- अतुल्य उत्तराखंड ब्यूरो
पहाड़ों में पहले जो भूमि बंजर दिखाई देती थी, वहां कई जगह सोलर पैनल चमचमा रहे हैं। यह कोशिश ऊर्जा के क्षेत्र में Uttarakhand को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ स्वरोजगार का साधन जुटाने की भी है। प्रदेश सरकार का लक्ष्य इस योजना के जरिये 250 मेगावॉट बिजली के उत्पादन का है। योजना की संभावनाओं को देखकर बड़ी संख्या में लोग इसमें दिलचस्पी दिखा रहे हैं। डिमांड इतनी ज्यादा है कि कुछ क्षेत्रों में तो उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड यानी यूपीसीएल बिजली खरीदने में असमर्थता जता चुका है। क्योंकि यूपीसीएल के पास बिजली लेने की क्षमता ही नहीं है। इसके लिए उसे अपनी क्षमता बढ़ानी होगी। वहां पर उसे अपने ग्रिड अपडेट करने होंगे। ऐसी स्थिति में वहां पर आवेदन ही नहीं लिए जा रहे हैं। इस योजना के तहत 200 किलोवॉट के प्लांट लगाने वालों की संख्या सर्वाधिक है। जिस हिसाब से लोगों का उत्साह है, संभव है सरकार को 250 मेगावॉट बिजली उत्पादन के लक्ष्य को और आगे बढ़ाना पड़े। टिहरी गढ़वाल में प्रदेश के अन्य हिस्सों के मुकाबले 28 मार्च तक सर्वाधिक 765 आवेदन आए थे। इसके अलावा यहां पर 94 प्लांट स्थापित हो चुके हैं। इसमें कुछ 50-100 किलोवॉट के हैं, बाकी प्लांट 200 किलोवॉट के हैं।
खैर, उत्तराखंड के लोग इस उम्मीद में खुश हैं कि कुछ वर्षों में उन्हें बिजली कटौती से राहत मिलेगी। गर्मियों में अक्सर यह खबरें पढ़ने को मिलती हैं कि उत्पादन से ज्यादा खपत हो गई है। बाजार में बिजली महंगी है। इसलिए ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरी इलाकों में अघोषित कटौती से लोग परेशान होते हैं। खैर, इसका उत्तर तो भविष्य के गर्भ में है। योजना कितनी कारगर साबित होती है, इसका सही आकलन चार-पांच वर्षों बाद ही हो सकता है। उरेडा के डिप्टी चीफ प्रोजेक्ट ऑफिसर अखिलेश शर्मा बताते हैं, मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत पिछले कुछ महीनों में ही 200 किलोवॉट तक के 175 प्लांट स्थापित हो चुके हैं। आवेदनों की बात करें तो मार्च के अंतिम सप्ताह तक 2350 आवेदन प्राप्त हुए थे, इनमें से 1400 से ज्यादा को हम पास कर चुके हैं। मुझे पूरी उम्मीद है कि हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे।
58 साल के विजय प्रकाश थपलियाल टिहरी गढ़वाल में चंबा ब्लॉक के कोंड गांव के रहने वाले हैं। कस्बे में ही इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों की रिपेयरिंग का काम करते हैं। उन्होंने 200 किलोवॉट का प्लांट लगवाया है। 14 नाली भूमि लीज पर ली है। किराया है तीन हजार प्रति नाली सालाना। यानी साल में उन्हें 28 हजार रुपये जमीन के देने होंगे। उन्होंने यह प्लांट अपनी पत्नी पुष्पा थपलियाल के नाम पर लगाया है। ताकि, उन्हें 45 फीसदी सब्सिडी मिल सके। दरअसल, महिलाओं के नाम पर प्लांट लेने पर पांच प्रतिशत ज्यादा सब्सिडी मिलती है। नवंबर 2024 में उनका प्लांट शुरू हो गया था। चार महीने का पैसा उन्हें मिल चुका है। हर महीने 1.18 से लेकर 1.22 लाख तक की बिलिंग हो रही है। उन्होंने 70 लाख रुपये बैंक से लोन लिए थे। जिसकी किस्त करीब 92 हजार रुपये आ रही है। हर महीने 30 हजार रुपये की बचत हो रही है। सब्सिडी की रकम उनके खाते में आते ही उनकी किस्त कम हो जाएगी नहीं तो लोन का समय घट जाएगा। वह कहते हैं, दस साल के भीतर लोन खत्म करने की सोच रहा हूं। यानी, जब मेरी उम्र 65-66 साल होगी तो बिलिंग का पूरा पैसा मेरा होगा। बुढ़ापा शानदार तरीके से कटेगा।
ऐसा नहीं है कि थपलियाल के पास 30 लाख रुपये रखे थे। बैंक से लोन कराने के बाद वह दोस्तों व रिश्तेदारों से उधार लेकर यह काम शुरू किया। यानी, इस योजना के प्रति लोगों को विश्वास है। यह इसकी सफलता का सूचक है। वह कहते हैं, अब हमारे बच्चों का पहाड़ से नहीं उतरना पड़ेगा। मतलब, कमाने के लिए पलायन नहीं करना होगा। इतना बैकअप हो गया है कि वह यही पर अपने ढंग का कुछ काम कर सकते हैं। यह बड़ी बात है। कोई भी योजना जो स्थानीय लोगों में ये उम्मीद जगा सके कि वह यही पर रहकर कुछ कर सकते हैं, उसका स्वागत किया जाना चाहिए। थपलियाल अपनी रिपेयरिंग की दुकान अब भी चलाते हैं, इसलिए उन्होंने प्लांट की देखरेख के लिए वहीं पास के एक आदमी को रखा हुआ है। जो देखभाल कर रहा है उनकी भी कुछ न कुछ आमदनी हो रही है। ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने देखभाल के लिए लोगों को रखा हुआ है। किसी योजना का मल्टीपर्पज उद्देश्य इसे ही कहते हैं। जो वर्तमान के साथ भविष्य की चिंताओं से भी मुक्त रखे।
चंबा ब्लॉक के ही कुलानंद चमोली से भी ‘अतुल्य उत्तराखंड’ की टीम ने बात की। 36 साल के कुलानंद अब तक समाजसेवा में लगे थे। पिताजी सिंचाई विभाग से सेवानिवृत्त हैं, इसलिए खर्च चल जा रहे थे। लेकिन, उनकी खुद की कोई आमदनी नहीं थी। वह पहाड़ छोड़ना नहीं चाह रहे थे। योजना की शुरुआत में ही उन्होंने आवेदन कर दिया। परिवार, रिश्तेदारों की मदद से उन्होंने 30 लाख रुपये का प्रबंध किया। कुछ महीनों की भागदौड़ के बाद उनके यहां प्लांट लग गया। जमीन खुद की है। इसलिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी। अब ये बड़े ठाट से समाजसेवा में जुट गए हैं। आय का साधन बन जाने से लोगों की मदद भी कर पाते हैं। इन्होंने 200 किलोवॉट का प्लांट लगाया है। ईएमआई 80 हजार रुपये महीने आती है। उनकी हर महीने बिलिंग लगभग सवा लाख रुपये के आसपास होती है। यानी, तकरीबन 40-45 हजार रुपये हर महीने उनकी आय हो जाती है। खास बात यह है कि प्लांट की खाली जमीन पर वह बागबानी भी कर रहे हैं। मास कम्यूनिकेशन की पढ़ाई कर चुके कुलानंद ने बाइफेसियल प्लेटें लगवाईं हैं। सौर प्लेटें दो तरह की होती हैं। मोनोफेशियल और बाइफेशियल। बाइफेशियल में जमीन से टकराने के बाद की किरणों से भी ऊर्जा पैदा होती है। कुलानंद की जमीन पथरीली है। इसलिए यह प्लेट इन्हें फायदा पहुंचा रही है। कुलानंद ने भी गणित लगाया है कि सब्सिडी मिलने के बाद छह से सात साल में ही लोन खत्म कर देंगे।
देहरादून के रानीपोखरी के जितेंद्र सिंह बिष्ट सीएससी (कॉमन सर्विस सेंटर) चलाते हैं। साथ ही खेती भी कराते हैं। मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना के तहत ऊर्जा प्लांट लगाने के बारे में कई दिनों से सोच रहे थे। जमीन उनके पास थी ही, उन्होंने बैंक में जाकर पता किया कि उन्हें कितना लोन मिल सकता है। इसके बाद उन्होंने 200 किलोवॉट सोलर प्लांट लगाने का फैसला किया। उन्हें 75 फीसदी लोन मिल गया। इस तरह उन्हें 25 लाख रुपये खुद के पास से लगाने पड़े। उन्हें 40 फीसदी सब्सिडी मिल जाएगी। खास बात यह है कि वह ग्राउंड वाली फसल भी उगाते हैं। जितेंद्र कहते हैं, मेरा पहले वाला काम वैसे ही चल रहा है। प्लांट के बीच जो जमीन खाली रहती है उसमें खेती भी कर रहा हूं। बस ज्यादा ऊंचाई वाली फसल नहीं लगा सकता हूं। बाकी खेती कर रहा हूं। इस सीजन में वह मसूर की खेती कर रहे हैं। इस तरह बहुत से लोग हैं जो इस योजना का लाभ उठा रहे हैं।
टिहरी गढ़वाल के ही प्रतापनगर ब्लॉक के लंब गांव निवासी मालेंद्र चंद्र रमोला पेशे से ठेकेदार हैं। उन्होंने सोलर प्लांट लगाने की सोची। उनके पास ऐसी जमीन न थी जिसपर वह प्लांट लगा सके। इसके बाद उन्होंने लीज पर जमीन ली। दो हजार रुपये नाली। 29 साल का एग्रीमेंट कराया है। उनकी बिलिंग भी लाख सवा लाख के आसपास हो रही है। उनका भी यही कहना है कि इनवेस्टमेंट के हिसाब से शुरुआत में बचत कम हो रही है। लोन खत्म होने के बाद बचत बढ़ जाएगी। तब तक प्लांट में कुछ काम नहीं आएगा तभी फायदा दिखेगा।
कैसा होता है मेंटीनेंस
सोल प्लांट को लगवाने वाले बताते हैं कि शुरुआती दस साल कोई बड़ा खर्च नहीं आता है। उसके बाद कुछ रिपेयरिंग करानी होती है। महीने के मेंटीनेंस की बात करें तो प्लेटों की सफाई करानी पड़ती है। 200 किलोवॉट की बात करें तो एक आदमी तीन से चार घंटे में यह काम अकेले कर सकता है। उन इलाकों में जहां अक्सर थोड़ी बहुत बारिश होती रहती है वहां प्लेटों को साफ करने की जरूरत नहीं पड़ती। इसके अलावा कोई बहुत मेजर मेंटीनेंस की जरूरत नहीं पड़ती है।
अब भी कई चुनौतियां
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि यह योजना बहुत कारगर साबित हो सकती है, लेकिन इसकी कुछ व्यावहारिक दिक्कतें हैं, जिनका सामना योजना का लाभ लेने वालों को करना पड़ रहा है।
143 का पेंच!
क्या सब्सिडी के लिए अप्लाई करते समय उनसे जमीन का 143 कराने को कहा जा रहा है। जब हमने यह सवाल पूछा तो टिहरी के रहने वाले प्रताप सिंह रावत सामने आए। उन्होंने कुछ अपनी और कुछ लीज पर जमीन लेकर 200 किलोवॉट का प्लांट लगाया है। उनका कहना है कि जब योजना शुरू की गई थी, तब ये शर्त नहीं थी। अब हमने प्लांट लगा लिया है, अब हमसे 143 मांगा जा रहा है। इस मुद्दे पर आला-अधिकारियों को शिकायत कर चुके हैं। सीएम से भी मिलने का वक्त मांगा है। वह बताते हैं, दिक्कत यह है कि अपनी जमीन का हम 143 करा लें, लेकिन जिनकी जमीन हमने लीज पर ली है, उसका क्या करें। एग्रीमेंट करते समय इस मुद्दे पर उनसे बात नहीं की गई। वह कहते हैं, 2023 में जब इस योजना का जीओ जारी किया गया था, उसमें यह बात नहीं थी। उसमें कहा गया था कि प्लांट लगाने के बाद जो जमीन बचती है, वहां पर बागबानी कर सकते हैं।
सब्सिडी देने का काम उद्यान विभाग का है, कुछ लोगों ने 143 कराने का मामला उठाया है। इस मुद्दे पर आला-अधिकारियों ने समय-समय पर स्थिति साफ की है। इसके अलावा कोई बड़ी दिक्कत नहीं आ रही है। विभाग में अब आवेदनों की छंटाई का काम चल रहा है। जिन लोगों के आवेदन पास हो चुके हैं और लगाने में देरी कर रहे हैं, या अन्य कारणों से नहीं लगा पा रहे हैं, जल्द ही उनके आवेदनों को निरस्त कर वेटिंग लिस्ट वालों को मौका दिया जाएगा। – शिव सिंह मेहरा, सीनियर प्रोजेक्ट अधिकारी, उरेडा
इनवेस्टमेंट सही, इनकम नहीं!
मसूरी रोड पर रिसॉर्ट चलाने वाले 45 वर्षीय राजेश ब्यास ने टिहरी के चंबा में कोंड गांव में 200 किलोवॉट का प्लांट लगवाया है। उनका कहना है कि योजना तो ठीक है। लेकिन, जितना इनवेस्टमेंट है, उस हिसाब से इनकम नहीं है। अपना ही उदाहरण देते हुए वह बताते हैं, एक करोड़ का प्रोजेक्ट है। 30 लाख अपने पास से लगाए हैं। 70 लाख रुपये लोन लिए हैं। महीने की किस्त 90 हजार रुपये के आसपास आती है। बिलिंग 1.15 से 1.20 तक होती है। बारिश के महीने में यह कम भी हो जाती है। इस हिसाब से हमारे हाथ में 30 हजार रुपये ही आया। उसमें भी मैंने लीज पर जमीन ली है, उसका भी किराया देना होगा। रखवाली के लिए एक लड़का रखा है। उसे भी पैसे देने होंगे। लोन खत्म होने के बाद यह पैसा बचेगा लेकिन, उसमें कम से कम दस साल का समय लगेगा। तब तक इस योजना से बहुत ज्यादा कमाई नहीं होगी।
बैंक मांगता है 100 प्रतिशत मॉर्गेज
प्रोजेक्ट में आने वाली परेशानी के बारे में पूछने पर कुछ लोगों ने बताया कि बैंक 100 प्रतिशत मॉर्गेज मांगते हैं। अगर यह कम कर दिया जाए तो इस योजना से और लोग जुड़ जाएंगे। मॉर्गेज लोन एक तरह का सिक्योर्ड लोन होता है। इसमें प्रॉपर्टी को गिरवी रखकर लोन लिया जाता है, मॉर्गेज लोन को बंधक ऋण भी कहते हैं। मॉर्गेज लोन के लिए रेसिडेंशियल और कमर्शियल दोनों तरह की प्रॉपर्टी को गिरवी रखा जा सकता है। अगर उधारकर्ता लोन की किश्तें समय पर नहीं चुकाता, तो ऋणदाता संपत्ति को जब्त कर सकता है। मॉर्गेज से बचने की व्यवस्था क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट फॉर माइक्रो एंड स्मॉल एंटरप्राइजेज (सीजीटीएमएसई) में है। इसके तहत लोन लेने के लिए काफी भागदौड़ करनी पड़ती है। साथ ही ब्याज आम बैंकों की अपेक्षा ज्यादा लिया जाता है।
भारी पड़ रही प्रोसेसिंग फीस
ग्रामीण बैंक से 70 लाख का लोन लेने वाले कुलानंद बताते हैं, मैंने 1.23 लाख रुपये की प्रोसेसिंग फीस अदा की है। यह बहुत ज्यादा है। जबकि दूसरे बैंक कम ले रहे हैं। सरकार को इस विषय पर कुछ करना चाहिए। रोजगार देने वाली योजना है। इसमें इतनी प्रोसेसिंग फीस नहीं ली जानी चाहिए। बैंक वाले साल में दो बार साइट विजिट करते हैं। इसके नाम पर 20 से 22 हजार रुपये फीस चार्ज करते हैं। चार पांच सालों तक यह चलेगा। यह भी गैरवाजिब है।
पैसेवालों की बनकर रह गई योजना!
सौर ऊर्जा प्लांट लगाने की योजना जोर पकड़ चुकी है। बड़ी संख्या में आवेदन आए हैं, 100 के करीब प्लांट स्थापित भी हो चुके हैं। लेकिन, इसका एक स्याह पक्ष भी है। तमाम लोग इसे पैसोवालों की योजना मानते हैं। 200 किलोवॉट का संयंत्र लगाने का खर्च करीब एक करोड़ रुपये आता है। बैंक पहले 70 अब 75 लाख का लोन देने लगे हैं। लेकिन, 75 लाख का लोन लेने के लिए इतने की ही संपत्ति गिरवी रखनी पड़ती है, क्योंकि सब्सिडी दो वर्षों में दी जाएगी। यानी, आपको सौर ऊर्जा सयंत्र स्थापित करना है तो लगभग तीस लाख रुपये अपने पास रखने होंगे। 70 या 75 लाख की प्रॉपर्टी भी होनी चाहिए तभी बैंक आपको लोन देंगे। इससे कम किलोवॉट का प्लांट लगाने पर मुनाफा कम हो जाएगा। कुलानंद चमोली बताते हैं, मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना के तहत बिना कुछ गिरवी रखे भी लोन मिल जाएगा। लेकिन, उसका ब्याज 11.5 या 12 प्रतिशत पड़ेगा। ऐसे में सारा पैसा ब्याज में ही चला जाएगा। बचेगा क्या?
सिंगल विंडो…मगर एनओसी-एनओसी खेल
योजना के लिए सिंगल विंडो की व्यवस्था की गई है। लेकिन तमाम विभागों की एनओसी लेनी पड़ती है। फायर विभाग वाले भी दो बार विजिट करने आते हैं। इसके अलावा यूपीसीएल का झंझट अलग से है। लोगों का कहना है कि योजना की शुरुआत में यूपीसीएल से महीने भर में अप्रूवल मिल गया। अब इसमें दो से तीन महीने का समय लग रहा है।
क्या है योजना
मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना के तहत कोई व्यक्ति 20, 25, 50, 100 या 200 किलोवॉट का सोलर प्लांट लगा सकता है। जिसकी पूरी उत्पादित बिजली यूपीसीएल खरीदता है। इसके लिए उन्हें मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना और उद्योग विभाग की एमएसएमई पॉलिसी के तहत मिलने वाली सभी छूट का लाभ प्रदान किया जा रहा है। सोलर प्लांट के लिए प्रदेश के स्थायी निवासी ही पात्र होते हैं, प्लांट की स्थापना अपनी निजी भूमि के साथ ही लीज की जमीन पर भी की जा सकती है।
जरूरी दस्तावेज
- आवेदक का आधार कार्ड
- मूल निवास प्रमाण पत्र
- आय प्रमाण पत्र
- जमीन के दस्तावेज
- परियोजना का विस्तृत विवरण
- आवेदन शुल्क ड्राफ्ट प्रमाणपत्र
- रोजगार पंजीकरण संख्या
- बैंक खाते की जानकारी
- पासपोर्ट साइज फोटो
- मोबाइल नंबर