देश में भले ही डिजिटल क्रांति का दौर चल रहा है लेकिन, उत्तराखंड के सीमांत क्षेत्रों में लोग निर्बाध रेडियो प्रसारण तक से महरूम हैं। दुर्गम भौगोलिक चुनौतियां और सुरक्षा इसके प्रमुख कारण बताए जाते हैं। उत्तराखंड के सीमांत क्षेत्रों में भी लोग रेडियो प्रसारण सुन सकें इसकी कवायद की जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जनवरी को उत्तराखंड के कई इलाकों में ट्रांसमीटर लगाने और क्षमता बढ़ाने वाले प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया था। इनमें Munsiyari भी शामिल है। यहां पर पांच किलोवॉट का ट्रांसमीटर लगना प्रस्तावित है। तीरंदाज डॉट कॉम और अतुल्य उत्तराखंड की टीम ने इस योजना की जमीनी पड़ताल की। इसमें सामने आया कि आकाशवाणी ने जिस जगह ट्रांसमीटर लगाने का मन बनाया है, वहां से पूरा क्षेत्र कवर नहीं हो सकेगा। नानासेम, जैती, जलथ, दरकोट, चौना, दुम्मर, क्विरिजिमिया, हरकोट, मदकोट, बोना और माइग्रेशन गांव मिलम तक इसकी रेंज नहीं पहुंच पाएगी।
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इसके बाद हमारी टीम ने स्थानीय लोगों से मामले की बारीकी को समझा। साथ ही विशेषज्ञों से उनकी राय भी जानीं। सबका यही कहना था कि मुनस्यारी तहसील मुख्यालय परिसर में अगर ट्रांसमीटर लगाया गया तो इसे लगाने का उद्देश्य पूरा नहीं होगा। करोड़ों रुपये की सरकारी राशि बर्बाद हो जाएगी।
तकनीकी विशेषज्ञ बताते हैं, तहसील मुख्यालय परिसर में ट्रांसमीटर लगने से बड़ी संख्या में सीमांत गांव ट्रांसमीटर की रेंज से बाहर रहेंगे। इस दौरान कई लोगों ने ट्रांसमीटर लगाने के काम में ‘खेल’ होने की आशंका भी जताई। उनका कहना है कि इस काम में करोड़ों रुपये का खर्च आएगा। इसलिए विभाग तहसील मुख्यालय परिसर में ट्रांसमीटर लगाना चाहता है। क्योंकि, यहां उसे ज्यादा काम नहीं करना पड़ेगा। अनुमान के मुताबिक, ट्रांसमीटर इंस्टॉलेशन, इमारत बनाने के खर्च को जोड़ दिया जाए तो तकरीबन दस करोड़ रुपये की लागत आएगी। लोगों का कहना है कि सर्वे ही ढंग से नहीं किया गया। अगर सर्वे गंभीरता से किया जाता तो तहसील मुख्यालय में ट्रांसमीटर लगाने की बात नहीं होती।
तकनीकी पहलुओं को समझने के लिए हमारी टीम ने आकाशवाणी दिल्ली से डिप्टी डायरेक्टर के पद से सेवानिवृत्त हो चुके मनोहर सिंह रावत से बात की। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकप्रिय कार्यक्रम ‘मन की बात’ का संयोजन भी कर चुके हैं। वह मुनस्यारी के ही रहने वाले हैं। यहां की भौगोलिक स्थितियों से वाकिफ हैं। साथ ही वह लंबे समय तक आकाशवाणी से जुड़े थे। उन्होंने भी कहा कि अगर ट्रांसमीटर मुनस्यारी में लगाया जाता है तो बाजार के आसपास का कुछ इलाका ही कवर हो पाएगा। इससे योजना का वास्तविक उद्देश्य ही पूरा नहीं होगा। मनोहर रावत ने बताया कि वह खुद भी इस बाबत कई बार मेल पर पत्राचार कर चुके हैं। उन्होंने खुद डीजी आकाशवाणी, सीईओ प्रसार भारती और पीएमओ को मेल लिखी है। साथ ही आकाशवाणी को कुछ जगहें भी सुझाई हैं, जहां पर ट्रांसमीटर लगाया जा सकता है। इनमें खालिया टॉप (यहां पर्यटन विभाग का गेस्ट हाउस है), गोरी पार, डांडा धार (नंदा देवी मंदिर के पास), जीआईसी मुनस्यारी शामिल हैं।
आरोप है कि अभी तक सर्वे भी नहीं हुआ हैं। बिना सर्वे किए ही जहां पहले दूरदर्शन का एंटीना लगा था वहीं ट्रांसमीटर लगाने के लिए तैयारी चल रही हैं। इंस्टालेशन के लेआउट के लिए सीसीडब्ल्यू के अधिकारी भी साइट पर पहुंच चुके हैं।
तीरंदाज डॉट कॉम, अतुल्य उत्तराखंड की टीम ने जब आकाशवाणी के समाचार सेवा प्रभाग में महानिदेशक डॉ. प्रज्ञा पालीवाल गौड़ से बात की तो उन्होंने कहा कि इस बारे में उन्हें जानकारी नहीं है। जबकि, मनोहर सिंह रावत के मेल पर हुए पत्राचार में वह भी शामिल हैं। जिस प्रोजेक्ट का शिलान्यास खुद पीएम मोदी ने किया है, उसके प्रति अधिकारियों की उदासीनता समझ से परे है। रेडियो की महत्ता आपदा के समय में बढ़ जाती है। ग्रामीणों तक सूचनाओं का आदान-प्रदान में यह बेहद कारगर है। साथ ही नेपाल-चीन की सीमा सटी होने के कारण यह सामरिक दृष्ट से भी महत्वपूर्ण है। इसके बावजूद इस प्रोजेक्ट के बारे में डीजी का यह रवैया निराशाजनक है।
तहसील हेडक्वार्टर परिसर ही क्यों?
सवाल यह उठता है कि विभाग ने मुनस्यारी तहसील हेडक्वार्टर परिसर को ही ट्रांसमीटर लगाने के लिए क्यों चुना? स्थानीय लोगों का कहना है- विभाग इस काम में लीपापोती के मूड में है। क्योंकि यहां ट्रांसमीटर लगाने में उसे कोई खास काम नहीं करना होगा। वहां पर पुराने सेटअप में हेरफेर से यह काम चला लेंगे। बाद की बाद में देखी जाएगी। सामाजिक कार्यकर्ता श्रीराम सिंह धर्मशक्तू , अधिवक्ता देव सिंह, पत्रकार देवेंद्र सिंह, पूरन पांडेय समेत अन्य लोगों का कहना है कि बजट है तो काम ठीक से कराना चाहिए। इतने रुपये खर्च करने के बाद भी सीमांत क्षेत्रों तक इसकी पहुंच न हुई तो यह धन की बर्बादी होगी। आकाशवाणी को चाहिए कि वह दोबारा सर्वे करे। अगर दोबारा सर्वे कराकर जगह नहीं बदली गई स्थानीय लोग कड़ा विरोध करेंगे और इंस्टॉलेशन नहीं करने देंगे।
गजब…आजादी के 77 साल बाद भी नेपाल रेडियो सुन रहे
यह विडंबना ही है कि आजादी के 77 साल बाद भी उत्तराखंड के सीमांत गांवों के लोगों को नेपाल का रेडियो सुनना पड़ रहा है। पांच किलोवाट के एफएम रेडियो ट्रांसमीटर की स्थापना का उद्देश्य ही है कि सीमांत गांवों के लोग भी देश का रेडियो सुने। लेकिन, आकाशवाणी के अधिकारी अगर जिद पर अड़े रहे तो पहले की तरह नेपाल का रेडियो ही सुनना पड़ेगा। वर्तमान में पिथौरागढ़ आकाशवाणी का चंडाक में एफएम ट्रांसमीटर है। एफएम सेंटर से 102.4 मेगाहर्ट्ज की फ्रीक्वेंसी पर विविध भारती का प्रसारण किया जाता है। वर्तमान में यह 100 वॉट का है। रेंज कम होने से दूरस्थ क्षेत्रों में एफएम ठीक से काम नहीं करता है। इसको देखते हुए अब इसे उच्चीकृत करने की योजना बनाई गई। इससे पिथौरागढ़ जिले के बेरीनाग, गंगोलीहाट के साथ ही अल्मोड़ा जिले के दन्या और चंपावत जिले के दूरस्थ क्षेत्र तक लोगों को लाभ मिलने की बात कही जा रही है।
इसी योजना के तहत मुनस्यारी में भी एफएम ट्रांसमीटर स्थापित किया जा रहा है। इसकी क्षमता 5,000 वॉट (पांच किलोवाट) होगी। यह ट्रांसमीटर 10 किलोमीटर के स्काई रेंज में काम करेगा। इस ट्रांसमीटर के स्थापित होने के बाद नेपाल के साथ ही चीन सीमा तक भी एफएम पर विविध भारती के कार्यक्रम सुने जा सकेंगे। मुनस्यारी में अधिक क्षमता का एफएम ट्रांसमीटर लगाने का उद्देश्य लोगों तक भारतीय रेडियो पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों को पहुंचाना है।
अभी तक इंस्टालेशन की जगह फाइनल नहीं हुई है। सर्वे फिर से कराया जाएगा। ट्रांसमीटर वहीं लगाए जाएंगे जहां से पूरा इलाका कवर हो सके।
– राजेश जैन, डीडीजी, ऑल इंडिया रेडियो