उत्तराखंड के अलग-अलग हिस्सों में विकास कार्यों के न होने से नाराज लोगों ने लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) 2024 का बहिष्कार किया। इसमें एक इलाका ऐसा भी है, जहां के विकास को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट बताया जा रहा है। यही नहीं खुद पीएम मोदी ने अक्टूबर में यहां आकर शिव साधना की थी। बावजूद इसके यहां सिर्फ 15.5% मतदान हुआ।
बात हो रही है पिथौरागढ़ की व्यास वैली की। यहां के पार्वती कुंड में पीएम मोदी के पूजा-पाठ की तस्वीरें दुनिया भर में वायरल हुई थीं। यहां से आदि कैलास के दर्शन की बड़ी योजना पर काम भी चल रहा है। फिर भी चीन सीमा से सटी ब्यास वैली के बूदी, कुटी, गर्ब्यांग, नपलच्यु, गुंजी, नाभी, रौंगकोंग गांवों के लोगों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। व्यास जनजाति संघर्ष समिति के अध्यक्ष राजेंद्र नब्याल ने बताया कि यहां कुल मिलाकर 2723 वोटर हैं, इसमें से महज 423 ने ही अपना वोट डाला। ऐसा नहीं है कि व्यास घाटी में मौसम की विपरीत परिस्थितियां रहीं। बल्कि व्यास घाटी के इन गांवों के लोग शीतकाल में धारचूला आ जाते हैं। उनके लिए यहीं अलग बूथ भी बनाया गया था, फिर भी लोगों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया।
लोगों का आरोप है कि पीएम मोदी तो वोकल फॉर लोकल की बात करते हैं, इसके लिए कोशिशें भी होती हैं, लेकिन व्यास घाटी में उत्तराखंड का टूरिज्म विभाग ‘लोकल पर चोट’ कर रहा है, इसीलिए इस बार सभी गांवों ने वोटिंग का बहिष्कार किया। राजेंद्र नब्याल का कहना है कि उन्होंने स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने को लेकर कई बार प्रशासन से गुहार लगाई। यहां तक कि एसडीएम धारचूला के मार्फत पीएम मोदी और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को ज्ञापन भी भेजा गया। इसमें साफ तौर पर कहा गया था कि अगर प्रशासन ने उनके हितों की रक्षा के लिए ठोस कदम नहीं उठाया तो चुनावों का बहिष्कार किया जाएगा।
मार्च के महीने में पीएम मोदी के लिए भेजा गया ज्ञापन।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए भेजा गया ज्ञापन।
कहां कितनी वोटिंग
गांव वोटर्स वोट पड़े मत प्रतिशत
कुटी 362 109 30%
नाबी रौंगकोंग 517 52 10%
बुदी 619 111 18%
गर्ब्यांग 628 28 05%
गुंजी-नपल्च्यू 595 123 20%
क्या है पूरा मामला
व्यास जनजाति संघर्ष समिति का कहना है कि उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड (UTDB) ने आदि कैलास, ओम पर्वत और व्यास वैली के लिए हेली दर्शन योजना शुरू की है। आदि कैलाश और ओम पर्वत के लिए पहली हेलीकॉप्टर यात्रा 1 अप्रैल 2024 को हुई। अभी 15 अप्रैल से 8 मई तक इसे लंबे ट्रायल के तौर पर चलाया जा रहा है। इसमें तीर्थयात्रियों को हेलीकॉप्टर के जरिये आदि कैलास और ओम पर्वत के दर्शन कराए जा रहे हैं। इसके बाद योजना को शीतकाल में नियमित करने की तैयारी है।
उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड ने ट्रैवल रजिस्ट्रेशन और नॉन-हेली पार्ट के संचालन प्रबंधन को स्वीकार करने के लिए नोएडा की कंपनी ट्रिप टू टेंपल्स को अधिकृत किया है। इसमें कुमाऊं मंडल विकास निगम को भी शामिल किया गया है। एमआई-17 हेलीकॉप्टर से टूरिस्टों को आदि कैलास के दर्शन कराए जा रहे हैं। इसमें राज्य सरकार प्रति यात्री 30 हजार रुपये की सब्सिडी भी दे रही है। लेकिन इस फैसले में स्थानीय लोगों की पूरी तरह अनदेखी की गई है। उनका यह भी आरोप है कि यह कंपनी धड़ल्ले से अपनी निजी वेबसाइट पर सरकारी विभागों के लोगो इस्तेमाल कर रही है। यही नहीं सरकारी सब्सिडी का विज्ञापन देकर लोगों से बुकिंग ले रही है। हेली सेवा का विरोध करते हुए व्यास वैली में किसी भी होमस्टे में बुकिंग नहीं ली गई। इस वजह से हेली सेवा से आने वाले टूरिस्टों को गुंजी में केएमवीएन के गेस्ट हाउस में ही रुकना पड़ा। बताया जाता है कि पिथौरागढ़ के टैक्सी संचालक इन लोगों का सामान गुंजी पहुंचाने के लिए भी तैयार नहीं हुए।
इस इलाके में ‘रं’ समुदाय के लोग रहते हैं। इन लोगों का कहना है कि चीन सीमा तक सड़क के पहुंचने और पीएम मोदी के व्यास वैली के दौरे के बाद यहां धार्मिक पर्यटन में काफी वृद्धि होने की संभावना है। इससे इस सुदूरवर्ती सीमांत इलाके में रोजगार की संभावना पैदा होने के आसार बने हैं। हल्द्वानी से लेकर पिथौरागढ़ और धारचूला से लेकर गुंजी तक कई लोगों को यहां अलग-अलग तरह का रोजगार मिलेगा। स्थानीय टैक्सी संचालक, होटल संचालक,होमस्टे संचालक, टूर ऑपरेटर, टूर गाइड, पर्यटन व्यवसाय से जुड़े तमाम स्थानीय लोग इससे सीधे लाभान्वित होंगे, लेकिन उत्तराखंड सरकार ने लोकल की जगह बाहरी कंपनी को शामिल करने का फैसला कर कई लोगों के रोजगार पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। स्थानीय युवकों ने रोजगार की संभावनाओं को देखते हुए बैंकों से कर्ज लेकर होमस्टे, टैक्सी और होटल व्यवसाय शुरू किए हैं, ऐसे में हेली सेवा शुरू होने से पूरे रूट के लोग रोजगार से वंचित रह जाएंगे। समिति का कहना है कि सड़क से होने वाली यात्रा हेली सेवा के जरिये कुछ ही दिन तक सिमट जाएगी। इसका स्थानीय पर्यटन व्यवसाय पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
राजेंद्र नब्याल के मुताबिक, संघर्ष समिति की अधिकारियों के साथ बैठक में भी साफ तौर पर कहा गया कि आदि कैलाश और ओम पर्वत दोनों ही पवित्र स्थल मोटर मार्ग से जुड़े हैं, यहां सड़कें काफी अच्छी हैं। स्थानीय टैक्सी संचालकों की मदद से यात्रियों को यात्रा कराई जा सकती है लेकिन यहां भी बाहर से एटीवी लाकर संचालित की जा रही है। जहां स्थानीय लोग और ऑपरेटर्स अपनी गाड़ियां और टैक्सी ज्योलिंगकांग बेस कैंप में पार्क कर पैदल या घोड़े पर पार्वती कुंड और गौरी कुंड तक यात्रा करते हैं वहीं बाहरी ऑपरेटर्स ने टेम्पररी नंबर की ATV से गुंजी से नाबीढांग तक का ट्रायल किया है। अब ये लोग ज्योलिंगकांग से ATV पार्वती सरोवर तक ले जाने की योजना बना रहे हैं। ये दूरी लगभग 1.5 किलोमीटर है।
आस्था से खिलावाड़ का भी आरोप
व्यास घाटी में रहने वाले ‘रं’ समुदाय के लोग नवंबर के महीने में धारचूला आ जाते हैं। अप्रैल-मई में फिर मौसम ठीक होने पर लोग व्यास घाटी लौटते हैं। पार्वती सरोवर में आदि शक्ति मंदिर में कुटी के लोगों की विशेष पूजा के बाद ही वहां फिर से दर्शन शुरू हो जाते हैं। जबकि नवंबर के बाद वहां पूजा नहीं होती। लोगों का आरोप है कि सरकार शीतकाल में अक्टूबर से ही व्यास वैली को पर्यटकों के लिए खोलना चाहती है, जो कि ‘रं’ समुदाय की धार्मिक आस्था से खिलवाड़ है। ऐसा करके वहां की इकोलॉजी को भी प्रभावित किया जा रहा है।
कुटी गांव के आदि कैलाश के देव डांगर (पुजारी) हरीश कुटियाल का कहना है कि हमें पीएम मोदी से कोई शिकायत नहीं है, उनके आने से यात्रा तो बढ़ी है लेकिन स्थानीय लोगों की टूरिज्म बोर्ड द्वारा अनदेखी से नाराजगी है। हमारे यहां एक धार्मिक प्रक्रिया का पालन होता है, जिसमें सबसे पहले कुटी गांव में पूजा-पाठ होता है, ऐसी मान्यता है कि पांडव इसी गांव में निवास करते थे, इसलिए पहले यहां की माटी को पूजा जाता है और फिर पार्वती सरोवर में शिव-पार्वती मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। पीएम मोदी ने भी इसी मंदिर में पूजा की और यहीं ध्यान भी लगाया। कुटियाल का आरोप है कि टूरिज्म विभाग ने इस परंपरा पर स्थानीय लोगों और पुजारियों से बात नहीं की और अपने स्तर से यात्रा शुरू कर दी। इससे हमारी धार्मिक भावनाओं पर ठेस पहुंची है। हरीश कुटियाल का कहना है कि हमारे विधि-विधान को दरकिनार करने का दुष्परिणाम देखने को मिलेगा।
पर्यटन विभाग के साथ हुई संघर्ष समिति की बैठक में इन लोगों को भरोसा दिलाया गया था कि हेली दर्शन योजना, टूरिज्म को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू की जा रही है, इससे क्षेत्र मे रोजगार के अवसर बढे़ंगे और यहां का ज्यादा प्रचार-प्रसार होगा, जिससे धारचूला में टूरिस्टों की संख्या मे वृद्धि होगी। संघर्ष समिति का आरोप है कि जिस तरह से इस योजना में बाहरी ऑपरेटर्स को शामिल किया गया है, वह यूटीडीबी के दावों की पोल खोलता है। कुछ समय बाद यहां बाहरी लोग पूरी तरह से हावी हो जाएंगे और स्थानीय लोगों के रोजगार पर बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। इसके साथ ही सीमांत इलाके में निजी हेली ऑपरेटर्स को उड़ान की अनुमित देना भी खतरा खड़ा कर सकता है।
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पत्रिका में, स्थानीय मुद्दों को काफी हद तक कवर किया गया है,। अब तक तो उत्तराखण्ड सरकार के द्वारा उठाये गए कदम से रोजगार पर ही संकट दिखाई दे रहा है। वास्तव में उपरोक्त तरीके से ज़बरदस्ती स्थानीय लोगों की भावनाओं को नजरअंदाज करने से, स्थानीय रं संस्कृति, लोक आद्यात्मिक व्यवस्था और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र छिन्न भिन्न ही होंगे।