6 साल से पहाड़ का एक लड़का ऐसे खेल में दुनियाभर में तहलका मचा रहा था, जिसके बारे में हम लोग बहुत कम जानते हैं। उस लड़के के बारे में हमने तब जाना और सुनना शुरू किया जब उसके कुछ वीडियो हमने इंस्टाग्राम रील पर देखे या कोई रेंडम वीडियो हमारे फोन पर आया। जबकि वह लड़का कई साल से लगातार काम कर रहा है। वह आज पहाड़ के युवाओं के लिए प्रेरणा बन गया है। इस युवा का नाम है अंगद बिष्ट। पहाड़ से निकलकर प्रोफेशनल फाइटर बनने की यह कहानी शानदार है।
पहाड़ के लोगों की फाइटिंग स्पिरिट का कोई मुकाबला नहीं है। तमान चुनौतियों से जूझने की खूबियों के चलते ही उन्हें ‘बॉर्न फाइटर’ कहा जाता हैं। रुद्रप्रयाग जिले के नवोदय विद्यालय में पढ़ने वाले एक होनहार बच्चे ने किसी परंपरागत फील्ड में जाने का नहीं बल्कि एक ऐसे ख्वाब को जीने का फैसला किया जो बहुत कम लोग सोचते हैं। अंगद बिष्ट का नाम उन चुनिंदा लोगों में शुमार है, अंगद से मुलाकात के दौरान पहला सवाल ही यही था, कब सोचा मिक्स मार्शल आर्ट्स में करियर बनाना है। इस पर अंगद ने कहा, पहाड़ के बच्चे बहुत ज्यादा एक्टिव होते हैं। फिजिकल एक्टिविटीज बहुत ज्यादा होती है। सुबह उठो पानी लेने जाओ, पानी लेकर आओ। मुझे शुरू से ही ट्रेनिंग करना बहुत अच्छा लगता था। मैं पढ़ाई में अच्छा था तो घरवालों को लगा कि मैं डॉक्टर बनूंगा। मुझे भी यही था कि डॉक्टर बनना है। मैं देहरादून आया, 1 साल मैंने यहां पर कोचिंग की। मुझे ऐसा लगा कि यह फील्ड मेरे लायक नहीं है। उसके बाद मैंने जिम जॉइन किया। मैंने बॉडी बनाई, उसके बाद 1 साल जिम में जॉब की। मैं दिल्ली शिफ्ट हो गया। मुझे हमेशा से ही कोई ऐसा जॉब चाहिए था जिसका कोई लेवल ना हो। बॉडी बिल्डिंग में बॉडी बनाने के बाद क्या कर सकते हैं? लेकिन मार्शल आर्ट में हर फाइट के बाद एक अलग लेवल होता है। मार्शल आर्ट में कहते हैं कि फॉर एवरी लेवल देयर इज एनादर लेवल। हर फाइट में आपको अलग विपक्षी मिलता है उसके हिसाब से आपको तैयारी करनी होती है। फाइटिंग स्ट्रेटजी बनानी होती है, इसका कोई अंत नहीं है। इसमें ट्रेनिंग बहुत ज्यादा ब्रूटल है। बहुत ज्यादा ट्रेनिंग करनी पड़ती है और यह मुझे पसंद है।
अंगद से हुई ये बातचीत काफी दिलचस्प है, इसके कुछ अंशः
जब हम मिक्स मार्शल आर्ट की कमेंट्री सुनते हैं तो एंकर बड़े एक्साइटमेंट में आपका नाम लेते हैं। हम अंगद बिष्ट के फाइटिंग करियर के बारे में जानना चाहते हैं। कब आपने पहली फाइट लड़ी, पहली जीत और अभी तक के सफर के बारे में बताइए।
प्रोफेशनल फाइटर से पहले मैं एमेच्योर फाइटर था। एमेच्योर फाइट के लिए मैं दिल्ली गया था। दिल्ली में मैंने एक जिम में डेढ़ साल तक जॉब की। इसके साथ-साथ द्वारका में मैंने मिक्स मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग ली। डेढ़ महीने में मैंने पहली एमेच्योर फाइट लड़ी थी। इसके बाद बैक टू बैक मैंने एमेच्योर फाइट की। 7 – 0 मेरा रेकॉर्ड था। उसके बाद मैंने मुंबई में सुपर फाइट लीग में प्रोफेशनल डेब्यू किया। उस दौरान मैंने पहली बार एरोप्लेन में सफर किया था। इसके बाद मैंने 3 प्रोफेशनल फाइट एसएफएल में की। इसके साथ ही ब्रेव और इस समय मैं एमएफएन चैंपियन हूं। एमएफएन में मैंने लगभग 5-6 प्रोफेशनल फाइट की हैं। उससे पहले मैंने एसएफएल और ब्रेव में मेरा 9-3 का रेकॉर्ड है।
घरवाले जब आपको लड़ते हुए देखते हैं तो ये नहीं कहते कि तुम कहां चले गए?
जब तक मैं टीवी पर नहीं आया था तब तक मैंने घर पर बताया नहीं था। यहां तक कि जब मेरी पहली फाइट MTV पर थी तब भी मैंने बोला नहीं था क्योंकि गांव-घर में लोग समझ नहीं पाते हैं। उन्हें लगता है कि सिर्फ लड़ाई हो रही है। उन्हें लगता है कि सिर्फ एक दूसरे को मार रहे हैं। लेकिन यह गेम बहुत ब्यूटीफुल है। इसमें लेवल्स होते हैं, बहुत सारी टेक्निक्स होती हैं, कंडीशनिंग होती है। ऐसे नहीं होता है कि आपको किसी ने मार दिया और आपका खून आने लग जाए। अगर आपने अपनी कंडीशनिंग स्ट्रांग की है तो ऐसा नहीं होता है। यह गेम बहुत ज्यादा टेक्निकल है। एक बार घरवालों को बताया था कि मैं फाइट जैसा कुछ कर रहा हूं। मेरे घर में किसी ने समझा नहीं। उसके बाद मैंने किसी को भी नहीं बताया।
अक्सर ऐसा होता है कि जब कोई फाइट लड़ता है और लगातार उसे जीत मिल रही होती है तो वह सोचता है कि आगे और लड़ूं लेकिन आपने फाइट के साथ-साथ बच्चों को ट्रेन करना शुरू कर दिया खासकर पहाड़ के बच्चों को। आपको यह ख्याल कैसे आया कि बच्चों को भी सिखाना चाहिए?
मैं गिव एंड टेक में बहुत ज्यादा विश्वास करता हूं। आप सोसाइटी को कितना दे सकते हैं, यह मायने रखता है। अगर मैं जीत रहा हूं तो इसका फायदा कितनों को हो रहा है, यह बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। मैं आज यहां हूं तो मेरे पीछे पहाड़ के कई लड़के हैं। वह भी बहुत अच्छा कर रहे हैं। यहां कई लड़कियां हैं जो 3 साल पहले अपने गांव में थे लेकिन आज हरियाणा और अलग-अलग जगहों के फाइटर से नॉकआउट कर रहे हैं। सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं, मेरे पास बिहार, असम और देश के कोने-कोने से बच्चे आते हैं। हर कोई अपनी स्टोरी मुझसे रिलेट करता है क्योंकि हम गांव से हैं। मैंने शुरुआत से ही सोचा था कि मैं कितना वापस दे सकता हूं। मेरा भी भला हो और साथ-साथ दूसरों का भी।
उत्तराखंड के लिहाज से देखा जाए तो यहां के युवाओं में इस गेम को लेकर कितना पोटेंशियल है खासकर तब जब आपके पास इंडिया की सबसे बड़ी टीम है।
उत्तराखंड के युवाओं में बहुत ज्यादा पोटेंशियल है। मैं यह मानता हूं कि हर एक गांव का युवा इस खेल में जा सकता है। पहाड़ों के युवाओं में अच्छा जीन्स, अच्छी कार्डियो एबिलिटी, ऑर्गेनिक खानपान और ये नशे से दूर रहते हैं। हालांकि अब युवा नशे की ओर बढ़ रहे हैं। मुझे आशा है कि हम इसे बदल सकेंगे। उत्तराखंड में हम ऑर्गेनिक खाना खा रहे हैं। यहां के अलावा कहीं और ऑर्गेनिक खाना नहीं मिलता है। हर जगह पेस्टिसाइड वाला खाना मिलता है। इस गेम में स्टेमिना बहुत ज्यादा इंपोर्टेंट है। हर गेम में स्टेमिना बहुत ज्यादा जरूरी होता है और पहाड़ के युवाओं में यह पहले से ही है। पहाड़ के युवाओं में पोटेंशियल है, लेकिन उन्हें पता नहीं है कि हम यह कर सकते हैं। हमारा यही काम है कि हम युवाओं को डायरेक्शन दें। एक गांव का युवा अंगद बिष्ट जब वहां तक पहुंच सकता है तो तुम लोग भी पहुंच सकते हो।
हमेशा लोग ट्रेडीशनल गेम्स देखते आए हैं, लेकिन इस तरह का खेल जिसमें हम बहुत अच्छा कर सकते हैं… यह हमारी स्ट्रैंथ का खेल है। आपको नहीं लगता कि गवर्नमेंट को भी इस तरफ थोड़ा ध्यान देना चाहिए ताकि इस चीज को भी प्रमोट किया जाए। जितना हम इंटीरियर में प्रमोट करेंगे शायद उतने अच्छे फाइटर निकाल पाएंगे?
गवर्नमेंट अगर हमें या फिर किसी भी भारतीय को सपोर्ट करती है तो बेहतर परिणाम आ सकते हैं। जैसे मानसी ने किया, जो छोटे से गांव से आई है और चीन में उसने कमाल कर दिखाया है। स्पोर्ट्स में बच्चों का फ्यूचर है, अगर गवर्नमेंट थोड़ी मदद करें। मैं गवर्नमेंट से कोई उम्मीद नहीं करता हूं क्योंकि मुझे यह काम करते हुए 6 साल हो चुके हैं लेकिन सरकार को स्पोर्ट्स में कोई इंटरेस्ट नहीं है। लेकिन अगर सरकार थोड़ा इंटरेस्ट दिखाए तो पहाड़ों से चैंपियन निकाल सकते हैं।
जो लोग अंगद को लड़ते हुए देखते हैं, आप चाहते तो अपनी अकादमी दिल्ली में भी खोल सकते थे। वहां पर बेहतर संसाधन मिल जाते और अच्छे पैसे भी। लेकिन आपने ऐसा नहीं सोचा। आपने अपने क्षेत्र के बारे में सोचा और पहाड़ के बच्चों को ट्रेन करने के बारे में सोचा, ताकि यहां के युवा इस गेम में आगे बढ़ सकें। क्या यही सोच थी इसके पीछे?
यहां अकादमी में पहाड़ से कई सारे बच्चे और यहां तक मेरे दोस्त भी आए हैं। यहां का वातावरण बहुत अच्छा है जो मुझे पसंद है। मुझे यही लगता है कि मैं कितना ज्यादा अपना कल्चर के पास रह सकूं और अपने लोगों के साथ रह सकूं।
क्या कभी ऐसा हुआ है या ऐसा कुछ हो रहा है कि दूसरे स्टेट के बच्चे आपसे यहां आकर ट्रेनिंग ले रहे हों?
जी हां ऐसा ही है। यहां पर इस समय 100 फाइटर हैं जिसमें से 20 गढ़वाली हैं, बाकी सभी लोग दूसरे राज्यों से आए हैं।
क्या लगता है पहाड़ में अब ऐसा लोगों को लग रहा है कि इस खेल को हमें अपनाना चाहिए?
इस समय अभी पहाड़ के बच्चे काफी आ रहे हैं। चमोली, पौड़ी, उत्तरकाशी, जौनसार, कुमाऊं दूर-दूर से बच्चे यहां ट्रेनिंग के लिए आ रहे हैं। उनके आने जाने का सिलसिला लगा हुआ है। मैं उन्हें यही कहना चाहूंगा कि आप पहले अपना मन बना लें। दिक्कतें आती हैं, फाइनेंशली भी दिक्कतें होंगी। आप उसके साथ पार्ट टाइम जॉब कर सकते हैं, क्योंकि हमने भी ऐसे ही शुरू किया था। कुल मिलाकर यही कहना चाहूंगा कि जो पहाड़ के बच्चे ट्रेनिंग के लिए आ रहे हैं, मेरी उनको यही सलाह है कि आप अपनी ट्रेनिंग कंटिन्यू रखें नहीं तो कुछ और करो। टाइम बर्बाद मत कीजिए।
आपके अकादमी से अभी तक कितने बच्चे एमेच्योर फाइट और प्रोफेशनल फाइट लड़ रहे हैं?
यहां लगभग 100 फाइटर्स हैं। इनमें से हमारे पास 10 प्रोफेशनल फाइटर हैं, बाकी सारे एमेच्योर फाइटर्स हैं, जिसमें से कुछ लड़कियां हैं। हाल ही में 5 से 6 लड़कियों ने एमेच्योर फाइट्स जीती थीं।
यह आइडिया कब आया कि लड़कियों को भी ट्रेनिंग देनी है?
कुछ समय पहले ही मैंने सोचा कि लड़कियों के लिए भी कुछ करते हैं। टीम बनाई जाए और सभी लड़कियां आपस में फाइट करें।
किस तरह की सोसाइटी में आज हम रह रहे हैं, उसमें अपने आप को बचाने के लिए लड़कियों को डिफेंस के लिए भी स्ट्रैंथ और यह सब चीजें जरूरी हैं। मेरे लिए सबसे सरप्राइजिंग थीं यहां की लड़कियां। वे प्रोफेशनल फाइट्स की तरफ देख रही हैं और प्रोफेशनल फाइट्स लड़ने की सोच रही हैं। यह बड़ा चेंज आपकी वजह से आया। कैसे देखते हैं कि अब कितनी लड़कियां इस गेम में आगे आ रही हैं?
बहुत सारी लड़कियां इस गेम के लिए आगे आ रही हैं लेकिन फिर वापस जा भी रही हैं। कुछ लड़कियां यहां टिकी हुई हैं जो कुछ करना चाहती हैं। मेरा योगदान तो है ही लेकिन सबसे ज्यादा उनके घरवालों का योगदान है जो उन्हें इस स्पोर्ट्स के लिए भेज रहे हैं। उन लड़कियों की भी हिम्मत है क्योंकि ट्रेनिंग करना काफी मुश्किल हो जाता है। आजकल इंस्टाग्राम पर रील का ट्रेंड चल रहा है। ऐसे टाइम में वह कुछ अलग करना चाहती हैं तो यह बहुत बड़ी बात है।
आपके ट्रेन किए हुए दिगंबर बिष्ट ने हाल ही में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। और कौन-कौन से खिलाड़ी हैं जिन्होंने हाल में अच्छी परफॉर्मेंस दी है और कौन-कौन से खिलाड़ी हैं जो आपको लगता है आगे जाकर प्रोफेशनल फाइट्स में कुछ अच्छा करेंगे?
अंगद – दिगंबर और अमरिंदर यह दोनों ठेठ चमोली से हैं। अभी लास्ट एमएफएम 11 फाइट दिल्ली में थी जिसमें यह दोनों जीते थे। हमारी स्किल्स और दूसरों की स्किल्स में जमीन आसमान का फर्क हो गया है। मेरी फाइट भी थी लेकिन वो हो नहीं पाई क्योंकि मेरा अपोनेंट वेट दे नहीं पाया था। अमिंदर, दिगंबर देहरादून के लोकल फाइटर सागर थापा, हिमाचल से साहिल राणा, यूपी से मनोज जैसों को आप आगे प्रोफेशनल फाइटर्स के रूप में देख सकते हैं।
पहाड़ के लोगों की पहली चॉइस आर्मी में जाना होती है। जिनके लिए आपने अब नया क्षेत्र खोल दिया है। जो युवा आर्मी में नहीं जा सकें उनके लिए एक बहुत बड़ी फाइल्स तैयार है यहां। बस आप अपनी फाइटिंग स्पिरिट दिखाइए। ऐसे युवाओं को आप क्या कहना चाहते हैं जो किसी वजह से सेना का हिस्सा नहीं बने लेकिन उनको लगता है कि उनके अंदर वो फाइटिंग स्पिरिट है।
दिगंबर और अमिंदर ये दोनों मेडिकल के कारण नहीं जा सके थे। लेकिन आज इन्होंने देश में अपना नाम बना दिया है। बात यह है कि आपके अंदर पोटेंशियल है और आपको नहीं पता कि आप क्या-क्या कर सकते हैं। पहाड़ के युवाओं के लिए यह स्पोर्ट्स बहुत अच्छा जरिया बन सकता है। युवा आर्मी में नहीं जा पाते उसके बाद वो एचएम करते हैं, होटल लाइन में जाते हैं। मैं यह मानता हूं कि आप लोग एचएम करने के लिए नहीं बने हो। किसी की आप नौकरी करो, यह बुरा नहीं है अगर आपको सही लगता है और आपको अपने कंफर्ट जोन में रहना है तो आप कर सकते हैं। लेकिन मैं मानता हूं कि अगर आप मेहनती हो तो आप बड़ा घर, बड़ी कारें डिजर्व करते हो।
बड़ा सपना देखिए। यही सबसे बड़ी बात है कि आप सपना बड़ा देखेंगे तो बड़ा अचीव भी कर पाएंगे जैसा अंगद और दिगंबर ने करके दिखाया है। हमें ट्रेडीशनल के अलावा कुछ ऐसे स्पोर्ट्स की तरफ भी देखना चाहिए जिसमें बहुत अच्छा फ्यूचर है। अंगद बहुत-बहुत शुक्रिया, बहुत मजा आया आपसे बात करके। जिस तरह से आप इतने सारे बच्चों को ट्रेनिंग दे रहे हो आपने एक क्रांति ला दी है। आपने एक फाइट कल्चर डेवलप किया है लेकिन वो रोडसाइड फाइट नहीं है, यह वो फाइट है जो प्रोफेशनल है जिसमें आप केज और रिंग में लड़ते हैं। अपना नाम, प्रदेश और पूरे देश का नाम करते हैं।
मैं एक बात बोलना चाहूंगा, मैं एक गांव का लड़का हूं लेकिन जब मैं इंडिया को रिप्रेजेंट कर रहा था और बेल्ट जीता तो वो बात ही अलग होती है। एक गांव का लड़का पूरे देश को रिप्रेजेंट करता है वो जिम्मेदारी का एहसास और जीतने की खुशी अलग होती है क्योंकि आप पूरे भारत को रिप्रेजेंट कर रहे होते हो। मेरे जीतने से यह लोग इंस्पायर हुए हैं वो मीडिया के कारण हुए हैं क्योंकि मेरा मीडिया ने प्रमोशन किया होगा जिससे सबको पता चला कि ऐसा कुछ हो रहा है। आपका भी थैंक्यू कि आप यहां पर आए। कहीं कोई अमरिंदर या दिगंबर बैठे होंगे जो देखेंगे कि ऐसा कुछ हो रहा है।