Research : जलवायु परिवर्तन का असर आने वाले कुछ वर्षों में हमारे स्वास्थ्य के ऊपर स्पष्ट तौर पर नजर आने लगेगा। हाल में हुए एक शोध में इस ओर इशारा किया गया है। इस शोध के मुताबिक, बढ़ते तापमान के कारण आने वाले वर्षों में महिलाओं में कैंसर के मामलों में वृद्धि देखी जा सकती है। साथ ही मौतों की संख्या भी बढ़ सकती है। हालांकि, यह शोध 17 अफ्रीकी देशों में किया गया है। लेकिन, इसका प्रभाव आने वाले कुछ वर्षों में दुनिया के तमाम देशों में भी दिख सकता है। इस शोध के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल फ्रंटियर्स इन पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित हुए हैं।
इस शोध में बताया गया है कि तापमान बढ़ने के साथ महिलाओं में स्तन, अंडाशय (ओवरी), गर्भाशय और सर्वाइकल कैंसर के मामले और मौतें दोनों बढ़ रही हैं। जलवायु परिवर्तन का महिलाओं में कैंसर के खतरे पर क्या असर पड़ता है, यह जानने के लिए शोधकर्ताओं ने मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीका के 17 देशों को चुना है। इनमें शामिल अल्जीरिया, बहरीन, मिस्र, ईरान, इराक, जॉर्डन, कुवैत, लेबनान, लीबिया, मोरक्को, ओमान, कतर, सऊदी अरब, सीरिया, ट्यूनीशिया, संयुक्त अरब अमीरात और फिलिस्तीन शामिल थे। गौरतलब है कि ये सभी देश जलवायु परिवर्तन के प्रति बेहद संवेदनशील हैं और पहले ही तापमान में तेजी से होती वृद्धि का सामना कर रहे हैं।
पर्यावरण वैज्ञानिक आशंका जता चुके हैं कि इन देशों में 2050 तक तापमान चार डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। बतादें कि दुनिया के लिए सामान्य तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस माना जाता है। आशंका जताई जा रही है कि यह तीन डिग्री सेल्सियस की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में इन देशों में तापमान चार डिग्री सेल्सियस तक बढ़ता है तो यह विनाशकारी साबित हो सकता है। इसके साथ ही अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इन देशों में स्तन, अंडाशय, गर्भाशय और सर्वाइकल कैंसर के मामलों और मौतों से जुड़े आंकड़ों को भी जुटाया है और उनकी तुलना 1998 से 2019 के बीच बढ़ते तापमान से की है।
कतर, बहरीन, जॉर्डन, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और सीरिया जैसे देशों में यह बढ़ोतरी सबसे अधिक देखी गई। यह वो देश हैं जो साल दर साल भीषण गर्मी का सामना करते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ ये चारों तरह के कैंसर कहीं ज्यादा आम और घातक हो रहे हैं। इसमें अंडाशय (ओवरी) का कैंसर सबसे ज्यादा, जबकि स्तन कैंसर सबसे कम बढ़ा है। बढ़ते तापमान की वजह से सिर्फ कैंसर के मामले ही नहीं बढ़ रहे, इनसे होने वाली मौतों में भी इजाफा दर्ज किया गया है। आंकड़ों से पता चला है कि तापमान में हर डिग्री की बढ़ोतरी के साथ प्रति लाख लोगों पर होने वाली मौतों में 171 से 332 तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि बढ़ती गर्मी के साथ कई तरह से कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। यह लोगों को कैंसर पैदा करने वाले केमिकल्स के संपर्क में लाता है। इसकी वजह से स्वास्थ्य सेवाएं बाधित होती हैं, जिससे समय पर जांच और इलाज नहीं मिल पाता। बढ़ती गर्मी शरीर की कोशिकाओं पर भी असर डाल सकती है। ये सभी कारण मिलकर समय के साथ कैंसर का खतरा बढ़ा सकते हैं। काहिरा की अमेरिकन यूनिवर्सिटी और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर सुंगसू चुन ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “महिलाएं प्राकृतिक रूप से खासकर गर्भावस्था के दौरान जलवायु से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। इसके साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में असमानता उनके जोखिम को और बढ़ा देती है। जो महिलाएं हाशिए पर जीवन जी रही हैं, वे कहीं अधिक प्रदूषण और पर्यावरणीय खतरों के संपर्क में आती हैं और उनके लिए समय पर जांच या इलाज नहीं मिल पाना मुश्किल होता है।
गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन और बढ़ता तापमान दुनिया के लिए पहले ही बड़ा खतरा बन चुका है। इससे सेहत पर असर पड़ रहा है। तापमान बढ़ने से खाने-पीने की चीजों की कमी और दूषित हवा की वजह से बीमारियों और मौतों का खतरा दुनिया भर में बढ़ रहा है। प्राकृतिक आपदाएं और अचानक से बदलता मौसम स्वास्थ्य सेवाओं समेत जरूरी बुनियादी ढांचे को भी नुकसान पहुंचाते हैं। कैंसर के मामले में, इसका मतलब है कि लोग ज्यादा जहरीले प्रदूषण के संपर्क में आते हैं और उन्हें सही समय पर जांच व इलाज नहीं मिल पाता। इन सभी कारणों से गंभीर कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी हो सकती है, लेकिन इसका सही आंकलन करना मुश्किल है।
अध्ययन के मुताबिक कैंसर के ज्यादा मामलों के सामने आने को बेहतर जांच प्रणाली से जोड़ कर भी देखा जा सकता है। लेकिन अगर जांच बेहतर हुई होती, तो मौतें भी कम होतीं क्योंकि शुरुआती चरण में कैंसर का इलाज आसान होता है। लेकिन यहां मामले और मौतें दोनों बढ़े हैं, जिससे लगता है कि असली कारण कहीं ज्यादा लोगों के जोखिम भरे कारकों से संपर्क में आना है। शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को स्वास्थ्य योजनाओं में तुरंत शामिल किया जाना चाहिए, ताकि इससे जुड़ी बीमारियों से निपटने की बेहतर तैयारी हो सके।
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