नया शोध : जलवायु परिवर्तन के खतरनाक असर से कुछ भी अछूता नहीं है। चाहे वह इंसान हो या फिर प्रकृति। जलवायु परिवर्तन का ही नतीजा है कि आज तापमान में लगातार इजाफा हो रहा है और पहाड़ों के बर्फ के साथ-साथ ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ द्वारा किए गए शोध में इस बात की पुष्टि हुई है।
एक नए अध्ययन के अनुसार, ग्लेशियर्स से 2000-23 तक सालाना अनुमानित 273 बिलियन टन बर्फ पिघल चुकी है, जिससे वे समुद्र के बढ़ते स्तर में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता बन गए। अगर इसी तरह से ग्लेशियर पिघलते रहे, तो समुद्री किनारे के इलाकों के डूबने की आशंका बढ़ जाएगी। बढ़ते तापमान की वजह से जिस तेजी से ग्लेशियर पिघल रहे हैं। इससे वैश्विक समुद्र स्तर में 18 मिमी का इजाफा होने का अनुमान है। नेचर जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, पहले ग्लेशियर पिघलने के कारण समुद्र के स्तर में प्रति वर्ष 0.75 मिमी की दर से वृद्धि हो रही थी। लेकिन 2012-23 के दौरान इसमें तेजी से इजाफा हुआ और 2000-11 की तुलना में यह 36 प्रतिशत तक बढ़ गया। ज्यूरिख विश्वविद्यालय (यूजेडएच) के ग्लेशियोलॉजिस्ट सैमुअल नुस्खाउमर का मानना है, “हमारी टिप्पणियों और हालिया मॉडलिंग अध्ययनों से संकेत मिलता है कि ग्लेशियर का बड़े पैमाने पर नुकसान जारी रहेगा और संभवतः इस सदी के अंत तक इसमें तेजी आएगी।” ग्लेशियर के पिघलने की प्रक्रिया को सीमित करने के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के साथ वातावरण को गरम करने वाले अन्य खतरनाक गैसों के उत्सर्जन को रोकने के लिए फौरी तौर पर ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
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दुनिया की 25 फीसदी आबादी तटीय क्षेत्र के 100 किलोमीटर के दायरे में
दुनिया की लगभग 25% आबादी तटरेखा के 62 मील (100 किमी) के भीतर रहती है। लगभग 600 मिलियन लोग तटीय क्षेत्रों में रहते हैं जो समुद्र तल से 10 मीटर से कम ऊंचाई पर हैं। यह एक वैश्विक अनुमान है कि आने वाले 25 सालों में तटीय इलाकों के 100 किलोमीटर के दायरे में रहने वालों की संख्या 50 प्रतिशत बढ़ जाएगी। दुनिया के कई सबसे बड़े शहर तट पर स्थित हैं जैसे, टोक्यो, गुआंगज़ौ, बैंकॉक, इस्तांबुल, लंदन, लागोस, न्यूयॉर्क, ब्यूनस आयर्स, मुंबई। दुनिया भर के पर्यावरणविद् कहते हैं, अगर अब नहीं चेते तो बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। आने वाली पीढी हम सबको कभी माफ नहीं करेगी।