Research : दुनिया भर के अभिभावक अपने बच्चों की परवरिश को लेकर परेशान व डरे हुए हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है, बच्चों का इंटरनेट, मोबाइल पर ज्यादा समय (स्क्रीन टाइम) बीताना। इंटरनेट पर मौजूद हिंसक सामग्री, बच्चों का हिंसक मिजाज व दवाओं में हो रहे केमिकल के इस्तेमाल ने माता-पिता को परेशान कर रहा है। अगस्त माह के अंत में प्यू रिसर्च सेंटर पर जारी एक शोध में यह बातें सामने आई हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक, आज के दौर के बच्चे अभिभावकों से पहले के बच्चों की अपेक्षा ज्यादा व अनुचित मांग करने लगे हैं। शोधकर्ताओं की टीम में शामिल भारतवंशी अमेरिकी सर्जन डॉ. विवेक मूर्ति का कहना है कि अगर इन चिंताओं का समाधान जल्द नहीं किया तो आने वाले समय में माता-पिता के लिए बच्चों की परवरिश मुश्किल हो जाएगी।
शोध में माता-पिता के सामने परवरिश के दौरान आने वाली चुनौतियों पर गहन अध्ययन किया गया है। चुनौतियों की तुलना सिगरेट और एड्स की बीमारी जैसे खतरों से की है। शोध में कहा गया है कि बच्चों की परवरिश हमेशा से चुनौतीपूर्ण रही है। लेकिन, आज के दौर में यह ज्यादा मुश्किल हो गया है। क्योंकि वर्तमान में बच्चों इंटरनेट व सोशल मीडिया पर तमाम तरह की जानकारियां उपलब्ध हैं। इनमें से ज्यादातर उनके काम की नहीं है। इससे उनके दिलो-दिमाग पर गहरा असर पड़ रहा है। शोध के मुताबिक, हथियारों के इस्तेमाल की खबरें बच्चे पर बुरा असर डाल रही है। इससे बच्चों की प्रवृत्ति हिंसक होती जा रही है। परिणामस्वरूप उनकी मांग पूरी न होने पर उनका गुस्सा हिंसक होता जा रहा है। चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है। शोध में सलाह दी गई है कि माता-पिता बच्चों के चिड़चिड़ापन को शुरुआती दौर में पहचान करें और उनका इलाज कराएं।
बच्चों को सारी सुविधाएं देना आर्थिकी दबाव
शोध में बताया गया है कि बच्चों को सभी सुविधाएं देने का दबाव पिछले दो दशकों से ज्यादा है। बच्चों पर ज्यादा पैसे और समय खर्च करें। यह आर्थिकी के डर से प्रेरित है। ऐसी धारणा बन गई है कि अगर माता-पिता अपने बच्चों के लिए ऐसा नहीं करते हैं तो उनका बच्चा एक सुरक्षित मध्य वर्गीय जीवन हासिल नहीं कर सकता है।
स्क्रीन टाइम क्या है
स्क्रीन टाइम वह समय है जो कोई व्यक्ति किसी डिवाइस का उपयोग करके बिताता है। इसमें स्मार्टफोन या गेम कंसोल पर गेम खेलना -वीडियो सामग्री या टीवी शो स्ट्रीम करना, इंटरनेट ब्राउज़ करना, ऑनलाइन होमवर्क करना या स्क्रीन का उपयोग करते हुए किसी भी गतिविधि में शामिल होना शामिल है।
बच्चों की मोबाइल की लत से लगभग सभी अभिभावक परेशान
पहले का दौर था, जब अभिभावक बच्चों और किशोरों को नशे की लत से बचाने के लिए परेशान रहते थे। अब उनकी परेशानी है इंटरनेट-सोशल मीडिया। डिजिटल क्रांति के बाद देश के लगभर हर परिवार के घर में मोबाइल फोन आ गया है। बच्चों का ज्यादा समय मोबाइल पर ही बीतने लगा है। मैदान जाने से बच्चे कतराने लगे हैं। इंटरनेट का नशा इस कदर बच्चों के सिर पर चढ़ रहा है कि बड़ी संख्या में बच्चों का इलाज और काउंसलिंग तक करवानी पड़ रही है। एक सर्वे के मुताबिक, देश में 8 से 12 साल तक के बच्चे हर दिन औसतन 4 घंटे 40 मिनट तक इंटरनेट पर बिता रहे हैं। किशोरों में तो यह लत और भी ज्यादा चिंताजनक है। किशोर प्रतिदिन 7 घंटे 22 मिनट तक इंटरनेट पर बिता रहे हैं।
मानसिक रोग का शिकार हो रहे हैं बच्चे
सर्वे के मुताबिक, इसमें स्कूल या होमवर्क के लिए इंटरनेट पर बिताया गया समय नहीं शामिल है। इस कारण बच्चे मानसिक रोग का शिकार भी हो रहे हैं। इंटरनेट का इस्तेमाल करने के मामले में मेट्रो शहर के बच्चे काफी आगे हैं। टेक्नॉलजी को लेकर बच्चों की आदतों को ट्रैक करने वाली गैर सरकारी संस्था कॉमन सेंस मीडिया के सर्वे में सामने आया है कि अधिकांश बच्चे टीवी, स्मार्टफोन और अन्य गैजेट्स से चिपके रहते हैं। विडियो देखने के लिए बच्चे प्रतिदिन कम से कम 1 घंटे यूट्यूब का इस्तेमाल करते हैं।