पूर्व राष्ट्रपति वैज्ञानिक डॉ. एपीजे Abdul Kalam की शख्सियत ही ऐसी थी कि लोग मुरीद हो जाया करते थे। पूर्व राष्ट्रपति उत्तराखंड के बारे में भी दूरगामी सोच रखते थे। वह उत्तराखंड के पहाड़ों की पथरीली जमीन को हरा-भरा खेती करने लायक बनाना चाहते थे। वह चाहते थे कि पहाड़ों के पथरीले इलाकों में बड़े-बड़े गड्ढे बनाए जाएं और उसमें मिट्टी भरकर फसल उगाई जाए। 16 अक्तूबर 1993 को डॉ. कलाम तत्कालीन थल सेनाध्यक्ष जनरल बीसी जोशी के साथ पिथौरागढ़ आए थे। तब डॉ. कलाम डीआरडीओ में वैज्ञानिक थे।
चार साल बाद फिर वह 7 मई 1997 को पिथौरागढ़ स्थित रक्षा कृषि अनुसंधान प्रयोगशाला के निरीक्षण के लिए आए। उन्होंने तब रक्षा कृषि अनुसंधानशाला के वैज्ञानिकों को लैब टू लैंड का विचार दिया था। तब उन्होंने कुछ पत्रकारों संग बातचीत की थी। इसी दौरान कलाम ने यह बात कही थी। हालांकि, डॉ. कलाम की इस सोच पर अमल नहीं हो पाया। डॉ. कलाम को मिसाइल मैन कहा जाता था लेकिन उन्हें पहाड़ी राज्यों में कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने में भी काफी दिलचस्पी थी। वह उबड़-खाबड़ पहाड़ों में भी फसल उगाने का विचार रखते थे। वह चाहते थे कि पहाड़ों के ढलानों को भी खेती के लायक बनाया जा सकता है और इनका उपयोग हो सकता है। डॉ. कलाम को सिकुड़ती जा रही कृषि योग्य जमीन को लेकर गंभीर चिंता थी।
गढ़-ब्रजघाट गंगानगरी को विकसित करने की थी चाहत
पूर्व राष्ट्रपति ने उपेक्षित गढ़-ब्रजघाट गंगानगरी को हरिद्वार की तर्ज पर विकसित कराने को हरसंभव स्तर पर वार्ता करने का भरोसा भी दिया था। दरअसल, वह 2008 में पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय आए थे। इस दौरान वह दिल्ली-लखनऊ नेशनल हाईवे किनारे गढ़ में स्थित पर्यटन विभाग के राही होटल में करीब 30 मिनट तक ठहरे थे। उन्होंने गंगानगरी के अतीत से जुड़ी बातों को बेहद दिलचस्पी के साथ सुना था। अचानक उनके रुकने पर उस समय होटल कर्मचारियों में भी अफरा-तफरी मच गई थी। उनको देखने के लिए लोगों में भी अलग सी ललक थी।
महान वैज्ञानिक, पूर्व राष्ट्रपति तथा भारत रत्न से अलंकृत “मिसाइल मैन” डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी की जयंती पर कोटिशः नमन।
अंतरिक्ष और रक्षा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आपका योगदान अतुलनीय है। आधुनिक और सशक्त भारत के निर्माण में आपके द्वारा किए गए कार्य हमें सदैव प्रेरित करते… pic.twitter.com/K3fa9sCbCG
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) October 15, 2024
देहरादून में टूटा था सपना
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम एयरफोर्स में पायलट बनना चाहते थे लेकिन उनका चयन नहीं हो पाया था। वह पायलट बनने से केवल एक कदम दूर रह गए थे। मिसाइलमैन ने अपनी पुस्तक ‘माइ जर्नी : ट्रांसफोर्मिंग ड्रीम्स इन टू एक्शन’ में इस बात का जिक्र किया है। पूर्व राष्ट्रपति ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग करने के बाद वे पायलट बनना चाहते थे। उन्होंने लिखा है कि इंजीनियरिंग करने के बाद उनका सबसे पहला और अहम सपना था कि वह पायलट बनें। उन्होंने दो जगह इंटरव्यू दिए। एक इंडियन एयरफोर्स में देहरादून और दूसरा डायरेक्टरेट ऑफ टेक्निकल डेवलपमेंट एंड प्रोडक्शन (डीटीडीपी), रक्षा मंत्रालय। उन्होंने लिखा है कि डीटीडीपी का इंटरव्यू तो आसान था, लेकिन देहरादून में एयरफोर्स का सेलेक्शन बोर्ड चाहता था कि कैंडीडेट की योग्यता और इंजीनियरिंग की नॉलेज के साथ उसकी पर्सनैलिटी स्मार्ट भी हो। डॉ. कलाम ने यहां 25 कैंडीडेट्स में से नौंवा स्थान हासिल किया, जबकि यहां आठ का ही चयन होना था। इस तरह उनका सपना एक कदम दूर रह गया। उन्होंने लिखा है कि वे पायलट बनने के इस सपने को पूरा करने में फेल हो गए। इसके बाद वे दून से ऋषिकेश पहुंच गए, जीवन की नई राह तलाशने के मकसद से। इसके बाद उन्होंने डीटीडीपी में बतौर सीनियर साइंटिस्ट असिस्टेंट ज्वाइन किया।