समुद्रतल से 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सेलंग गांव, 150 परिवार यानी 761 लोगों का आशियाना। पहाड़ों की गोद में बसे अन्य गांवों की तरह यहां भी प्रकृति अपनी छटा बिखेरे हुई है। यहां क्या अलग है? इसका एक ही जवाब है-समाधान। जी हां, इस गांव की खास बात यह है कि इनके पास हर चीज का समाधान है। इसीलिए यह गांव बेहद खास है। चमोली जिले के जोशीमठ ब्लॉक के इस गांव में लोग खेती के अलावा, दूध, दही, घी, सब्जी, दाल, फूल का कारोबार भी करते हैं। यहां के हर ग्रामीण को एक व्यवसायी कह सकते हैं।
पहाड़ के अनेक गांवों की तुलना में यह गांव काफी भरा-पूरा है। यहां हर घर में चहल-पहल दिखी। घरों के बाहर हरा चारा खाती ब्रदी गाय को देखना आंखों को सुकून पहुंचाता है। खेती के अलावा अन्य काम करने के कारण अधिकांश लोग अपने-अपने कार्यों में मशगूल दिखाए दिए। वैसे तो सेलंग गांव के लोग मुख्यत: दूध का कारोबार करते हैं। इसके अलावा मौसमी सब्जियां भी उगाते हैं, यहां तक कि मंडुवे और झंगुरे की खेती भी करते हैं जो पहले पहाड़ों पर खूब की जाती थी पर आजकल लोगों की दिलचस्पी इसमें घट रही है।
milk-village-सेलंग-.-एक-भरा-पुरा-गांवउत्तराखंड का ‘मिल्क विलेज’
उत्तराखंड के पनीर विलेज की खूब चर्चा होती है। अगर जोशीमठ के सेलंग को ‘मिल्क विलेज’कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। यहां लगभग हर घर में लोग गाय या भैंस पालते हैं। दूध बेचना इनकी दिनचर्या का हिस्सा है। रोजाना करीब दो से ढाई कुंतल दूध जोशीमठ जाता है। ये लोग आंचल, निजी डीलरों और सप्लायरों को दूध देते हैं। गांव की बीना देवी कहतीं हैं, मेरी गाय करीब सात से आठ लीटर दूध देती है। उसे मैं बेच देती हूं। वह बतातीं हैं-गांव के अधिकांश लोगों ने दो से तीन गाय पाल रखीं हैं। हम सभी दूध का कारोबार करते हैं। गांव स्थित दुग्ध उत्पादन समिति में दूध इकट्ठा करते हैं। वहीं से रोजना समूह वाले लेकर जाते हैं। इसके अलावा बीना देवी खेती भी करती हैं। वह कोदा, झंगोरा, आलू और मटर की खेती करती हैं। गांव की ही लक्ष्मी देवी भी करीब पांच से छह लीटर दूध रोजाना बेच लेती हैं।
गांव में हैं कई समूह
गांव की उत्पादकता को देखते हुए यहां कई एनजीओ काम कर रहे हैं। वह यहां के लोगों को जागरूक करने के अलावा उनके उत्पादों का उचित मूल्य दिलाने का प्रयास भी करते हैं। कई समूहों में गांव के लोग बतौर सदस्य या पदाधिकारी शामिल हैं। इनमें से गढ़ी भवानी समूह की कोषाध्यक्ष गौरी देवी बताती हैं, अन्य लोगों की तरह वह भी दूध बेचती हैं। साथ में खेती भी करती हैं। उनके समूह के लोग समय-समय पर गांवों वालों को खेती और दूध के व्यवसाय से संबंधित जानकारियां साझा करते रहते हैं। देवेंद्र सिंह बताते हैं कि उनके गांव में तीन से चार डीलर आते हैं। यह लोग पैसे सीधे खाते में डाल देते हैं। यहां के लोग बद्री गाय के अलावा देसी और जर्सी गाय भी लोग पालते हैं। यहां की महिलाएं दूध के अलावा मख्खन और घी भी बेचती हैं। हिम उत्थान संस्था ने गांव के कुछ लोगों को कुछ साल पहले बद्री गाय के लिए साढ़े सात हजार रुपये और हरे चारे के लिए ढाई हजार रुपये दिए थे। समझौता यह था कि इन लोगों को बद्री गाय का दूध और मक्खन उन्हें ही बेचना होगा। वह लोग चार सौ रुपये प्रति किलो के हिसाब से मक्खन खरीदते हैं। संस्था वाले महीने में तीन बार मक्खन लेकर जाते हैं।
उच्चकोटि का राजमा-रामदाना
सेलंग गांव के लोग राजमा और रामदाना की खेती भी करते हैं। इसे जोशीमठ बाजार में दुकानदारों को बेचते हैं। गांव के देवेंद्र सिंह कहते हैं-उन लोगों का राजमा और रामदाना उच्चकोटि का होता है। इस वजह से लगता है कि इनका उचित मूल्य उन्हें नहीं मिल पाता है। वह कहते हैं हम लोग साप्ताहिक मंडी में जाकर भी अपने उत्पाद बेचते हैं। जोशीमठ ब्लॉक में हर रविवार को मंडी लगती है, हम वहां पर मटर, मंडुवा, आलू, गोभी, बींस, टमाटर ले जाते हैं। यहां हमें अच्छी कीमत मिल जाती है।
गुलाब की खेती
गांव की ममता देवी ने पिछले साल से गुलाब की खेती शुरू की है। उन्होंने अपने खेत में करीब 40 से 50 पौधे लगाए हैं। वह फूल की पत्तियों को सुखा कर बेचती हैं। गुलाब की सूखी पत्तियों का उपयोग मिठाई, आइसक्रीम, बिस्किट, जैम, जेली आदि बनाने में किया जाता है। वह बतातीं हैं, इसमें उनकी सगंध पौधा केंद्र सेलाकुईं ने मदद की है। अभी उन्होंने शुरुआत की है, लेकिन आगे वह इसे बढ़ाने के बारे में सोच रही हैं। उन्हें देखते हुए कुछ और महिलाएं भी गुलाब की खेती में दिलचस्पी लेने लगी हैं।
तुलसी की माला और मुर्गी पालन
सेलंग के कुछ लोग तुलसी की माला भी बनाते हैं। बद्रीनाथ धाम में तुलसी की माला चढ़ाई जाती है। यात्रा सीजन के दौरान तुलसी की माला की काफी मांग रहती है। कुछ लोगों ने तुलसी लगा रखी है तो कुछ बाहर से खरीदकर माला गूंथ कर बद्रीनाथ धाम जाकर बेचते हैं। धाम में इसकी अच्छी मांग है। एक व्यक्ति तकरीबन 35 से 40 माला बना लेता है। सेलंग गांव की सबसे अच्छी बात ये है कि यहां के लोग कुछ न कुछ काम करने में विश्वास करते हैं। गांव के एक बुजुर्ग बताते हैं कि वह कुछ नहीं कर पाते इसलिए देसी मुर्गियां पालते हैं। देसी मुर्गी के अंडे का उन्हें 10 रुपये मिलता है। वह दो से 3 कैरेट अंडे बेच लेते हैं और घर बैठे उन्हें थोड़ी बहुत कमाई हो जाती है।
जानवरों से निपटने का फार्म्यूला
पहाड़ के अन्य हिस्सों की तरह जंगली जानवर इनके खेतों को भी तबाह करने आते हैं। लेकिन, इन लोगों ने खेती करना नहीं छोड़ा बल्कि उसका समाधान निकाला। बिना बाड़ लगाए ये लोग रात में रखवाली कर अपनी फसलों को बचा रहे हैं। इसे ये लोग ड्यूटी कहते हैं। हर परिवार अपनी बारी आने पर ड्यूटी पर जाता है। हर परिवार की बारी पांच-छह दिन में एक बार आती है। एक ग्रुप बनाया जाता है। इसमें अधिकांश महिलाएं होती हैं। ये रात में करीब दो से तीन बजे तक खेतों में चौकीदारी करती हैं। निर्भीक, निडर महिलाएं अपनी मेहनत की कमाई को किसी भी कीमत पर गंवाना नहीं चाहती हैं। जानवर की आहट महसूस होने पर सभी मिलकर जोर-जोर से चिल्लाने लगते हैं। इनके हौसलों के आगे जंगली जानवर टिक नहीं पाते हैं। इस तरह गांव वाले अपने खेतों की रखवाली करते हैं। पहाड़ के अन्य गांवों की अपेक्षा यह लोग प्रति बीघा ज्यादा पैदावार करते हैं।