उत्तराखंड में ऐसे कई घर हैं जो अपने अतीत में इतिहास की रोचक कहानियां समेटे हुए हैं। कुछ जगहों पर लोगों ने ऐसे घरों को पूरे मनायोग से संवारा है। लेकिन, कुछ ऐसे भी है जो ऐतिहासिक होते हुए भी जर्जर हो चुके हैं या कहा जा सकता है कि अब बस जमींदोज होने वाले हैं। अक्सर कहा जाता है कि हम अपनी धरोहरों को सहेजने के प्रति संवेदनशील नहीं है, मुनस्यारी का यह घर उसकी ही बानगी है।
Munsyari के दरकोट गांव में 52 खंड यानी 52 कमरों का एक घर है। इस घर को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह कितना भव्य रहा होगा। अफसोस अब इसका बड़ा हिस्सा खंडहर में तब्दील हो चुका है। इस घर को बड़े-बड़े पत्थरों से बनाया गया है। साफ दिखाई देते हैं। कुछ तो 10 से 15 फीट के हैं। अब सोचने वाली बात ये है कि आज से सवा सौ साल पहले जब क्रेनें नहीं थीं, तब इन पत्थरों को तराशकर कैसे यहां लाया गया और इसकी दीवारों पर चढ़ाया गया। यह कल्पना ही रोमांच पैदा कर देती है। अब बात इस भव्य इमारत को बनाने वाले की। जाहिर सी बात है, कोई सामान्य शख्स तो इसे क्या ही बना पाता।
मुनस्यारी के मशहूर व्यापारी शेर सिंह पागंती ने इस बनवाया था। उन्हें लोग मुनस्यारी का ‘शेर’ भी कहते थे। इस घर की तरह उनकी बहादुरी के किस्से यहां खूब सुनाए जाते हैं। मुनस्यारी के मशहूर रंगकर्मी लक्ष्मण प्रसाद पांगती बताते हैं कि चार मंजिला इस इमारत को हम 52 खंड कहते हैं। बताया जाता है कि 52 कमरों के कारण ही इसका यह नाम पड़ा। लक्ष्मण पांगती बताते हैं- शेर सिंह पांगती बहुत मशहूर व्यापारी हुआ करते थे। वह यहां से तिब्बत व्यापार करने के लिए जाते थे। इनके पास सैकड़ों घोड़े-खच्चर, बकरियां हुआ करतीं थीं। ढेर सारे नौकर-चाकर थे। जब वह कहीं बाहर निकलते थे तो मुनादी की जाती थी कि फलां तारीख को शेर सिंह पांगती जा रहे हैं। इनका इलाके में बड़ा सम्मान था।
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एक बार तिब्बत में कजाख़ लुटेरों ने उन्हें लूट लिया। कुछ समय बाद तिब्बत में लुटेरों को पकड़ लिया गया था। इस पर शेर सिंह पांगती अपना सामान मांगने के लिए तिब्बत के शासक के पास पहुंचे। लक्ष्मण पांगती बताते हैं कि राजा के दरबार में उनसे कहा गया- यह बात सही हो सकती है कि आपको लूट लिया गया। लेकिन, आप दावे के साथ यह कैसे कह सकते हैं कि यह घोड़े-खच्चर आपके ही हैं। वहां पर बहुत से जानवर बंधे थे, जो लूटेरों से बरामद हुए थे। इस पर शेर सिंह पांगती ने कहा, ठीक है आप सारे जानवरों को छोड़ दीजिए, मैं यही से आवाज लगाऊंगा। जो मेरा होगा वह मेरे पास आ जाएगा। बताया जाता है कि उन्होंने वहीं जोर से खड़े होकर अपने घोड़े-खच्चरों को आवाज लगाई। सभी दौड़कर उनके पास चले आए। इस तरह वह अपने कई जानवर लेकर वापस आ गए। उनके वंशज आज भी हैं लेकिन कुछ देहरादून, तो कोई हल्द्वानी में रहते हैं।
लक्ष्मण पांगती कहते हैं- यह घर अब खंडहर हो चुका है। हम लोग बचपन में यहां खेलते थे। इस घर का निर्माण करीब 120-125 साल पहले का है। बस अफसोस इस बात का है कि इस ऐतिहासिक इमारत को हमने उजड़ते देखा है।