…जो शख्स शिद्दत से अपने बीते समय को याद करता हो उसके पास न जाने कितने किस्से होंगे कहने-सुनाने के लिए…। अफसोस अब ये किस्से कोई नहीं सुना पाएगा। घनानंद गगोड़िया यानी घन्ना भाई (Ghanananda Ghanna) …अपने साथ ही उन तमाम किस्सों को ले गए, जो चाहकर भी किसी को सुना नहीं पाए। मुझे हमेशा ये लगता है कि जो शख्स चेहरे पर मुस्कान लिए दूसरों को हंसाता है, वह अपने अंदर दुख का समंदर छिपाए रखता है। यही रंगमंच है, यही अभिनय है। लैंसडान में रामलीला में बंदर, रावण के सेनापति और राक्षस के पात्र निभाने से शुरू हुआ मंच पर रंग जमाने का सिलसिला उनके चले जाने के साथ ही थम गया।
मेरी बड़ी चाहत थी, मैं घन्ना भाई की जिंदगी के कुछ पन्नों को पलटूं। जब भी किसी कार्यक्रम में मुलाकात होती, मैं उनसे कहता घन्ना भाई एक इंटरव्यू तो बनता है। काफी समय तक प्रयास किया। वह अक्सर यह कहकर टाल देते, फिर कभी करेंगे,अभी नहीं। प्रशांत से भी कई बार कहा, पिताजी से बात करो, वह भी कहता उनको मनाना मुश्किल है। खैर…लंबी कोशिशों के बाद एक दिन फोन कर उनसे मिलने चला गया। इस बात को छह महीने से ज्यादा का वक्त हो गया है। घर के बाहर ही टहल रहे थे, सर्दियों के ही दिन थे, सो बाहर ही बैठ गए। शुरुआती झिझक के बाद मैंने एक बार फिर उनसे वही बात कही…। बोले, पहले चाय पीते हैं…बहरहाल, चाय की चुस्कियों के साथ बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। उन्होंने पूछा, कहां से हो, मैंने कहा, मेरी तहसील धुमाकोट है और गांव सिरखेत है। उनके चेहरे पर एक अलग सी चमक आ गई…। तुरंत बोले, मैंने तो वहां काफी समय तक काम किया है। बस फिर क्या था…। एक के बाद एक कई किस्से उन्होंने सुना दिए…। एक किस्सा सुनाते समय उनके चेहरे के भाव कुछ अलग ही थी, उन्होंने बताया कि बहुत शुरुआती दौर की बात है, एक बार में घर से निकला तो रास्ते में पता चला कि मेरे पास तो पैसे ही नहीं हैं। धुमाकोट जा रहा था…। उस समय एक बस ही चलती थी। मैंने सोचा जब तक बस आती है, तब तक पैदल चलता हूं, जब बस मिलेगी तो कंडक्टर से बोल दूंगा कि आगे पहुंचकर टिकट के पैसे दे दूंगा। काफी देर तक पैदल चलने के बाद पीछे से बस आ गई। मैंने हाथ दिया तो बस रुक गई। मैं भी बस में बैठ गया। कंडक्टर ने टिकट मांगा, मैंने कहा, अभी पैसे नहीं हैं, उतरते समय किसी से लेकर दे दूंगा। कंडक्टर को पता नहीं क्या लगा, उसने कहा, पैसे नहीं हैं तो गाड़ी से उतर जाओ। वह मुझे जबरदस्ती गाड़ी से उतारने लगा। तभी गाड़ी में बैठे एक सज्जन ने मेरा हाथ पकड़कर बैठा लिया। कंडक्टर से कहा, कितना किराया होता है इनका। वो बोला – एक रुपये। उन्होंने पैसे निकाले और टिकट ले लिया। मैंने उनका धन्यवाद दिया और कहा, मैं उतरते ही आपको पैसे दे दूंगा। उस शख्स ने कहा, कोई बात नहीं…। घन्ना भाई कहते हैं, वह शख्स मेरे उतरने से पहले ही एक जगह उतर गए। मुझे बड़ा बुरा लगा कि उनके पैसे नहीं लौटाए, लेकिन सोचा कि इस रूट पर आना-जाना तो लगा ही रहेगा, किसी दिन मिलेंगे तो पैसे लौटा दूंगा। वह कहते हैं, आज तक मैं उस शख्स को खोज नहीं पाया। मैं उनका एक रुपये का कर्जदार हूं…। ये कर्जा इतना भारी है कि बता नहीं सकता। इतना कहते ही वह भावुक हो गए।
उन्होंने अपनी शुरुआत, रंगमंच की दुनिया के सफर के बारे में ढेर सारी बातें कीं। उन्होंने एक बात कही, जो मेरे जेहन में आज भी ताजा है। घन्ना भाई ने कहा, पहले मुझे लोगों ने सिर्फ भीड़ जुटाने वाला मसखरा भर समझा लेकिन मैंने अपना रास्ता नहीं बदला, मैं लगा रहा, मुझे पता था कि मेरी शैली एक दिन मुझे लोगों के दिलों में जगह दिलाएगी।
आज घन्ना भाई नहीं हैं, कुछ समय पहले उन्होंने वरिष्ठ पत्रकार मन्नू पंवार को एक साक्षात्कार दिया। मुझे लगा शायद अब मेरा नंबर भी आ जाएगा। लेकिन अब कोई इंटरव्यू नहीं होगा। मुझे एक पत्रकार के तौर पर हमेशा यह मलाल रहेगा, काश मैं उनसे की ढेर सारी बातों को कैमरे में रिकॉर्ड कर पाता। काश! बात करते समय उनके चेहरे पर आने वाले भावों को दुनिया देख पाती। अलविदा घन्ना भाई, आपके साथ बिताए गए वो दो घंटे बेशकीमती रहे, वो ऐसा अनुभव है, जो सिर्फ मेरे पास है।
गढ़वाली के पहले स्टैंडअप कलाकार
वरिष्ठ लेखक एवं संस्कृतिकर्मी डा. नंद किशोर हटवाल के मुताबिक, गढ़वाली के मौखिक भाषा प्रभाव और मिठास को मंचों पर बिखरने वाले अप्रतिम कलाकार घनानंद भाई ने रामलीला के मंच से अपना सफर शुरू किया। विभिन्न रंगमंचों, कैसेट, सीडी, रेडियो, दूरदर्शन, नाटकों, फिल्मों तक का सफर तय करते हुए उन्होंने गढ़वाली भाषा के हास्य-व्यंग्य को देश-दुनिया में लोकप्रियता और पहचान दिलाई। घन्ना भाई ने उस दौर में गढ़वाली भाषा की मौखिक प्रस्तुति को लोकप्रिय बनाया जब आमतौर पर लोग मंच से गढ़वाली बोलने में झिझकते थे। गीत-संगीत के अलावा मंच पर गढ़वाली भाषा के दूसरे स्वरूपों तथा अन्य प्रयोगों का अभाव रहता। मंच से गढ़वाली संवाद, बातचीत, भाषण, संचालन, वक्तव्य आदि मौखिक भाषा के विविध प्रारूप प्रायः नदारद रहते। मंच से गद्य प्रस्तुतियों का अभाव रहता। घन्ना भाई ने पहली बार साबित किया कि गढ़वाली भाषा में भी मंच से गद्य प्रस्तुति और संवादों का धाराप्रवाह और प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता है। गढ़वाली संवादों के माध्यम से श्रोताओं को गुदगुदाया-हंसाया जा सकता है और स्वस्थ मनोरंजन किया जा सकता है। घन्ना भाई को गढ़वाली भाषा का प्रथम स्टैंडअप कॉमेडियन कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी के मंचों पर उनकी खास पहचान और मांग रहती थी। नरेंद्र सिंह नेगी के साथ घन्ना भाई की जुगलबंदी को बहुत पसंद किया जाता। नेगी जी के कई म्यूजिक एल्बम में उन्होंने अभिनय भी किया।
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