- अतुल्य उत्तराखंड के लिए साधना त्रिपाठी
भव्य पेशवाई के साथ सभी 13 अखाड़े संगम स्थित अपने शिविरों में पहुंच चुके हैं। अनुमान है कि इस बार करीब 40 करोड़ लोग महाकुंभ के दौरान गंगा नदी में स्नान करेंगे। जन सागर, सैलाब जैसे विशेषण श्रद्धालुओं की इतनी बड़ी भीड़ की व्याख्या करने के लिए छोटे लगने लगे हैं। महाकुंभ की इस बार की तैयारियां भी अद्भुत हैं….आइए, एक नजर डालते हैं।
मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक को कुंभ विस्मित करता रहा है। हांड़ कंपा देने वाली ठंड में जब कोहरे के कारण आंखें एक मीटर की दूरी पर भी कुछ देखने में अक्षम हो जाती हैं, ऐसे समय में लाखों लोग एक अदृश्य शक्ति की ओर खिंचे चले जाते हैं। आज की पीढ़ी कल्पना करे- सौ, 200 या 500 साल पहले का समय कैसा रहा होगा। अब तो तमाम संचार माध्यमों से लोगों को स्नान तिथियों, मुहूर्त या अन्य के बारे में जानकारी मिल जाया करती हैं। उस दौर में तो ऐसा कुछ भी नहीं था। तब भी लोग गठरी बांधे, मुक्ति की कामना लिए तय समय पर कुंभ मेले में पहुंच जाया करते थे। अब तो छोटे वाहन से लेकर हवाई जहाज तक सुलभ हैं। उस समय तो अधिकांश लोगों के पास आवाजाही का कोई साधन नहीं था। सैकड़ों-हजारों किलोमीटर का सफर पैदल तय कर कुंभ में स्नान करने आते थे। अब सरकार के पास तमाम साधन हैं। लोगों को व्यवस्थित करने में पूरा सरकारी अमला झोंक दिया जाता है। उस समय तो ऐसा कुछ भी नहीं था। करोड़ों लोगों में वह स्वत: अनुशासन कैसे आता होगा? ऐसी तमाम बातें हैं, जिनके बारे में अगर हम गहराई से सोचें तो यह दुनिया के सबसे बड़े अचरजों में एक है। सनातन धर्म की यह विशेषता-विश्वास-आस्था आपको शायद ही कहीं देखने-सुनने को मिले।
कुंभ मेला देश में एक केंद्रीय आध्यात्मिक भूमिका निभाता है, जो आम भारतीयों पर एक जादुई प्रभाव डालता है। यह घटना खगोल विज्ञान, ज्योतिष, आध्यात्मिकता, कर्मकांड की परंपराओं, सामाजिक एवं सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और ज्ञान को अत्यंत समृद्ध बनाती है।
मोक्ष की प्राप्ति : मान्यता है कि महाकुंभ के दौरान संगम में स्नान करने से आत्मा के बंधनों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्त होता है।
आध्यात्मिक जागरूकता : महाकुंभ केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, यह समाज को आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों की ओर प्रेरित करता है।
संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण : यह आयोजन भारतीय संस्कृति, परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं का जीवंत प्रतीक है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण : महाकुंभ के दौरान गंगाजल में औषधीय गुण बढ़ जाते हैं। इसका वैज्ञानिक अध्ययन भी किया गया है, जो इस पर्व की महिमा को और बढ़ाता है।
इसरो भी बनेगा महाकुंभ का साक्षी : महाकुंभ-2025 में इसरो भी साक्षी बनेगा। दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागम का भागीदार बनेगा। अंतरिक्ष से महाकुंभ की तस्वीरे इसरो के सेटेलाइट स्टेशन से ली जाएंगी। साथ ही सभी प्रमुख स्नान पर्वों के दौरान विशेष निगरानी भी की जाएगी।
कब हुई शाही स्नान की परंपरा
मान्यता है कि शाही स्नान की परंपरा सदियों पुरानी है। कुछ अंग्रेजी अफसरों की किताबों में शाही स्नान के बारे में जानकारी तो मिलती है लेकिन यह नहीं पता चलता कि यह कब से शुरू हुआ। लेकिन इसका काफी आकर्षण रहता है। वैसे, कुंभ में महानिर्वाणी अखाड़े के नागा संन्यासी सबसे पहले शाही स्नान करते हैं। संत सोने-चांदी की पालकियों, हाथी, घोड़े पर बैठकर स्नान के लिए आते हैं। इसे अखाड़ों की शक्ति और वैभव प्रदर्शन के रूप में देखा जाता है। शाही स्नान तय तारीख की सुबह 4 बजे से शुरू हो जाता है। उससे पहले घाट पर अखाड़ों के साधु-संतों का जमावड़ा रहता है। साधुओं के हाथों में पारंपरिक अस्त्र-शस्त्र होते हैं। शरीर पर भभूत लगा रहता है। जयकारे और तेज नारे लगाते साधु न्यूनतम कपड़ों में या निर्वस्त्र ही डुबकी लगाते हैं। साधु-संतों के स्नान के बाद ही आम लोगों को पवित्र नदी के जल में डुबकी लगाने की इजाजत मिलती है।
कुंभ स्नान का महत्व?
मान्यता है कि, अगर कोई व्यक्ति कुंभ स्नान करता है तो उसके सभी पाप समाप्त हो जाते हैं। उसे पापों से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही, मोक्ष की प्राप्ति होती है। हिंदू धर्म में पितृ का बहुत महत्व है। ऐसे में कहा जाता है कि अगर कुंभ स्नान किया जाए तो इससे पितृ भी शांत हो जाते हैं। इससे व्यक्ति पर सदैव आशीर्वाद बना रहता है।
पेशवाई… जिसे देखने उमड़ पड़ता है शहर
अखाड़े के साधु-संत शाही ठाट-बाट के साथ कुंभ मेले में प्रवेश करते हैं। उसे ही पेशवाई यानी छावनी प्रवेश कहते हैं। साधु-संत राजा-महाराजाओं की तरह हाथी, घोड़ों और रथों पर निकलते हैं। श्रद्धालु संतों का स्वागत करते हैं। ये संत अपने-अपने अखाड़ों के झंडे अपने हाथों में रखते हैं। इस दौरान नागा विभिन्न करतब दिखाते हुए चलते हैं। सबसे भव्य पेशवाई जूना अखाड़े की होती है।
व्यापक तैयारियां
4300 हेक्टेयर में बसने वाले महाकुंभ मेला स्थल को लेकर व्यापक तैयारियां की जा रही हैं। गंगा नदी पर 30 पांटून पुल बनाए गए हैं। 450 किलोमीटर से अधिक चकर्ड प्लेट की सड़क बनकर तैयार है। कुंभ की तैयारियों के मद्देनजर प्रयागराज शहर भी बहुत बदल गया है। एक साल के भीतर कुल 11 फ्लाईओवर बना दिए गए हैं। महाकुंभ में करीब आठ हजार करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। डेढ़ हजार से ज्यादा के अस्थायी काम हो रहे हैं। देश के लगभग सभी नामी कलाकार यहां पर प्रस्तुति देंगे। इसके अलावा यहां की टेंट सिटी भी आकर्षण के केंद्र में रहती है।
एकता का कुंभ..
कुंभ मेला एकता का महायज्ञ है, जहां जाति-पाति का भेद मिट जाता है। यहां सभी प्रकार के भेदभाव की आहुति दी जाती है। संगम में डुबकी लगाने वाला हर भारतीय एक भारत, श्रेष्ठ भारत की अद्भुत तस्वीर प्रस्तुत करता है। यहां साधु-संत, तपस्वी, ऋषि, विद्वान और आम लोग सभी एक साथ आते हैं और तीन नदियों के संगम में डुबकी लगाते हैं। यहां जातियों का भेद मिट जाता है और समुदायों का टकराव मिट जाता है। – नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
नहीं डूबेंगे श्रद्धालु
इस बार रोबोटिक ब्वाय को कुंभ मेले में लाया गया है। यह एक मशीन है। अगर कोई व्यक्ति नदी में डूब रहा है तो यह पल भर में वहां पहुंच जाएगा। डूब रहे व्यक्ति को पकड़ कर ऊपर आ जाएगा। इसे बाहर से ऑपरेट किया जाएगा।
महाकुंभ में उत्तराखंड का पवेलियन
प्रयागराज महाकुंभ-2025 में उत्तराखंड का अपना पवेलियन होगा। प्रयागराज मेला प्राधिकरण ने उत्तराखंड राज्य को सेक्टर-7 कैलाशपुरी मार्ग, पूर्वी पटरी प्रयागराज में 100×400 वर्ग फिट भूमि निःशुल्क आवंटित कर दी है। इस भूमि पर उत्तराखंड राज्य का पंडाल सजेगा, जहां मेलार्थियों को उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति की झलक भी देखने को मिलेगी।
आस्था-श्रद्धा संग भागीदारी
मां गंगा और यमुना का उद्गम क्षेत्र उत्तराखंड है। प्रयागराज इन दोनों पवित्र नदियों का संगम स्थल है। हमारे लिए यह अत्यंत गौरव की बात है कि यहां महाकुंभ मेला आयोजित हो रहा है। उत्तराखंड पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ प्रयागराज महाकुंभ-2025 में भागीदारी करेगा, साथ ही इस महा आयोजन को सफल बनाने में उत्तर प्रदेश सरकार का कंधा से कंधा मिलाकर सहयोग करेगा। स्नान आदि के लिए अतिरिक्त जल की जरूरत होगी तो उत्तराखंड से अतिरिक्त जल छोड़ा जाएगा। इसके अलावा परिवहन आदि व्यवस्थाओं में भी पूर्ण सहयोग किया जाएगा।
-पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री