उत्तराखंड में RTE Admission में एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। पिछले वर्ष के मुकाबले इस साल आरटीई के तहत स्कूलों में प्रवेश लेने वाले बच्चों की संख्या में खासी कमी दर्ज की गई है। आंकड़ों के मुताबिक राज्य में इस बार 11347 सीटें कम हुईं हैं। जिन शिक्षा अधिकारियों पर इस कानून का पालन कराने की जिम्मेदारी है, वह बेफिक्र हैं। इन्होंने समय पर स्कूलों को आरटीई के दायरे में लाने की न कोशिश की न ही मॉनिटरिंग। इसका परिणाम सबके सामने है। उत्तराखंड में RTE की सीटों में भारी कमी दर्ज की गई। बतादें कि यह योजना वंचित बच्चों के लिए है। सरल भाषा में कहा जाए तो अधिकारियों की लापरवाही के कारण इन बच्चों का हक मारा गया है।
भारत में शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम 2009 में लागू किया गया। शिक्षा को 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए मौलिक अधिकार की श्रेणी में रखा गया है। इसमें प्राथमिक स्तर की शिक्षा निशुल्क देने का प्रावधान है। इसके साथ ही दिव्यांग बच्चों को 18 वर्ष तक निशुल्क शिक्षा का अधिकार है। विद्यालय को कुल छात्र संख्या की 25 प्रतिशत सीटों पर आरटीई के तहत प्रवेश देना अनिवार्य है। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग शर्तें हैं। अनुच्छेद 21ए यह गारंटी देता है कि राज्य द्वारा निर्दिष्ट आयु वर्ग के बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा निशुल्क होनी चाहिए। इस अधिनियम का उद्देश्य वित्तीय बाधाओं को दूर करना है, जो शिक्षा में बाधा बन सकती हैं। अनुच्छेद 21ए के प्रावधानों को लागू करने की जिम्मेदारी संबंधित राज्य सरकारों की है।
सबसे अधिक सीटें हरिद्वार, देहरादून और उधम सिंह नगर में
प्रदेश की बात करें तो आरटीई की सबसे अधिक सीटें, हरिद्वार, देहरादून और उधम सिंह नगर में हैं। इन जिलों में निजी स्कूलों की संख्या भी सर्वाधिक हैं। लेकिन, इस बार कुल निजी विद्यालयों में से करीब पचास प्रतिशत विद्यालयों ने ही आरटीई के लिए आवेदन किया। शिक्षा विभाग प्रतिवर्ष आरटीई के तहत प्रवेश के लिए पूरा प्रारूप जारी करता है। सबसे पहले निजी स्कूलों को आरटीई पोर्टल पर आवेदन करना होता है कि वह विद्यालय आरटीई के दायरे में आता है। आवेदन के पात्र वही विद्यालय होते हैं, जिन्हें मुख्य शिक्षा अधिकारी कार्यालय से मान्यता प्राप्त हो। विद्यालय को कुल छात्र संख्या का 25 फीसदी सीटों पर आरटीई के तहत प्रवेश देना अनिवार्य है। इन बच्चों की फीस सरकार द्वारा दी जाती है। बतादें कि, सरकार जब पैसे देती है तो स्कूल फिजूलखर्ची दिखा मनमाफिक पैसे नहीं वसूल पाते हैं। यही वजह है कि स्कूल आरटीई के तहत एडमिशन देने से बचते हैं।
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पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन है
आरटीई के तहत प्रवेश प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन है। राज्य परियोजना निदेशक समग्र शिक्षा इस पूरी प्रक्रिया को संचालित करता है। राज्य से जितने ज्यादा विद्यालय आरटीई के लिए आवेदन करेंगे सीटें भी उसी के अनुरूप बढ़ेंगी। कहा जा रहा है कि इस बार राज्य में अगर सीटें घटीं हैं तो कहीं न कहीं जिला स्तरीय शिक्षा विभाग इसके लिए जिम्मेदार है। पिछले वर्ष 34 हजार से अधिक सीटें आरटीई के दायरे में थी और इस वर्ष करीब 23 हजार से भी कम रही। देखा जाए तो 11 हजार से अधिक सीटें इस बार कम हुई हैं। इस योजना के लिए आवेदन फार्म तीन अप्रैल से 21 अप्रैल के बीच लिए गए थे। उत्तराखंड जैसे छोटे राज्यों के लिए यह एक बड़ा आंकड़ा है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अपर राज्य परियोजना निदेशक,समग्र शिक्षा डॉ. मुकुल कुमार सती ने कहा है कि पिछले वर्ष के मुकाबले सीटें कम हुईं हैं। इसे दिखाया जा रहा है।
जिलेवार स्कूलों में घटी आरटीई की सीटें
जनपद वर्ष 2023 वर्ष 2024
हरिद्वार 8,124 4,112
यूएसनगर 7,546 6,544
देहरादून 6,297 4,999
नैनीताल 3050 2,195
अल्मोड़ा 1581 827
पिथौरागढ़ 1492 794
टिहरी 1422 567
पौड़ी 1406 802
उत्तरकाशी 973 600
बागेश्वर 667 295
रुद्रप्रयाग 624 104
चम्पावत 564 458
चमोली 484 586
कुल 34,230 22,883