Health Sector : नौ महीने में 150 से ज्यादा सैंपल फेल। उत्तराखंड के पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में बनी दवाओं की गुणवत्ता पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। हालात यह हो गए हैं कि घरेलू बाजार में यहां की दवाओं की मांग तेजी से घटी है। कंपनियों को ऑर्डर मिलने कम हो गए हैं। मांगने में अखबारों की कटिंग व वेबसाइटों का स्क्रीन शॉट भेजे जा रहे हैं। अपना उत्तराखंड भी दवा उत्पादन का हब बन रहा है। इसलिए यहां के उद्यमियों को भी सर्तक रहना होगा। हालांकि, यहां की अधिकतर कंपनियां यूएस एफडीए अप्रूव्ड हैं। यानी, कई स्तर पर परीक्षण के बाद बाजार में पहुंच रही हैं। इन दवाओं को अमेरिका में भी भेजा जाता है।
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विशेषज्ञ बताते हैं, फार्मा सेक्टर में निपुण कर्मचारियों की कमी है। इसके अलावा कुछ दवा निर्माता कंपनियां मुनाफा कमाने के लिए सब स्टैंडर्ड दवाएं बना रही हैं। इसका खामियाजा हिमाचल उठा रहा है। सवाल पूरे उद्योग पर खड़ा हो गया है। इसका असर दिखने लगा है। एक बार नाम खराब हो गया तो व्यापार करना मुश्किल हो जाएगा। बतादें कि हिमाचल ने दवा उद्योग को काफी रियायते देकर लुभाया था। यहां पर बड़ी-बड़ी कंपनियां आईं। जीएसटी लागू होने के बाद यह उद्योग देश के दूसरे हिस्सों में भी फैलने लगा। साथ ही हिमाचल की दवाओं की गुणवत्ता पर सवाल उठने के बाद कोई कंपनी यहां पर आने से कतराने लगी है। क्यों कि विश्वसनियता बड़ी चीज होती है। दवाओं के मामले में लोग ज्यादा संवेदनशील होते हैं।
मेडिकल इंडस्ट्री से जुड़े लोग बताते हैं कि हिमाचल में देश की 40 फीसदी दवाएं बनती हैं। ऐसे में दवाओं का मानक पर न उतरना चिंताजनक बात है। विशेषज्ञ बताते हैं कि कंपनियों को कंपीटेंट कर्मचारी नहीं मिल रहे हैं। इसके अलावा जिन लोगों ने दवाएं बनाने की फैक्ट्री डाल रखी है, उन्हें भी इस सेक्टर के बारे में कम ही जानकारी है।
उत्तराखंड में भी बढ़ रहा फार्मा सेक्टर
हरिद्वार, सेलाकुई और पंतनगर में 249 ड्रग्स निर्माता फार्मा कंपनियां हैं। देश में निर्मित होने वाली कुल दवाओं के उत्पादन में उत्तराखंड का योगदान लगभग 20 प्रतिशत है। औद्योगिक नीति के तहत एकल खिड़की योजना के तहत उद्योगों ऑनलाइन अनुमति दी जाती है। यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में यहां पर कई बड़ी कंपनियां आई हैं। फार्मा कंपनियों के लिए ऑनलाइन लाइसेंस प्रक्रिया होने के कारण आवेदन की जटिलता को समाप्त किया गया है। दवाइयों की गुणवत्ता के लिए केंद्र व राज्य सरकार के संयुक्त निरीक्षण करने के बाद लाइसेंस जारी किए जाते हैं। हिमाचल प्रदेश में बनी दवाओं के सैंपल फेल होने से यहां उद्यमियों को भी सतर्क रहने की जरूरत है।
देश में कुल उत्पादन का 20 प्रतिशत दवाइयां उत्तराखंड बना रहा है। औषधि निर्माण में राज्य देश का प्रमुख हब के रूप में विकसित हो रहा है। 2022 में राज्य के फार्मा सेक्टर ने 15 हजार करोड़ रुपये का कारोबार किया। इसमें 1150 करोड़ की दवाइयां निर्यात की गईं।
हार्ट अटैक, शुगर व कैंसर की दवाएं भी हुई हैं फेल
कुछ दिन पहले ही हिमाचल प्रदेश में बनीं हार्ट अटैक, ब्लड शुगर और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों समेत कुल 23 दवाएं मानकों पर सही नहीं पाई गई थी। जबकि देशभर में कुल 67 दवाओं के सैंपल फेल हुए थे। केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) और स्टेट ड्रग कंट्रोलर की ओर से दवाओं के सैंपल लिए गए थे। सीडीएससीओ के 49 में से 20 और ड्रग कंट्रोलर के 18 में से 3 दवाओं के सैंपल फेल हुए थे। 23 में से 12 सोलन, 10 सिरमौर और एक दवा कांगड़ा में बनी थीं। ड्रग कंट्रोलर की ओर से इन दवाओं को बनाने के लाइसेंस भी रद्द कर दिए गए थे। ड्रग कंट्रोलर ने कंपनियों को दवाओं का स्टॉक भी वापस मंगवाने के निर्देश दिए थे।