समय पूर्व प्रसव यानी प्री मैच्योर डिलीवरी के मामले Uttarakhand में बढ़ रहे हैं। समय से पहले बच्चे का जन्म तब कहा जाता है, जब कोई बच्चा 37 हफ्तों से पहले पैदा होता है। इससे मां के साथ नवजात को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। चिकित्सकों के मुताबिक, खून की कमी के कारण यह समस्या बढ़ रही है।
राजधानी देहरादून के जिला चिकित्सालय समेत प्रदेश के अन्य जिलों में समय से पूर्व होने वाले प्रसव के मामले बढ़ रहे हैं। इसका असर नवजात के स्वास्थ्य पर देखने को मिल रहा है। चिकित्सकों ने इसको लेकर चिंता जाहिर की है। अधिकतर मामलों में बच्चे नौ के बजाय सात महीने में ही पैदा हो रहे हैं। इससे बच्चों को कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी मुश्किलें आ रही हैं। दून के जिला अस्पताल के चिकित्सकों के मुताबिक, हर रोज ओपीडी में आने वालीं 150 गर्भवतियों में से करीब 15 महिलाएं ऐसी होती हैं, जो समय पूर्व प्रसव पीड़ा से जूझती हैं।
यह भी पढ़ें : किसी बड़े खतरे का संकेत है ग्लेशियरों की हलचल
दून अस्पताल में बने 22 बेड के नवजात गहन देखभाल इकाई (एनआईसीयू) में भी करीब 10 से 12 नवजात समय से पहले जन्म लेने के कारण भर्ती किए जाते हैं। चिकित्सकों के मुताबिक, इन दिनों इस तरह के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। वहीं, अगस्त से अक्तूबर तक बागेश्वर जिला अस्पताल में 472 डिलीवरी हुई हैं, इनमें से 410 महिलाओं के प्री डिलीवरी केस हैं।
खून की कमी से बढ़ता है समय पूर्व प्रसव का खतरा
महिला रोग विशेषज्ञ बताती हैं कि जो महिलाएं बार-बार गर्भधारण करती हैं, उनमें समय पूर्व प्रसव का सबसे अधिक खतरा होता है। इसके अलावा जिन महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान खून की कमी और पेशाब का इंफेक्शन होता है, वे भी समय से पहले प्रसव पीड़ा का शिकार हो जाती हैं। इसके पीछे की मुख्य वजह महिलाओं की अव्यवस्थित जीवनशैली है।
सात महीने में जन्म ले रहे बच्चे
गर्भधारण के 37 सप्ताह पूरे होने के बाद जन्म लेने वाले बच्चों को सामान्य माना जाता है, जबकि इन दिनों बड़ी संख्या में गर्भवतियों को 32 सप्ताह में ही प्रसव पीड़ा शुरू हो जाती है और पर समय से पहले ही बच्चे को जन्म दे देती हैं। इसका मां के साथ ही नवजात के स्वास्थ्य पर भी काफी असर देखने को मिलता है। गर्भावस्था के दौरान भारी वजन उठाने से भी बचना चाहिए।
नवजात के ब्रेन और फेफड़े नहीं हो पाते विकसित
बाल रोग विशेषज्ञ बताते हैं, समय से पूर्व प्रसव वाले नवजातों के मस्तिष्क और फेफड़े पूर्णरूप से विकसित नहीं हो पाते हैं। ऐसे में उनको कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा इस तरह के नवजातों की आंतों में पस भी बन जाता है। इससे वे दूध को पचा नहीं पाते हैं। साथ ही समय से पूर्व जन्मे बच्चे में चार न्यूरोलॉजिकल जोखिम सबसे मुश्किल होते हैं जिनमें – रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी (आरओपी), ब्रोंकोब्रोंकोपल्मोनरी डिस्प्लेसिया (बीपीडी), नेक्रोटाइजिंग एंटरोकोलाइटिस (एनईसी), और इंट्रावेंट्रिकुलर हैमरेज (आईवीएच) शामिल हैं।
बचाव के उपाय
महिलाओं को दो बच्चों के बीच में कम से कम तीन वर्ष का अंतराल रखना चाहिए, गर्भावस्था के दौरान नियमित जांच करवानी चाहिए, समय से पूर्व प्रसव पीड़ा होने पर एक घंटे के अंदर चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए।
भारत में पांच साल की उम्र तक होने वाली मौत
पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर के मामले में भारत 200 देशों की सूची में 59वें स्थान पर है। भारत की तुलना में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर वाले अधिकांश देश अफ्रीका से हैं। भारत में 2021 में पांच साल की उम्र तक प्रति 1000 जीवित जीवित जन्मों पर 30.6 मौतें हुईं, जबकि अमेरिका में यह 6.2, ऑस्ट्रेलिया में 3.7, चीन में 6.9 और रूस में 5.1 थी।
कौन होते हैं समय पूर्व जन्मे बच्चे
समय से पूर्व जन्म लेने का मतलब यह है कि ये बच्चे गर्भावस्था के 37 सप्ताह पूरे होने के पहले ही पैदा हो जाते हैं. गर्भावधि उम्र के आधार पर, समय से पहले जन्म की उप-श्रेणियां होती हैं –
1- समय से बहुत ज्यादा पहले (28 सप्ताह से कम)
2- समय से बहुत पहले जन्म (28 – 32 सप्ताह)
3- मध्यम से देर समय से पहले (32 – 37 सप्ताह)