- अतुल्य उत्तराखंड के लिए जेपी मैठाणी
आपको पता है सत्य की राह पर चलने का रास्ता भी बेहद दुर्गम, रोमांचक और प्रकृति के अनेक रहस्यों से भरा है अगर नहीं तो चलिए सतोपंथ ट्रैक यानि सत्य के पथ पर। भारत के चार धामों में प्रसिद्ध श्री बद्रीनाथ धाम से लगभग 24 किलोमीटर की दूरी तय करके आप गहरे हरे और कभी-कभी साफ नीले पानी की एक झील के निकट पहुंचते हैं, जिसका नाम सतोपंथ झील है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद लगभग 36 वर्षों तक राजकाज संभालने के बाद मोक्ष प्राप्ति और शिव को क्षमा सहित प्रसन्न करने के प्रयासों के बीच पांडव सतोपंथ के रास्ते ही स्वर्गारोहणी की तरफ गये। संभवतः इस यात्रा का नेतृत्व हमेशा सत्य बोलने वाले युधिष्ठिर कर रहे हों इसलिए इसे सतोपंथ कहा जाता होगा।
सतोपंथ झील का आकार उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में मौजूद सभी प्रकार के सरोवर या झीलों से बिल्कुल ही अलग है। झील की परिक्रमा पथ से लिए गये अलग-अलग चित्रों में कहीं से यह झील भारत के दक्षिणी भूभाग, कहीं से शंख की तरह और कहीं से वक्राकार दिखती है। इस झील में अलकापुरी ग्लेशियर के मोरेन क्षेत्र से होते हुए ग्लेशियर का बर्फीला पानी जमा होता है। समुद्र तल से इस झील की ऊंचाई लगभग 4600 मीटर या 15,186 फीट है। झील के चारों ओर हिमालय में उगने वाले अनेक प्रकार के जंगली फूल जैसे आंकुड़ी-बांकुड़ी, ब्रह्मकमल, एस्टर और नीचे की तरफ पवित्र भोजपत्र का जंगल है।
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अगस्त के बाद फूल बेहद कम हो जाते हैं क्योंकि अब सतोपंथ झील तक जाने वाले पर्यटकों की संख्या में लगातार कई गुना वृद्धि हो रही है। हाल ही में सतोपंथ ट्रैक कर लौटे- द हैजल नट रिसार्ट और आगाज़ के माउंटेनियरिंग प्रशिक्षक अनुज नंबूदरी ने बताया कि उनकी टीम द्वारा इस क्षेत्र में बहुतायत में सालम पंजा, कुटकी, अतीस जैसी बहुमूल्य जड़ी-बूटियों पर आजकल फूल खिले हुए थे, अब भेड़-बकरी पालक जैसे ही यहां पहुंचते हैं तो फूल परिपक्व होकर बीज बनाने लगते हैं जिनका प्रकीर्णन भेड़-बकरी की ऊन पर चिपकने से होता है।
भेड़-बकरियों के खुरों से बुग्याल की ऊपरी सतह खुद कर बीज बुग्याल की धरा में समाहित हो जाते हैं। भेड़-बकरियों का गोबर ऊपर से जैविक खाद बन जाता है इसके बाद बर्फबारी अक्टूबर में शुरू हो जाती है और हिमालय में उगने वाले वनस्पतियों के बीज सुप्तावस्था में मार्च-अप्रैल तक सो जाते हैं। अप्रैल-मई में जैसे ही बर्फ पिघलती है हिमालय की अधिकतर वनस्पतियों और पुष्प प्रजातियों पर सीधे फूल खिलते हैं और सितम्बर-अक्टूबर तक ये वनस्पति अपना जीवन-चक्र पूरा कर लेते हैं। प्रकृति का ये रोमांचक रहस्य भी देखना हो या इस प्रक्रिया को महसूस करना हो तो आइए सतोपंथ ट्रैक पर।
ट्रैक के पड़ाव
पहले दिन बद्रीनाथ धाम से माता मूर्ति केशवप्रयाग होते हुए लक्ष्मीवन तक 6 किलोमीटर का पैदल ट्रैक है। वसुधारा से पहले और माणा गांव के निकट केशव प्रयाग है जहां पर सरस्वती और अलकनंदा नदी का संगम होता है और कहा जाता है सरस्वती यहीं से अंतर्ध्यान हो गयी। लक्ष्मीवन पूरी तरह से पवित्र भोजपत्र का जंगल है और अलकनंदा के उस पार वसुधारा का विशाल जल प्रपात दिखाई देता है।
दूसरे दिन लक्ष्मीवन के बाद अगला पड़ाव 12 किमी की दूरी पर चक्र तीर्थ है बीच में सहस्त्रधारा नामक स्थान भी स्थित है जहां पर कैंपिंग साइट भी है। ध्यान रखिए यहां आक्सीजन की कमी हो जाती है। लेकिन कई स्थानों पर सुंदर छोटे-छोटे मखमली बुग्याल, भोजपत्र के वन छोटे-बड़े ग्लेशियर मनमोहक झरने अलकनंदा के तेज बहते पानी की आवाज हिमालय में आपका मन मोह लेगी।
तीसरा दिन चक्रतीर्थ से फिर 4 किमी की दूरी पर है हिमालय की एक शानदार झील सतोपंथ। (सतोपंथ झील के दाहिनी ओर चौखंबा पर्वत और बाईं ओर नीलकंठ की चोटी है। इन दोनों जलागमों के मध्य अलकापुरी ग्लेशियर से अलकनंदा नदी में बहकर आने वाला पानी पहले सतोपंथ झील में एकत्र होता है। सतोपंथ से ऊपर सर्वाधिक कठिन क्षेत्र ही स्वर्गारोहणी है। जनश्रुतियों में वर्णित है कि स्वर्गारोहण को जाते समय अलग-अलग स्थानों पर पांडवों के अलग-अलग भाइयों का स्वर्गवास हुआ लेकिन युधिष्ठिर और उनका सहयोगी श्वान ही स्वर्ग को जा पाए। यहां यह तथ्य भी उजागर करना उचित होगा कि सतोपंथ झील के ऊपर चंद्रकुंड और सूर्यकुंड भी है।
सतोपंथ में पवन बाबा भी रहते हैं। जिनसे सतोपंथ झील से सम्बन्धित जनश्रुतियों और लोकगाथाओं के बारे में जाना जा सकता है। लेकिन यह ध्यान रहे वो साधनालीन ना हों। जिन ट्रैकिंग ग्रुपों के पास ट्रैकिंग उपकरण होते हैं, वे सतोपंथ झील के नजदीक ही कैंपिंग करते हैं। लेकिन यहां रात का तापमान कभी-कभी माइनस 10 डिग्री तक चले जाता है। इसलिए विशेष सावधानी रखने की जरूरत है अन्यथा उसी वापस 4 किमी नीचे चक्रतीर्थ आना उचित रहता है। इस ट्रैक में आप श्री बद्रीनाथ में 3300 मीटर लगभग 10890 फीट से सतोपंथ झील तक लगभग 4600 मीटर या 15,186 फीट तक की चढ़ाई चढ़ चुके होते हैं। इसलिए ट्रैक को जल्दी शुरू किया जाना चाहिए और शाम को 3-4 बजे के बाद कोशिश करें कि ट्रैक ना करना पड़े। इसके लिए जरूरी उपकरण है- ट्रैक के लिए अच्छी किस्म के विंड और वाटरप्रूफ टैंट माइनस 10 डिग्री तापमान झेलने के लिए अच्छे स्लीपिंग बैग, मैट्रेस, अच्छी क्वालिटी का वॉटरप्रूफ बैकपैक, पौंचू, टोपी, सनग्लास, ग्लव्स, ट्रैकिंग शूज़, थर्मलवियर, टार्च, टायलैट्रिज़ और आवश्यक दवाएं रखना ना भूलें।
खाने-पीने की व्यवस्था
इस ट्रैक में कहीं भी कोई दुकान या ढाबे नहीं है। इसलिए खाने का सामान और खाना पकाने के लिए छोटे गैस सिलेंडर (ब्यूटेन सिलेंडर) साथ में ले जाएं। अलग से ड्राई फ्रूट आदि रखना ना भूलें। शीतल हिमालयी जल मिनरल वाटर से कम नहीं है।
ध्यान रहे ट्रैकिंग के दौरान अकेले कहीं ना जाएं। कोई ना कोई साथ में अवश्य रहे। इस ट्रैकिंग में यह विशेष ध्यान रखने की जरूरत है कि शोरगुल ना करें, चटकीले-भड़कीले कपड़े ना पहनें, वनस्पति को नुकसान ना पहुंचाएं और किसी भी प्रकार प्लास्टिक पालिथीन कचरा कहीं भी इधर-उधर ना फेंके। उसे वापस लाकर नगर पंचायत बद्रीनाथ के कूड़ेदानों में डाल दें।
हिमालय की सतोपंथ ग्लेशियर और झील के सौंदर्य, रोमांच, और आध्यात्म को सतत् बनाए रखने और अलकनंदा के जलागम/उद्गम की पवित्रता प्रकृति प्रेमियों के सहयोग के बिना संभव नहीं है। इसलिए आइए हिमालय में प्रकृति का आनंद लें और शांति तथा आध्यात्य को आत्मसात करें।