रील्स साइड इफेक्ट : रील्स के चक्कर में लोग पलकें झपकाना तक भूल रहे हैं। यह बेहद खतरनाक स्थिति है। रील्स देखने के दौरान लोग अमूमन 50 प्रतिशत तक कम पलकें झपका रहे हैं। जिससे ड्राई-आई सिंड्रोम के अलावा निकट व दूर की वस्तुओं के बीच फोकस बदलने में कठिनाई जैसे नेत्र विकार बढ़े हैं। इसके अलावा डॉक्टरों का कहना है कि आंखों में भेंगापन आने, ड्राई आई, मायोपिया का खतरा बढ़ गया है। एशिया पैसिफिक एकेडमी ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी (एपीएओ) और ऑल इंडिया ऑप्थल्मोलॉजिकल सोसाइटी ने साझे तौर पर इस समस्या और इसके उपायों पर मंथन किया है। एपीएओ-2025 कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. ललित वर्मा के मुताबिक, अत्यधिक स्क्रीन एक्सपोजर के कारण डिजिटल आई स्ट्रेन की समस्या महामारी की तरफ बढ़ रही है। घंटों रील्स देखने वाले बच्चों में भेंगापन की समस्या दिख रही है। उन्होंने बताया, हाल में एक छात्र लगातार आंखों में जलन और धुंधली दृष्टि की शिकायत लेकर आया। जांच में पता चला कि लंबे समय तक स्क्रीन पर नजरें टिकाए रहने के कारण उसकी आंखों से पर्याप्त आंसू नहीं निकल रहे थे।
रील विजन सिंड्रोम आने वाले समय में गंभीर महामारी न बन जाए, इसके लिए लोगों को सचेत होने की जरूरत है। विशेषज्ञों का कहना है कि अभिभावकों को खास तौर पर अपने बच्चों पर ध्यान देने की जरूरत है। वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ डॉ. समर बसाक के मुताबिक, लोग रील देखने में इतने लीन हो जाते हैं कि असली दुनिया से एकदम कट जाते हैं। न उनका पढ़ाई-लिखाई में मन लगता है।
बार-बार पलकें झपकाएं, स्क्रीन टाइम घटाएं
विशेषज्ञों का कहना है कि आंखों की सेहत के लिए स्क्रीन देखते समय बार-बार पलक झपकाने का प्रयास करना, स्क्रीन टाइम घटाना व नियमित स्क्रीन ब्रेक जैसी कोशिशों से फायदा हो सकता है। ऑल इंडिया ऑप्थल्मोलॉजिकल सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. हरबंश लाल ने बताया, अब हम 30 साल की उम्र तक चश्मे के नंबर में उतार-चढ़ाव देख रहे हैं, कुछ दशक पहले यह 21 साल था। हालिया अध्ययनों की मानें तो 2050 तक दुनिया की 50% आबादी मायोपिया की शिकार होगी।
20-20-20 नियम के पालन की सलाह
रील्स के इस दौर में डॉक्टर 20-20-20 नियम के पालन की सलाह दे रहे हैं। इसके अनुसार
20 मिनट पर 20 सेकंड का ब्रेक लेना है। साथ ही 20 फीट दूर किसी चीज को देखना। आंखों के लगातार नीली रोशनी के संपर्क में रहने से बच्चों, युवाओं को अक्सर सिरदर्द, माइग्रेन व नींद संबंधी विकारों से जूझना पड़ रहा है।