उत्तराखंड में हर साल जगह-जगह लाखों पेड़ लगाए जाते हैं। बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं। सवाल ये है कि जब हर साल इतने लाखों-करोड़ों पेड़ लग रहे हैं तो उत्तराखंड में जमीन ही नहीं बचनी चाहिए। लेकिन हुआ ये है कि हमें जिस चीज पर ध्यान देना चाहिए था वो है सर्वाइवल रेट। हम कितने पौधे लगाते हैं और कितने पौधे उनमें से बच पाते हैं, हमने इस ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया। कभी किसी ने यह नहीं जाना कि जो पौधे हमने लगाए हैं, क्या वो सरवाइव कर रहे हैं। बहुत कम लोग हैं जो व्यक्तिगत स्तर पर यह प्रयास करते हैं। लोग अपने लगाए पौधों में इंटरेस्ट लेते हैं। लेकिन एक बड़े लेवल पर देखें तो यह चीज नजर नहीं आती है।
क्या कोई ऐसा मैथड, टर्मिनोलॉजी या क्या कोई साइंटिफिक तरीका है जिससे जब प्लांटेशन ड्राइव होती है तो इसकी मॉनीटरिंग की जा सके? रियल टाइम मॉनिटरिंग हो सके, ग्राउंड पर तो चाहिए ही लेकिन क्या हम साइंटिफिक तरीकों से भी कुछ कर सकते हैं? यह तलाश teerandaj.com की टीम को खींच लाई संकल्प तरु के पास। संकल्प तरु एक ऐसा एनजीओ है, जो जबरदस्त काम कर रहा है। न केवल उत्तराखंड बल्कि देश के कई राज्यों में इसका विस्तार है। संकल्प तरु के संकल्प को जिन्होंने साकार किया वह हैं अपूर्व भंडारी। अपूर्व गोपेश्वर से हैं, जहां से कई पर्यावरणविद् निकले हैं। पर्यावरण को लेकर इनके भीतर संजीदगी होना लाजिमी भी है। लेकिन आईटी बैकग्राउंड और अमेरिका में नौकरी के बाद इस फील्ड में आना थोड़ा अलग लगता है।
जब यही बात हमने की तो अपूर्व ने कहा कि जिस ढंग से यहां क्लाइमेट बदल रहा है हम लोग देख रहे हैं कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ हो रही है, पेड़ काटे जा रहे हैं, जंगल नष्ट हो रहे हैं। इन सब चीजों ने मुझे बहुत आहत किया। मुझे लगा यह हाई टाइम है हमें कुछ तो करना होगा। इससे पहले कि भावी पीढ़ी हमें कोसे कि हमने कोशिश नहीं की। इस सोच के साथ संकल्प तरु का जन्म हुआ। मैंने सोचा क्यों न टेक्नोलॉजी को प्री प्लांटेशन इनिशिएटिव के साथ जोड़ा जाए और फिर काम किया जाए।
प्लांटेशन ड्राइव में बड़ी संख्या दिखाई देती है। 15 दिन लोगों को लगता है पौधे लगाने हैं और बस हमारी जिम्मेदारी पूरी हो गई। क्या पौधे लगाने भर से जिम्मेदारी खत्म हो जाती है? अपूर्व कहते हैं कि भारत में पौधारोपण या ट्री प्लांटेशन जैसे इनिशिएटिव और मूवमेंट्स केवल ओकेजन ड्रिवन होता है। हम लोग एनवायरमेंट डे, 15 अगस्त, हरेला या कोई और दिवस पर पेड़ लगाते हैं। पेड़ लगा तो देते हैं लेकिन उन पेड़ों का संरक्षण नहीं हो पाता है। अगले साल हम उसी जगह पर पेड़ लगाते हैं जहां पिछली बार लगाया था, क्योंकि वो पेड़ बचता ही नहीं है। सिर्फ पेड़ लगाने से बात नहीं बनेगी। पेड़ का संरक्षण भी करना पड़ेगा। पेड़ को पालना-पोसना पड़ेगा। मैं कहता हूं कि लाखों करोड़ों पेड़ लगाना अच्छी बात है। लेकिन साथ में उनका संरक्षण हो तो ग्रीनरी एक्सपैंड करने का हमारा उद्देश्य पूरा होगा और हम हमारे लक्ष्य को पूरा कर पाएंगे।
पेड़ों का संरक्षण जरूरी है और उसमें साइंटिफिक मेथड जोड़ दिया जाए तो उसे नेक्स्ट लेवल पर ले जाया जा सकता है। अपूर्व यह सब कैसे करते हैं? वो कौन सी तकनीक है? अपूर्व ने बताया कि उन्होंने सोचा कि ट्री प्लांटेशन एक्टिविटी को कैसे ऑर्गेनाइज किया जाए। क्योंकि हर कोई किसी अवसर पर पेड़ लगाता है फिर उनका संरक्षण नहीं हो पाता है। मैंने सोचा कि एक ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार किया जाए जो आईटी इनेबल्ड हो, जिसमें सब लोग पेड़ लगाने का संकल्प ही ना लें बल्कि जब पेड़ को जमीन में लगाएं तो उसका संरक्षण भी किया जाए। हमने sankalptaru.org के नाम से एक प्लेटफार्म डेवलप किया। जहां पर लोग पेड़ लगाने का संकल्प लेते हैं और वे लोग कहीं से भी यह संकल्प ले सकते हैं। कई लोग ऐसा कहते हैं कि हमारे पास टाइम नहीं है या हमारे आसपास कोई खुली जगह नहीं है जहां पर हम पेड़ लगा सकते हैं। यह देखकर हमने सोचा कि हम लोगों को एक सुविधा देते हैं। जब आप ऑनलाइन टिकट्स बुक कर सकते हैं या ऑनलाइन शॉपिंग कर सकते हैं तो क्यों ना किसी भी अवसर पर एक पेड़ भी ऑनलाइन लगा सकें।
लोग कहीं से भी ऑनलाइन पेड़ लगा सकते हैं। हम उस पेड़ को जमीन पर लगाते हैं और उसका जियो टैग और फोटोग्राफ करते हैं। जिन सपोर्टर्स ने हमारे साथ पेड़ ऑनलाइन लगाया है, उनको फोटोग्राफ और लोकेशन गूगल मैप के जरिए भेज देते हैं। यह दिखाने के लिए कि आपका पेड़ वाकई इस जगह लगा है। वह कभी भविष्य में आना चाहें तो वह अपने पेड़ को देख सकें। और फिर हम समय-समय पर उनको प्रोग्राम लेवल पर उनके पेड़ की अपडेट्स भेजते हैं। – अपूर्व भंडारी, संस्थापक संकल्पतरु
हमने यह वेब पोर्टल डेवलप किया। इसमें लोग कहीं से भी ऑनलाइन पेड़ लगा सकते हैं। इसके बाद हम उस पेड़ को जमीन पर लगाते हैं और उसे जियो टैग और फोटोग्राफ करते हैं। जिन सपोर्टर्स ने हमारे साथ पेड़ ऑनलाइन लगाया है, उनको फोटोग्राफ और लोकेशन गूगल मैप के जरिए भेज देते हैं। यह दिखाने के लिए कि आपका पेड़ वाकई इस जगह लगा है। वह कभी भविष्य में आना चाहें तो वह अपने पेड़ को देख सकें। और फिर हम समय-समय पर उनको प्रोग्राम लेवल पर उनके पेड़ की अपडेट्स भेजते हैं। ताकि उन्हें यह पता चले कि हमारा प्लांटेशन का प्रोग्राम कैसा चल रहा है, जिससे लोगों को विश्वास होता है कि उनके नाम का एक पेड़ लगा हुआ है और मैं उस पेड़ को जाकर कभी भी देख सकता हूं। इसी तरह से यह प्रोग्राम आगे बढ़ता है। इस अभियान में आईटी एक पारदर्शिता प्रदान करती है। इससे हमें भी काफी सहूलियत होती है।
रिमोट सेंसिंग से उस पूरे क्षेत्र को हम आसानी से मॉनिटर कर पाते हैं, यह देखने के लिए की किस ढंग से वहां पर हरियाली बढ़ रही है। सोन्ग रिवर बैंक में यहां पर दो चीजें खास हैं, एक तो यहां पर माइनिंग हो रही है। माइनिंग की वजह से यहां पर बहुत ज्यादा मिट्टी का कटाव हो रहा है। बरसात के समय में सोन्ग रिवर में जब पानी भर जाता है, उसके तटबंध काफी कमजोर हो जाते हैं और उसके कारण मिट्टी का क्षरण काफी ज्यादा होता है। यह देखकर हमने सोचा कि कैसे क्या किया जाए। इसके बाद हमने यहां के प्रधान से बात की। उनका अच्छा मार्गदर्शन मिला। हमने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जी से भी बात की और हमें उनका भी काफी अच्छा सहयोग मिला। उन्होंने एकदम से हमारी बात ग्राम पंचायत और प्रधान से करवाई। सभी ने कहा कि अगर हमें इस जमीन की रक्षा करनी है और इसे बचाना है तो पेड़ लगाना काफी जरूरी है। उनके साथ हमारा कम्युनिटी डायलॉग काफी अच्छा रहा। हमने कहा फिर चलिए आगे बढ़ते हैं और पेड़ लगाते हैं। पेड़ लगाने की वजह से भू क्षरण यहां रुका है। बरसात के महीने में आप देख सकते हैं कि जहां पर पेड़ नहीं हैं, वहां बहुत ज्यादा मिट्टी का कटाव हो रहा है और जहां पर पेड़ लग चुके हैं वहां पर कटाव रुक गया है। यहां पर खनन होता है, यहां पर अब आपको एक ग्रीन पैच देखने को मिल रहा है।
हो सकता है कि लोगों के मन में सवाल हो कि यह कितना एरिया है ? यह लगभग 10 हेक्टेयर से अधिक एरिया है। लगभग 25 एकड़ के आसपास उसमें प्लांटेशन किया गया है। अलग-अलग ब्लॉक में हमने यह प्लांटेशन किया है। यह काफी पथरीला इलाका है। आज यह हरा भरा तो जरूर दिख रहा है लेकिन शुरू में काफी चैलेंज थे। यहां पर पिट डिगिंग पॉसिबल नहीं थी। यहां पर पिट डिगिंग करने की कोशिश में हमारे फावड़ा, गैती जैसे औजार टूट जाया करते थे। टीम को काफी मेहनत करनी पड़ी और गांव का अच्छा सहयोग मिला। इसलिए हम यहां पर यह काम कर पाए। एक और चीज अच्छी है कि हम लोगों को जूलॉजिस्ट के एक्सपर्ट डॉक्टर एमपीएस बिष्ट से काफी अच्छा मार्गदर्शन मिला।
यह जानना काफी रोचक लगा कि जितने भी पेड़ लगे हैं, क्या सभी की जियो टैगिंग की गई है और कितने लोग इस अभियान में जुड़े हैं? अपूर्व ने बताया कि संकल्प तरु के चार मॉडल हैं, जिसमें हम किसानों के साथ पेड़ लगाते हैं। समुदाय या पंचायत की जमीन पर पेड़ लगाते हैं। स्कूल और शहरी क्षेत्र में भी हम पेड़ लगाते हैं। एक जगह के बारे में अपूर्व ने बताया कि यहां पौधारोपण का कार्य एक कम्युनिटी लैंड ट्रांसपोर्टेशन प्रोग्राम के अंतर्गत किया गया है जिसमें हम सामुदायिक जमीनों पर पेड़ लगाते हैं। यह पंचायत की लगभग 10 हेक्टेयर के आसपास जमीन है। जब हमने पंचायत के साथ एक डायलॉग शुरू किया तब पता चला कि यहां पर काफी समस्याएं हैं। यहां चारों ओर खनन हो रहा है और इसकी वजह से पंचायत की जमीन को काफी नुकसान हो रहा है। काफी जमीन पर तो खनन हो भी चुका है। वहां पर बाढ़ आती है क्योंकि सोन्ग नदी के बिल्कुल किनारे यह क्षेत्र बसा हुआ है। हमने देखा कि पौधारोपण एक ऐसी चीज होगी जिससे इस भूमि को संरक्षित किया जा सकेगा। इस काम में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का काफी मार्गदर्शन मिला। इस जगह को कैसे डेवलप किया जाए इसमें जियोलॉजिस्ट डॉ. एमपीएस बिष्ट का सहयोग मिला। हम लोगों की एक अच्छी हॉलिस्टिक अप्रोच बनी। सभी लोग इसमें जुड़े और आप रिजल्ट आज देख रहे हैं।
जिस इलाके की अपूर्व ने बात की। वह काफी पथरीली है तो इसमें पेड़ लगाना भी अपने आप में एक बड़ा चैलेंज था। अपूर्व ने बताया कि जब हमने यहां पर काम शुरू किया तो गांववालों ने पूछा कि आप काम तो शुरू कर रहे हैं, क्या सच में यहां पेड़ लगा पाएंगे। क्योंकि हमने कभी पत्थरों के ऊपर पेड़ लगते नहीं देखे हैं। जब हमने यहां काम शुरू किया तो हमारे टूल्स टूट जाया करते थे। हमारे पूरे संकल्प तरु की टीम की काफी अच्छी मेहनत रही है। हम लोग बाहर से मिट्टी लेकर आए। हम लोगों ने फॉरेन सॉइल को यहां पर इंट्रोड्यूस किया। धीरे-धीरे यह काम आगे बढ़ता गया। हमने यहां विभिन्न प्रजातियों के पेड़ लगाए हैं, उनका काफी अच्छे तरीके से सेलेक्शन किया गया है क्योंकि राजाजी नेशनल पार्क यहां से बहुत ही पास में है। राजाजी नेशनल पार्क में जिस प्रजाति के पेड़ हैं, हमने सोचा कि वही प्रजाति के पेड़ यहां भी लगाए जाए, ताकि एक नेचुरल जंगल बन सके। यह हमारी पहल थी, चैलेंज जरूर आए। लेकिन 6 महीने 1 साल के अंदर यहां पर हरा-भरा जंगल तैयार हो गया है। इसके रिजल्ट्स काफी प्रेरणादायक हैं।
अपूर्व उत्तराखंड के अलावा 27 राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों में काम कर रहे हैं। लगभग पूरे भारत को उन्होंने और उनकी टीम ने कवर कर लिया है। वह कहते हैं कि हमारा लक्ष्य है कि हम पूरे भारत को हरा भरा करेंगे। हम लोग मुश्किल जगहों पर पेड़ लगा रहे हैं, उनमें से कुछ राजस्थान का इलाका थार डेजर्ट है। हम लोग लद्दाख के कोल्ड डेजर्ट में पेड़ लगा रहे हैं। वेस्ट बंगाल के सुंदरबन में भी पेड़ लगा रहे हैं। महाराष्ट्र के विदर्भ में जहां पर फार्मास्यूटिकल साइट्स हैं। हम लोगों ने दक्षिण भारत की पूरी कोस्टल बेल्ट को कवर कर लिया है। इसके अलावा नॉर्थ ईस्ट में ब्रह्मपुत्र पर ज्यादा काम कर रहे हैं। इस तरह से अलग-अलग जगह पर हमारे कई तरह के प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं।
इस तरह के प्रोजेक्ट में लोगों की जागरूकता और भागीदारी बहुत जरूरी है। क्या किसी राज्य में काम करते हुए अपूर्व को लगा कि यहां की गवर्नमेंट ट्री प्लांटेशन और पर्यावरण को लेकर संजीदा है और वो पूरी हॉलिस्टिक अप्रोच के साथ सोचते हैं? किस राज्य में ट्री प्लांटेशन में लोगों का पार्टिसिपेशन ज्यादा दिखा। अपूर्व ने कहा कि जहां तक सरकारों की बात है तेलंगाना में काफी सालों से सरकार का हरिता हरम एक कार्यक्रम चल रहा है। यह एक काफी सक्सेसफुल प्रोग्राम है। इस कार्यक्रम में कम्युनिटी पार्टिसिपेशन बहुत अच्छा है। पंचायत को इसमें इन्वॉल्व किया गया है। लोगों को टारगेट्स दिए गए हैं और मॉनिटरिंग की जाती है। यह एक अच्छी पहल है और इसके रिजल्ट भी काफी अच्छे हैं। व्यक्तिगत भागीदारी की बात करें तो जहां ग्रीनरी की कमी है वहां ज्यादा लोगों का पार्टिसिपेशन देखने को मिलता है। जैसे कि राजस्थान के थार डेजर्ट में लोग काफी ज्यादा पेड़ लगाने में इन्वॉल्व होते हैं क्योंकि उन्हें पेड़ों की कीमत पता है। उन लोगों को हमारा एक ही मैसेज होता है कि आपके पास यहां पर हरियाली बढ़ाने का यह एक मौका है। उन्हें भी समझ में आता है कि अगर कोई संस्था इतनी दूर से हमारे पास आई है और पेड़ लगाना चाहती है तो क्यों ना हम भी उन लोगों का सहयोग करें और यह मौका है हमारे पास कि यहां पर ग्रीनरी बढ़ाई जा सकती है। इसी तरह से लद्दाख में भी काफी अच्छा सपोर्ट मिला, जिससे हमारा कार्यक्रम आगे बढ़ रहा है।
अपूर्व ये सब ऐसे समय में कर रहे हैं जब लोग कोई भी एक्टिविटी करते हैं तो उसे सोशल मीडिया में डालने की बड़ी जल्दी दिखाते हैं। अपूर्व का इस बारे में क्या सोचना है? इस सवाल पर उन्होंने कहा कि जब हमने संकल्प तरु को स्टार्ट किया तो एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म की तरह क्रिएट किया। इसके जरिए आप घर बैठे कहीं भी पेड़ लगा सकते हैं। हमने सोचा क्यों न लोगों के अंदर मैंने कुछ ग्रीनरी के लिए कुछ किया है, एक अच्छा कार्य किया है, उसको प्रमोट करने के लिए उसको एक कन्वीनियंस के साथ में संकल्प तरु में उनके सर्टिफिकेट और फोटोग्राफ सोशल मीडिया में शेयर करने के लिए एक प्लेटफार्म प्रोवाइड किया। और जहां तक बात है कि जो लोग पेड़ लगाते हैं और झटपट सोशल मीडिया पर फोटो अपलोड करते हैं, ऐसे लोगों को हम आमंत्रित करते हैं अपने साथ पेड़ लगाने के लिए, लेकिन हम साथ में उनको यह भी सुझाव देते हैं कि अगले साल आप इस पेड़ में पानी डालते हुए भी अपनी फोटो सोशल मीडिया में डालिए। इस तरह की स्पिरिट को हम बना रहे हैं ताकि वन टाइम इंवॉल्वमेंट ना रहे।
उत्तराखंड सरकार से सहयोग पर अपूर्व बताते हैं कि कुछ डिस्ट्रिक्ट में हमें लोकल एडमिनिस्ट्रेशन और फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने साथ काम किया है। वृहद लेवल पर तो नहीं लेकिन छोटे-छोटे लेवल पर हम काम कर रहे हैं। पिछले साल हमने ड्रोन सीड बोम्बिंग का काम किया। हमने सीड यान बनाया है। चमोली में हमने डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन, शिक्षा विभाग, फॉरेस्ट डिपार्मेंट मिलकर काम किया है।
आंकड़ों में हम हमेशा कहते हैं कि उत्तराखंड में जंगल बढ़ गए हैं। लेकिन उन दावों में कितनी सच्चाई है और कहीं ऐसा तो नहीं है कि हम सिर्फ एक ही तरह के पेड़ लगा रहे हैं? अपूर्व ने जवाब दिया कि जब हम कहते हैं कि हमने इतने करोड़ पेड़ लगाए। यह कहने के साथ हमें यह भी उसमें जोड़ देना चाहिए कि उसमें इतने लाख पेड़ सरवाइव किए। जब हमें दिखता है कि इतने पेड़ सरवाइव किए तो बड़ा अच्छा लगता है। लेकिन जब सिर्फ यह कहा जाता है कि हमने इतने पेड़ लगा दिए तो वह कहीं ना कहीं एक सवाल पैदा करता है कि कितने ज्यादा पेड़ सरवाइव हुए होंगे। जैसे कि हम संकल्प तरु में कहते हैं कि हमने आज तक लगभग 55 लाख पेड़ लगा दिए हैं और बचाए भी हैं। हमारे पास सर्वाइवल का भी डाटा है। मैं चाहता हूं कि जितने भी प्रोग्राम्स आएं वह सर्वाइवल की भी बात करें। पेड़ लगाने से ही बात नहीं बनेगी। पेड़ों को संरक्षित करना भी जरूरी है।
अपूर्व की टीम साइंटिफिकली पेड़ों का डाटा जुटाते हैं। आगे संकल्प तरु का संकल्प बताते हुए अपूर्व ने कहा कि संकल्प तरु का संकल्प इस कार्यक्रम को वृहद बनाने का है। आज संकल्प तरु एक बड़े ब्रांड के रूप में भी उभर रहा है। मैं हमेशा से सोचता हूं कि जो नॉन प्रॉफिट एनजीओ हैं, उनका ब्रांड काफी सॉलिड होना चाहिए और काफी मजबूत होना चाहिए, खोखला नहीं होना चाहिए। हम लोग 11 साल से कार्य कर रहे हैं। इन 11 सालों में हमने काफी पारदर्शिता और सक्सेस दिखाते हुए अपने डोनर्स का विश्वास जीता है। अब हम लोग चाहते हैं कि यह एक वृहद कार्यक्रम बने। जहां सब लोग एक-एक पेड़ जरूर लगाएं। दूसरा, आज क्लाइमेट चेंज की बड़ी प्रॉब्लम हमारे सामने आ रही है। आज ऋतु परिवर्तन इतनी जल्दी हो रहा है। वेदर शिफ्ट हम लोग देख रहे हैं। इस बड़ी समस्या के सॉल्यूशन को लेकर हम व्यक्तिगत तौर पर कैसे पार्टिसिपेट करें, यह सुनिश्चित करना जरूरी है। सरकार अपना काम कर रही है। एनजीओ अपना काम कर रहे हैं। लेकिन इंडिविजुअल्स की भागीदारी भी बहुत ज्यादा जरूरी है। हम चाहते हैं कि इंडिविजुअल लेवल पर किस तरीके से सभी को इंवॉल्व कर सकें ताकि सब लोग अपनी जिम्मेदारी समझें और क्लाइमेट चेंज की प्रॉब्लम को सॉल्व करने में सभी लोग अपनी भागीदारी दे सकें। यह हमारा एक लक्ष्य है।
आमतौर पर इस तरह की चीजों में हैबिट एक बड़ा रोल अदा करती है। पेड़ लगाने की हैबिट या पर्यावरण को लेकर हमारे अंदर कुछ दिलचस्पी है वह काम ज्यादा अच्छे से होता है। हो सकता है कि बड़े एज के लोगों में यह अवेयरनेस डिवेलप करने में थोड़ा वक्त लगे लेकिन जो बच्चे हैं उनमें आसानी से यह हैबिट डेवलप की जा सकती है। क्योंकि माना जाता है कि बच्चे एक नरम मिट्टी के सांचे के जैसे होते हैं, उन्हें जैसे ढालो वह वैसे ढल जाते हैं। अपूर्व से जब पूछा गया कि इसे कैसे देखते हैं कि स्कूलों में बच्चों से पर्यावरण पर सिर्फ ड्राइंग ही ना बनाई जाए बल्कि उन्हें ग्राउंड में ले जाकर पेड़ लगवाएं, उन्हें वह प्रक्रिया दिखाएं। यह कितना जरूरी है और यह कितने बड़े लेवल पर किया जा सकता है? उन्होंने कहा कि अभी हाई टाइम है। काफी क्रिटिकल सिचुएशन से अभी हम गुजर रहे हैं क्योंकि क्लाइमेट चेंज की जो प्रॉब्लम है उसे हमें इंडिविजुअल लेवल पर खुद से जोड़ना होगा ताकि सभी इसमें भागीदारी दें और इस प्रॉब्लम को सॉल्व किया जा सके। हर दिन कुछ ना कुछ हम अच्छा कार्य करें, ताकि क्लाइमेट चेंज, पॉल्यूशन जैसी समस्याओं से हम लड़ सकें। इसमें युवाओं और बच्चों की भागीदारी काफी जरूरी है। इस ग्रुप को एक चार्ज देना पड़ेगा क्योंकि वही आगे जाकर सबसे ज्यादा अफेक्टेड होंगे। इस टारगेट ग्रुप में हम लोग काफी कोशिश कर रहे हैं कि उनको हम सिर्फ किताबी भाषा में ना बताएं, उन्हें हम प्रैक्टिकली भी समझाएं, ग्राउंड पर ले जाकर भी इंवॉल्व करें। इस क्षेत्र में काम करने के लिए संकल्प तरु का क्लीन एंड ग्रीन स्कूल मॉडल काफी सक्सेसफुल प्रोग्राम है।
अपूर्व आगे बताते हैं कि किसी भी जगह जब हम प्लांटेशन का कार्यक्रम शुरू करते हैं। हम कम्युनिटी से काफी बातचीत करते हैं ताकि उनसे यह जान सकें कि उन्हें कौन से पेड़ चाहिए क्योंकि गांव का जंगल गांव के लिए है। इसमें जरूरी है कि जब हम पेड़ की प्रजातियों को सेलेक्ट करें तो वह गांववालों की चॉइस के हो और वह साइंटिफिक तरीके से चुने हुए हो। साथ ही वह बायोडायवर्सिटी में एक अच्छा इंपैक्ट दें। राजाजी नेशनल पार्क के काफी करीब सबसे ज्यादा बंबू का प्लांटेशन किया गया है। इसके साथ ही साल, शीशम, बकेन और फलदार वृक्ष लगाए गए हैं क्योंकि वह कम्युनिटी की रिक्वायरमेंट थी। हमने यहां जामुन, आमला, मनीम और लगभग 16 से ज्यादा प्रजातियों के पेड़ यहां पर लगाए हैं। यहां पर सभी पेड़ों की अच्छी ग्रोथ हो रही है।
जब कोई अपनी जमी- जमाई जॉब छोड़ता है और उसके बाद जब कोई अपने हॉबीज या ड्रीम्स को चेस करता है, उसमें पहले तो मेहनत लगती है और एक संतुष्टि मिलती है। अपूर्व अपने काम से कितना सेटिस्फाइड है? यह सवाल इसलिए भी जरूरी है क्योंकि बहुत से युवा दोबारा पहाड़ों पर लौटना चाहते हैं। उन्होंने जवाब दिया कि जब एक भयावह स्थिति जैसे क्लाइमेट चेंज, ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएं हमारे सामने हैं। जब आप सोचते हैं कि आपको उसके अगेंस्ट काम करना है और इसके खिलाफ लड़ने के लिए लोगों को तैयार करना है और हरियाली को बढ़ाना है। यह काफी चैलेंजिंग जॉब है। बेसिकली इसमें आपका खुद का इंटरेस्ट रहना काफी नहीं है, क्योंकि यह एक बहुत बड़ा चैलेंज है। इसमें सबको साथ लेकर चलना जरूरी है। आप सोचते हैं कि क्यों ना इसको एक बड़ा मूवमेंट बनाया जाए। जब आप इस भावना से काम करते हैं तो एक खुद का इंटरेस्ट चला जाता है। जब आप इस ढंग से काम करते हैं तो आपका सक्सेस रेट भी बढ़ जाता हैं। यह मेरा पर्सनल एक्सपीरियंस है। जब आप एक अच्छे इंटेंशन से काम करते हैं, जब आप इसे एक मास मूवमेंट बनाने की कोशिश करते हैं तो उस चीज को सक्सेस जरूर मिलती है। बशर्ते आप काफी ट्रांसपेरेंट होने चाहिए, आपके पास टेक्नोलॉजी होनी चाहिए और आप ज्यादा से ज्यादा लोगों को इन्वॉल्व कर सकें। लोगों को दिखाना चाहिए कि अगर मैं इस काम में इन्वॉल्व होऊंगा तो उसके रिजल्ट कैसे होंगे। इन्वॉल्वमेंट, टेक्नोलॉजी, ट्रांसपेरेंसी, इंटेंशन किसी भी सक्सेसफुल प्रोग्राम के लिए प्रमुख इंग्रेडिएंट्स हैं। जहां तक सेटिस्फेक्शन की बात है, मैं काफी सेटिस्फाइड महसूस करता हूं, जब मैं ऐसी जगह पर जाता हूं और देखता हूं कि कुछ साल पहले हमने नन्हे पौधे लगाए थे और अब वह पेड़ बन गए हैं और वन बन रहे हैं इसे देखकर एक सेटिस्फेक्शन होता है कि हम लोग जो भी काम कर रहे हैं वह पूरे इकोसिस्टम के लिए है। जब इस तरह की सक्सेस होती है, इससे सेटिस्फेक्शन का लेवल काफी बढ़ जाता है।
अपनी प्रेरणा के बारे में अपूर्व ने बताया कि चमोली का एक छोटा सा कस्बा जोशीमठ से उन्हें प्रेरणा मिली थी। मोटिवेशन पर उन्होंने बताया कि उनके पिताजी एक एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट थे। वह एक प्लांट पैथोलॉजिस्ट थे। उनकी माता जी एक पर्यावरणविद भी थीं और एक शिक्षिका भी। उस तरीके से उन्हें घर से भी इंस्पिरेशन मिली। स्कूल में हर साल काफी पेड़ लगाने के लिए कहा जाता था और उन पौधों को पानी देने के लिए कहा जाता था। इसके अलावा विश्व विख्यात पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट जी भी गोपेश्वर से हैं तो वह भी एक इंस्पिरेशन बने और इस तरीके से यह सब कार्य आगे चला रहा।
संकल्प तरु का जो संकल्प है वह इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि वे सिर्फ पेड़ नहीं लगा रहे हैं, बल्कि उन्हें रियल टाइम मॉनिटर भी कर रहे हैं। हम उन्हें बढ़ते हुए देख रहे हैं और खास बात यह है कि उनका सर्वाइवल रेट 100 परसेंट है। यह एक बहुत बड़ी बात है। अक्सर जब हम पेड़ लगाते हैं तो उसका सर्वाइवल ही सबसे बड़ा चैलेंज होता है। यह कामयाबी की स्टोरी है और यह बताना इसलिए भी जरूरी है ताकि आपको पता चले कि यह भी एक तरीका है जिससे हम प्लांटेशन ड्राइव को एक मुकाम तक ले जा सकते हैं।