Supreme Court ने जाति आधारित भेदभाव से जुड़ी याचिका पर कहा कि ऊंची जाति के कैदियों से खाना पकवाना और निचली जाति के कैदियों से झाड़ू लगवाना असांविधानिक है। यह भेदभाव अनुच्छेद का उल्लंघन है। शीर्ष अदालत ने कुछ राज्यों के जेल मैनुअल के भेदभावपूर्ण प्रावधानों को खारिज कर दिया तथा जाति आधारित भेदभाव, कार्य बंटवारे और कैदियों को उनकी जाति के अनुसार अलग वार्डों में रखने की प्रथा की निंदा की। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ जनहित याचिका पर फैसला सुना रही थी।
न्यायालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जाति-आधारित कार्य आवंटन को समाप्त करने के लिए अपने जेल मैनुअल को तीन माह के भीतर संशोधित करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने केंद्र सरकार को जाति-आधारित अलगाव को संबोधित करने के लिए अपने मॉडल जेल नियमों में आवश्यक बदलाव करने का भी निर्देश दिया। न्यायालय ने आगे निर्देश दिया कि जेल मैनुअल में आदतन अपराधियों का संदर्भ विधायी परिभाषाओं के अनुसार होना चाहिए, उनकी जाति या जनजाति के संदर्भ के बिना।
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दूसरी ओर, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी (संघ की ओर से) ने आग्रह किया कि जेल राज्य का विषय है, इसलिए संघ केवल एक परामर्श जारी करने से अधिक कुछ नहीं कर सकता, जब तक कि न्यायालय यह निर्देश न दे कि वह अनुपालन की निगरानी करे और वापस रिपोर्ट करे। उत्तर प्रदेश राज्य के एक वकील ने भी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि राज्य ने अपने जेल मैनुअल के प्रावधानों के साथ-साथ यह भी कहा कि जेलों में कोई जाति-आधारित भेदभाव नहीं हो रहा है, अपना उत्तर दाखिल किया है।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला पढ़ते हुए कहा- जाति के आधार पर कैदियों को अलग करने से जातिगत भेदभाव को बल मिलेगा। अलग करने से पुनर्वास में सुविधा नहीं होगी…कैदियों को सम्मान न देना औपनिवेशिक व्यवस्था का अवशेष है। कैदियों को भी सम्मान का अधिकार है। उनके साथ मानवीय और क्रूरता रहित व्यवहार किया जाना चाहिए। जेल व्यवस्था को कैदियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति विचारशील होना चाहिए।
यह है मामला?
शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की गई। इसमें आरोप लगाया गया था कि देश के कुछ राज्यों के जेल मैनुअल जाति आधारित भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु समेत 17 राज्यों से जेल के अंदर जातिगत भेदभाव और जेलों में कैदियों को जाति के आधार पर काम दिए जाने पर जवाब मांगा था। सर्वोच्च न्यायालय ने इस साल जनवरी में कई राज्यों से जवाब मांगा था। हालांकि छह महीने बीतने के बाद भी केवल उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल ने ही अपना जवाब कोर्ट में दाखिल किया।
याचिका में केरल जेल नियमों का हवाला दिया गया था और कहा गया कि वे आदतन और फिर से दोषी ठहराए गए दोषी के बीच अंतर करते हैं। याचिका में दावा किया गया कि पश्चिम बंगाल जेल संहिता में यह प्रावधान है कि जेल में काम जाति के आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए, जैसे खाना पकाने का काम प्रभावशाली जातियों द्वारा किया जाएगा और झाड़ू लगाने का काम विशेष जातियों के लोगों द्वारा किया जाएगा।