उत्तराखंड के गवर्नर लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (रिटायर्ड) ने बुधवार को सगंध पौधा केंद्र यानी Centre for Aromatic Plants (कैप) देहरादून का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने कैप द्वारा आधुनिक तकनीक पर तैयारी की गई नई नर्सरियों का निरीक्षण किया। उन्होंने कैप के वैज्ञानिक शोधों को सराहा साथ ही संस्थान को 108 पेटेंट और 108 एमओयू का लक्ष्य भी दिया। इस दौरान उन्होंने कहा कि आने वाले समय में सगंध की खेती में उत्तराखंड को विश्व के पटल पर स्थापित करना लक्ष्य होना चाहिए। इसका परिणाम आने वाले समय में बहुत चमत्कारिक होने वाला है। उन्होंने कहा कि पहाड़ की महिलाएं दुनिया भर में सबसे अलग हैं। उनकी तरह कोई मेहनत नहीं कर सकता है। सगंध की खेती से इन्हें जोड़ें। इससे बड़ा लाभ होगा। उन्होंने युवाओं से भी आह्वान किया कि इस क्षेत्र में स्टार्टअप की संभावना बहुत ज्यादा है। कहा कि मैं जब भी किसी विश्वविद्यालय में जाता हूं तो युवाओं के उत्साह को देखकर खुशी होती है। उनमें कुछ करने का जज्बा है। संस्थान को इस दिशा में कुछ काम करना चाहिए।
इससे पहले कैप के वैज्ञानिकों ने राज्यपाल को आधुनिक नर्सरियों के बारे में जानकारी दी गई। साथ ही वैज्ञानिक डॉ. पंकज बिल्जवाण ने स्लाइड शाे के जरिये संस्थान की ओर से पूरे राज्य में किए जा रहे कार्यों के बारे में बताया । कैप के निदेशक नृपेंद्र चौहान ने बताया कि राज्यपाल ने शोध कार्यों में काफी रुचि दिखाई। इस अवसर पर संस्थान के कई वैज्ञानिक उपस्थित थे। बताते चले कि कैप उत्तराखंड के विभिन्न इलाकों में हजारों के किसानों के साथ मिलकर काम कर रहा है। किसानों को सगंध की खेती करने के लिए प्रोत्साहित भी करता है। इसकी स्थापना का उद्देश्य ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुगंधित तेलों में उत्तराखंड की पहचान स्थापित करना था।
भारत के साथ पूरी दुनिया में सुगंधित पौधों की मांग लगातार बढ़ रही है। अपने देश में सगंध पौधों से बनी दवाओं का कारोबार लगभग लगभग आठ हजार करोड़ रुपये का है। कम होते जंगलों के कारण प्राकृतिक रूप से औषधीय पौधों की मांग को पूरी कर पाना कठिन हो रहा है। इसलिए सरकारें औषधीय खेती को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कार्यक्रम चला रही हैं। यही कारण है कि एरोमा सेक्टर एक बड़े उद्योग के रूप उभर कर सामने आ रहा है। उत्तराखंड की बात करें तो देहरादून के सेलाकी में स्थापित Centre for Aromatic Plants (कैप) के प्रयासों के कारण राज्य में करीब 20 हजार किसान संगध पौधों की खेती से जुड़ चुके हैं। बताया जा रहा है कि इससे उन्हें अच्छी आमदनी भी हो रही है।
क्या है सगंध पौधा
सगंध के पौधों का इस्तेमाल भोजन, औषधि, खुशबू, स्वाद, रंजक और चिकित्सा पद्धतियों में में किया जाता है। औषधीय पौधों का महत्व उसमें पाए जाने वाले रसायन के कारण होता है। इसके अलावा इसका कई अन्य व्यावसायिक उपयोग भी किया जाता है।
दस हजार रुपये में बिकता लैवेंडर का तेल
किसानों को लैवेंडर फूलों की फसल से काफी लाभ मिल रहा है। इसके फूलों की प्रोसेसिंग के बाद निकाला जाने वाला तेल 10,000 रुपये प्रति किलो तक बिकता है। वर्तमान में भारत वैश्विक स्तर पर औषधीय और सुगंधित पौधों सहित कच्ची दवाओं के प्रमुख निर्यातकों में से एक है। इसमें उत्तराखंड राज्य अग्रणी है। इसलिए उत्तराखंड सरकार ने 2011 में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली उत्तराखंड औद्योनिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय की स्थापना की। यह यूनिवर्सिटी इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
सिनेमन व सुरई पर भी काम शुरू
टिमरू से इत्र और परफ्यूम तैयार करने के बाद Centre for Aromatic Plants (कैप) ने सिनेमन व सुरई पर भी काम शुरू कर दिया है। सिनेमन (तेजपात) व सुरई के कृषिकरण पर भी ध्यान देना शुरू कर दिया है। इससे इत्र, परफ्यूम व अन्य उत्पादों के लिए कच्चे माल की उपलब्धता सुलभ हो सकेगी। 2023 में डेस्टिनेशन उत्तराखंड के वैश्विक निवेशक सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह को यह पौधा भेंट किया गया था। प्रधानमंत्री मोदी ने टिमरू के इत्र व परफ्यूम के लिए फ्रांस की कंपनियों से टाइअप की संभावनाएं तलाशने का सुझाव उत्तराखंड शासन को दिया था। इसके बाद अत्याधुनिक प्रयोगशाला में अब सिनेमन और सुरई से भी इत्र, परफ्यूम के अलावा औषधीय उत्पाद तैयार करने के संबंधी कार्य प्रारंभ कर दिए गए हैं। बतादें कि सगंध पौधा केंद्र की जिस अत्याधुनिक प्रयोगशाला में यह शोध किया जा रहा है उसका दो साल पहले पीएम मोदी ने उद्घाटन किया था। इससे शोध कार्यों में तेजी आई है।