जो सुपरहिट गीत आप अपने मोबाइल, टीवी पर देखते और सुनते हैं, जिनकी धुनों पर शादी, पार्टियों में थिरकते हैं उनके पीछे यानी बिहाइंड द कैमरा कई लोगों की मेहनत होती है। ये गाने कैसे शूट होते हैं? इसमें क्या-क्या चुनौतियां सामने आती हैं? इन्हीं सब सवालों का जवाब मिलेगा उत्तराखंडी गीतों के पांच स्टार से, जो कैमरे के सामने नहीं, कैमरे के पीछे रहकर इन गीतों सुनने वालों लिए तैयार करते हैं। उत्तराखंड के इन पांच नगीनों में से कुछ परदे पर भी कमाल दिखा रहे हैं या दिखा चुके हैं। पिछले पांच वर्षों में उत्तराखंड में जितने भी हिट गाने आए हैं, उनमें इनका अहम योगदान है। ये हैं सिनेमैटोग्राफर गोविंद नेगी, एक्टर-डायरेक्टर अबु रावत, सोहन चौहान, सिंगर-एक्टर शैलेंद्र पटवाल और कोरियोग्राफर सैंडी गुसाईं।
तीन जिलों से Ground Report: बदलाव की उड़ान को पंख
पहले के मुकाबले अब म्यूजिक इंडस्ट्री काफी बदल गई है, किसी गीत को शूट करने के लिए खूबसूरत लोकेशन तो हमेशा से थी लेकिन अब कैनवास बड़ा हो चुका है। शूट करने का तरीका बदल गया है। लोग इससे आकर्षित भी हो रहे हैं। पिछले डेढ़ दशकों से पहाड़ी म्यूजिक इंडस्ट्री में हुए बदलाव के साक्षी रहे गोविंद नेगी कहते हैं-मैं 2007 से इस इंडस्ट्री में हूं। तब टेप, रील वाले कैमरे होते थे। डिजिटल टेक्नोलॉजी आने के बाद हमारे लिए सब चीजें एकाएक बदल गईं। हालांकि, दूसरों के मुकाबले हमने आधुनिक तकनीकी अपनाने में देर की। इक्विपमेंट बदल गए थे। हमने धीरे-धीरे खुद को बदला। अब चुनौती थी कि अपनी पहाड़ों की संस्कृति-विरासत और राज्य की खूबसूरती को कैसे देश-दुनिया को दिखाएं। मतलब, काम के स्तर को और ऊंचा करने की जरूरत थी। प्रोडक्शन कंपनियों ने भी इस बात को समझा। उनका विजन स्पष्ट था। इसके बाद हम लोगों ने कई अच्छे गाने-वीडियो बनाए, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया।
बदलावों के बाद क्या इंडस्ट्री सही राह पर है, इस सवाल के जवाब में अबू रावत कहते हैं-हम लोगों की पीढ़ी ने बहुत संघर्ष किया है। हम जुनूनी थे। कहने में संकोच लग रहा है लेकिन लगता है अब की पीढ़ी संघर्षशील नहीं है। वह बिना मेहनत किए सफलता का स्वाद चखना चाहती है। नए लड़के सोचते हैं, महीने भर में ही स्टार बन जाएं। लेकिन, बिना संघर्ष जिनको सफलता मिलती है वह उसे और आगे नहीं बढ़ा पाता है। डायरेक्टर-कैमरामैन क्या चाहते हैं, ऐसे लड़के समझ ही नहीं पाते हैं। (मुस्कुराते हुए) जमाना बदल गया है। सोहन चौहान बताते हैं, सीनियरों के साथ किया हुआ काम अब तक काम आ रहा है। हमारी इंडस्ट्री में हमेशा नया सीखना होता है। हमारे प्रयोगों को लोग पसंद करते हैं तो हौसला और बढ़ जाता है। शैलेंद्र पटवाल बताते हैं – जयपाल भाई, पन्नु भाई को सीडी में जब देखा करता था तो सोचता था कि क्या मैं भी ऐसा बन पाऊंगा। क्या टीवी पर आ पाऊंगा। फिर मौका मिला सीडी के जरिये लोगों के सामने आने का। घरवालों को बोला कि अब मैं भी टीवी पर आऊंगा। वैसे तो डायरेक्शन मैंने एक-दो भजनों को छोड़कर नहीं किए। कोरियोग्राफी भी मेरे बस की बात नहीं लगी। मुझे बस सिंगिंग का शौक है। लिखने का भी शौक है। धीरे-धीरे लिख भी रहा हूं।
गाने देखकर ही पता चल जाता है कि कोरियोग्राफी सैंडी गुसाईं की है। ऐसा क्या खास है, इस पर सैंडी बताते हैं-2007 के आसपास मैंने स्टेज प्रोग्राम से शुरुआत की थी। 2015 तक बैक ग्राउंड वगैरह करता रहा। बाद में कोरियोग्राफी का शौक बढ़ गया।
एक कालजयी गीत बना, ऐजा मेरा दानपुरा…इस गाने के बारे में गोविंद बताते हैं, इस गाने को शूट करने में करीब दो वर्ष लग गए। कुछ गाने ऐसे होते हैं, जिनसे खास लगाव हो जाता है। अंदर से फीलिंग आती है कि इसमें ऐसी-ऐसी चीजें होनी चाहिए। प्रोडक्शन हाउस चांदनी इंटरप्राइजेज से इस बारे में हमारी बात हुई। उन्होंने हमें परमिट किया। उत्तरायणी बागेश्वर वाला मेला शूट करने के लिए हमने एक साल समय लगाया। 2019-20 में इस गाने का शूट किया गया था। उस समय बदिया कोट में कई जगह नेटवर्क नहीं रहता था। कुछ जगहों पर रास्ते भी नहीं थे। गाड़ियां कई किलोमीटर दूर खड़ी कर हम किसी तरह लोकेशन पर पहुंचते थे। गाने की खास बात है कि कुमाऊं और गढ़वाल दोनों जगहों का कल्चर दिखता है। गाना सबको खूब पसंद आया।
यूट्यूब पर दो करोड़ से ज्यादा बार देखे गए कुमाऊंनी गाने ‘क्रीम पौडरा’ के बारे में सोहन कहते हैं, हमको भी नहीं पता था यह गाना लोगों को इतना पसंद आएगा। यह गाना सात घंटे में शूट हुआ था। सोहन एक और रोचक किस्सा बताते हैं, हम दो गानों को शूट करने के लिए लोकेशन खोज रहे थे। एक कुमाऊंनी, दूसरा गढ़वाली। कुछ कलाकारों की डेट्स क्लैश हो जाने के कारण संयोग ऐसा रहा कि कुमाऊंनी गाना क्रीम पौडरा गढ़वाल में माल देवता से आगे एक गांव में शूट हुआ और गढ़वाल का गाना कुमाऊं के भानुपुरा में शूट किया गया।
एक और सुपरहिट गाने ‘हे मधु’ के बारे में सैंडी बताते हैं, शूट के करीब 15 दिन पहले प्रोड्यूशर सुरेश जोशी का फोन मेरे पास आया। उन्होंने गाना समझाया। इस दौरान जो भी महिलाएं मुझसे मिलती उनसे मैं पूछता कि, जुलम हो गया आप कैसे कहती हैं। उनकी बॉडी लैंग्वेज को समझता। छह-सात दिन तक मैं घर में स्टेप के बारे में सोचता और करके देखता रहा। आखिरकार उसमें थोड़ा-बहुत लटक-मटक डालते हुए शूट किया। जिसमें कलाकार माथे पर हाथ रखते हुए बात करती है। मुझे भी अंदाजा नहीं था कि लोगों को यह इतना पसंद आएगा।
शूटिंग और एक-दूसरे की खिंचाई
शैलेंद्र पटवाल कहते हैं, शूट के दौरान अक्सर हम एक-दूसरे की खिंचाई करते हैं। कई क्षण यादगार बन जाते हैं। सोहन और सैंडी एक किस्से को याद कर हंस पड़ते हैं। सोहन बताते हैं- एक बार गांव में शूटिंग कर रहे थे। गांव वाले जमा हो गए। सैंडी एक्टर को स्टेप समझा रहा था। उसके हर स्टेप पर गांव वाले खूब ताली बजा रहे थे। म्यूजिक बंद करने पर चिल्लाने लगते, अरे.. वह अच्छा तो कर रहा है, म्यूजिक क्यों बंद कर दिया। एक बार और…एक बार और। यह करते-करते काफी समय बीत गया। उस इलाके के एक सज्जन ने शूटिंग के बाद हमें दावत पर बुलाया। खाना खाने के बाद परिवार के लोग गोल घेरा बनाकर बैठ गए। बोले-अब तुम लोग डांस करो। हम लोग रात तीन बजे तक नाचते रहे। पैर दुखने लगे थे। (सभी हंसने लगे)
उत्तराखंड के बड़े कलाकार पन्नू गुसाईं के करियर में फिर से आई तेजी पर सोहन कहते हैं, पन्नु भाई हमसे काफी सीनियर हैं। खास बात यह है कि वह हमें सेट पर कभी यह महसूस नहीं होने देते कि हम जूनियर हैं। ये मुझे क्या डायरेक्ट करेगा। क्या बताएगा। पन्नु भाई में खास बात ये है कि डायरेक्टर के दिमाग में जो है, वह उनसे करवा सकता है। किसी भी गाने में यह कह सकते हैं कि वह इस सीन में कंफर्ट नहीं है। वह चेंज करवा सकते हैं। लेकिन, डायरेक्टर जो कहता है वह 100 परसेंट देने की कोशिश करते हैं।
क्या हर गाना मस्ती के साथ शूट होता है? इस पर गोविंद नेगी कहते हैं, सिचुएशन पर डिपेंड करता है। किसी-किसी गाने में हम सबको गंभीर रहना होता है। अबु रावत कहते हैं- चूंकि, हमारी इंडस्ट्री का बजट सीमित रहता है। इसलिए हम लोग लोकेशन का चुनाव भी सोच समझकर करते हैं। कलाकार भी इस बात को समझता है। कलाकारों में काफी स्ट्रेस होता है। हालांकि कोशिश हंसी मजाक के बीच काम करने की रहती है। सोहन कहते हैं- कभी-कभार हम अपनी जिद से कुछ अलग करते हैं। अगर उसका आउटपुट अच्छा निकल जाता है तो ठीक लगता है। प्रोड्यूसर भी खुश हो जाता है।
म्यूजिक इंडस्ट्री में आए बदलाव पर गोविंद नेगी बताते हैं, डिजिटल का दौर आने के बाद अपने यहां भी कई नई प्रोडक्शन कंपनियां आ गई हैं। उनका विजन क्लीयर है। उन्हें उच्च गुणवत्ता वाले कंटेंट चाहिए होते हैं। क्योंकि, बाजार का दायरा बढ़ चुका है। म्यूजिक की कोई भाषा नहीं होती। जैसे, पहले हमारे यहां पंजाबी, असमी, गुजराती गाने सुने जाते थे वैसे ही अब बाहर भी पहाड़ी गाने सुने जाते हैं। हमारे पास ऐसे भी फीडबैक आते हैं, जिसमें श्रोता बोल को नहीं समझ पाते हैं लेकिन, धुन उन्हें पसंद आती है। सोहन कहते हैं, पहले के मुकाबले हमारे काम में फिल्ट्रेशन बढ़ी है। ऐसा नहीं है कि हमें पसंद आ गया तो वह फाइनल हो गया। कई स्तर पर परखा जाता है। इससे काम की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
रोजगार देने में भी इंडस्ट्री आगे
रोजगार देने में भी फिल्म इंडस्ट्री आगे है। गोविंद कहते हैं, अगर कोई गाना यहां पर बनता है तो ऐसा नहीं है कि कैमरामैन, गायक, एक्टर को ही काम मिलता है। इसके पीछे कई लोग होते हैं। ऐसे में रोजगार के अवसर बढ़ हैं। सोहन कहते हैं, मेकअप आर्टिस्ट हमारे यहां से गायब हो गए थे। हम लोकेशन दिखा नहीं पा रहे थे। नई प्रोडक्शन कंपनियों के आ जाने से अब चीजें बदल गईं हैं। रोज कोई न कोई गाना तैयार हो रहा है। हजारों लोगों को इससे रोजगार मिल रहा है। आगे चलकर यह और बढ़ेगा। हमें बस गुणवत्ता पर ध्यान देना होगा।
कैमरों के पीछे छोटे-मोटे काम करने वाले जूनियर आर्टिस्टों का कैरियर बहुत छोटा होता है। एक समय बाद वह एकदम खाली हो जाते हैं। ऐसे लोगों की सामाजिक सुरक्षा के बारे में यह इंडस्ट्री क्या सोचती है? क्या सरकार को कुछ करना चाहिए…इस पर गोविंद नेगी कहते हैं, सही बात है कि तमाम लोगों के काम की एक समय सीमा होती है। उसके बाद वह आप्रसंगिक हो जाते हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि यहां कुछ इंस्टीट्यूट खोले, जिसमें लोगों को प्रशिक्षित किया जा सके। क्योंकि, अगर वह हुनरमंद होंगे तो आगे चलकर कुछ न कुछ अलग कर सकते हैं। पहले हमारे आसपास के लोग मिलने के बाद कहते थे कि उन्हें किसी गाने में हीरो बना दें या हीरोइन बना दें। लोगों को इसके अलावा कुछ मालूम ही नहीं था। जबकि, कैमरे के पीछे ढेर काम होते हैं। ऐसे में अगर यहां कुछ इंस्टीट्यूट खुल जाएं तो बेहतर होगा। हमारे यहां फिल्म सिटी जैसे सेटअप होना चाहिए। हालांकि, इस पर सरकार स्तर पर कभी-कभार बात की जाती है। कभी हमें महज एक पहाड़ी घर की लोकेशन चाहिए होती है। उसके लिए रिमोट एरिया में जाना पड़ता है। सारा सामान ले जाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अगर एक छोटी फिल्म सिटी हो तो आसानी होगी।