एक खुला खत…
मेरे पहाड़वालों, बेटी वालों….
आज जरा दिल पर हाथ रखकर पढ़िये….।
अंकिता भंडारी पहाड़ की वो बदनसीब बेटी थी, जिसने एक सपना देखा था। शहर जाने का, नौकरी करने का…अपने गरीब मां-बाप का घर-खर्च में हाथ बटाने का। लेकिन, उस सपने की मौत हो गई…इसी देवभूमि में…। अंकिता की मौत महज एक युवा लड़की की मौत नहीं है, ऐसे कई सपनों की मौत है जो पहाड़ की लड़कियां देखती हैं। उन्हें यह उम्मीद होती है कि वह पढ़ाई पूरी करने के बाद शहरों में जाएंगी, वहां नौकरी करेंगी। अपना भविष्य बनाएंगी। लेकिन जब इस तरह की घटनाएं होती हैं तो उनका मनोबल टूटता है और भरोसा उनके मां-बाप का टूट जाता है, क्योंकि उन्हें डर सताने लगता है। डर इस बात का कि कहीं उनकी बेटी के साथ भी कुछ ऐसी अनहोनी तो नहीं हो जाएगी, जैसी अंकिता भंडारी के साथ हुई।
जब सरकार से, सिस्टम पर से भरोसा टूटता है तो उसकी बहाली बहुत मुश्किल होती है। अब सबसे अहम सवाल यह है कि भरोसे की बहाली के लिए क्या होना चाहिए। …तो इसके लिए अंकिता भंडारी को न्याय मिलना चाहिए। वह भी जल्द से जल्द। ताकि, पहाड़ के उन मां-बाप का भरोसा बहाल हो, जो अपने बच्चों को रोजगार के लिए बाहर भेजना चाहते हैं।
हमारे आसपास ऐसी कई अंकिता भंडारी हैं, जिन्हें न्याय नहीं मिला। किरण नेगी भी पहाड़ की ऐसी अभागी बेटी थी। उसके साथ दुष्कर्म के दोषी ठहराए गए अपराधी सुप्रीम कोर्ट से बरी हो गए। आप सोचिए! क्या किरण नेगी के साथ कुछ भी जघन्य नहीं हुआ, उसे किसी ने नहीं मारा, जो बरी हो गए, उन्होंने नहीं मारा तो किसने मारा? क्या इस सवाल का जवाब नहीं मिलना चाहिए?
हम बातें बड़ी-बड़ी करते हैं। सोशल मीडिया पर पोस्ट कर अपने कर्तव्यों से इतिश्री कर लेते हैं, लेकिन न्याय की खातिर जन दबाव बनाने के लिए एकजुट, एकमुठ नहीं हो पाते, यही हमारा यथार्थ है…।
अंकिता भंडारी को इसलिए भी न्याय जल्द मिलना जरूरी है ताकि, हम पहाड़ की बेटियों-बहनों को यह भरोसा दे सकें कि हम उनके साथ खड़े हैं। उनके साथ ऐसा कुछ नहीं होने देंगे जो अंकिता भंडारी के साथ हुआ। … आज आप अपने घर पर जो बहनें हैं, बेटियां हैं, उनके चेहरे को देखिए। क्या आपको उनके चेहरे में अंकिता भंडारी का चेहरा नजर नहीं आता? उसके बाद फैसला कीजिए, हमें अंकिता भंडारी को न्याय दिलाने के लिए कितना एकजुट होना है, कितना एकमुठ होना है।
आपका – अर्जुन एस. रावत