चीन में उत्तराखंड के साथ ही पूरे भारत की संस्कृति के संदेश वाहक अगर कोई हैं तो वो हैं देव रतूड़ी (Dev Raturi)। यह बात 1993 की है। टिहरी के घनसाली ब्लॉक केमरिया सौड़ गांव से बहुत सारे सपने लेकर युवा देव रतूड़ी अपने घर से निकले। पहले दिल्ली फिर मुंबई, दोबारा दिल्ली और उसके बाद वो पहुंच गए चीन। चीन में दो दशक का सफर तय करने के बाद Dev Raturi आज चीन में इंटरप्रेन्योर है। उनकी चीन में काफी सारे होटल्स की चैन हैं। इतना ही नहीं उन्होंने काफी सारी चीनी फिल्मों में भी काम किया है।
46 साल के द्वारिका प्रसाद रतूड़ी को आज दुनिया देव रतूड़ी के नाम से जानती है। कभी आर्थिक तंगी के बीच दसवीं तक पढ़ाई करने वाले देव दिल्ली के कापसहेड़ा में दूध की डेयरी पर काम करते हैं, तब उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि नियति उन्हें एक दिन चीन में जाना-पहचाना चेहरा बना देगी। जब अतुल्य उत्तराखंड-तीरंदाज.कॉम की टीम ने उनसे पूछा कि आपने आर्थिक तंगी से घर छोड़ा और फिर फिल्मों के लिए दिल्ली। आप निकले तो थे हीरो बनने लेकिन आपकी यह यात्रा बिजनेस तक कैसे पहुंच गई? इस सवाल के जवाब में देव ने कहा, सन 1998 में बॉलीवुड से इंस्पायर होकर मैं बॉम्बे गया था। लेकिन जब पहली बार मैं कैमरे के सामने गया तो मेरे पैर कांपने लगे और फिर मैं वहां से वापस दिल्ली आ गया। दिल्ली में कुछ दिन काम करने के बाद मुझे चीन जाने का मौका मिला। जिसके बाद में चीन पहुंच गया। चीन में कई सालों तक रेस्त्रां लाइन में काम करने के बाद एक बार किसी डायरेक्टर ने एक छोटे से रोल में एक्टिंग करने के लिए कहा। ऐसे मुझे दोबारा एक्टिंग का मौका मिला और मैंने सोचा कि एक बार और कोशिश करते हैं। और इस बार की कोशिश कामयाब हो गई। इस तरीके से मेरा एक्टिंग कैरियर शुरू हुआ।
क्या आपने पहले से सोचा था कि आपको चीन जाना है, क्योंकि आपने मार्शल आर्ट भी सीखी है। ऐसा कहा जाता है कि अगर आपको भारतीय फिल्मों में काम करना है तो आपको डांस आना चाहिए ठीक वैसे ही कहा जाता है कि अगर आपको चाइनीज फिल्मों में काम करना है तो आपको मार्शल आर्ट आना चाहिए। तो क्या चीन जाना डिसाइडेड था या इसे डेस्टिनी कहा जा सकता है? इस सवाल पर देव कहते हैं, आप जो भी प्लान करते हैं लेकिन ऊपर वाले के पास आपके लिए उससे बेहतर कुछ प्लान होते हैं। सब उनके हिसाब से होता है। मैं ब्रूस ली से बहुत ज्यादा इंस्पायर था और मेरा यह प्लान था कि मैं मार्शल आर्ट सीखूंगा और मार्शल आर्ट का एक स्कूल चलाऊंगा। लेकिन एक्टिंग का मैंने कभी नहीं सोचा था। जब बॉम्बे गया तो वहां मुझे लगा कि मैं एक्टिंग थी कर सकता हूं। जब वहां कुछ नहीं हुआ तो वापस दिल्ली आया और एक्टिंग का मेरा सपना टूट गया। लेकिन 20 साल बाद मुझे फिर से एक्टिंग का चांस मिला। मेरा सपना टूटा जरूर था लेकिन एक्टिंग का जुनून दिल में जिंदा था।
चीनियों को ध्यान योग के बारे में जानने में बहुत ज्यादा दिलचस्पी है। उन्हें भारत का कास्ट सिस्टम, स्पिरिचुअल नॉलेज और पहनावे में इंटरेस्ट है,क्योंकि हमारे रेस्त्रां में भी थीम है कि अगर आप एडवांस बुकिंग करेंगे तो आपको पहनने के लिए साड़ी दी जाएंगी। इस वजह से रेस्त्रां में सैकड़ो लोग आते हैं। – देव रतूड़ी, व्यवसायी एवं अभिनेता
देव का एक्टिंग का सपना मुंबई में पूरा नहीं हुआ वह चीन में पूरा हुआ। इस बात को वो भी मानते हैं। उन्होंने बताया कि शुरुआत में तो मैंने ऐसा नहीं सोचा था। लेकिन जब मैंने 8-10 फिल्में की तो उसके बाद मुझे हॉलीवुड से ऑफर आया और मैंने एक फिल्म में एस्ट्रोनॉट का रोल किया। इसके बाद मुझे लगा कि अब मुझे बॉलीवुड में भी काम मिल सकता है।
देव रतूड़ी भारतीय संस्कृति से संबंधित कई तरह के कार्यक्रम करवाते रहते हैं। ऐसे ही चीन में रेड फोर्ट बनवाने का क्रेडिट भी देव रतूड़ी को जाता है। वह कहते हैं, ज्यादातर चीनी को पता है कि लाल किला एक बड़ा मोन्यूमेंट है और वहां भाषण दिया जाता है। तो मुझे लगा भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए यह नाम बेस्ट है। इसलिए लाल किला और राजा मानसिंह द्वारा बनाया गया अंबर फोर्ट के नाम पर अंबर पैलेस नाम को रजिस्टर करवाया। 2013 में लाल किला के नाम से हमारी कंपनी की शुरुआत हुई। इस तरीके से एक लाल किला इंडिया में है और चीन में जो लाल किला है, वह हमारा है।
जब हमने अंबर पैलेस की जर्नी का जिक्र किया तो उन्होंने कहा, हमने रेड फोर्ट रेस्त्रां को एक कल्चरल रेस्त्रां थीम के साथ शुरू किया। यहां लोग इंडिया के कलर और इंडिया को एक्सपीरियंस करने के लिए आते हैं। इस आईडिया के साथ लाल किला रेस्त्रां चल पड़ा। इसके बाद हमने कई सारे रेस्त्रां खोले लेकिन कोविड-19 के दौरान कई सारे रेस्त्रां बंद भी हो गए। कोविड-19 के बाद हमने सोचा कि अब हम अपने रेस्त्रां को अपग्रेड करते हैं। अपग्रेड करने के लिए हमने रेस्त्रां में दरवाजे, खिड़की, पिलर, लाइव किचन, साड़ियां, इंडियन हैंडीक्राफ्ट लॉन्च किया। और त्योहार तो हम अपने रेस्त्रां में मानते ही हैं। इस तरीके से रेड फोर्ट का अपग्रेडेड वर्जन है अंबर पैलेस।
चीन के बारे में बहुत सारी धारणाएं हैं। ऐसे ही कुछ भारत में भी हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि चीन के बारे में आप बहुत कम जानते हैं। हमने भी पूछ लिया कि ऐसी क्या चीजें हैं जो आम लोग चीन के बारे में नहीं जानते हैं। उन्होंने कहा, मुझे ऐसा लगता था कि हर चीनी को मार्शल आर्ट आता है। ऐसा नहीं है, चीनी को भी लगता है कि बाबा रामदेव की तरह हर एक इंडियन योग करता है। दूसरी धारणा यह है कि सभी को लगता है कि चीन में गरीबी है और सबके लंबे-लंबे बाल हैं। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। वहीं सबको लगता है कि चीनियों की हाइट और आंखें छोटी होती हैं। ऐसा भी नहीं है, उनकी हाइट बहुत ज्यादा होती है और उनकी आंखें भी बड़ी-बड़ी होती हैं। लेकिन आज सोशल मीडिया इतना पावरफुल हो गया है कि हम एक दूसरे के बारे में सही तरीके से जान पा रहे हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि कोई चीनी मुझे इंडिया में हुई घटना के बारे में बताता है।
भारत-चीन के तनावपूर्ण रिश्तों पर देव कहते हैं, आम लोगों के बीच ऐसा कुछ भी नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि चीन का मीडिया इस तरह की सेंसिटिव न्यूज़ को किसी भी प्लेटफार्म पर नहीं डालता है। मुझे 18 साल हो चुके हैं चीन में लेकिन आज तक मुझे इस तरह की कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा, बल्कि वहां लोग मदद के लिए आगे आते हैं। डोकलाम विवाद के समय कई चीनी दोस्तों के फोन आते थे कि रेस्त्रां ठीक से चल रहा है या नहीं। पूछते थे कि मैं आ जाऊं और अक्सर ऐसा होता था कि वह अपने परिवार के साथ मेरे रेस्त्रां में खाना खाने के लिए आ जाते थे। इस तरीके से वह हमेशा मदद के लिए आगे रहते हैं। चीन की जनता जागरुक है। गवर्नमेंट अपने तरीके से काम करती है। वहां सभी लोग अपनी लाइफ में बिजी हैं। अगर फैमिली में चार सदस्य हैं तो चारों लोग काम करते हैं। उन्हें सिर्फ कम से मतलब है।
चीन के लोगों की भारत को जानने में दिलचस्पी के सवाल पर देव कहते हैं, चीनियों को ध्यान योग के बारे में जानने में बहुत ज्यादा दिलचस्पी है। उन्हें भारत का कास्ट सिस्टम, स्पिरिचुअल नॉलेज और पहनावे में इंटरेस्ट है। क्योंकि हमारे रेस्त्रां में भी थीम है कि अगर आप एडवांस बुकिंग करेंगे तो आपको पहनने के लिए साड़ी दी जाएंगी। इस वजह से रेस्त्रां में सैकड़ो लोग आते हैं।
इस पर हमने एक और सवाल दाग दिया, अगर बात स्पिरिचुअल नॉलेज की आती है तो वहां पर मोंक है एक तरीके से कहा जा सकता है कि चीन मेडिटेशन का हब है, लेकिन बावजूद इसके उन्हें इंडिया के स्पिरिचुअल टेक्नीक्स में ही क्यों दिलचस्पी है? उन्होंने बताया, ऐसा इसलिए है क्योंकि इसकी रूट भारत में है। जैसे चीजों को जानने के लिए ह्वेन त्सांग भारत में नालंदा विश्वविद्यालय में आए थे। क्योंकि भारत में ही बौद्ध धर्म का जन्म हुआ। और यहीं से बौद्ध धर्म चीन गया इसलिए वहां की यंग जनरेशन जब अपने धर्म के बारे में ढूंढते हैं तो उसके रूट उन्हें इंडिया में मिलती है।
देव ने रतूड़ी फाउंडेशन के नाम से एक पहल की है और वह टिहरी में शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर काम कर रहे हैं। इस पर उन्होंने कहा, यह एक लंबी कहानी है। हम पिछले 23 सालों से शिक्षा के क्षेत्र में यह काम कर रहे हैं। जब मैं छोटा था तब गरीबी के चलते स्कूल के लिए फीस नहीं हुआ करती थी। जब मैं गांव से रोते हुए स्कूल के लिए जाता था तो लोग मुझसे पूछा करते थे कि तुम क्यों रो रहे हो? जब मैं उन्हें बताता था की फीस के लिए पैसे नहीं है तो गांव वाले मेरी कुछ ना कुछ मदद करते थे। मेरी एजुकेशन पैसों के कारण कंप्लीट नहीं हो पाई। इसलिए अब मैं यह नहीं चाहता कि कोई भी बच्चा पैसों के कारण अपनी शिक्षा पूरी न कर सके। रतूड़ी फाउंडेशन का आइडिया वहां से आया। पिछले 23 सालों से मैं हर मंगलवार को व्रत रखता हूं। मैं फल तक नहीं खाता हूं। उस दिन का जो पैसा होता है मैं उसे किसी गरीब बच्चे की शिक्षा के लिए रखता हूं। ऐसा तब तक था जब तक मैं जॉब कर रहा था। लेकिन जब मैंने अपना काम शुरू किया और धीरे-धीरे कंपनी ग्रो करने लगी, आज मेरे पास 70 से ज्यादा एम्पलाई हैं, 50 उत्तराखंड से हैं और लगभग 20- 30 चीनी हैं। अब जब कंपनी आगे बढ़ रही है तो मैंने रतूड़ी फाउंडेशन की स्थापना की। इस फाउंडेशन के जरिए में टिहरी में जितने भी स्कूल है वहां बच्चों को बेसिक शिक्षा और फूड मिल सके इसके लिए कम कर रहा हूं। इसी तरह चीन में भी अंबर पैलेस के माध्यम से रतूड़ी फाउंडेशन के द्वारा हर गुरुवार को 30 से लेकर 150 पोर्शन मील होमलेस लोगों के लिए जाता है। मैं समझता हूं कि यह हमारी सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी है। हम जो ले रहे हैं वह देने की भी कोशिश करते हैं। हमारे प्रयास है कि बैलेंस बना रहे।
देव को चीन में 20 साल का वक्त हो चुका है, जब हमने उनकी जर्नी के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा,…उत्तराखंड से हमारी जड़ें बहुत मजबूत हैं। जिन परेशानियों से हम निकल कर आए हैं उन्हें भूलना असंभव है। अगर वह स्ट्रगल नहीं होता तो आज इस तरह के थॉट्स नहीं होते। जिस तरीके से आज हम अपनी संस्कृति के साथ मजबूती से खड़े हुए हैं। हमारे अंदर धैर्य है, सपने हैं, उन्हें पूरा करने की ताकत है, वह ताकत उन परेशानियों से आई हैं जो हमने बचपन में झेली थीं। अगर आप अपनी संस्कृति से जुड़े हैं और आपको अपनी जगह पता है तो इंसान कहीं भी पहुंच सकता है।
वह उत्तराखंड को लेकर भी काफी सजग नजर आते हैं। कहते हैं, अगर आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो उत्तराखंड बहुत ही बढ़िया कर रहा है। लेकिन अगर आपको लंबी उड़ान भरनी है तो बैलेंस बहुत ज्यादा जरूरी है। वैसे ही आध्यात्मिक के साथ ही औद्योगिक दृष्टि से देखें तो उत्तराखंड में अपार संभावनाएं हैं। लेकिन हम उसका इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। मैं अपनी बात करूं तो वह बच्चा जिसके पैर में चप्पल नहीं थी और स्कूल में देने के लिए फीस नहीं थी वह आज 100 लोगों को रोजगार देने में सक्षम है। हमने अपनी संभावनाएं देखी। यही उत्तराखंड में करने की भी जरूरत है। उत्तराखंड में अगर टूरिज्म के बात की जाती है तो उत्तराखंड स्वर्ग है। यह देवभूमि है, यहां चार धाम है। अब सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी बेहतर कम कर रही है। यहां पर हाईवे बन रहे हैं। गवर्नमेंट अपने लेवल पर कम कर रही है लेकिन सिर्फ गवर्नमेंट के काम करने से नहीं होगा। हर एक व्यक्ति को अपनी संभावनाएं भी तलाशनी होंगी। हर एक इंडिविजुअल को जागरूक होना पड़ेगा। अगर यहां का एक-एक युवक अपना 100 परसेंट दे तो स्विट्जरलैंड जाने की जरूरत नहीं है।