नैनीताल हाईकोर्ट ने धामी सरकार से पूछा है कि राज्य आंदोलनकारियों के लिए दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण किस आधार पर तय किया है। जनहित याचिका पर सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ कर रही है। कोर्ट ने जवाब दाखिल करने के लिए सरकार को छह हफ्ते का समय देते हुए संबंधित डाटा भी तलब किया है। हालांकि, क्षैतिज आरक्षण पर तत्काल रोक लगाने से हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया है। न्यायालय ने याचिकाकर्ता से ताजा आदेश की एक प्रति राज्य लोक सेवा आयोग को भी भेजने को कहा, जिससे इस मामले में अग्रिम कार्रवाई रोकी जा सके।
देहरादून के रहने वाले भुवन सिंह सहित अन्य ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर क्षैतिज आरक्षण को असांविधानिक बताते हुए निरस्त करने की मांग की है। बृहस्पतिवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि 2017 में इस मामले पर अहम फैसला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण नहीं दे सकती क्योंकि राज्य के सभी नागरिक राज्य आंदोलनकारी थे। इस आदेश को राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती नहीं दिया था। अब सरकार ने आरक्षण देने के लिए 18 अगस्त 2024 को कानून बना दिया, जो हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ है।
इसका विरोध करते हुए राज्य के महाधिवक्ता ने कहा कि राज्य को कानून बनाने का अधिकार है। अभी सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के लिए नई आरक्षण नीति तय करने का आदेश दिया। वर्तमान में राज्य की परिस्थितियां बदल गईं हैं। उसी को आधार मानते हुए राज्य सरकार ने 18 अगस्त 2024 को आरक्षण संबंधी कानून बनाया है। इसी आधार पर लोक सेवा ने पद सृजित किए हैं। बतादें कि 19 अगस्त को राजभवन ने राज्य सरकार के क्षैतिज आरक्षण के प्रस्ताव पर मुहर लगाई थी।