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    Home»दुनिया भर की»सरकार जज नहीं बन सकती…Bulldozer Action पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- बिना 15 दिन पहले नोटिस दिए नहीं होगी तोड़फोड़
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    सरकार जज नहीं बन सकती…Bulldozer Action पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- बिना 15 दिन पहले नोटिस दिए नहीं होगी तोड़फोड़

    बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगाने वाली कई याचिकाओं पर सुप्रीम फैसला। कोर्ट ने कहा-अगर कार्यपालिका किसी व्यक्ति का घर केवल इस वजह से तोड़ती है कि वह आरोपी है, तो यह शक्ति के विभाजन के सिद्धांत का उल्लंघन है।
    teerandajBy teerandajNovember 13, 2024Updated:November 14, 2024No Comments
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    यूपी-उत्तराखंड समेत उन राज्य सरकारों को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है जहां पर Bulldozer Action का चलन जोरों पर है। सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगाने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि बिना 15 दिन पहले नोटिस दिए बगैर तोड़फोड़ नहीं की जा सकती है। बुधवार को दिए गए अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसने संविधान में दिए गए उन अधिकारों को ध्यान में रखा है, जो राज्य की मनमानी कार्रवाई से लोगों को सुरक्षा प्रदान करते हैं। सरकार जज नहीं बन सकती। इसके साथ ही शीर्ष कोर्ट ने कहा, कानून का शासन यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को यह पता हो कि उनकी संपत्ति को बिना किसी उचित कारण के नहीं छीना जा सकता। यह आदेश जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने दिया।

    यह भी पढ़ें : छुक-छुक…एक अधूरी कहानी और पहाड़ों की रानी

    कार्यपालिका शक्ति के सिद्धांत का उल्लंघन न करें
    सुप्रीम कोर्ट ने कहा, संविधान ने न्यायिक कार्यों को न्यायपालिका को सौंपा है और न्यायपालिका की जगह पर कार्यपालिका को यह काम नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने आगे कहा, अगर कार्यपालिका किसी व्यक्ति का घर केवल इस वजह से तोड़ती है कि वह आरोपी है, तो यह शक्ति के विभाजन के सिद्धांत का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि जो सरकारी अधिकारी कानून को अपने हाथ में लेकर इस तरह के अत्याचार करते हैं, उन्हें जवाबदेही के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।

    किसी निर्दोष को घर से वंचित करना पूरी तरह असांविधानिक

    अधिकारी किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहरा सकते। उनके पास यह अधिकार नहीं है। वह जज नहीं हैं। जो किसी आरोपी की संपत्ति तोड़ने पर फैसला करे। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी व्यक्ति को अपराध का दोषी ठहराने के बाद उसके घर को तोड़ा जाता है, तो यह भी गलत है, क्योंकि कार्यपालिका का ऐसा कदम उठाना अवैध होगा और कार्यपालिका अपने हाथों में कानून ले रही होगी। कोर्ट ने कहा कि आवास का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और किसी निर्दोष व्यक्ति को इस अधिकार से वंचित करना पूरी तरह असांविधानिक होगा।

    15 दिन पहले नोटिस जरूरी
    सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि किसी भी संपत्ति का विध्वंस तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक उसके मालिक को पंद्रह दिन पहले नोटिस न दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि यह नोटिस मालिक को पंजीकृत डाक के जरिये भेजा जाएगा। इसे निर्माण की बाहरी दीवार पर भी चिपकाया जाएगा। नोटिस में अवैध निर्माण की प्रकृति, उल्लंघन का विवरण और विध्वंस के कारण बताए जाएंगे। इसके अलावा, विध्वंस की प्रक्रिया की वीडियोग्राफी भी की जाएगी और अगर इन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन होता है तो यह कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आम नागरिक के लिए अपने घर का निर्माण कई वर्षों की मेहनत, सपने और आकांक्षाओं का परिणाम होता है। घर सुरक्षा और भविष्य की एक सामूहिक आशा का प्रतीक है और अगर इसे छीन लिया जाता है, तो अधिकारियों को यह साबित करना होगा कि यह कदम उठाने का उनके पास एकमात्र विकल्प था।

    पहले जारी किया था अंतरिम आदेश
    इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश जारी किया था, जिसमें अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि जब तक कोर्ट से अगला आदेश न मिले, तब तक वे किसी भी तरह के विध्वंस अभियान को रोंके। हालांकि, यह आदेश अवैध निर्माणों खासतौर पर सड़क और फुटपाथ पर बने धार्मिक ढांचों पर लागू नहीं था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है और किसी भी धार्मिक संरचना को सड़कों के बीच में नहीं बनना चाहिए, क्योंकि यह सार्वजनिक मार्गों में रुकावट डालता है।

    जस्टिस बीआर गवाई ने कहा था, हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं, जो भी हम तय करते हैं, वह सभी नागरिकों के लिए करते हैं। किसी एक धर्म के लिए अलग कानून नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी कहा था कि किसी भी समुदाय के सदस्य के अवैध निर्माण को हटाया जाना चाहिए, चाहे वह किसी भी धर्म या विश्वास का हो।

    संयुक्त राष्ट्र ने जताई थी आपत्ति
    इससे पहले संयुक्त राष्ट्र के प्रतिवेदक (संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ) ने सितंबर में शीर्ष से कहा था कि सजा के तौर पर किए जाने वाले विध्वंस को मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन माना जा सकता है। उन्होंने कहा था कि ऐसी कार्रवाइयां अल्पसंख्यक समुदायों के खिलफ अपमानजनक व्यवहार के रूप में हो सकती हैं और यह राज्य के हाथों जमीन हड़पने का एक तरीका बन सकती हैं।

     

    बुलडोजर एक्शन सुप्रीम कोर्ट की खबरें
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