सुप्रीम आदेश… जंगलों की जमीन सिर्फ जंगलों के लिए होगी। इस टिप्पणी के साथ देश की सर्वोच्च अदालत ने देश भर में आरक्षित वन भूमि पर हुए आवंटन की जांच के आदेश दिए हैं। कहा है कि एक साल के भीतर जंगलों की जमीन वन विभाग को वापस करनी होगी। चूंकि, उत्तराखंड 70 प्रतिशत से अधिक भाग जंगलों से आच्छादित है, इसलिए यह फैसला राज्य के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को निर्देश दिया है कि वे विशेष जांच टीमों का गठन करें। इन टीमों का काम आरक्षित वन भूमि पर हुए अवैध आवंटनों की जांच करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला 15 मई, 2025 को दिया है। सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ में मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह और न्यायमूर्ति कृष्णन विनोद चंद्रन शामिल थे। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि यह जांच की जाए कि कहीं राजस्व विभाग के कब्जे में मौजूद आरक्षित वन भूमि किसी व्यक्ति या संस्था को ऐसे काम के लिए तो नहीं दे दी गई है, जो जंगलों से जुड़ा न हो। सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि अगर जंगल की ऐसी जमीन किसी व्यक्ति, संस्था के कब्जे में हो उसे तत्काल वन विभाग के सुपुर्द की जाए। आदेश में यह भी कहा गया है कि अगर किसी वजह से भूमि वापस लेना जनहित में न हो, तो संबंधित व्यक्ति या संस्था से उसकी पूरी लागत वसूल की जाए और उस धनराशि का इस्तेमाल वनों के विकास में किया जाए।
यह भी कहा कि यह पूरी प्रक्रिया एक साल के भीतर पूरी हो जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि, यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि अब से आरक्षित वन भूमि का उपयोग केवल वनों के विकास के लिए ही किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहाकि कहीं न कहीं मनुष्य इन जंगलों को गंवा कर स्वयं ही अपने विनाश की पटकथा लिख रहा है।
महाराष्ट्र के पुणे के कोंढवा बु्द्रुक इलाके में आरक्षित वन भूमि को अवैध रूप से रिची रिच को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी (आरआरसीएचएस) को देने से जुड़े एक मामले में सुनवाई के दौरान यह आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 28 अगस्त, 1998 को पुणे जिले के कोंढवा बुद्रुक में कृषि उद्देश्यों के लिए 11.89 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि का आवंटन और उसके बाद 30 अक्टूबर, 1999 को रिची रिच को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी के पक्ष में इसकी बिक्री की अनुमति देने को अवैध करार दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से यह साफ है कि अब जंगलों में निर्माण से जुड़ी गतिविधियों पर सख्ती से नजर रखी जाएगी, ताकि पर्यावरण और वनवासियों के अधिकारों की रक्षा की जा सके।
जंगल में मकान जायज?
मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या जंगल में मकान बनाना जायज है? अगर हां, तो इसके लिए कौन-कौन से नियम-कानून हैं? इन सभी को हलफनामे में प्रस्तुत किया जाए।
उत्तराखंड का हाल
हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य के 11900 हेक्टेयर भूमि पर अवैध कब्जे हैं। पिछले छह साल के दौरान 2400 हेक्टेयर कब्जे बढ़ गए हैं। वन विभाग ने एनजीटी को 2023 में 9506 हेक्टेयर भूमि पर कब्जे की रिपोर्ट भेजी थी। इनमें वो कब्जे भी शामिल हैं जिन पर अब बड़ी संख्या में आबादी रहने लगी है। नैनीताल में बिंदुखत्ता, जवाहर ज्योति जैसे वन क्षेत्र अब जंगल लगते ही नहीं। यह सिर्फ दस्तावेजों में ही वन भूमि है। देहरादून में रिसपना, बिंदाल, कुल्हाल, यमुना और अन्य नदियां अतिक्रमण की चपेट में है। जबकि, नैनीताल में कोसी, गोली, नंधौर, हरिद्वार में गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे अतिक्रमण है।
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