रह रहकर Uttarakhand High Court Shifting का मुद्दा गरम हो जाता है। कई सरकारें बदलीं। लेकिन, इस मुद्दे पर एकराय नहीं बना पाई। बुधवार आठ मई को भी यह मुद्दा एक बार फिर गरम हो उठा। मामला इतना बढ़ गया कि अधिवक्ता मुख्य न्यायाधीश की चलती कोर्ट में उनसे मिलने पहुंच गए। दरअसल, हाईकोर्ट में ऋषिकेश स्थित इंडियन ड्रग्स एंड फार्मासूटिकल लिमिटेड (आईडीपीएल) की कुछ याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश ऋतु बाहरी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ सुनवाई कर रही थी। इस मामले में राज्य की मुख्य सचिव राधा रतूड़ी भी ऑनलाइन जुड़ीं थीं।
इस मामले की सुनवाई के बाद ऑर्डर लिखाते समय मुख्य न्यायाधीश ने हाईकोर्ट को गौलापार स्थानांतरित करने को गलत बताते हुए कहा कि इसके लिए ऋषिकेश में आईडीपीएल की 850 एकड़ भूमि एकदम उपयुक्त रहेगी। न्यायालय के इस मौखिक आदेश पारित होते ही नैनीताल के अधिवक्ताओं के बीच खलबली मच गई। कुछ ही क्षण में सभी बार एसोसिएशन सभागार में जमा हो गए। अधिवक्ताओं की नाराजगी का आलम यह था कि वह चलती कोर्ट में सीधे मुख्य न्यायाधीश से मिलने पहुंच गए। इस पर चीफ जस्टिस ने दोपहर दो बजे मिलने को कहा। इस मौके पर हाईकोर्ट बार के अध्यक्ष डीसीएस रावत, सचिव सौरभ अधिकारी, विजय भट्ट, प्रभाकर जोशी, सय्यद नदीम ‘मून’, विकास गुगलानी समेत आदि सैकड़ों अधिवक्ता थे। दोपहर दो बजे हुई बैठक में भी इस मुद्दे पर सहमति नहीं बन सकी।
मुख्य न्यायाधीश ने गौलापार को अनुपयुक्त बताते हुए अधिवक्ताओं से नए सिरे से स्थान सुझाने को कहा है। पिछले पांच वर्षों में वकीलों में भी इस मामले में एक राय नहीं बन सकी है। विभिन्न स्थानों को लेकर उनकी ओर से प्रस्ताव और दावे आते रहे। विडंबना यह भी है कि इस मसले पर शासन-प्रशासन और सरकारी संस्थाएं भी भ्रमित नजर आईं। आलम यह रहा कि किसी प्रस्ताव को एक संस्था उपयुक्त बताती तो दूसरी उसे खारिज कर देती।

कब क्या हुआ…
उत्तराखंड हाईकोर्ट की स्थापना 9 नवंबर 2000 को हुई थी। तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री अरुण जेटली का यह ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाता था। हाईकोर्ट की स्थापना के 19 साल बाद वरिष्ठ अधिवक्ता एमसी कांडपाल ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन को पत्र देकर हाईकोर्ट को यहां से हल्द्वानी शिफ्ट करने की मांग उठाई। हाइकोर्ट ने 26 जून 2019 को अपनी वेबसाइट पर शिफ्टिंग के लिए उपयुक्त स्थानों को लेकर सुझाव मांगे। इसके बाद खींचतान शुरू हो गई। वकील इस मुद्दे पर दो धड़ों में बंट गए। कोर्ट को नैनीताल में ही रहने देने से लेकर हल्द्वानी, रामनगर, रूड़की, हरिद्वार, रुद्रपुर देहरादून, अल्मोड़ा और गैरसैंण में स्थापित करने के सुझाव आए। इससे किसी भी सुझाव से निष्कर्ष निकालना कठिन था।
गौलापार के लिए हाईकोर्ट ने भी दी थी सहमति
गौलापार में वन विभाग के चिड़याघर के लिए प्रस्तावित भूमि के एक भाग में Uttarakhand High Court Shifting पर हाइकोर्ट ने सहमति दी। 16 नवंबर 2022 को धामी कैबिनेट ने कोर्ट को हल्द्वानी शिफ्ट करने का प्रस्ताव पारित कर दिया। 24 मार्च 2023 को केंद्र सरकार ने भी सैद्धांतिक सहमति दे दी। केंद्र ने यह शर्त रखी कि हाईकोर्ट के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराने के बाद ही केंद्र सरकार अधिसूचना की प्रक्रिया शुरू करेगी। 12 जनवरी 2024 को धामी सरकार ने नियोजित विकास के उद्देश्य से गौलापार के आसपास की भूमि की खरीद-बिक्री पर रोक लगा दी।
हाईइम्पावर्ड कमेटी ने वन भूमि हस्तातंरण का प्रस्ताव किया खारिज
24 जनवरी को वन भूमि हस्तातंरण का प्रस्ताव केंद्र सरकार के अधीन हाई इम्पावर्ड कमेटी ने खारिज कर दिया। इसके बाद धामी सरकार ने बेल बसानी में भूमि सुझाई । यह भी उपयुक्त नहीं पाई गई। छह मई 2024 को फिर से शासन ने गौलापार में 20.08 का प्रस्ताव नए सिरे से भेजने का फैसला करते 10 मई तक भूमि हस्तांतरण के प्रस्ताव को परिवेश पोर्टल में अपलोड करने के निर्देश दिए। इस पर कोई बात आगे बढ़ती इसके पहले ही हाइकोर्ट ने बुधवार को गौलापार को अनुपयुक्त बताते हुए नए सिरे से स्थान को लेकर सुझाव मांग लिए। अब मामला फिर वहीं पहुंच गया जहां पांच साल पहले था।
70 प्रतिशत के लिए ऋषिकेश, बाकी कुमाऊं के 30 फीसदी लोगों के लिए नैनीताल
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वो हाईकोर्ट को गौलापार शिफ्ट करने का विरोध करते हैं। उन्होंने गढ़वाल क्षेत्र से आने वाले 70 प्रतिशत लोगों के लिए एक बेंच ऋषिकेश में स्थापित करने का प्रस्ताव किया। कुमाऊं के 30 प्रतिशत लोगों के लिए कोर्ट नैनीताल ही रहेगी।

उत्तर प्रदेश में भी हाईकोर्ट की खंडपीठ बनाने का विवाद है दशकों पुराना
उत्तर प्रदेश में भी हाईकोर्ट की खंडपीठ बनाने को लेकर दशकों से विवाद हो रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों की मांग है कि उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचने में काफी समय लगता है। चूंकि, उत्तर प्रदेश जनसंख्या और क्षेत्रफल के लिहाज से काफी बड़ा है। इसलिए एक और खंडपीठ बनाई जानी चाहिए। न्याय सबके लिए सुलभ और सहज होना चाहिए। बतादें कि उत्तरप्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट के अलावा लखनऊ में भी एक खंडपीठ है। लखनऊ खंडपीठ के अंतर्गत करीब 13 जिले आते हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ताओं का तर्क है कि हाईकोर्ट की एक और खंडपीठ से इसकी गरिमा को ठेस पहुंचेगी। ऐसे में मांग होने लगेगी कि सुप्रीम कोर्ट की भी खंडपीठ होने चाहिए। आखिरकार, दक्षिण भारत के लोगों को दिल्ली पहुंचने में समय तो लगता ही है। यहां भी रह रहकर यह मुद्दा उछलता रहता है। लेकिन, अभी समाधान तक नहीं पहुंचा जा सका है।