। हमारा ज्यादातर काम बाहर के देशों में होता है। सभी क्लाइंट के साथ अंग्रेजी में डील करनी होती है। यहां के लड़कों की अंग्रेजी उतनी अच्छी नहीं होती है। उन्हें समझाने में दिक्कत आती है। इसके लिए हम अपने स्टाफ को प्रोपर ट्रेनिंग देते हैं। किसी पेशेवर को तैयार करने में हमें दो साल तक का समय देना होता है। दो साल बाद वह इस काबिल हो जाता है कि वह क्लाइंट से अकेले डील कर लेता है। वह कहते हैं, उत्तराखंड के युवाओं का मुख्य मुद्दा सैलरी ही रहता है। हम अपनी कंपनी में युवाओं को अच्छी ट्रेनिंग देते हैं। लेकिन, उन्हें लगता है कि बाहर अच्छी सैलरी मिलती है। हमारी कंपनी जैसी-जैसी बड़ी हो रही हम अच्छी सैलरी भी ऑफर कर रहे हैं। आज हमारे माता-पिता जब यहां आते हैं तो गर्व से उनका सीना चौड़ा हो जाता है।

    हमारे स्टॉफ में कई ऐसे लोग हैं, जो सुदूर इलाकों से आते हैं। आज ये सभी उस हाई टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं जिसे कंस्ट्रक्शन के फील्ड में सबसे आधुनिक माना जाता है। कई लोग यहां काम करने के बाद दूसरी कंपनियों में अच्छे पैकेज पर गए हैं। यह बहुत संतोष देता है कि हम बेहतरीन प्रोफेशनल तैयार कर रहे हैं।  – सौरभ सिंह, को-फाउंडर, स्टीलएरा

    अमित कहते हैं, पहाड़ी लोगों का जीवन और परेशानी दोनों का चोली-दामन का साथ है। हम लोग जब स्कूल में पढ़ते थे तो काफी दूर तक पैदल चलना पड़ता था। उस समय हमारे मां-बाप को भी बाहर की दुनिया के बारे में कुछ पता नहीं होता था। उस समय सुविधाएं भी नहीं थीं। हालांकि, आज के लोग अपने बच्चों की शिक्षा को लेकर काफी जागरूक हैं। पहाड़ों के लोगों की दुनिया काफी छोटी होती है। कई इलाके ऐसे हैं जहां पर लड़कों को बहुत ज्यादा घूमने-फिरने को नहीं मिलता है। ऐसे में जब वह दिल्ली, बेंगलुरू या गुरुग्राम जैसे शहरों में पहुंचते हैं, काफी असहज हो जाते हैं। रहने-खाने की समस्या का सामना तो करना ही पड़ता है। साथ ही शहर अनजान होता है। भीड़भाड़ भी यहां के युवाओं को असहज करती है, क्योंकि पहाड़ के लोग खुले वातावरण में रहने के आदी होते हैं। शहरों का प्रदूषण उन्हें परेशान करता है। इन सारी समस्याओं का हम सामना कर चुके हैं। इसलिए हम अपने कर्मचारियों की तकलीफों को महसूस करते हैं।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं, युवाओं को जॉब खोजने वाला नहीं, जॉब देने वाला बनना चाहिए। लेकिन उत्तराखंड के युवाओं की प्राथमिकता सर्विस सेक्टर होती है। क्या यह सोच बदल रही है? इस सवाल पर  राहुल कहते हैं, हम लोगों ने भी पढ़ाई के बाद नौकरी से ही शुरुआत की थी। लेकिन, अब अपना बिजनेस कर रहे हैं। राज्य में ऐसे कई युवा हैं जो अपना काम कर रहे हैं। लोगों को रोजगार दे रहे हैं। स्थितियां बदल रही है। यहां का युवक भी रोजगार देने वाला बन रहा है।

    बातचीत के दौरान दार्शनिक अंदाज में अमित कहते हैं, एक न एक दिन तो सबको यहां से जाना होगा। हमारा काम ही याद रहेगा। इसलिए सबको काम करना चाहिए। हमारी कोशिश भी यही है कि लोग हमारे काम को याद रखें। जैसे पहाड़ों पर पानी नहीं रुकता वैसे ही यहां के टैलेंट के बारे में कहा जाता है कि प्रतिभावान युवा पलायन कर जाते हैं। लेकिन, देहरादून के इस कॉरपोरेट ऑफिस में आकर यह सोच बदल जाती है। सब युवा टैलेंटेड हैं। खुशी होती है कि यह देखकर कि यहां पेशेवर लोगों की कोई कमी नहीं है। सबसे खास बात यह है कि सब ऐसे युवा हैं, जो पहाड़ नहीं छोड़ना चाहते। वह इस बात से खुश हैं कि उन्हें यहीं पर एक अच्छा अवसर मिल गया है।

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    Arjun Singh Rawat
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    पत्रकारिता का लंबा करियर। एजेंसी,टीवी, अखबार, मैग्जीन, रेडियो और डिजिटल मीडिया का अनुभव। राष्ट्रीय मीडिया में 15 साल काम करने के बाद पहाड़ों का रुख। पहाड़ के मुद्दों पर खुलकर बोलने का दम। जमीन पर काम करने का जज़्बा और जुनून आज भी वैसा ही, जैसा पहले दिन था।

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