केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्यमंत्री अजय टम्टा, उत्तराखंड सरकार में कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल ने वरिष्ठ पत्रकार मनोज इष्टवाल (Manoj Istwal) के आत्म-संस्मरण ‘वो साल चौरासी’ का देहरादून में विमोचन किया। इस अवसर पर सूचना महानिदेशक बंशीधर तिवारी, राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष कुसुम कंडवाल, डा. एस डी जोशी की भी मौजूदगी रही।
आईआरडीटी सभागार में आयोजित कार्यक्रम में अजय टम्टा ने कहा कि Manoj Istwal को बतौर पत्रकार हम लंबे अरसे से जानते है। अब साहित्य के क्षेत्र में इनकी विद्या से भी परिचित हो गए हैं। वन एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि ‘वो साल चौरासी’ जैसी ऑटो बायोग्राफी लिखना साहस की बात है। मनोज इष्टवाल की लड़कपन की प्रेम गाथा का जैसा और जो भी वर्णन समीक्षा के दौरान सुनने और जानने को मिला वह लगभग 40 साल पूर्व के लोकसमाज के मर्म को छूने जैसा एक प्रयास है।
पुस्तक की समीक्षा वरिष्ठ पत्रकार गणेश खुगशाल ‘गणी’ और प्रेम पंचोली ने की। वरिष्ठ पत्रकार गणेश खुगशाल ‘गणी’ ने वो साल चौरासी के बारे में बताया कि उम्र के पहले पड़ाव में अक्सर सभी को अनुराग की अनुभूति होती है और उस निश्चल प्रेम में अतृप्त प्रेमी की वेदना को यह किताब पुनर्जीवित करती है। उस प्रेम का देश काल और परिस्थिति भिन्न हो सकते हैं लेकिन संवेदनाएं एक सी होती है।
पत्रकार प्रेम पंचोली के अनुसार ‘वो साल चौरासी’ के जरिये प्रेमी और प्रेमिका के प्रसंग को माध्यम बनाते हुए लेखक ने पहाड़ का जो दृश्यांकन किया है, वह अद्भुत है। यह चार दशक पूर्व की प्रेम कहानी भर नहीं है। इस पुस्तक में पहाड़ के लोक समाज की जिजीविषा शामिल है, जो लोक लाज, मान मर्यादा का एक ऐसा दर्पण है जो वर्तमान की नौजवान पीढ़ी के लिए एक सुखद संदेश देता है। उन्हें प्रेम के सच्चे मायने समझाती है।
‘वो साल चौरासी’ गूगल के साहित्य पेज पर खूब छाई हुई है। कई साहित्यकारों की समीक्षाएं सोशल साइट पर उपलब्ध हैं। जिनमें अरुण कुकसाल, जे पी पंवार, एस पी शर्मा, अशोक पांडे प्रमुख हैं।
यह पुस्तक विगत शताब्दी के अस्सी के दशक में गढ़वाल के निम्न मध्यमवर्गीय पहाड़ी किशोर के माध्यम से उस दौर के युवाओं की मनोभावनाएं, दोस्ती की अंतरंगता, उनके संघर्ष, लोक जीवन से उनका लगाव, समर्पण, माता-पिता की परेशानियों को समझने की प्रवृत्ति, ग्रामीणों के अपने-अपने संघर्ष, उनके रिश्ते, आपसी मनमुटाव, ईर्ष्या, पिता-पुत्र के आपसी रिश्तों का तनाव एवं लगाव, संयुक्त परिवारों का बाहुल्य, खेती-किसानी, शहरी प्रवासियों की मनोवृत्ति, महानगरों में उनकी मजबूरियां, किशोर-किशोरियों के आपसी संवाद, युवाओं के एक-दूसरे प्रति आकर्षण के तौर-तरीके, उनके लड़ाई-झगड़े, शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के रिश्ते, विद्यालयों का अनुशासन, शहर से गांव में आए कुटंबजनों के स्वागत की परम्परा, तीज-त्यौहार, उत्सव, मेलों का परिदृश्य आदि को 16 अध्यायों में जीवंत तरीके से सार्वजनिक करती है।
इस किताब प्रेम के सभी आयाम है, इसमें प्रेम भी है, प्रेम का मर्म भी और प्रेम का धर्म भी है। जिसमें प्रेमी – प्रेमिका, घर-परिवार, समाज, लोक-लाज न जाने कितने पहलू का बखूबी ख्याल रखा है। पहाड़, प्रकृति, संयुक्त परिवार और पहाड़ी समाज के प्रति आपका अगाध प्रेम, जिसमें गाय-बैल, खेत-खलिहान, नदी-गदेरे समेत पहाड़ की संपूर्ण संस्कृति समाहित है। मां की ममता, पिता का विश्वास, बहनों का प्यार और दोस्तों की यारी सबका चित्रण है।