ड्रोन कॉरिडोर बनाने की कवायद Uttarakhand में काफी दिनों से चल रही है। लेकिन, एक बुरी खबर है। ड्रोन, हेलिकॉप्टर, जायरोकॉप्टर के कॉरिडोर की जांच करने आई नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने कुछ खामियां बताई हैं। कुछ दिन पहले ही डीजीसीए की एक टीम देहरादून आई थी। मौके का निरीक्षण किया था। साथ ही कुछ औपचारिकताएं भी पूरी करने को कहा है। दरअसल, अपना राज्य सीमावर्ती है। यहां काफी हिस्सा संवेदनशील होने के नाते नो फ्लाई रेड जोन है। ऐसे में ड्रोन कॉरिडोर बनाना चुनौतीपूर्ण है। आईटीडीए ने काफी कवायदों के बाद बीते दिनों इसका प्रस्ताव डीजीसीए को भेजा था। लेकिन, इसमें कुछ खामियां हैं। क्या खामियां हैं, इसका खुलासा नहीं किया गया है। लेकिन, सूत्रों का कहना है कि अब सूचना प्रौद्योगिकी विकास एजेंसी (आईटीडीए) सभी खामियों को दूर करके दोबारा भेजेगा रिपोर्ट भेजेगी।
बनने हैं छह कॉरिडोर, आपस में लिंक रहेंगे
उत्तराखंड में ड्रोन को बढ़ावा देने के लिए छह कॉरिडोर बनने जा रहे हैं। इनमें तीन गढ़वाल और तीन कुमाऊं में होंगे। ये सभी कॉरिडोर आपस में जुड़े हुए होंगे। विशेषज्ञों की मदद से तैयार होने वाली कॉरिडोर से हवाई सेवाएं बाधित नहीं होंगी। समर्पित नेटवर्क तैयार होने के बाद गढ़वाल से कुमाऊं के बीच ड्रोन की आवाजाही भी संभव हो सकेगी। प्रदेश में लंबे समय से ड्रोन के इस्तेमाल को बढ़ाने के लिए कॉरिडोर चिह्नीकरण की कवायद चल रही है।
यह होगा फायदा
राज्य में हर साल आपदाएं सबसे बड़ी चुनौती बनकर आती हैं। ऐसे में ड्रोन काफी कारगर सिद्ध हो सकता है। इसकी मदद से आसानी से आपदा के समय में जरूरी दवाएं, खाद्य सामग्री भेजी जा सकती है। आपदाग्रस्त क्षेत्र के हालात देखे जा सकते हैं। ड्रोन एंबुलेंस की मदद से गंभीर घायलों को सड़क मार्ग तक लाया जा सकता है। कॉरिडोर बनने के बाद ये सभी काम आसान हो जाएंगे। वहीं, जायरोकॉप्टर का कॉरिडोर बनने से पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। मकसद ये है कि ये दोनों कॉरिडोर, हेलिकॉप्टर की राह की बाधा न बने, इसलिए तीनों कॉरिडोर एक साथ चिह्नित किए जा रहे हैं।