उत्तराखंड हाईकोर्ट कहां स्थानांतरित हो, इस समय राज्य का सबसे हॉट टॉपिक है। आम से लेकर खास तक Uttarakhand High Court Shifting पर अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं। अधिवक्ता, कर्मचारी संगठन मुखर हैं। वहीं, इस मुद्दे पर अब राजनीतिक हस्तियों की भी इंट्री हो गई है। कोई हल्द्वानी, गैरसैंण तो कोई ऋषिकेश में हाईकोर्ट स्थापित करने की वकालत कर रहा है। यह दिलचस्प होगा कि इस मुद्दे का कोई हल निकलेगा या मुद्दा ही बना रहेगा, जैसे पिछले पांच वर्षों से हो रहा है।
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में हाईकोर्ट स्थापित करने की मांग करके उपेक्षा का दंश झेल रहे गैरसैंण के लोगों में एक उम्मीद जगा दी है। सचमुच ऐसा हो जाए जो राज्य गठन आंदोलन का केंद्र बिंदु रहा गैरसैंण में बहुत कुछ बदल सकता है। यहां के लोगों का मानना है कि अगर यहां जज, बड़े-बड़े वकील रहने लगे तो उन्हें भी यहां की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में इन समस्याओं के निराकरण की उम्मीद बंध जाएगी। विकास पर क्षेत्रीय असुंतलन भी खत्म हो सकता है। खैर, अभी तो यह मुंगेरीलाल के सपने सरीखे ही दिखते हैं। क्योंकि, जनप्रतिनिधियों को इस क्षेत्र की इतनी ही चिंता होती तो यहां के हालात इतने बदतर नहीं होते।
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल का तर्क है कि हाईकोर्ट की स्थापना से क्षेत्रीय असंतुलन दूर होगा। यह निर्णय सौतेले व्यवहार से व्यथित गैरसैंणवासियों के लिए राहत भरा होगा। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष कहते हैं- राज्य गठन के समय गैरसैंण को राजधानी बनाने की बात हो रही थी। अब हालात ऐसे हो गए हैं कि यह राज्य में पिछड़े क्षेत्रों में शीर्ष पर आता है। यहां बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। अस्पताल, सड़क, पानी से महरूम यह क्षेत्र उपेक्षा का शिकार है। ऐसे में अगर यहां हाईकोर्ट बनता है तो इलाके का नक्शा बदल जाएगा।

गोदियाल कहते हैं- भराड़ीसैंण में विधानसभा के लिए निर्मित भवन में हाईकोर्ट स्थापित किया जाना चाहिए। कांग्रेस के शासन काल में इस भवन का निर्माण शुरू हुआ था। सरकार में आने के बाद भाजपा ने इसे बंद करा दिया। भविष्य में कांग्रेस की सरकार बनी तो गैरसैंण को ही स्थायी राजधानी बनाया जाएगा। इसके बाद हाईकोर्ट के लिए उचित स्थान देख लिया जाएगा।
Uttarakhand High Court Shifting … आखिर हंगामा क्यों बरपा है, क्यों नहीं बन पा रही सहमति

वहीं, महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सीएम पुष्कर धामी को पत्र लिखकर नैनीताल की फुल बेंच हल्द्वानी में स्थापित करने का सुझाव दिया है। साथ ही कहा है कि राज्य में कोई संस्था कहां पर हो, यह तय करना विधानमंडल का अधिकार है, न कि हाईकोर्ट का। हाईकोर्ट के मौखिक आदेश को कोश्यारी विधानमंडल के सांविधानिक अधिकार पर हस्तक्षेप मानते हैं। वह कहते हैं-ऐसे में कल कोई जनहित याचिका दायर करने वाला कोर्ट पहुंच कर यह मांग करने लगे कि फलां तहसील, संस्था या विभाग का कार्यालय अमुक जगह होना चाहिए। ऐसे में तो सांविधानिक संकट खड़ा हो जाएगा। हालांकि, वह न्यायालय के प्रति सम्मान जताते हुए यह भी कहा कि पूर्व में हाईकोर्ट भी गौलापार में चिह्नित भूमि पर सहमति जता चुका था। सरकार को इस मुद्दे पर फैसला करना चाहिए। गौलापार के पक्ष में वह कहते हैं कि पंतनगर हवाईअड्डा होने के कारण आवागमन भी सुगम है। अगर अब फैसला बदला जाता है तो क्षेत्र में असंतोष फैल सकता है।

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उत्तराखंड क्रांति दल भी गैरसैंण के समर्थन में उतरा
गैरसैंण में हाईकोर्ट की स्थापना के पक्ष में उत्तराखंड क्रांति दल भी उतर आया है। अध्यक्ष पूरण सिंह कठैत कहते हैं कि आमजन के इस आंदोलन को उत्तराखंड क्रांति दल पूरजोर समर्थन करेगी। वह कहते हैं- गैरसैंण उत्तराखंड की अस्मिता से जुड़ा सवाल है। पर्वतीय क्षेत्र का विकास किए बिना राज्य गठन का उद्देश्य कभी पूरा नहीं होगा। जब तक गैरसैंड स्थायी राजधानी नहीं बन जाती तब तक भराड़ीसैंण में बना विधानसभा का इस्तेमाल हाईकोर्ट के लिए किया जा सकता है।
कभी स्थायी राजधानी का था दावेदार…अब बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहा
उत्तराखंड राज्य के मांग को लेकर हुए आंदोलन में केंद्र बिंदु रहा गैरसैंण की उपेक्षा किसी से छिपी नहीं है। कुछ माह पहले चुनाव की ग्राउंड रिपोर्टिंग के लिए गई तीरंदाज लाइव की टीम के सामने लोगों का दर्द झलक उठा था। बुनियादी सुविधाओं का अभाव झेल रहे लोगों ने यहां तक कहा था कि उन्हें राजधानी का दर्जा नहीं चाहिए। हमें बस बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करा दी जाएं। यहां एक भी अस्पताल ऐसा नहीं है जहां महिला का प्रसव ऑपरेशन से हो सके। हमें श्रीनगर जाना पड़ता है। कई बार जान पर बन आती है।
क्या है मामला
दरअसल, मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने 8 मई को एक मामले की सुनवाई के दौरान आईडीपीएल ऋषिकेश में हाईकोर्ट स्थापित करने के लिए मौखिक तौर पर कहा था। इसके बाद से ही यह मुद्दा फिर गरमा गया है। हाईकोर्ट ने शासन से इस मामले में रिपोर्ट देने के निर्देश दिए थे। इसके बाद तमाम संगठन इसके पक्ष-विपक्ष में उतर आए।