मौसम के बदले मिजाज ने एक अलग सी बेचैनी पैदा कर दी है। कंकरीट की ऊंची-ऊंची इमारतों में तब्दील हो चुके शहरों से लोग पहाड़ों की तरफ भाग रहे हैं। उन्होंने सुकून चाहिए। लेकिन हकीकत ये है कि पहाड़ दरक रहे हैं। पत्थर सरक रहे हैं। फिर भी कुछ पल इन पहाड़ों में बिताने के लिए गाड़ियों का रेला चला आ रहा है। बड़ा सवाल यही है कि क्या प्राकृतिक खूबसूरती से लबरेज हमारे पहाड़ इतना दबाव बर्दाश्त कर पाएंगे। टूरिज्म (Tourism) हमारी आर्थिकी का सबसे अहम हिस्सा है लेकिन टूरिज्म को प्रमोट करने के नाम पर कहीं हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहे? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिस पर अब उत्तराखंड ही नहीं, देशभर के लोग सोचने पर मजबूर हुए हैं। क्या कुछ ऐसा नहीं किया जा सकता है जिससे लोग प्रकृति की गोद में रहें और धरती, पहाड़, आबोहवा को कोई नुकसान भी न हो।
सेंट्रल हिमालय (Central Himalaya) बहुत ही नाजुक है। यह ग्रोइंग स्टेज में है। यहां जो भी भू-आकृतियां मिलेंगी, ये शुरुआती स्टेज की हैं और इनमें बदलाव आएगा, दिन-प्रतिदिन प्राकृतिक तरीके से। जैसे-जैसे प्रकृति अपना रूप बदलती जाएगी वैसे-वैसे इनमें भी बदलाव देखने को मिलेंगे। लेकिन बदलाव काफी धीमी गति से होता है। उसे प्राकृतिक संतुलन कहते हैं। अभी हो क्या रहा है कि हम अपनी सुविधाओं के लिए प्राकृतिक संतुलन को असंतुलित कर रहे हैं। यहां हमें सोचने की, एक ब्रेक लगाने की जरूरत है। – प्रो. एमपीएस बिष्ट
देश के पहले गांव माणा (Mana Village) में अब खासी चहल-पहल रहती है। देश के कोने-कोने से लोग यहां आना चाहते हैं। माणा आकर एक सेल्फी जरूर लेना चाहते हैं, ताकि दोस्तों और पहचान वालों के सामने इस बात पर इतरा सके कि देश के पहले गांव तक घूम चुके हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) खुद माणा आए और यहां से लोगों को माणा आने की अपील की। इसका असर ये हुआ की अब माणा घूमना लोगों की विश-लिस्ट में शामिल हो चुका है। अगर कोई श्रद्धालु बदरीनाथ (Badrinath) आ रहा है तो वो माणा जरूर जाना चाहता है। ये कहानी का चमकदार पहलू है, लेकिन इसका एक और पहलू है कि अब माणा में भीड़ बढ़ गई है। गाड़ियों की लंबी कतारें हैरान करती हैं। आखिर माणा का हाल क्या है जब ये जानने के लिए हमारी टीम कुछ समय पहले माणा पहुंची तो वहां गाड़ियों का लंबा जाम लगा था। हर कोई इसी जद्दोजहद में दिखा कि माणा पहुंचकर एक फोटो खींच ली जाए, जिनके पास समय कम था, वो माणा के आगंतुक गेट से ही तस्वीरें लेकर चलते बने।
ऊंचे बर्फीले पहाड़ों से घिरे माणा में गाड़ियों का ये जाम विशेषज्ञों को चिंता में डाल रहा है। वो कहते है कि हिमालय के इस भूभाग के लिए इतना ट्रैफिक अच्छा संकेत नहीं है। इस हिस्से में टूरिज्म को कंट्रोल करना बहुत जरूरी है। भूगर्भ विज्ञानी प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट (Prof. MPS Bisht) ने अपने जीवन के 25 बरस सेंट्रल हिमालय में ही गुजारे हैं। वह कहते हैं कि इस क्षेत्र की खूबसूरती, पर्यावरण, भूगर्भीय स्थिति, निर्माण, संस्कृति और सबसे बड़ी आत्मा यहां भगवान विष्णु की गद्दी है। मेरा हमेशा से चिंतन रहा है कि क्या होगा जब यहां पॉपुलेशन प्रेशर बहुत बढ़ जाएगा। शेषनाग की पहाड़ी हो, यहां के झरने हों, नर और नारायण पर्वत हो, नीलकंठ, अलकनंदा हो या सामने ऋषिगंगा हो। इधर सरस्वती, कुबेर पर्वत ये सबकुछ प्रकृति की देन हैं, आने वाले समय में हम उसका किस तरह से आनंद ले पाएंगे। प्रोफेसर बिष्ट कहते हैं कि विकास की दौड़ में हम कई गलतियां कर रहे हैं। हम मानव हैं, लिहाजा हमें सुविधाएं चाहिए। अगर हमको माणा गांव में लोगों को बसाना है तो उनको सुविधाएं देनी होंगी। ऐसा नहीं है कि उन्हें दरख्त वाले मकानों में छोड़ देंगे। उन्हें भी नए समाज के साथ जोड़ना है। शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क निश्चित तौर पर सबसे अहम है। इसके अलावा जो भी हम प्लान करें उसमें सतर्कता बरतें। टूरिज्म (tourism), माउंटीनियरिंग (mountaineering), रिवर राफ्टिंग (river rafting) जैसी एडवेंचर (Adventure) वाली चीजें प्लान तरीके से होनी चाहिए। बहुत सोच विचार कर कदम उठाना चाहिए, क्योंकि हिमालय और खास तौर पर सेंट्रल हिमालय बहुत ही नाजुक है। यह ग्रोइंग स्टेज में है। यहां जो भी भू-आकृतियां मिलेंगी, ये पुरानी नहीं हैं। ये शुरुआती स्टेज की हैं और इनमें बदलाव आएगा, दिन-प्रतिदिन प्राकृतिक तरीके से। जैसे-जैसे प्रकृति अपना रूप बदलती जाएगी वैसे-वैसे इनमें भी बदलाव देखने को मिलेंगे। लेकिन बदलाव काफी धीमी गति से होता है। उसे प्राकृतिक संतुलन कहते हैं। अभी हो क्या रहा है कि हम अपनी सुविधाओं के लिए प्राकृतिक संतुलन को असंतुलित कर रहे हैं। यहां हमें सोचने की, एक ब्रेक लगाने की जरूरत है।
माणा के पास ही टूरिस्ट सीजन में टेंट सिटी चलाने वाले बडीज हाइकर्स के संस्थापक राकेश सजवाण कहते हैं कि दिल्ली-एनसीआर से आने वाले लोग पहाड़ की तरफ एक अलग फीलिंग्स के लिए आते हैं। अगर कोई बदरीनाथ धाम के दर्शन के लिए आता है तो वह चाहता है कि वह एडवेंचर का भी आनंद ले। वह प्रकृति के बीच रहे क्योंकि शहरों में तो कंकरीट के जंगल बन गए हैं। सजवाण ने इन पहाड़ों के बीच टूरिस्ट सीजन के लिए टेंट सिटी बनाई है। यहां का मौसम और नजारा पर्यटकों को एक अलग दुनिया में ले जाता है। राकेश सजवाण कहते हैं कि पीएम मोदी के एक आह्वान पर मीणा में इतनी भीड़ पहुंच रही है कि वहां पार्किंग की समस्या पैदा हो गई है। वह आगे कहते हैं कि कंट्रोल करते हुए टूरिज्म को बढ़ावा दिया जाए तो उसकी खूबसूरती बची रहेगी।
चारधाम यात्रा और सैर-सपाटे में फर्क करना होगा
प्रो. बिष्ट के मुताबिक उन्हें बदरीनाथ धाम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस साल मई-जून में 1200 आदमी एक घंटे में दर्शन के लिए आए यानी 3 सेकेंड में एक आदमी को दर्शन कराना पड़ा। अब 3 सेकेंड में भगवान के दर्शन कैसे हो रहे होंगे, आप समझ सकते हैं। यानी आए और गए। साइंस कहती है कि किसी भी ऑब्जेक्ट को देखने के लिए, अपने माइंड में उसकी पिक्चर बनाने के लिए कम से कम 8 सेकेंड का टाइम मिलना चाहिए। हम क्या कर रहे बदरीनाथ में केवल 3 सेकेंड का टाइम दे रहे हैं। सोचिए सुदूर भारत के कोने-कोने से लोग आ रहे हैं। इस साल मंदिर में दर्शन के घंटे बढ़ाने पड़े, उसमें भी पूरा नहीं हो पा रहा था। पीक सीजन में कम से कम 3 किमी की लंबी लाइन लगी। इसके बाद लोगों को क्या मिला, सिर्फ 3 सेकेंड। दूसरी बात, हम फिल्टर नहीं कर पा रहे हैं कि कौन यात्री है और कौन टूरिस्ट है। जो देव दर्शन के लिए आते हैं वे यात्री होते हैं। जो टूरिस्ट आते हैं वे आए गए, इधर गए, पिकनिक मनाया, गाड़ी दौड़ाई और चले गए। इनका अंतर देखकर मैनेजमेंट करना होगा। टूरिस्ट और यात्री में फर्क करना होगा क्योंकि भगवान विष्णु का जो स्थान है, उसका महत्व अलग है। जो टूरिस्ट होते हैं उनको ध्यान में रखते हुए हमें फ्यूचर की प्लानिंग अलग करनी होगी।
पहाड़ों को रौंदती गाड़ियां कम करनी होंगी
हमारी टीम ने कोशिश यह जानने-समझने की कोशिस की कि इन पहाड़ में किस तरह का बदलाव हो रहा है। जोशीमठ की हकीकत क्या है, जहां अब भी दरारें दिख रही हैं और कई जगहों पर अनहोनी की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। गाड़ियों का रेला पहाड़ की लगातार तरफ आ रहा है। शायद इतनी गाड़ियों के दबाव से धरती में भी कंपन हो रहा होगा। क्या इसे कंट्रोल करने की जरूरत है? बेलगाम टूरिज्म एक्टिविटी क्या ठीक है। क्या पहाड़ों को सांस लेने के लिए स्पेस कम पड़ने लगा है? इन सवालों के जवाब में प्रो. बिष्ट कहते हैं कि यह प्रश्न वाजिब है क्योंकि भूस्खलन, धरती का धंसना, पत्थरों का गिरना जैसी घटनाएं भले ही प्राकृतिक हैं लेकिन लोगों की भीड़ से ये बढ़ती हैं। लोगों का मूवमेंट है, सड़क पर भारी वाहनों का मूवमेंट है। धरती तो कर रही है, हम अपनी गतिविधि से उसे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। वाइब्रेशन और साउंड के साथ मूवमेंट कारण बिना बारिश और हवा के पहाड़ नीचे चला जा रहा है। हमारे ओवर क्राउडेड व्हीकल मूवमेंट पर अंकुश लगाने की जरूरत आ गई है।
teerandaj.com की टीम ने एक नजरिया सामने रखा कि क्या ऐसा कभी हो सकता है कि सरकार ये सोचे कि जो हमारे युवा हैं अगर वे पहाड़ों में आना चाहते हैं तो उनको एक ऑप्शन दे कि आप श्रीनगर से ट्रैकिंग करते हुए जाइए। रास्ते की खूबसूरती भी देखिए और 4-5 दिन का सफर कर बदरीनाथ पहुंचिए। शायद इससे हम कुछ गाड़ियां घटा पाएंगे। साथ ही युवाओं को पहाड़ की खूबसूरती भी देखने को मिलेगी। दोनों एक्सपर्ट ने कहा कि बिल्कुल ऐसा हो सकता है। सरकार इस दिशा में शायद सोच रही है। पहले जब सड़कें नहीं थी तब भी चार धाम यात्रा होती थी। वो रास्ते पहले से बने हुए हैं अगर सरकार इसे प्रमोट करती है तो यंगस्टर के लिए बहुत बढ़िया मौका मिलेगा। शायद लोग खुशी-खुशी आएंगे।
प्रो. बिष्ट कहते हैं कि जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) थे उन्होंने प्लान बनाया था कि जो हमारा पुराना चार धाम रूट है, उसे क्यों न रिवाइव किया जाए। मीटिंग हुई। एवरेस्टर, एनआईएम (NIM) के प्रिंसिपल, एनडीआरएफ (NDRF) के लोग भी उस मीटिंग में थे। ग्राउंड विजिट हुआ। शुरुआती सर्वे किया गया। ऋषिकेश (Rishikesh), गंगोत्री (Gangotri), यमुनोत्री (Yamunotri), केदारनाथ (Kedarnath), बदरीनाथ पैदल जाया गया। उसकी स्थिति को देखते हुए रिपोर्ट बनी। उस पर अब पौड़ी के डीएम आशीष चौहान ने भी खुद विजिट करके रिवाइव करने की बात कही है। उत्तराखंड सरकार इस दिशा में सोच रही है और लोगों को आकर्षित करने की जरूरत है।