क्या उत्तराखंड सिर्फ …. पहाड़ियों का है? 21 फरवरी को उत्तराखंड विधानसभा की कार्यवाही के दौरान वित्तमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल की यह विवादित टिप्पणी उन्हें सियासत में अर्श से फर्श तक पहुंचा देगी, उन्होंने सोचा भी न होगा। लेकिन, पहाड़ से उठी विरोध की दहाड़ ने वॉलीबॉल के इस खिलाड़ी को चित्त कर दिया। पुष्कर सिंह धामी सरकार में वित्त के अलावा संसदीय एवं शहरी विकास विभाग संभालने वाले प्रेम चंद अग्रवाल के विवादित बयान पर पानी डालने की कोशिश भी खूब की गई। लेकिन, बात बनी नहीं। भाजपा के नेता जानते हैं इस भावनात्मक मुद्दे पर पहाड़ के आवाम की नाराजगी मोल लेना नुकसानदेह साबित हो सकता है, इसीलिए पार्टी के भीतर भी इस टिप्पणी को लेकर विरोध पनप रहा था। विवादित बयान के बाद भाजपा के शुरुआती रुख से यह संदेश जाने लगा था कि मामले को दबाने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन यह मुद्दा समय के साथ और तेज होता चला गया। पिछले दो विधानसभा चुनाव में भाजपा से पटखनी खाने वाली कांग्रेस ने भी कैबिनेट मंत्री के बयान को लपकने में देर नहीं की। बद्रीनाथ विधायक लखपत सिंह बुटोला ने तो सदन में ही इस मुद्दे पर प्रेम चंद अग्रवाल को आड़े हाथ ले लिया और मामले में करंट बढ़ता देख कांग्रेस के सभी नेता मैदान में उतर गए। विरोध का आलम यह था कि प्रेम चंद अग्रवाल के इस्तीफे के बाद उनके विधानसभा क्षेत्र ऋषिकेश में आतिशबाजी की गई। सियासी जानकार कहते हैं, भाजपा ने बड़े नुकसान की आशंका से प्रेमचंद अग्रवाल से इस्तीफा दिलवाया है।
पार्टी और संगठन में भी कैबिनेट मंत्री अग्रवाल के खिलाफ माहौल बन गया था। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी तो पहले ही इस विवाद पर बयानबाजी न करने की नसीहत दे चुके थे, लेकिन पहले हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रेम चंद अग्रवाल को माफी मांगने की हिदायत दी और हफ्ते भर पहले कोटद्वार में पौड़ी गढ़वाल से भाजपा सांसद अनिल बलूनी ने कहा था कि प्रेमचंद अग्रवाल का बयान बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। जब उन्होंने कहा कि उचित मंचों पर इस मामले को मजबूती से उठाकर मैंने अपना काम कर दिया है तो यह साफ हो गया था कि अग्रवाल पर कार्रवाई होने वाली है। इससे पहले पीएम मोदी के हर्षिल दौरे में भी प्रभारी मंत्री होने के बावजूद प्रेम चंद अग्रवाल नहीं दिखे। इसके तुरंत बाद सीएम पुष्कर सिंह धामी दिल्ली गए। तब से सियासी गलियारों में यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि प्रेमचंद अग्रवाल के पद से हटने का काउंटडाउन शुरू हो गया है। अपने विवादित बयान के 24वें दिन रविवार को आखिरकार उन्होंने इस्तीफा सौंपा दिया।
सड़क छाप वाले बयान से और बिगड़ा मामला
गैरसैंण में हुए प्रदर्शन के बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने कहा था कि 2027 का चुनाव नजदीक है। कुछ सड़कछाप नेता आंदोलन की योजना बना रहे हैं। यदि प्रदर्शन राज्य के विकास के लिए हो तो समझ में आता है। लेकिन, मंत्री को हटाने के लिए प्रदर्शन ठीक नहीं है। इसके बाद विरोध और तेज हो गया। लोगों ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के बयान को गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी से जोड़ दिया। हालांकि, महेंद्र भट्ट ने बयान जारी करते हुए स्पष्ट किया कि उनका बयान लोक गायक और जनता के लिए नहीं बल्कि नेताओं के लिए था। लेकिन, तब तक बात और बिगड़ चुकी थी।
नरेंद्र सिंह नेगी भी विरोध में उतर पड़े थे
प्रेमचंद अग्रवाल की मुसीबत तब ज्यादा बढ़ गई जब नरेंद्र सिंह नेगी विवादित बयान के विरोध में उतर गए। उन्होंने गैरसैंण में इस बयान के विरोध में बुलाई गई स्वाभिमान रैली में लोगों से जुटने का आह्वान किया था। इसका असर बड़ा व्यापक असर हुआ। जब तक विपक्षी दलों के नेता विरोध जता रहे थे तब तक भाजपा की ओर से भी काउंटर हो रहा था। लेकिन, इसके बाद माहौल एकाएक बदल गया। पहाड़ पर विरोध प्रदर्शन तेज हो गया। सोशल मीडिया से लेकर चौराहों तक प्रेमचंद के इस्तीफे की मांग जोर पकड़ने लगी। इसके बाद पार्टी को उनको मंत्रीमंडल में बनाए रखना मुश्किल हो गया। छह मार्च को गैरसैंण में बुलाई गई स्वाभिमान रैली से पहले पद्मश्री प्रीतम भरतवाण का वह बयान भी खूब वायरल हुआ जिसमें वह कह रहे थे कि कोई नेता-अभिनेता पहाड़ का अपमान करे, बर्दाश्त नहीं करेंगे। पहाड़ियों के सब्र को परखने की कोशिश न करें। हमारी विनम्रता कायरता का सूचक नहीं।
राज्य आंदोलनकारियों ने जनमानस की जीत बताया
उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच के प्रदेश प्रवक्ता प्रदीप कुकरेती ने एक बयान जारी करते हुए इसे जनमानस की जीत बताया। कहा कि बीते माह विधानसभा सत्र के दौरान हुए घटनाक्रम के तहत संसदीय कार्य मंत्री रहे प्रेमचंद अग्रवाल ने भाषा की मर्यादाओं को लांघते हुए प्रदेशवासियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई। कहा, उनके बयान से देवभूमि की छवि धूमिल हुई है।
एबीवीपी के साथ राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी
प्रेमचंद्र अग्रवाल का राजनीतिक जीवन काफी लंबा और सक्रिय रहा है। उनका जन्म देहरादून जिले के डोईवाला में संघ की पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ। उन्होंने खेलों में भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व किया है। उन्हें वॉलीबॉल का अच्छा खिलाड़ी माना जाता था। उन्होंने एमकॉम और एलएलबी की शिक्षा प्राप्त की है। उन्होंने छात्र जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के साथ अपनी राजनीति की शुरुआत की थी। 1980 में, वह डोईवाला में एबीवीपी के अध्यक्ष बने। 1995 में वह देहरादून जिले में भाजपा के प्रमुख बने। वह उत्तराखंड आंदोलन में भी सक्रिय रहे। 2007 में वह पहली बार ऋषिकेश से भाजपा विधायक चुने गए। उन्हें सरकार में संसदीय सचिव भी बनाया गया। उन्होंने 2012, 2017 और 2022 के चुनावों में भी ऋषिकेश सीट से जीत हासिल की। वह उत्तराखंड विधानसभा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
राज्य बनाने में मेरा भी योगदान : प्रेमचंद अग्रवाल
प्रेमचंद अग्रवाल ने सीएम को इस्तीफा सौंपने से पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस की। यहां उन्होंने कहा कि उन्होंने सदन में जो भी बयान दिया था, उस पर उसी दिन स्पष्टीकरण भी दे दिया था। उनके भाव बिल्कुल भी गलत नहीं थे। गाली वाला शब्द भी उनके वक्तव्य से पहले का है जो न तो उन्होंने पहाड़ के लिए कहा और न ही मैदान के लिए। उनका कहना था कि वह पार्टी के पुराने कार्यकर्ता हैं। उत्तराखंड में ही जन्मे हैं। कुछ लोगों ने उन्हें निशाना बनाकर सोशल मीडिया पर ऐसा माहौल बनाया कि उससे मैं बहुत आहत हूं और मुझे इस्तीफा देना पड़ रहा है। मैं आंदोलनकारी रहा हूं, लेकिन आज यह भी साबित करना पड़ रहा है कि राज्य को बनाने के लिए हमने भी योगदान दिया है।
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