Reverse Migration (रिवर्स पलायन) खाली हो रहे उत्तराखंड (Uttarakhand) की सबसे बड़ी जरूरत है। पहाड़ छोड़कर जाने वाले अक्सर ये दलील देते हैं कि काफी समय हो गया है, अब वापस लौटना मुश्किल है, क्योंकि, रहन-सहन का तरीका बदल चुका है। पहाड़ों पर वो सुविधाएं नहीं मिल पाएंगी जो हमें शहरों में मिलती हैं। लेकिन कुछ अपवाद भी हैं,ऐसे लोग भी हैं, जिनके पास सारे संसाधन हैं बावजूद इसके वे पहाड़ों पर लौटे। साथ ही मिसाल भी कायम की। इनमें से ही हैं बीएल मधवाल और उनकी पत्नी अनीता मधवाल।
बेटा-बहू एयरफोर्स में विंग कमांडर। बेटी डेंटिस्ट, दामाद माइक्रोसॉफ्ट में इंजीनियर। खुद पुलिस विभाग से डिप्टी एसपी पद से सेवानिवृत्त। भला, इससे ज्यादा किसी को और क्या चाहिए। लेकिन, मातृभूमि की पुकार अनसुनी न कर सके। 48 वर्ष बाद वापस लौटे। मिसाल भी कायम की। नैनीडांडा ब्लॉक में कुछ उनकी पैतृक जमीन थी, कुछ खरीदी। मकान तैयार कराया। उसमें शुरू किया नैनी हिल्स…होम स्टे एंड कैफे। एक-दो कमरों में से शुरू सफर अब बड़ा रूप ले चुका है। इसे आप एक सफल स्टार्टअप भी कह सकते हैं।
बीएल मधवाल बताते हैं- नौकरी में रहते हुए मैंने सोच लिया था कि रिटायरमेंट के बाद नैनीडांडा में ही रहूंगा। क्योंकि, पलायन पहाड़ों की सबसे बड़ी समस्या है। पहाड़ खाली होते जा रहे हैं। मेरे पौड़ी जनपद में सबसे ज्यादा पलायन हमारे क्षेत्र नैनीडांडा से ही हुआ। यहां से जिला मुख्यालय की दूरी करीब 185 किलोमीटर है। हम दिल्ली पहले पहुंच जाते हैं, जिला मुख्यालय बाद में पहुंच पाते हैं। शायद यही कारण है यहां से पलायन का।
रिटायरमेंट के बाद यहां घर बनाने की सोची। शहरों की चकाचौंध खूब देख ली थी। इसलिए 2015 में कुछ और जमीन खरीद ली। रिटायर होने के बाद यहां आया तो मन में होम स्टे बनाने का विचार आया। इस क्षेत्र में कहीं भी होटल या होम स्टे नहीं था। इसलिए सैलानी भी कम आया करते थे।
होम स्टे को चलने में कुछ समय जरूर लगा। मगर अब, मेरे होम स्टे के अलावा छह-सात और भी जो होम स्टे हैं, वो भी खूब चल रहे हैं। सैलानियों की संख्या भी बढ़ गई है। आने वाले पांच वर्षों में इस क्षेत्र में और भी होटल और होम स्टे खुल जाएंगे। क्योंकि यह जगह बहुत ही खूबसूरत है। शांत वातावरण यहां आने वाले सैलानियों का मन मोह लेते हैं। मेरी पांचवीं तक पढ़ाई यही हुई थी। उसके बाद देहरादून चला गया। लगभग 48 वर्ष बाद लौटा हूं। लोगों का व्यवहार ऐसा है कि यहां दिल लग गया।
चकाचौंध से मन ऊबा, अब सुकून की दरकार
अनीता मधवाल कहतीं हैं- मेरा बचपन शहरों में ही बीता है। शादी के बाद पति की नौकरी के कारण शहरों में ही रहना हुआ। हमारे दोस्त जब किसी पहाड़ी इलाके में घूमकर आते तो उसके बारे में बताते, मेरा भी खूब मन करता था पहाड़ पर जाने का। पहाड़ मुझे बचपन से ही आकर्षित करते थे।
जिंदगी का काफी वक्त बच्चों के पालन-पोषण में बीत गया। लेकिन, एक समय ऐसा भी आता है जब सिर्फ सुकून की जरूरत होती है। इसलिए हम लोगों ने रिवर्स पलायन की सोची। अब तो मजे में जिंदगी कट रही है। बच्चे भी यहां आकर खूब खु्श होते हैं। मेरे चार साल के पोते का मन हमेशा यही लगा रहता है। बेटी-दामाद का भी मन खूब लगता है।
लाल भात-चूल्हे की रोटी
गहत की दाल का फाड़ू बना रहीं (जिसे कुमायूं में कुत्थी कहते हैं) अनीता जी बतातीं हैं- हम सैलानियों को ऑर्गेनिक पहाड़ी खाना ही खिलाते हैं। इसमें कढ़ी, झंगोरा, राई की सब्जी आदि। सैलानी अक्सर मंडवे की रोटी (जो चूल्हे में बनाई जाती है) की मांग करते हैं। वह अपने सामने यह बनवाना पसंद करते हैं। यहां ज्यादा ठंड की वजह से सब्जी कम होती है। गर्मियों में हमारे यहां राई, पालक और टमाटर खूब होते हैं। कुछ सब्जियां हम गांव से मंगाते हैं।
बद्री गाय का घी
कहा जाता है कि बद्री गाय का घी दुनिया में सबसे सुगंधित व पौष्टिक होती है। यह वैज्ञानिकों के रिसर्च में सामने आया है। इसे हम सैलानियों को खिलाते हैं। इसे गांव से मंगाते हैं।
सिर्फ सोशल मीडिया पोस्ट ही काफी नहीं..
बीएल मधवाल जी कहते हैं- आजकल युवा सोशल मीडिया पर पहाड़ों के बारे में बातें तो खूब करते हैं, मगर करते कुछ नहीं। अब बात करने का नहीं काम करने का समय है। जो पहाड़ के हैं, उन्हें ही इसके बारे में सोचना होगा। यहां रोजगार पैदा करें। आवागमन के साधन सुलभ हो गए हैं। इसलिए यहां संभावननाएं भी खूब हैं।