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    कवर स्टोरी

    Uttarakhand… जलस्रोतों के संरक्षण का ‘सारा’ प्रयास

    उत्तराखंड की संस्कृति में जल और जलस्रोतों का विशेष स्थान है। यहां के नौले, धारे गांवों के केंद्र में होते हैं और लोक पर्वों के दौरान जलस्रोतों की पूजा करना एक परंपरा है। पहाड़ की जीनवदायिनी मानी जाने वाली ये जलधाराएं और प्राकृतिक स्रोत जलवायु परिवर्तन, वनों की अंधाधुंध कटाई और बेलगाम शहरीकरण के चलते सूखते जा रहे हैं। जिस तरह भगीरथ ने गंगा को धरती पर लाने के लिए कठिन तपस्या की थी उसी तर्ज पर उत्तराखंड में प्राकृतिक जलस्रोतों को वैज्ञानिक तरीके से बचाने के लिए सारा प्रयास किया जा रहा है। कुछ लोग कहते हैं, पहाड़ की जवानी और पानी दोनों उसके काम नहीं आते, लेकिन यहां कोशिश इस बात की हो रही है कि पहाड़ के पानी को संरक्षित किया जाए और साथ ही इसे रोजगार के साधनों के साथ जोड़ा जाए।
    teerandajBy teerandajJune 14, 20251 Comment
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    कई राज्यों की प्यास बुझाने वाले Uttarakhand के पहाड़ अकूत जल संपदा संजोए हुए हैं। लेकिन अब हालात ये हो गए हैं कि प्राकृतिक जल स्रोत सूखने लगे हैं। ग्लेशियर लगातार सिकुड़ रहे हैं, नदी, नौला, धारों, गदेरों में पानी कम होता जा रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 4000 गांव जल संकट से गुजर रहे हैं। मोटे तौर पर राज्य के लगभग 510 जलस्रोत सूख गए हैं या सूखने की कगार पर हैं । अकेले अल्मोड़ा में सबसे अधिक 300 जलस्रोत सूख गए हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड के प्राकृतिक जलस्रोतों के जलस्तर में 60 फीसदी कमी आई है। वर्तमान में जो भी नौले-धारे बचे हैं, उनमें भी जल की मात्रा आधी हो गई है। मामला इतना बिगड़ चुका है कि स्थिति सामान्य करने के लिए प्रयास नहीं, भगीरथ प्रयास करने की जरूरत है। इसी तर्ज पर उत्तराखंड सरकार ‘सारा’ प्रयास कर रही है।

    इस वैज्ञानिक पहल का कुछ परिणाम दिखने भी लगा है। सारा यानी स्प्रिंग एंड रिवर रिज्युविनेशन अथॉरिटी ने अपने गठन के दो साल में ही
    अपनी उपयोगिता साबित कर दी है। अब तक 929 जलस्रोतों का उपचार (पुनर्जीवित) कर चुकी है। नाम के अनुरूप ये एजेंसी काम भी कर रही है। एजेंसी सभी 13 जिलों में कार्य कर रही है। इस एजेंसी की स्थापना का एक उद्देश्य लोगों को जल संरक्षण की दिशा में एक साथ लाना भी है। ऐसा करने में यह सफल भी हुई है। पिछले दो वर्षों में ऐसे कई भागीरथ सामने आए हैं, जो जल संरक्षण की दिशा में निस्वार्थ भाव से लगे हैं।

     

    जल संरक्षण विषय पर टीवी चैनलों, अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं, सेमिनारों में खूब कहा-सुना जाता है। लेकिन, इसके लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है। सौ, हजार, लाख की गिनती एक से ही शुरू होती है। इसलिए, छोटा-बड़ा प्रयास बेहद महत्वपूर्ण है।  सारा  ने इस दिशा में लोगों को जागरूक किया है। वर्तमान में जहां सूखा और जल संकट जैसी समस्याएं निकल कर सामने आ रही हैं, ऐसे में सारा जैसे प्राधिकरण की जरूरत और भी बढ़ गई है। इससे जहां एक तरफ लोग प्रकृति के बचाव के प्रति और जागरूक हो पाएंगे तो वहीं सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी मदद मिलती है। ऐसे प्राधिकरण के मौजूद होने से विभिन्न सरकारी विभाग एक साथ काम कर पाते हैं। साथ ही साझा प्रयासों से सभी के बीच समन्वय स्थापित कर जल्दी से तय लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

    आंकड़ों के मुताबिक पिछले वर्ष सारा ने 3.12 मिलियन क्यूबिक मीटर वर्षा जल संचित किया है। राज्य में प्रतिवर्ष औसतन 1529 मिलीमीटर वर्षा होती है, जिसमें 1221 मिलीमीटर का योगदान अकेले मानसून सीजन का है। यदि इस वर्षा जल का महज 4.5 फीसदी हिस्सा सहेज लिया जाए तो पेयजल संकट से निजात मिल सकती है। सारा के तहत उत्तराखंड में जल स्रोतों की पहचान, भू- हाइड्रोलॉजिकल अध्ययन और जल संरक्षण संरचनाओं का निर्माण किया जा रहा है। साथ ही कार्यों की निगरानी के लिए जियो टैगिंग और डैश बोर्ड का उपयोग किया जा रहा है।

     

    पहले भी हुए प्रयास
    ऐसा नहीं है कि जल संरक्षण की दिशा में सारा से पहले प्रयास नहीं हुए। लेकिन, परिणाम मनमाफिक नहीं आया। इसकी मुख्य वजह जल स्रोतों के संवर्धन एवं संरक्षण के लिए जिम्मेदार विभागों, राज्य के भीतर की तरह बने गैर सरकारी संगठन और आम जनमानस में कभी आपसी समन्वय स्थापित नहीं हुआ। धरातल पर कभी यह जानने की कोशिश ही नहीं की गई की जलस्रोतों में लगातार गिरावट क्यों हो रही है? जल स्रोत कम या खत्म होने का कोई एक कारण नहीं है। लेकिन, अब तक किसी एक कारण को अपने सांचे में फिट कर उसी पर कोशिश की जाती रही है। स्प्रिंग एंड रिवर रिज्युविनेशन अथॉरिटी ने बड़ा काम यह किया कि इस दिशा में काम रहीं सभी एजेंसियों को एक साथ लाया।

    लोगों में जागरूकता फैलाई। इसी का परिणाम है कि अब तक 929 स्रोतों को पुनर्जीवित किया जा सका। चरणबद्ध किया काम गठन के बाद से सारा ने चरणबद्ध तरीके से काम किया। सबसे पहले जल गुणवत्ता, जल बहाव, जनसंख्या की निर्भरता, उर्त्सजन में कमी के कारणों को जाना। राज्य के सभी जलस्रोतों और नदियों की पूरी डिटेल रिपोर्ट तैयार की। इसके बाद प्राथमिकता के आधार पर वैज्ञानिक तरीके से कार्य शुरू किया। सारा वाटरशेड आधारित रणनीति पर काम कर रही है। रणनीति हर जल स्रोत को एक सूक्ष्म जलग्रहण क्षेत्र मानती है।

    इससे लाभ यह हुआ कि सारा हर गांव के कोने-कोने तक पहुंची। वर्तमान में सारा केंद्रीय भूजल बोर्ड के साथ मिलकर खासतौर से मैदानी क्षेत्रों में भूजल पुनर्भरण के कदमों पर काम कर रही है ताकि दीर्घकालिक जल स्थिरता सुनिश्चित और बढ़ाया जा सके। नयार, सौंग, उत्तर वाहिनी, शिप्रा और गौड़ी नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए आईआईटी और एनआईएच रुड़की की मदद से परियोजना पर रिपोर्ट तैयार की जा रही है। धारा, नौला संरक्षण समिति जल स्रोतों को पुनर्जीवित करना किसी एक एजेंसी के बूते की बात नहीं है। इसलिए सारा ने गांव स्तर पर पंचायती राज व्यवस्था के तहत गठित समिति का विस्तार कर रही है। इसका नाम दिया गया है धारा-नौला संरक्षण समिति। ग्राम प्रधान की अध्यक्षता में इसका गठन किया जा रहा है। यह समिति धारा-नौला एवं नदियों के उपचार की आवश्यकता के हिसाब से स्थानीय लोगों को जागरूक करेगी। इस संबंध में नियमित बैठकें भी की जाएंगी। समिति लोगों की सहभागिता सुनिश्चित करेगी। लोगों को प्रशिक्षण भी दिलाएगी। ग्राम पंचायत की जल संरक्षण एवं जैव विविधता उप समिति के अध्यक्ष इसके सदस्य होंगे। ग्राम विकास अधिकारी, इस क्षेत्र में कार्य कर रही कार्यदायी संस्था के प्रतिनिधि सदस्य सचिव होंगे। साथ ही ग्राम पंचायत के सभी वार्ड सदस्य, वन पंचायत के सरपंच, ग्राम पंचायत से स्वयं सहायता समूह की दो महिलाएं, संबंधित रेखीय विभागों के ग्राम पंचायत स्तर के कर्मचारी, वन, पेयजल निगम, जल संस्थान, सिंचाई, लघु सिंचाई, ग्राम्य विकास, जलागम और कृषि के ग्राम स्तर के कर्मचारियों को भी इसका सदस्य बनाया गया है।

    यह भी पढ़ें :  जायका पहाड़ का… अब की चटनी भी ग्लोबल!

    सारा का वित्त पोषण

    सारा के तहत संचालित होने वाली योजनाओं के वित्त पोषण के लिए बाहरी फंड से चलने वाली योजनाओं की मदद ली जा रही है। सारा के माध्यम से नौले-धारे और नदियों में वर्षा जल संरक्षण के लिए बनने वाली चेकडैम निर्माण समेत अन्य योजनाओं के मूल्यांकन और अनुश्रवण के लिए डैश बोर्ड बनाया गया है। इस कार्य का जिम्मा बाह्य मूल्यांकन एजेंसी को दिया गया है। भगीरथ एप की मदद से प्रयास जल संरक्षण की दिशा में भागीरथ एप भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने को तैयार है। जल संरक्षण अधिनियम 2025 के अंतर्गत भागीरथ 29 मार्च 2025 को लांच किया गया। यह एप ‘धारा मेरी, नौला मेरा, गांव मेरा, प्रयास मेरा’ थीम पर आधारित है। इसका उद्देश्य जल संरक्षण को बढ़ावा देना है। साथ ही यह एप जल स्रोतों की निगरानी और पुनर्जीवन योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन में सहायक है। एप की मदद से आम और ग्रामीण लोग संकटग्रस्त क्षेत्रों की जल धाराओं जैसे नौले, धारा और वर्षा नदियों की जानकारी सरकार को दे सकते हैं। इस एप में फोटो खींचकर शिकायत दर्ज करवा सकते हैं। जिसके बाद सारा की टीम उस क्षेत्र के स्रोत को पुनर्जीवित करने में मदद करेगी। इससे तत्काल प्रभाव से रिपोर्ट भेजने और सीधे आम लोगों की परेशानियों से प्रशासन को जोड़ने में मदद मिल रही है।

     

    क्या है मिशन अमृत सरोवर का हाल
    अमृत सरोवर मिशन का उद्देश्य देश में जल संरक्षण करना और सतही तथा भूजल की उपलब्धता बढ़ाना है। केंद्र सरकार की अमृत सरोवर योजना में भी उत्तराखंड ने बढ़-चढ़कर भागीदारी की। पहले चरण में 975 सरोवर बनाने का लक्ष्य मिला था, लेकिन उत्तराखंड में कुल 1322 अमृत सरोवर बनाए गए। केंद्र सरकार ने देश के प्रत्येक जिले में 75-75 अमृत सरोवर बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया था। जबकि, उत्तराखंड में हर जिले में औसतन 101 तालाब तैयार किए गए। यह कहानी आंकड़ों में भले ही उजली दिखती है, लेकिन इसका स्याह पक्ष यह भी है कि कई जगह इन सरोवरों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।

    दूसरे चरण के लिए 66 अमृत सरोवर चिह्नित
    मिशन अमृत सरोवर के दूसरे चरण के लिए उत्तराखंड में 66 सरोवर चिह्नित किए गए हैं। दूसरे चरण में ऐसे सरोवरों को चिह्नित किया जा रहा है जिसमें साल भर जल की उपलब्धता सुनिश्चित किया जा सके। इसमें सामुदायिक भागीदारी को इसके मूल में रखा गया है। दूसरे चरण के लिए अल्मोड़ा में 5, चमोली में 2, चंपावत में 1, देहरादून 4, हरिद्वार में 9, नैनीताल में 3, गढ़वाल में 20, पिथौरागढ़ में 4, रुद्रप्रयाग में 2, टिहरी गढ़वाल में 4, ऊधमसिंह नगर में 11, उत्तरकाशी में 1 चिह्नित किए गए हैं।

     

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