आज से करीब 37 साल पहले चीन सीमा से सटे पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी गांव का निम्न मध्यवर्गीय परिवार का 22-23 साल का एक युवक दिल्ली पहुंचता है। पिथौरागढ़ का यह क्षेत्र आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। ऐसे में 37 वर्ष पहले वहां की दशा के बारे में आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं। हिमालय की गोद से कंक्रीट के शहर में कदम रखते हुए उसके मन में एक उधेड़बुन चल रही थी, इस महानगर में उसका क्या होगा। ठिकाना न कोई जानने वाला। चूंकि, युवक पहाड़ी था। उसकी रगों में जो खून दौड़ रहा था, उसके गुणसूत्र में हार मानना नहीं था। कठिन परिस्थितियों से दो-दो हाथ करना उसके डीएनए में था। आखिरकार, कुछ महीनों के संघर्ष के बाद उसे देश की सबसे बड़ी सांस्कृतिक संस्था में काम करने का अवसर मिला। आकाशवाणी दिल्ली में।
उस दौर में आकाशवाणी की हैसियत बहुत हुआ करती थी। आज के दौर में उस हैसियत की कोई भी संस्था नहीं है। निजी न सरकारी। प्रकृति की गोद में जन्म लेने के कारण स्वाभावगत वह रंगप्रेमी था। फिर क्या था, गाड़ी चल पड़ी। प्रतिभा दिखाने का मंच मिल गया था। आज वह युवक करीब 60 वर्ष का होने जा रहा है। 37 वर्ष पहले देश की राजधानी में कदम रखने वाले उस युवक का नाम है मनोहर सिंह रावत। आकाशवाणी दिल्ली प्रमुख। लंबी सेवा के बाद वह 31 मई 2024 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
आइए… उनके लंबे सफर के कुछ सुनहरे पन्ने पलटते हैं-

राष्ट्रीय फलक पर पहाड़ की प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले मनोहर सिंह रावत के लिए पहाड़ छोड़ना बहुत मुश्किल भरा फैसला था। उन्हें लगाव था पहाड़ों से, देवभूमि के पेड़ों से, नदियों से। लेकिन, तकदीर में था दिल्ली में रहकर राष्ट्र सेवा का, सो वह दिल्ली पहुंच गए। काम के प्रति समर्पण और ईमानदारी के साथ मनोहर सिंह ने प्रसारण निष्पादक के रूप में कार्य आरंभ किया। पहाड़ी लोगों के दैनिक जीवन में भी ढेर कठिनाइयां होतीं हैं। इसलिए इन्हें कार्य संपादन के दौरान आने वालीं दिक्कतों का सामना करने में कोई विशेष परेशानी नहीं हुई। अपनी मेहनत, प्रतिभा के दम पर वह जल्द ही महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों के निर्माण में, विशिष्ठ कार्यक्रमों के आयोजनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे।
बदलाव के साथ कदमताल
90 के दशक के अंत का समय बदलाव का था। यह वह समय था जब आकाशवाणी में कार्यक्रमों के प्रस्तुतिकरण और तकनीक में परिवर्तन हो रहे थे। रिकॉर्डिंग, डबिंग, प्रोडक्शन और प्रस्तुतिकरण सब बदल गया था। बदलते समय के साथ मनोहर सिंह रावत ने बखूबी कदमताल किया। इस बीच 1997 में वह कार्यक्रम अधिकारी के रूप में पदोन्नत होकर छह माह के लिए आकाशवाणी मथुरा चले गए। लेकिन, आकाशवाणी दिल्ली को इनकी कमी ऐसी खली की छह महीने के भीतर इन्हें वापस बुला लिया गया। इसके बाद कार्यक्रम अधिकारी के रूप में इन्होंने कई प्रसिद्ध कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
खेल कमेंट्री में किए कई बदलाव
खेल में स्वाभाविक रुचि के कारण मनोहर सिंह रावत ने इसकी प्रस्तुति में कई नए प्रयोग किए। जो आज भी प्रासंगिक हैं। स्पोर्ट्स कमेंट्री से पहले, मध्य और अंत में जो विशेष कार्यक्रम होते हैं । जिनमें विशेषज्ञों के साथ श्रोताओं की भागीदारी होती है, यह रावत की ही सोच का परिणाम है। 2012 में दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स के अलावा कई बार क्रिकेट विश्व कप में आकाशवाणी कमेंट्री टीम का नेतृत्व भी किया।
आकाशवाणी को लोगों से जोड़ा
आकाशवाणी से लोगों का कनेक्ट बढ़ाने के लिए कई प्रयोग किए। जैसे-आम आदमी की दैनिक जीवन की समस्याओं और उनके समाधान के लिए आकाशवाणी पर अनेक कार्यक्रम किए। लगभग 15 वर्षों तक वह स्थानीय अधिकारियों को बुलाकर उन्हें समस्याओं से अवगत कराया। इस वजह से बड़ी समस्याओं का समाधान भी हुआ। 2008- 2009 में उनकी पोस्टिंग लेह में हुई। तब वह सेना के जवानों के जीवन में बहुत नजदीक से देखा। इसके बाद इन्होंने वीर जवानों के जीवन पर आधारित कई सीरीज भी इन्होंने बड़ी सफलतापूर्वक चलाई।
mann ki baat
प्रधानमंत्री के मन की बात पूरा देश सुनता है। लेकिन, यह जानना दिलचस्प होगा कि इसके पीछ भी मनोहर सिंह रावत का हाथ है। इस कार्यक्रम के संचालन का जिम्मा इन्हें के कंधों पर था। चूंकि, यह प्रधानमंत्री का कार्यक्रम था। इसलिए वह इस बारे में ज्यादा बात नहीं करते हैं। अब तक मन की बात के 110 कार्यक्रम आकाशवाणी के माध्यम से प्रसारित हो चुके हैं।

कोरोना काल में आकाशवाणी को दी नई पहचान
कोरोना काल में इन्होंने आकाशवाणी के कई कार्यक्रमों को फिर से शुरू कराकर नई पहचान दिलाई। मनोहर सिंह रावत स्थानीय कलाकारों को अधिक मौका दिए जाने के पक्षधर रहे। यही कारण है कि आकाशवाणी के कार्यक्रमों में आपकों नए कलाकारों की प्रस्तुति देखने को मिल जाएगी। माटी के रंग ( लोक संगीत पर आधारित ), स्वारांजलि (क्लासिक एंड लाइट म्यूजिक), युवा कवि प्रतिभाओं के लिए कविताओं की संगीतमय प्रस्तुति।
जी-20 सम्मेलन के प्रसार के लिए किए थे 27 कार्यक्रम
जी-20 सम्मेलन की सफलता के लिए केंद्र की सरकार जी जान से जुटी थी। पूरी दुनिया की निगाहें इस पर टिकी थी इन्होंने इसके प्रसार के लिए देश भर में 27 कार्यक्रम किए। अधिकांश में युवाओं को मौका दिया।
खैर, उनके उल्लेखनीय कार्यों की सूची बहुत लंबी है। उसे एक खबर में समेटना मुमकिन नहीं है। वह 31 मई को 37 वर्षों की सेवा के बाद आकाशवाणी को अलविदा कह देंगे। आकाशवाणी को तो उनकी कमी खलेगी ही, श्रोताओं को भी वह बहुत याद आएंगे। उम्मीद है कि सेवानिवृत्ति के बाद उनकी दूसरी पारी और भी जोरदार होगी।