मरचूला हादसा, जिसमें 38 लोगों ने अपनों को गंवा दिया था। उसकी जांच तीन माह बाद भी अधूरी है। जांच कितनी गंभीरता से की गई है, इसका पता तो रिपोर्ट आने के बाद ही मालुम होगा। उत्तराखंड में होने वाले हर हादसे के बाद एक जांच बैठा दी जाती है। सबका हाल यही होता है। रिपोर्ट जब तक आती है तब तक मामला ठंडे बस्ते में चला गया होता है। किसी भी हादसे में जिम्मेदारी तय नहीं हो पाती। रोड सेफ्टी की कुछ सिफारिशें की जाती हैं। उस पर अमल कैसे होता है यह सबको अच्छी तरह पता है।
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मरचूला के पास स्थित पुलिस चौकी में रखे सामान को देखकर हादसे की यादें हो रही हैं। तीन बैग ऐसे हैं जिन्हें लेने परिजन नहीं आए। क्योंकि इन बैगों का अब उनके लिए शायद कोई महत्व नहीं रह गया है। उसे उठाने वाले कंधे तो रहे नहीं। पुलिस कर्मियों ने बताया कि एक मोबाइल, एक मंगलसूत्र एक लैपटॉप सहित काफी सामान तो मृतकों के परिजन पहचान बताकर ले जा चुके हैं लेकिन कुछ सामान अभी भी बचा है। जो भी पहचान बताकर अपने सामान को पहचान लेता है उसे सामान दे दिया जाता है। हादसे की विभागीय जांच कर रहे परिवहन विभाग के अपर आयुक्त राजीव मेहरा मीडिया से हुई बातचीत में बताते हैं, मरचूला हादसे की जांच लगातार जारी है। जांच लगभग पूरी हो चुकी है। एक दो दिन में जांच रिपोर्ट सौंप कर दी जाएगी। सवाल उठ रहा है कि आखिर जांच में इतना वक्त लगा क्यों?
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70 किलोमीटर तक क्रश बैरियर लगाने थे
मरचूला हादसे के बाद प्रदेश सरकार की नींद टूट्टी थी। तब क्षेत्र में सड़क हादसे रोकने के लिए सुरक्षात्मक करवाई करने के निर्देश दिए थे। लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों को सल्ट और मरचूला से लेकर करीब 70 किलोमीटर तक के क्षेत्र में सुरक्षात्मक कार्य करने के निर्देश दिए गए थे। लोक निर्माण विभाग रानीखेत प्रखंड के अधिशासी अभियंता ओमकार पांडे ने मीडिया से बताया कि करीब 70 किलोमीटर एरिया में क्रैश बैरियर लगाए जाने थे जिनमें से करीब 60 किलोमीटर के दायरे में जरूरी क्रश बैरियर लगा दिए गए हैं। अन्य सुरक्षात्मक कार्य भी कराए जा रहे हैं।
4 नवंबर का मनहूस दिन
मरचूला में सड़क हादसे का शिकार हुई बस 4 नवंबर की सुबह 6.30 बजे पौड़ी के नैनीडांडा ब्लॉक के बराथ-किनाथ से रामनगर के लिए रवाना हुई। गढ़वाल मोटर यूजर्स कॉपरेटिव सोसायटी (यूजर्स) की ये बस सुबह के करीब 8 बजे मरचूला के सारूड़ बैंड पर दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इस हादसे में 38 लोगों की मौत हो गई थी। इस दुर्घटना के पीछे जो सबसे बड़ी वजह बताई गई वो थी ओवरलोडिंग। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स ने बस में सवार घायलों के हवाले से लिखा कि ओवरलोडिंग इतनी ज्यादा थी कि ड्राइवर स्टीयरिंग घुमा नहीं पाया और दुर्घटना हो गई। 42 सीटर बस में 60 से ज्यादा लोग सवार थे लेकिन कहीं पर भी इस बस को रोका नहीं गया। जब सवाल उठे कि ओवरलोड होने के बावजूद इस बस को आगे जाने की अनुमति कैसे मिली?कुछ रिपोर्ट्स में परिवहन विभाग की जांच के हवाले से इसके लिए तकनीकी खामी को जिम्मेदार ठहराया गया। बताया ये भी गया कि सड़क हादसा प्रशासन की लापरवाही से हुआ। दो साल में लोक निर्माण विभाग को यहां क्रैश बैरियर लगाने के लिए फंड दिए जा चुके थे लेकिन इस मोर्चे पर काम हुआ नहीं।
उत्तराखंड में क्यों होते हैं सड़क हादसे?
एक सवाल जो अक्सर पूछा जाता है कि उत्तराखंड में इतने सड़क हादसे क्यों होते हैं? इस सवाल का जवाब तो सबसे पहले यहां के भूगोल में है। ये एक पहाड़ी इलाका है जहां काफी खराब भौगोलिक और क्लाइमेटिक सिचुएशन हैं जिससे ये क्षेत्र सड़क दुर्घटनाओं के लिहाज से काफी ज्यादा संवेदनशील हो जाता है। इसके ऊपर यहां एक क्षेत्र को दूसरे से जोड़ने वाली सड़कें भी बहुत अच्छी स्थिति में नहीं होती हैं। ओवरलोडिंग, खराब रोड, क्रैश बैरियर्स ना होने की वजह से भी यहां सड़क हादसे होते हैं। दूसरी तरफ, शराब पीकर गाड़ी चलाना, हाई स्पीड और ड्राइवरों की नींद पूरी ना होने की वजह से भी सड़क हादसे होते हैं। सर्दियों में कोहरा भी सड़क हादसे बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाता है। उत्तराखंड में सड़क हादसों की ये जो वजहें हैं, ये राज्य बनने से लेकर आज तक, समान ही हैं। देश के दूसरे इलाकों के मुकाबले उत्तराखंड में होने वाले सड़क हादसे ज्यादा जानलेवा साबित होते हैं। यहां वाहन अक्सर संकरी सड़कों के करीब की खाइयों में गिर जाते हैं जिससे नुकसान दो गाड़ियों के टकराने से भी ज्यादा होता है। 2019 में रोड सेफ्टी पर सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने कहा था कि उत्तराखंड सरकार की रोड सेफ्टी स्ट्रैटेजी टाउन यानी शहरों पर ज्यादा फोकस है। कमेटी ने सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों पर फोकस बढ़ाने का निर्देश दिया था। राज्य में हर जिले की सड़कें सुरक्षित हों, ये सुनिश्चित करने के लिए हर राज्य में डिस्ट्रिक्ट रोड सेफ्टी कमेटियां बनी होती हैं। 2019 में सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने कहा कि हर डिस्ट्रिक्ट कमेटी को रोड सेफ्टी एक्शन प्लान तैयार करना होगा। साथ ही इनको सेफ्टी प्लान को लागू करवाने की जिम्मेदारी होगी। इनकी ये भी जिम्मेदारी है कि ये सड़क दुर्घटनाओं को कम करने पर फोकस करें। हालांकि क्या ऐसा हो रहा है? इसकी कोई जानकारी कही नहीं मिलती है। हर बार जब सड़क हादसे होते हैं, तब प्रशासन एक्टिव हो जाता है।
कैसे रुक सकते हैं सड़क हादसे?
सड़क हादसों को रोकने के लिए सबसे पहले तो सरकार को अपनी नीतियों में बदलाव करना होगा। सरकार को चाहिए होगा कि वह सड़क दुर्घटनाओं का रुट कॉज एनालिसस करे। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि हर सड़क हादसे की साइंटिफिक इनवेस्टिगेशन की जानी चाहिए। ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में सड़क हादसों को रोकने पर विचार नहीं हुआ हो। कई बार हुआ है लेकिन जमीन पर योजनाएं उतर नहीं पाई हैं। सरकार को चाहिए कि पहाड़ी इलाकों में रोडवेज बसों की संख्या बढ़ाई जाए। इससे जब पर्याप्त बसें होंगी तो ओवरलोडिंग जैसी समस्या कम होगी। इसके साथ ही बसों समेत दूसरे वाहनों का समय-समय पर फिटनेस चेक अप भी जरूरी है। नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ की एक रिसर्च में भी यही सुझाव दिए गए थे। रिसर्च में सुझाया गया है कि उत्तराखंड की पहाड़ियों पर नई सड़क बनते वक्त ये देखना चाहिए कि क्या वो क्षेत्र ऊबड़-खाबड़ तो नहीं हैं। कहीं पर ढलान और कहीं पर ऊंचाई तो नहीं है। इसके साथ ही क्या वो क्षेत्र भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र तो नहीं हैं। इन सभी को चेक करने के बाद ही रोड बनानी चाहिए। इसके साथ ही सड़क सुरक्षा के लिए पैराफीट और गाइड दीवारें, सेफ बेरीकेड्स, प्रॉपर ड्रेनेज और रोड साइन लगाए जाने चाहिए।