जिन आंखों ने 36 लाशें देखी हों, खून से लथपथ घायलों को तड़पते देखा हो, उनका गुस्सा होना लाजिमी है। यह गुस्सा इन लोगों की आंखों-बातों में नजर आ रहा है। इनके पास हजारों सवाल हैं। जिम्मेदारों के पास जवाब नहीं हैं। मरचूला हादसे के बाद बुधवार को जब जांच टीम घटनास्थल पर पहुंची तो स्थानीय लोग जमा हो गए। चूंकि, यहां पर अब तक कोई जनप्रतिनिधि नहीं आया है। इसलिए ये लोग इन सरकारी मुलाजिमों पर ही अपना गुस्सा उतार रहे हैं। वीडियो में आप इनका गुस्सा देख सकते हैं। गुस्सा अपार है…लेकिन, इनके सवाल जायज लगते हैं।
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मरचूला के एक बुजुर्ग का गुस्सा सातवें आसमान पर था। गांव में एक व्यक्ति को इस हादसे में गंवा चुके हैं। वह कहने लगे, पहाड़ को खाली कराने में शासन-प्रशासन का ही हाथ है। इनकी वजह से लोग पलायन कर रहे हैं। यहां पर है क्या? न अस्पताल है न ही रोजगार है। सड़कों का हाल आंखोदेखी है। लोग जानें गंवा रहे हैं। लोगों को इलाज के लिए दिल्ली जाना पड़ता है। हमारे लिए यहां पर कौन सी सुविधाएं दी गई हैं। बाकी नेताओं को क्या कहा जाए…प्रधानमंत्री ने भी कहा था यहां पर विकास कराएंगे। हम पूछते हैं, कहां है विकास। बीजेपी-कांग्रेस सब एक जैसे हैं। किसी ने पहाड़ के बारे इमानदारी से नहीं सोचा।
जब टीम जांच के लिए पहुंची तो लोगों ने फिर वही सवाल पूछा, सुरक्षा के लिए पहले क्यों नहीं कुछ किया गया। हादसे के बाद ही यह सब तामझाम क्यों होता है। बुजुर्ग ने जांच टीम से कहा, इस तरह लोगों को गड्ढे में डालने के बजाय यहां के लोगों को फांसी पर क्यों नहीं चढ़ा देते। जाओं सांसद, विधायक, सचिव, पीएम, सीएम से जाकर कह दो।
#AlmoraBusAccident। लोग पूरी तरह फट पड़े हैं, घटनास्थल पर जांच को पहुंची टीम को जमकर सुनाया। बोले- ‘शासन-प्रशासन की वजह से मरे हैं लोग। कोई हमारी आवाज नहीं सुनता, रोते हैं हम लोग।’ pic.twitter.com/yPfDkUWDps
— Arjun Rawat (@teerandajarjun) November 7, 2024
हादसा…जिन लोगों ने नहीं देखा होता है उनके लिए यह तीन अक्षरों का महज एक शब्द होता है। लेकिन, जिन्होंने देखा है वह इसकी पीड़ा जीवन भर नहीं भुला पाते हैं। मरचूला हादसे ने सिर्फ 36 जिंदगियां ही नहीं लीलीं हैं, इनके साथ सैकड़ों लोगों को हमेशा के लिए एक गहरा जख्म भी दिया है। हादसे में जान गंवाने वालों में अधिकतर युवा थे। जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए जी-जान से पढ़ाई-लिखाई, कामधाम में जुटे थे। इनके जाने के बाद परिवार पर क्या गुजर रही होगी इसकी कल्पना नहीं की जा सकती।
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मंगलवार की सुबह घटनास्थल पर जब एक टीम सड़क पर बने गड्ढे में मिट्टी डालने आई थी तब भी लोगों ने खूब खरीखोटी सुनाई थी। उन लोगों का भी कहना है कि आखिर, हादसे के बाद ही सड़क सुरक्षा पर क्यों ध्यान जाता है। लोगों ने कहा कि यहां से 100 मीटर आगे चलिए, हम आपको दिखाते हैं कि एक पुस्ता (पहाड़ पर सड़कों के किनारे बनी दीवार) की हालत इतनी जर्जर है कि यहां पर कभी भी दुर्घटना हो सकती है। लेकिन, आप लोग इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। क्या तीन साल से विभाग के पास बजट भी नहीं आया है। आप लोग एक और हादसे का इंतजार कर रहे हैं।
क्रैश बैरियर लगाने का हुआ था आदेश
सरकारी कार्यप्रणाली को देखें तो मरचूला के लोगों को गुस्सा जायज ही लगेगा। बतादें कि जिस मरचूला-सतपुली मोटर मार्ग पर सड़क हादसा हुआ है, इस पर इसी साल मार्च में क्रैश बैरियर लगाने समेत अन्य सुरक्षा कार्य करने की स्वीकृति प्रदान की गई थी। पर कई महीने गुजर जाने के बाद भी कार्य नहीं हुआ। अब सीएम पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर शासन ने मामले की जांच कराने का आदेश दिया है। इस समिति को तीन दिन में जांच रिपोर्ट देने का निर्देश दिया गया है। हादसे के बाद मार्ग पर सड़क सुरक्षा इंतजाम को लेकर लोनिवि पर सवाल उठ रहे हैं।
आरटीओ बता रहे हैं कि बस का कमानी वाला पट्टा कूपी बैंड के पास पहुंचते ही अचानक टूट गया। संभवतः उस समय चालक बस को बैंड से मोड़ने की कोशिश कर रहा था। पट्टा टूटते ही चालक का नियंत्रण बस से समाप्त हो गया और बस सीधे गधेरे में जा गिरी। आरटीओ कह रहे हैं, तकनीकी विशेषज्ञों से बस के फिटनेस की जांच की जा रही है। सवाल यह उठता है कि कूपी बैंड से गुजरने वाले वाहनों की जांच पहले क्यों नहीं की जाती है। हादसे के बाद ही यह लोग क्यों जागते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह सब औपचारिकता है। घाव ताजा है। इसलिए कुछ दिनों तक यह सब होगा। इसके बाद हालात जस के तस हो जाएंगे। लोगों को भगवान भरोसे छोड़ दिया जाएगा। शायद पहाड़ियों की किस्मत में हादसे ही हैं।