प्राकृतिक खेती जिसे शून्य बजट की खेती भी कहा जाता है उत्तराखंड के लिए वरदान साबित हो सकती है। हालांकि, इसके लिए किसानों को जागरूक करना इसके तौर-तरीके बताने की चुनौती भी है। क्योंकि, उत्तराखंड में जैविक खेती तो बड़े पैमाने पर की जाने लगी है। यहां के आर्गेनिक प्रोडक्ट की देश भर में मांग भी खूब है। इस बीच प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना चुनौतीपूर्ण रहेगा। हालांकि, प्राकृतिक और ऑर्गेनिक खेती के बीच मामूली अंतर है। प्राकृतिक खेती ऑर्गेनिक खेती से भी सस्ती होती है। लेकिन, इसके लिए प्रशिक्षण जरूरत होती है। इसमें अनुभव की जरूरत पड़ती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि उत्तराखंड जैसे राज्य के लिए खेती का यह तरीका बेहद मुफीद रहेगा। अगर यह योजना कारगर रही तो राज्य में खेती का रकबा भी बढ़ सकता है। राज्य की बंजर भूमि का इस्तेमाल भी होने लगेगा। उत्तराखंड सरकार वर्तमान समय में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रति हेक्टेयर पांच हजार रुपये किसानों को प्रोत्साहन राशि दे रही है।
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केंद्रीय मंत्रीमंडल ने कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत स्वतंत्र रूप से कार्य करने वाली एक केन्द्र प्रायोजित योजना के रूप में राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (एनएमएनएफ) शुरू करने को मंजूरी दे दी है। अब देखना है कि राज्य सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कौन से कदम उठाती है। क्योंकि, केंद्रीय योजना के तहत भी किसानों को प्रोत्साहन दिया जाएगा। ऐसे में यदि उत्तराखंड सरकार किसानों को जागरूक कर प्राकृतिक खेती कराती है तो योजना का लाभ उठाया जा सकेगा। अगर हमारे किसान अपने पूर्वजों से विरासत में मिले पारंपरिक ज्ञान पर आधारित खेती को अपना लेते हैं तो आर्थिक रूप से उन्हें बल मिलेगा ही साथ ही पलायन भी कम हो सकता है। केंद्र सरकार इस योजना में 15वें वित्त आयोग (2025-26) तक 2481 करोड़ रुपये खर्च करेगी। इसमें केंद्र की हिस्सेदारी 1584 करोड़ रुपये होगी जबकि, राज्य का हिस्सा 897 करोड़ रुपये होगा।
उत्तराखंड के 11 जिलों में बनाए क्लस्टर
उत्तराखंड सरकार ने राज्य में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री प्राकृतिक कृषि योजना (MukhyaMantri Natural farming Scheme) चलाई है। जिसके तहत किसानों को प्रोत्साहित करने के साथ गैप फंडिंग भी की जाएगी। इसके लिए सरकार ने 11 जिलों में 128 कलस्टर का भी चुनाव किया है। इसी के साथ-साथ उत्तराखंड की 6400 हेक्टेयर रकबे को प्राकृतिक खेती से दोबारा जीवित किया जाएगा। जिसमें 50 हेक्टेयर का एक क्लस्टर बनाया गया है। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिलों में कृषि विज्ञान केंद्र, किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए जागरूक कर रहा है। अब केंद्र सरकार की नई नीति आने के बाद देखना है कि उत्तराखंड सरकार इसमें क्या बदलाव करती है।
राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन का उद्देश्य
राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन का उद्देश्य सभी के लिए सुरक्षित और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने के लिए एनएफ कार्य प्रणालियों को बढ़ावा देना है। मिशन का उद्देश्य किसानों को खेती में आने वाली लागत को कम करना और बाहरी से खरीदे गए संसाधनों पर निर्भरता को कम करने में सहायता करना है। प्राकृतिक खेती स्वस्थ मृदा इकोसिस्टम का निर्माण और रखरखाव करेगी, जैव विविधता को बढ़ावा देगी और प्राकृतिक खेती के अनुसार लाभकारी स्थानीय स्थायी खेती के लिए उपयुक्त लचीलापन बढ़ाने के लिए विविध फसल प्रणालियों को प्रोत्साहित करेगी। एनएमएनएफ को वैज्ञानिक रूप से पुनर्जीवित करने और किसान परिवारों और उपभोक्ताओं के लिए स्थिरता, जलवायु लचीलापन और स्वस्थ भोजन की दिशा में कृषि कार्य प्रणालियों को मजबूत करने के लिए एक बदलाव के रूप में शुरू किया गया है।
7.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को प्राकृतिक खेती से जोड़ने का लक्ष्य
केंद्र सरकार की योजना के मुताबिक, अगले दो वर्षों में इच्छुक ग्राम पंचायतों के 15,000 समूहों में लागू किया जाएगा। 1 करोड़ किसानों को इससे जोड़ने का लक्ष्य है। साथ ही 7.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती (एनएफ) शुरू की जाएगी। एनएफ खेती करने वाले किसानों, एसआरएलएम/पीएसीएस/एफपीओ आदि के प्रचलन वाले क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाएगी। इसके अलावा, किसानों के लिए उपयोग के लिए तैयार एनएफ लागत की आसान उपलब्धता और पहुंच प्रदान करने के लिए आवश्यकता-आधारित 10,000 जैव-इनपुट संसाधन केंद्र (बीआरसी) स्थापित किए जाएंगे।
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एनएमएनएफ के तहत, कृषि विज्ञान केन्द्रों (केवीके), कृषि विश्वविद्यालयों (एयू) और किसानों के खेतों में लगभग 2000 एनएफ मॉडल प्रदर्शन फार्म स्थापित किए जाएंगे और इन्हें अनुभवी और प्रशिक्षित किसान मास्टर प्रशिक्षकों द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी। इच्छुक किसानों को उनके गांवों के पास केवीके, एयू और एनएफ खेती करने वाले किसानों के खेतों में एनएफ पैकेज ऑफ प्रैक्टिस, एनएफ इनपुट की तैयारी आदि पर मॉडल प्रदर्शन फार्मों में प्रशिक्षित किया जाएगा। 18.75 लाख प्रशिक्षित इच्छुक किसान अपने पशुओं का उपयोग करके या बीआरसी से खरीद कर जीवामृत, बीजामृत आदि जैसे कृषि संबंधी संसाधन तैयार करेंगे।
30 हजार कृषि सखियां करेंगे जागरूक
जागरूकता पैदा करने, एकजुट करने और समूहों में इच्छुक किसानों की मदद करने के लिए 30,000 कृषि सखियों/सीआरपी को तैनात किया जाएगा। उत्तराखंड में स्वयंसहायता समूहों की संख्या एक लाख के करीब है। इसलिए कहा जा रहा है कि योजना का क्रियान्वयन करने में ज्यादा परेशानी नहीं आनी चाहिए। ये समूह लोगों को समझाएंगे कि प्राकृतिक खेती से उनकी संसाधनों पर निर्भरता कम होगी। साथ ही मिट्टी की सेहत, उर्वरता और गुणवत्ता को फिर से जीवंत करने और जलभराव, बाढ़, सूखे आदि जैसे जलवायु जोखिमों से संभलने का सामर्थ्य पैदा करने में मदद मिलेगी। ये तरीके उर्वरकों, कीटनाशकों आदि के संपर्क में आने से होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों को भी कम करते हैं और किसानों के परिवार को स्वस्थ और पौष्टिक भोजन प्रदान करते हैं। इसके अलावा, प्राकृतिक खेती के माध्यम से, आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ धरती माता विरासत में मिलती है। मिट्टी में कार्बन की मात्रा और जल उपयोग दक्षता में सुधार के माध्यम से, मिट्टी के सूक्ष्मजीवों और एनएफ में जैव विविधता में वृद्धि होती है।
किसानों को बाजार भी मिलेगा
केंद्र सरकार की योजना है कि प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को बाजार भी मिले। इसके लिए फसलों की जियो टैगिंग करने के साथ पोर्टल के माध्यम से निगरानी की जाएगी। इससे किसानों की फसलों का उचित मूल्य उन्हें मिल सकेगा।
बढ़ेगी पशुधन आबादी
स्थानीय पशुधन आबादी को बढ़ाने, केन्द्रीय मवेशी प्रजनन फार्मों / क्षेत्रीय चारा स्टेशनों पर एनएफ मॉडल प्रदर्शन फार्मों का विकास करने, स्थानीय किसानों के बाजारों, एपीएमसी (कृषि उपज बाजार समिति) मंडियों, हाटों, डिपो आदि के लिए अभिसरण के माध्यम से जिला / ब्लॉक / जीपी स्तरों पर बाजार संपर्क प्रदान करने के लिए भारत सरकार / राज्य सरकारों / राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की मौजूदा योजनाओं और सहायता संरचनाओं के साथ अभिसरण की खोज की जाएगी। इसके अतिरिक्त, छात्रों को आरएडब्ल्यूई कार्यक्रम और एनएफ पर समर्पित स्नातक,स्नातकोत्तर और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के माध्यम से एनएमएनएफ में शामिल किया जाएगा।
प्राकृतिक और ऑर्गेनिक खेती में अंतर समझिए
प्राकृतिक और ऑर्गेनिक दोनों ही गैर-रासायनिक खेती हैं। लेकिन इनमें कुछ अंतर हैं जैसे-
खाद : प्राकृतिक खेती में मिट्टी में कोई रासायनिक या जैविक खाद नहीं डाली जाती। वहीं, जैविक खेती में जैविक खाद का इस्तेमाल किया जाता है। जैविक खेती के लिए वर्मीकम्पोस्ट और गाय के गोबर आदि की खाद का इस्तेमाल किया जाता है।
जुताई : प्राकृतिक खेती में न तो जुताई की जरूरत होती है, न मिट्टी झुकती है। वहीं, जैविक खेती के लिए जुताई, झुकना, खाद मिलाना, निराई और अन्य बुनियादी कृषि से जुड़ी जरूरी गतिविधियां करनी पड़ती हैं।
लागत : प्राकृतिक खेती में फसल की पैदावार में किसान की लागत 36 से 37 प्रतिशत कम हो जाती है, जबकि ऑर्गेनिक खेती में लागत रसायन वाली खेती के बराबर ही रहती है।
क्रिया : प्राकृतिक खेती में किसान प्राकृतिक संसाधनों जैसे कि मिट्टी, पानी, और सूरज की रोशनी का उपयोग करके फसलों को उगाते हैं। वहीं, जैविक खेती में किसान जैविक खाद और कीट नियंत्रण के तरीकों का उपयोग करते हैं। प्राकृतिक और जैविक खेती दोनों ही मिट्टी से लेकर पर्यावरण व मानव सेहत के लिए लाभकारी है।
भारत में प्राकृतिक खेती
कृषि एवं किसान कल्याण द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, देश के 15 राज्यों में प्राकृतिक खेती से 10 लाख हेक्टेयर रकबा कवर हो रहा है। यहां प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों की आबादी 16.78 लाख तक है। प्राकृतिक खेती के तहत सबसे बड़ा क्षेत्र गुजरात में कवर हो रहा है। यहां 3.17 लाख हेक्टेयर में जीरो बजट खेती चल रही है। वहीं दूसरे नंबर पर आंध्र प्रदेश, जहां 2.9 लाख हेक्टेयर में गाय आधारित खेती की जा रही है। इस लिस्ट में मध्य प्रदेश भी शामिल है, जहां 1.11 लाख हेक्टेयर में प्राकृतिक खेती की जा रही है।