लोकगायक Ganesh Martolia की बहन और नानी की जंगली मशरूम खाने से मौत हो गई। उनकी नानी और बहन गर्मियों में जोहार क्षेत्र गई हुई थीं। वहां खेत में उगे एक जंगली मशरूम की सब्जी बनाकर खा ली, लेकिन रात होते-होते उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। उल्टी-दस्त शुरू होने पर गांव के रिश्तेदारों की मदद से उन्हें मुनस्यारी अस्पताल ले जाया गया, जो 14-15 किलोमीटर दूर था। वहां रात भर प्राथमिक इलाज के बाद दोनों को पिथौरागढ़ रेफर कर दिया गया। पिथौरागढ़ से भी राहत नहीं मिलने पर उन्हें हल्द्वानी ले जाया गया, लेकिन 250 किलोमीटर के लंबे सफर में उनकी बहन की मौत हो गई और नानी ने भी हल्द्वानी अस्पताल में दम तोड़ दिया। उत्तराखंड में सड़ांध मार रहे हेल्थ सिस्टम की खबरें रोजाना सामने आती हैं लेकिन इस घटना ने हर पहाड़ प्रेमी को झकझोर दिया है।
गणेश मार्तोलिया की फेसबुक वॉल से
मैं आज तक हिमालय को सुकीली सुंदर कहते आया था, लेकिन अंदर से वह कितना टूटा, दुखी और बेबस है, वह अब महसूस कर रहा हूं जब मैं टूट चुका हूं, बेबस हो चुका हूं, बेसहारा हो चुका हूं…।
मेरे आंखों के सामने जो हर दिन नास्टैल्जिया में सफेद पंचाचूली तैरता था, उन तैरती सफेद बर्फ की चादर को अपने गीत में उतारता था, मुझे वह बिल्कुल काला नजर आ रहा है, गोरी नदी से लाल खून बहते हुई नजर आ रही है … डफ़िया मुन्याल, न्योली वन पक्षी की रोने की आवाज़ सुन रहा हूं…
मेरी भुली दिया और मयाली नानी की मृत्यु के साथ ही हिमाल को सुंदर बताने वाली मेरी आवाज की भी मृत्यु हो चुकी है, यह आवाज अब कभी नहीं सुनाई देगी, जब तक कि टूटे,बिखरे ,लाचार हिमाल की बात को कोई धरती के निर्दयी, निर्मम कर्ता-धर्ता सुन ना ले …यह संभव भी नहीं है कि उसकी आवाज सुन ली जाए और यह संभव भी नहीं कि अब मेरी आवाज कोई सुन पाए…।
24 घंटे तक मेरी भुली और नानी उस इनसानी मौत के लिए बने बिल्डिंग में तड़पती रही और अगले 12 घंटे में मेरी भुली नानी ने सांसे छोड़ दी…
मैं और मेरा परिवार नहीं चाहते की इस क्षति का आरोप उस मौत के लिए बनाई गई बिल्डिंग में कार्यरत डॉक्टर्स, नर्स और कार्यकर्ताओं पर पड़े.. उनके पास जिस तरह के भी संसाधन, सोच, समझ और अनुभव था उनका उन्होंने इनका इस्तेमाल किया, भले वह दोनों की जान बचाने के लिए पर्याप्त नहीं थे …।
मुनस्यारी में स्थित उस सरकारी हॉस्पिटल को मौत का बंगला इसलिए कह रहा हूं इसलिए की ऐसा किस तरह का वह हॉस्पिटल है जहां पर रात में मरीजों के साथ उनकी देखरेख के लिए एक चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी को तैनात किया जाता है,
मालूम चला कि उसका काम यह है कि मरीज और तीमारदराज की छटपटाहट के बाद ही वह रात को जाकर नर्स और डॉक्टर के दरवाजे को खटखटाता है …
मेरा आग्रह है की उस मौत के बंगले के बाहर एक नोटिस चिपका दे की “रात्रि में स्वास्थ सेवा उपलब्ध नहीं है,कृपया मरीज अपने स्वास्थ और जीवन की जिम्मेदारी स्वयं ले” जिससे कि उस रात मरीज अपने जीवित रहने की बहुत बड़ी गलफ़हमी में ना पड़े …
इस घटना से मैं जुड़ा हुआ हूं तो इस तरह के हालात से आप लोग जान पा रहे है, वहां के ऐसे ना जाने कितने तमाम बाशिंदे होंगे जिन्होंने भरोसे के लिए एक रात उस मौत के बिल्डिंग में बिताई होंगी और अगली रात उन्हें जीवन में नसीब नहीं हुआ होगा और आगे भी यह जारी रहेगा …।
खैर मैं वहां तैनात डॉक्टर्स और अन्य कर्मचारियों पर किसी भी तरह के लापरवाही के लिए उन्हें दंडित करने की मांग नहीं कर रहा हूं,मैं फिर उस बात को दोहरा रहा हूं कि जितने संसाधन , जितनी समझ ,जितना अनुभव और जितना स्टाफ़ वहां मौजूद होगा उन्होंने अपनी कोशिशें ज़रूर की होंगी …।
बस शासन-प्रशासन एक छोटा सा काम कर दे कि ऐसे दुर्गम क्षेत्रों में रात के अनुपलब्धता के लिए एक नोटिस बोर्ड जरूर चिपका दे, क्योंकि मेरी बहन जो 29 साल की थी अभी उसने आधे से ज़्यादा उम्र बितानी थी और मेरी नानी जिसने मुझे अभी और दुआ देनी थी उन्हें रात के वह 12 घंटे की क़ीमत अपनी ज़िंदगी से चुकानी पड़ गई…।
शासन वाक़ई कितना लाचार है, ग़रीब है असहाय है उसके पास रात की तैनाती के लिए एक नर्स तक रखने के लिए धन नहीं है…।
मुझे माफ़ करना भुली दिया और नानी, मैंने उस अस्पताल के भरोसे पर तुम्हें एक आसान सी मौत दिला दी, भुली तुम तो जानती हो ना कि मैं कितना ज़िद्दी हूं लेकिन समय रहते तुम्हें वहां से निकालने की ज़िद मैं उनसे नहीं कर पाया…
भुली मैं तुम्हारे बेहतर भविष्य के लिए तुम्हें इस छोटे से सफ़र में प्यार देने से ज़्यादा डांट-पटक करते रहा, तुमसे कितना प्रेम था उसे जता भी नहीं पाया, उसकी कसक में ताउम्र मेरा पराण गलते रहेगा, दुखते रहेगा, मुझे माफ कर देना मेरी भुली…।
मैं इस दर्द को शायद धीरे-धीरे भुला लूंगा, लेकिन भुली तुम जहां भी हो एक काम कर देना मां और पिताजी तुम्हारी याद में जिस तरह परहोश हैं, उन्हें ताक़त दे देना …।
नानी तुम तो बिल्कुल एक नटखट बच्चे की तरह थी..तुम्हें चटक हरे रंग की साड़ी पसंद थी , तुम पुराने किस्से कहानी को मेरे पास आकर सुनाती थी, तुम अपने आधे से ज़्यादा टूट चुके दांतों से बात-बात पर ठहाके लगाते हुए दुनिया की सबसे सुंदर स्त्री दिखती थी.. तुम्हारी खुरदरी हथेलियों को अभी भी मैं अपने गालों में महसूस कर रहा हूं नानी..
अब इससे ज़्यादा आगे तुम दोनों को याद नहीं कर पाऊंगा भुली दिया और नानी..और याद करूंगा तो टूट जाऊंगा …।
तुम जहां भी रहो ख़ुश रहना, भुली दिया इस छोटी सी जीवन की तुम्हारी सारी अधूरी ख्वाहिशें अगले जीवन में पूरी हों मेरी दुआएं हैं …।
अब क्या लिखूं यार।