Name Plate Controversy : सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में यूपी, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को जोर का झटका लगा है। देश की शीर्ष अदालत ने हाल ही में दोनों राज्य सरकार की ओर से कांवड़ मार्ग पर स्थित रेस्टोरेंट, ढाबों पर मालिक के नाम का नेमप्लेट लगाने के फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी है। इस मामले में अगली सुनवाई 26 जनवरी को होगी। बतादें कि इस समय देश में यह सबसे हॉट टॉपिक बना हुआ है। कई समर्थन तो कई लोग मुखर विरोध पर उतर आए हैं। दरअसल, इस आदेश में कांवड़ यात्रा के मार्ग पर स्थित भोजनालयों को मालिक का नाम लिखने को कहा गया था। राज्य सरकार की ओर से तर्क दिया जा रहा था कि ऐसा कांवड़ यात्रा की शुद्धता बचाने के लिए किया जा रहा है। जबकि, कई लोगों का आरोप है कि इससे मुस्लिमों को आर्थिक बहिष्कार की कोशिश की जा रही है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दुकानदारों को मालिक का नाम चिपकाने की जरूरत नहीं है। बल्कि, वे सिर्फ यह बताएं कि उनके पास कौन-से और किस प्रकार के खाद्य पदार्थ उपलब्ध हैं। साथ ही कोर्ट ने राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा है।
महंगी और दूरी के कारण Vocational Education में पिछड़ रहीं छात्राएं
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने बताया कि यह चिंताजनक स्थिति है। यहां पुलिस अधिकारी समाज को बांटने का बीड़ा उठा रहे हैं। अल्पसंख्यकों की पहचान करके उनका आर्थिक बहिष्कार किया जाएगा। यूपी और उत्तराखंड के अलावा दो और राज्य इसमें शामिल हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या यह प्रेस स्टेटमेंट था या औपचारिक आदेश कि इन्हें प्रदर्शित किया जाना चाहिए?
यह कोई औपचारिक आदेश नहीं
याचिकाकर्ताओं के वकील ने जवाब दिया कि पहले प्रेस स्टेटमेंट था और फिर लोगों में आक्रोश दिखने लगा और इस पर कहा कि यह स्वैच्छिक है, लेकिन वे इसका सख्ती से पालन करा रहे हैं। वकील ने कहा कि यह कोई औपचारिक आदेश नहीं है। फिर भी पुलिस सख्त कार्रवाई कर रही है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह एक छद्म आदेश है।
आर्थिक स्थिति पर चोट पहुंचेगी
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मीडिया से बातचीत में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह ने कहा कि अधिकांश लोग बहुत गरीब, सब्जी और चाय की दुकान चलाने वाले हैं और इस तरह के आर्थिक बहिष्कार के कारण उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो जाएगी।
सिंघवी ने यह दलील
सिंघवी से कहा कि हमें स्थिति को इस तरह से नहीं बताना चाहिए कि यह जमीनी हकीकत से ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर पेश की जाए। इन आदेशों में सुरक्षा और स्वच्छता के आयाम भी शामिल हैं। सिंघवी ने कहा कि कांवड़ यात्रा दशकों से होती आ रही है और मुस्लिम, ईसाई और बौद्ध समेत सभी धर्मों के लोग उनकी यात्रा में मदद करते हैं। अब आप उन्हें बाहर कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा सवाल
सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कई हिंदुओं के रेस्टोरेंट में मुस्लिम कर्मचारी काम करते हैं। क्या मैं कह सकता हूं कि मैं वहां कुछ भी नहीं खाऊंगा, क्योंकि वहां का खाना किसी न किसी तरह से मुसलमानों या दलितों की ओर से बनाया या परोसा जा रहा है? निर्देश में स्वेच्छा से लिखा है, लेकिन स्वेच्छा कहां है? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या कांवड़ यात्रा के श्रद्धालु (कांवड़ियां) भी यह उम्मीद करते हैं कि खाना किसी खास श्रेणी के मालिक द्वारा पकाया जाना चाहिए?
सबसे पहले मुजफ्फरनगर प्रशासन ने दिया था आदेश
इस विवाद की शुरुआत मुजफ्फरनगर से हुई। यहां पर पुलिस ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर सभी भोजनालयों को अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करने का निर्देश दिया गया। इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने शुक्रवार को इसे पूरे राज्य में बढ़ा दिया।