अक्सर हम अपने आसपास मिसालें खोजते हैं, जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में बेहतरीन काम किया हो ताकि, उनसे कुछ सीखा व समझा जा सके। स्वरोजगार को कैसे मॉडल बनाया जा सकता है? छोटी शुरुआत से कुछ बड़ा कैसे पाया जा सकता है। उत्तराखंड के ऐसे रोल मॉडल की खोज में तीरंदाज अर्जुन रावत पहुंचे डोईवाला के झड़ोन। ललित बिष्ट… अब उत्तराखंड के मछली पालन उद्योग (fish farming) के लिए एक जाना पहचाना नाम हो गया है। होटल इंडस्ट्री में काम कर चुके ललित 2016 में छोटे स्तर पर यह स्वरोजगार शुरु किया। अब लाखों में कमाते हैं। उन्हें फिशरिंग डिपार्टमेंट भी रोल मॉडल मानता है। युवाओं को उनके पास ट्रेनिंग के लिए भेजता है। आइए जानते हैं ललित के इस सुनहरे सफर के बारे में…
अच्छी खासी नौकरी छोड़ शुरू किया खुद का काम
कई वर्षों तक होटल इंडस्ट्री में काम करने वाले ललित को अच्छी खासी तनख्वाह मिलती थी। लेकिन वह कहते हैं, अपना काम करने का मजा ही कुछ और है। नौकरी कितनी भी अच्छी हो, आपको वह आजादी या आत्मसंतुष्टि नहीं मिलती जो खुद का काम करने में मिलती है। इसमें आप खुद तो पैसे कमाते ही हो, दूसरों को भी छोटा मोटा काम देने में सक्षम हो जाते हो। नौकरी छोड़ने के बाद वह जब लौटे तो उनके दिमाग में क्या करना है इसका खाका साफ था। वह पूरी प्लानिंग के साथ आए थे। एक हफ्ते तक वह मछली पालन विभाग से प्रशिक्षण लिया। इसके बाद वह डोईवाला के झड़ोन में छोटे स्तर पर मछली पालन की शुरुआत की। पूरी तैयारी के साथ काम शुरू करने का नतीजा यह रहा कि उन्हें शुरुआत में ही लाभ मिला। उनका उत्साह बढ़ गया। इसके बाद वह काम को और विस्तार दे दिया। अब तो वह जीरा (मत्स्य बीज) का उत्पादन भी बड़े पैमाने पर करते हैं। ललित कहते तालाब में आप एक छोटा सा बीज डालते हैं और उसे बड़ा होते देखते हैं, इसका मजा ही अलग है।
देखा देखी नहीं… पूरी तैयारी के साथ करें शुरुआत
ललित का काम अब बड़ा हो चुका है इसके बावजूद वह दूसरों की मदद में पीछे नहीं रहते। मछली विभाग इच्छुक युवाओं को उनके पास ट्रेनिंग के लिए भेजता है। वह मुफ्त में ट्रेनिंग देते हैं। ललित बताते हैं- मछली पालन के लिए बेसिक चीजों की जानकारी आवश्यक है। किसी को सफलता मिली है यह देखकर आननफानन काम शुरू करने की बजाय पर्याप्त जानकारी लेने के बाद ही शुरुआत करें। तालाब की गहराई कितनी हो, उसकी ढलान किस ओर और कितनी होनी चाहिए। ऐसी तमाम बातें हैं जिन्हें काम की शुरुआत से पहले जान लेना चाहिए। इस काम में मैन पावर की उतनी जरूरत नहीं होती जितनी देखभाल की। इसके लिए प्रशिक्षण जरूरी है। मछली का व्यवहार देखकर समझना होता है कि कहीं कोई दिक्कत तो नहीं है। बीमारी होने पर इलाज तुरंत कराना होता है। थोड़ी देरी बड़ा नुकसान करा देती है।
लाभ और चुनौतियां…दोनों के मूल्यांकन के बाद करें शुरुआत
ललित की सफलता के बाद क्षेत्र में कई लोगों ने यह व्यवसाय शुरू किया। लेकिन, उनके सामने कई तरह की दिक्कतें आने लगीं। जैसे फंगस, पानी से बदबूं आना, मछलियों का अचानक मर जाना। ललित बताते हैं कि जब इस तरह की समस्याएं लेकर लोग उनके पास आने लगे तो उन्होंने सोचा कि क्यों न इसका स्थायी समाधान किया जाए। दरअसल, फिश फॉर्मिंग से संबंधित दवाएं दक्षिण भारत से ही आती हैं। ऑर्डर देने के बाद इन्हें आने में समय लगता है। तब तक काफी नुकसान हो चुका होता है। इसके बाद मैंने जरूरी दवाओं का स्टॉक अपने पास रखना शुरू किया। इसे कम दामों में बेचता हूं। इसका फायदा आसपास के लोगों को भी खूब हुआ। रुद्रप्रयाग, हरिद्वार उत्तरकाशी व आसपास के क्षेत्रों तक बीज,फीड की सप्लााई करता हूं।
किसानों को दिलवा रहे उचित दाम
ललित अपने काम के अलावा उनके संपर्क में आने वाले किसानों को उनके उत्पादन का उचित दाम दिलवा देते हैं। वह कहते हैं मछलियों को बाजार ले जाकर बेचने में रिस्क होता है। कभी-कभार मांग कम होने की दशा में वह नहीं बिकती। ज्यादा समय होने के बाद वह खराब हो जाती हैं। मजबूरी में उसे कम दामों में बेचना पड़ता है। उसे लेकर बाजार जाने में खर्च होता है। परेशानी अलग से उठानी पड़ती है। उनके संपर्क में जो ट्रेडर होते हैं वह किसानों से मिलवा देते हैं। व्यापारी फॉर्म से ही वजन कर मछली उठा लेते हैं। इससे उन्हें लाभ मिलने लगा है।
सिर्फ मछली पालन में न रहे निर्भरता
ललित मछली पालन के साथ ही मुर्गी व बकरी पालन भी करते हैं। वह बताते हैं नए किसान अगर अगर फंगास (मछली की एक प्रजाति) करता है तो यह छह महीने का सर्कल है, आईएमसी का सर्कल साल से डेढ़ साल का होता है। ऐसे में नए लोगों को अगर छह महीने तक सिर्फ इनवेस्ट करना पड़े और लाभ न हो तो वह परेशान हो जाते हैं। कर्ज लेना पड़ जाता है। इसलिए हम लोगों को एलाइट फॉर्मिंग की सलाह देते हैं। जैसे बकरी, मुर्गी पालन भी करे, डेयरी उत्पाद भी तैयार करें। इसकी मांग साल भर रहती है। इससे आमदनी बनी रहती है।
संभावनाएं
ललित बताते हैं, उत्तराखंड में ही आंध्र प्रदेश से 50 से 60 टन मछली आयात की जाती है। इससे पता चलता है कि इस क्षेत्र में कितनी संभावनाएं हैं। अगर सरकार थोड़ा और ध्यान दे तो यहां के युवाओं रोजगार के लिए बाहर नहीं जाना होगा। उनका अपना स्वरोजगार होगा। राज्य का विकास भी तेजी के साथ होगा। क्योंकि यहां की स्थितयां मछली पालन के लिए अनुकूल है।
इसमें मेहनत भी बहुत ज्यादा नहीं लगती है। बस देखभाल और जानकारी की जरूरत होती है।
ललित के टिप्स..
– जुलाई-अगस्त महीने में करें शुरुआत
– अपनी जमीन पर काम शुरू करना चाहते हैं तो मिट्टी की जांच जरूर कराएं। मछली पालन के लिए दोमट मिट्टी अच्छी होती है। तालाब में पांच से छह फीट तक पानी भरा रहे। जीरा (मछली का बीज) डालने से पहले तालाब की सफाई कर लें। 10 से 15 दिन उसे सूखने दें।
– अगर प्राकृतिक तालाब है तो जलीय खरपतवार, पौधों को हटा दें, यह जमीन में मौजूद पोषक तत्वों को कम कर देते हैं।