पहाड़ी बच्चों की लंबाई उम्र के साथ नहीं बढ़ रही है। इन बच्चों में कम हाइट का खतरा बढ़ रहा है। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज मुंबई, यूनिवर्सिटी ऑफ लद्दाख मणिपाल टाटा मेडिकल कॉलेज से जुड़े शोधकर्ताओं के ताजा अध्ययन (Medical Research) में यह खुलासा हुआ है। यह शोध ब्रिटिश मेडिकल जर्नल बीएमजे न्यूट्रिशन प्रिवेंशन एंड हेल्थ में प्रकाशित हो चुका है। शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला है कि कुपोषण की वजह से बौनेपन की समस्या बढ़ रही है। यह एक गंभीर मुद्दा है।
शोध में पाया गया कि समुद्र तल से 2000 मीटर या उससे अधिक की ऊंचाई पर रहने वाले बच्चों में बौनेपन की आशंका 1000 या उससे कम ऊंचाई पर रहने वाले बच्चों की तुलना में अधिक पाई गई। शोधकर्ताओं का कहना है कि इसका प्रमुख कारण पोषण ही है। पर्वतीय क्षेत्रों में लोग अपने बच्चों को पोषणयुक्त भोजन नहीं करा पा रहे हैं। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे इससे प्रभावित हो रहे हैं। इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर चलने वाले पोषण अभियान में पहाड़ी क्षेत्रों में विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
1,67,555 बच्चों पर किया गया अध्ययन
शोधकर्ताओं ने पांच वर्ष से कम आयु के 1,67,555 बच्चों से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया। इसमें पाया गया कि कुल बच्चों में 36 फीसदी कम हाइट के थे। 18 से 59 महीने के बच्चों में यह समस्या बेहद आम थी। 18 से 59 माह के बच्चों में 41 फीसदी बौनेपन का शिकार थे। वहीं, 18 माह से कम बच्चों में यह आंकड़ा 27 प्रतिशत था। जो बच्चे अपने मां-बाप की तीसरी या उसके बाद की संतान थे उनमें यह समस्या कहीं ज्यादा थी। इन बच्चों में बौनेपन के लक्षण 44 फीसदी से ज्यादा था।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, इससे यह तथ्य सामने आया कि पहाड़ी इलाकों में दो से ज्यादा बच्चों की परवरिश में लोगों को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। वह बच्चों को पर्याप्त पोषण दे पाने में अक्षम हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि सरकार को अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पोषण पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। गरीबी से उबारने के लिए यहां योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक तरीके से होना चाहिए।
ज्यादा ऊंचाई पर कम लगती है भूख
दरअसल, ज्यादा ऊंचाई पर रहने से ऊतकों तक ऑक्सीजन पहुंचने में बाधा आती हैं। इस कारण भूख लगना कम हो जाता है। साथ ही पोषक तत्वों का अवशोषण भी कम हो जाता है। यह भी एक कारण है बच्चों में बौनेपन का। ज्यादा ऊंचाई पर रहने वाले लोगों को खाद्य संकट से गुजरना पड़ता है। अन्य स्थानों की तुलना में उनका जीवन स्तर ज्यादा कठिन हो जाता है। यहां पर पैदावार कम होती है। मौसम में भारी उलटफेर होता रहता है। इससे बच्चों के पोषण पर असर पड़ता है। कुपोषित होने पर बच्चों के विकास पर असर पड़ने लगता है। परिणाम स्वरूप पहाड़ी बच्चों की लंबाई प्रभावित हो जाती है।
विटामिन डी की कमी से प्रभावित होती है लंबाई
इससे पहले हुए शोध में यह पाया गया था कि पहाड़ों में रहने वालों लोगों को पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी नहीं मिल पाती है। इससे हड्डियां अपेक्षाकृत मजबूत नहीं हो पाती हैं। इसका असर लंबाई पर पड़ता है। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रमुख लेखक स्टेफनी पायने ने कुछ वर्ष पहले इस विषय पर एक शोध किया था। उनके मुताबिक, सीमित ऊर्जा उपलब्ध होने पर मानव शरीर प्राथमिकता वाले भाग के विकास को तरजीह देता है। वह कहते हैं इसका उदाहरण अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में दिखता है। अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में शरीर के अंगों का विकास दूसरे भागों की कीमत पर होता है, जैसे निचली भुजा। वह कहते हैं- ऊंचाई के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के हाथ लंबे व मजबूत होते हैं। उनमें ताकत भी अधिक होती है। उन्होंने यह शोध हिमालय के शेरपा समुदाय के 250 लोगों पर किया था। यह शोध रॉयल सोसायटी ओपन साइंस में प्रकाशित भी हुआ था।