Side Effects Of Work From Home : वर्क फ्रॉम होम को समर्थन देने वाले कहते हैं कि इससे उत्पादकता में वृद्धि होती है। साथ ही बचत भी। कोरोना काल के दौरान जब वर्क फ्रॉम होम का चलन तेजी से बढ़ा तो यह लोगों को काफी आकर्षित किया। घर पर बैठकर काम करना, न ऑफिस जाने की टेंशन न जाम में फंसने की। लोगों को लगा कि इससे उनकी बचत ज्यादा होगी और आराम भी मिलेगा। मगर चार वर्षों में ही इसके साइड इफेक्ट दिखने लगे हैं। हाल ही में हुए एक शोध में यह बातें सामने आई हैं।
कार्लटन यूनिवर्सिटी द्वारा हाल ही में प्रकाशित शोध के अनुसार-कुछ लोगों को घर से काम करते समय अधिक अकेलापन और बेचैनी महसूस होती है। ऐसे लोग लंबे समय तक घर में रहते-रहते चिड़चिड़े और असहज हो जाते हैं। शोधकर्ताओं में से एक फरजम सेपंटा ने कहते हैं- घर से काम करने वाले लोगों को कार्यालय के माहौल में सहकर्मियों के साथ होने वाली सहज बातचीत याद आती है। इसके अलावा सबसे बड़ी समस्या शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की है। स्वास्थ्य जगत से जुड़े लोग इस वर्क कल्चर को लेकर पहले से ही आशंकित थे। इनका कहना था कि अपनी मनमर्जी से काम करने की आदत सेहत पर भारी पड़ेगी। वही अब हकीकत में दिखने लगी है।
जर्नल ऑफ एप्लाइड साइकोलॉजी में प्रकाशित एक रिपोर्ट ने दो वर्ष पहले ही शारीरिक और मानसिक दुष्परिणामों को लेकर आगाह कर दिया था। वीडियो कॉन्फ्रेंस या ज्यादा वक्त ऑनलाइन रहना सेहत के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है। लोग समझ भी रहे हैं। मगर, अब आदत बदल चुकी है। बहुत से लोग अब वर्क फ्रॉम होम की आड़ में घर में रहने और अपनी मनमर्जी के मुताबिक आरामदेह परिस्थितियों में काम करना छोड़ना नहीं चाहते हैं। शोध बता रहे हैं कि वर्क फ्रॉम होम से शारीरिक दक्षता और फिटनेस बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
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बिस्तर पर लेटे हुए काम निपटाना या घरेलू पोशाक में यहां-वहां बैठकर काम करने की आदत ने जहां दफ्तरों के अनुशासन को खत्म किया, वहीं रोज-रोज संगी-साथियों के साथ मुलाकात का अवसर भी छीन लिया। दफ्तर में रोजाना का गेट-टूगेदर भी खत्म हो गया। इस तरह वर्क फ्रॉम होम के जरिये काम करने वाला वर्ग नितांत अकेला हो गया। इसका एक स्याह पक्ष यह भी है कि कंपनियां ऑफिस की तुलना में इन लोगों से काम भी अधिक ले रही है।
डाटा जर्नलिज्म वेबसाइट स्टैटिस्टा के हालिया सर्वे ने और चिंता बढ़ा दी है। अमेरिका में लगभग छह हजार लोगों के बीच कराए गए सर्वे में पाया गया कि वर्क फ्रॉम होम करने वाले लोग ज्यादा संख्या में बीमार हुए। इसमें बताया गया है कि 59 प्रतिशत लोगों को कमर दर्द, सिरदर्द ने परेशान किया, तो 54 प्रतिशत लोग ऐसे मिले, जिन्हें किसी न किसी प्रकार के दर्द ने जकड़ लिया। वर्क फ्रॉम होम करने वालों का पाचन तंत्र भी बुरी तरह प्रभावित हुआ। जिन्हें पेट की कभी कोई गंभीर शिकायत नहीं थी, उन्हें पाचन की समस्याएं होने लगीं। ऐसे लोगों का आंकड़ा 40 प्रतिशत तक पहुंच गया। दूसरी ओर आॉफिस में जाकर काम करने वालों में ये समस्याएं केवल 34 प्रतिशत निकलीं।
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सबसे हैरानी की बात यह है कि घर के बंद कमरे में काम करने के बावजूद 40 प्रतिशत लोग सर्दी-खांसी जैसी बीमारी के शिकार हुए। वहीं, ऑफिस के खुले माहौल में काम करने वालों में महज 34 फीसदी लोगों को ही सर्दी खांसी की समस्या हुई। यह आंकड़ा काफी हैरान करने वाला था घर बैठे लोग सर्दी-खांसी का ज्यादा शिकार हुए जबकि ऑफिस वाले कम। मानसिक रूप से परेशान रहने वालों की संख्या भी चौंकाने वाली रही। घर से काम करने वाले 46 प्रतिशत लोगों को शिकायत थी कि काम के दौरान उन्हें मानसिक समस्या से जूझना पड़ा। जबकि जो लोग अपने कार्य स्थल से काम करते थे, उनमें यह प्रतिशत केवल 36 रहा।
कोरोना के बाद जिनको वर्क फ्रॉम होम से सहूलियत हो रही थी उनका शरीर तरह-तरह की बीमारियों का घर बन गया। एक ही जगह बैठे-बैठे या लेटे-लेटे काम करने या सुबह उठते ही या फिर रात में देर तक काम करते रहने जैसी आदतों ने ढेर सारी बीमारियों को दावत दे दिया। सबसे बड़ी समस्या यह है कि कंपनियां भी इनसे मनमाफिक काम ले रहीं हैं। काम का समय बढ़ा दिया गया है। इस वजह से घर से काम करने वाले लोगों की दिनचर्या सही नहीं हो पा रही है। ऐसे लोग न शारीरिक कसरत कर पा रहे हैं न ही सुबह टहल रहे हैं।
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खैर, स्वास्थ्य विशषज्ञों ने जो अंदेशा चार साल पहले जताया था उसका दुष्परिणाम कम समय में सामने आने लगा है। कोरोना काल में वरदान से लगते वर्क फ्रॉम होम को अभिशाप में बदलते देर नहीं लगी। अब भी बहुत ज्यादा नहीं बिगड़ा है। युवाओं को कॅरिअर के साथ स्वास्थ्य को भी प्राथमिकता में रखना होगा। जैसे की हमारे शास्त्रों में लिखा है कि स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है। इसे नजरअंदाज नहीं करें।