नरेंद्र सिंह नेगी… उत्तराखंडी गीत-संगीत, काव्य जगत का एक ऐसा नाम जिनके बारे में जितना कहा जाए, सुना जाए कम ही लगता है। ऐसे में teerandaj.com ने उनकी जिंदगी के तमाम पहलुओं को उनकी पत्नी ऊषा नेगी जी की नजर से देखने की कोशिश की। एक खास शो ‘मेरे हिस्से के किस्से’ की पहली मेहमान ऊषा जी रहीं और उन्होंने जिंदगी के तमाम पहलुओं पर बात की, नेगी जी के जन्मदिन पर प्रसारित इस शो के कुछ अंश यहां पेश हैंः
इतने कम समय में कितने किस्से मैं बता पाऊंगी लेकिन किस्से बहुत हैं, सुनाने के लिए। नरेंद्र सिंह नेगी जी खुली किताब है, जो कुछ है सबको ही पता है। नेगी जी बहुत ही संवेदनशील और अंतर्मुखी इंसान हैं। कम बोलते हैं, लेकिन जो बोलते हैं सटीक बोलते हैं।
नेगी जी से पहली मुलाकात
पहली मुलाकात की कहानी ये है कि हमने एक दूसरे को शादी से पहले नहीं देखा था। पहली मुलाकात हमारी शादी में हुई और जब शादी करके मैं घर गई तो नेगी जी ने सबसे पहले मुझे अपना एक फोटो दिया। जब मैंने पूछा कि यह क्या है तो उन्होंने कहा कि ये मेरा फोटो है और आज से मैंने तुम्हें अपने को समर्पित कर दिया है। मुझे ये बात बहुत अच्छी लगी, क्योंकि ये कुछ अलग सा था। बस ये ही पहली मुलाकात की कहानी है।
कैसे हुई हमारी शादी
मुझे पहले से ही संगीत का शौक था और हमारे घर में इनके गाने सुने जाते थे। मेरा भी विषय संगीत था। आकाशवाणी नजीमाबाद और लखनऊ से तब नेगी जी के गीत आते थे। गिरी गुंजन, ग्राम जगत और लखनऊ से उत्तरायणी कार्यक्रम होता था, हम लोग सुनते थे लेकिन ये नहीं पता था कि इनसे ही रिश्ता हो जाएगा। नेगी जी की बहन मेरे धर्मभाई की पत्नी थीं। एक दिन गाना बज रहा था तो उन्होंने कहा कि ये मेरे भाई हैं। मैंने पूछा क्या वाकई ये आपके सगे भाई हैं। उन्होंने ही मेरा रिश्ता करवाया। तब तो शौक ही था और आज तक सुन ही रहे हैं नेगी जी को।
नेगी जी से पहली बात
नेगी जी ने मुझसे यही कहा कि मेरा बड़ा परिवार है। मैं तु्म्हें पहली बार मिल रहा हूं, तुमने बस इसे अच्छे से निभाना है। तब मैंने कहा कि पूरी कोशिश करूंगी, अच्छे से निभाऊंगी और आज भी निभा रही हूं।
आकाशवाणी और उत्तरायणी
रिकॉर्डिंग में उस समय कम जाना हो पाता था, लेकिन नेगी जी तब चंद्र सिंह राही, गोपाल बाबू गोस्वामी के साथ रिकार्डिंग करते थे, अक्सर बताते थे कि ये लोग रिकॉर्डिंग में होते हैं। उस दौर में उत्तरायणी कार्यक्रम का काफी इंतजार रहता था कि अब गढ़वाली और कुमाऊंनी गाने आएंगे।
‘दो शादियों’ का दिलचस्प किस्सा
नेगी जी को मोहन उप्रेती सम्मान के लिए अल्मोड़ा जाना था, साथ में मैं भी गई थी। रास्ते में जो शेयरिंग टैक्सियां होती हैं, उससे हम जा रहे थे। इस टैक्सी में ड्राइवर के साथ दो लड़के बैठे थे, कुमाऊंनी गाने लगे हुए थे तो उन्होंने कहा कि गढ़वाली गाने लगा दो। उन्होंने हमसे भी पूछा कि आपकी समझ में ये गाने आ रहे हैं। वो लोग आपस में बात करने लगे। लड़कों ने कहा कि ड्राइवर से कहा कि आप जानते हो नरेंद्र सिंह नेगी को, तो उसने कहा, हां वो तो मेरा दोस्त है। मुझे इस बात पर बड़ी हंसी आई, मैंने अपना मुंह नीचे कर लिया। नेगी जी ने इशारा किया कि तुम हंसो नहीं इन्हें बोलने दो। कुछ सुनने को मिलेगा कि ये क्या बोलते हैं। तो ड्राइवर ने उन्हें बताया कि ये पौड़ी रहते हैं और मैं इनके जानता हूं.. और इन्होंने दूसरी शादी कर ली है। इनकी पत्नी चली गई हैं। ये सुनकर मुझे बहुत हंसी आई। सफर खत्म होने के बाद मैंने नेगी जी से कहा कि क्या हम इन्हें बताएं कि हम ही हैं, जिनकी ये बात कर रहे थे तो उन्होंने मना कर दिया, बोले, ये किस्सा तो अब याद ही रहेगा।
नेगी जी और फैंस की मजेदार चिट्ठियां
नेगी जी को प्रशंसकों को बहुत चिट्ठियां आती थीं, इसमें लड़के-लड़कियां सभी होते थे। एक बार तो एक चिट्ठी ऐसी आई कि एक लड़के ने लिखा था कि काश मैं लड़की होता तो नेगी जी से शादी कर लेता। मुझे पढ़कर बड़ी हंसी आई कि ये भी एक फैन है जो नेगी जी से शादी करना चाहता है। ऐसी कई तरह की चिट्ठियां आती थीं, सभी तरह की तो नहीं लेकिन अगर किसी चिट्ठी में कुछ खास होता था तो नेगी जी जरूर पढ़ाते थे।
क्या नेगी जी कभी नाराज होते हैं?
नाराजगी का तो ऐसा है कि कभी इसके लिए समय ही नहीं मिला। न मुझे और न नेगी जी को। वह इतने व्यस्त रहे कि ऐसा कभी कुछ हुआ ही नहीं। लोगों का आना-जाना लगातार रहता था। हां, अगर कोई बात उन्हें लगी तो वहीं पर साफ-साफ बोल देते थे, बात वहीं समाप्त हो जाती थी।
गीतों की पहली श्रोता मैं
मुझे उनके सभी गीत पसंद हैं, उनके गीतों की पहली श्रोता भी मैं ही होती हूं। जब भी कोई गीत बनाते हैं तो मैं पूछ लेती हूं कि कोई नई रचना है तो सुनाइये…। वो कह देते हैं कि अभी नहीं, अभी बच्चा गर्भ में ही है।
कभी बच्चों के लिए गाईं लोरियां
नेगी जी ने बहुत सारी लोरियां लिखीं लेकिन तब तक बच्चे बड़े हो चुके थे। वो कहते भी थे कि मैंने लोरियां अब लिखीं जब बच्चे बड़े हो गए। उन्होंने ज्यादातर लोरियां गढ़वाली फिल्मों के लिए लिखीं। मैं अपने बच्चों को हिंदी की लोरियां सुनाती थीं। अब मैं अपनी नातिनी को नेगी जी की लोरियां सुनाती हूं।