सैनिक बहुल उत्तराखंड में पूर्व सैनिकों को बड़ा वोट बैंक माना जाता है। भाजपा और कांग्रेस समेत सभी राजनीतिक दल पूर्व सैनिकों को रिझाने का प्रयास करते रहे हैं। यही वजह है कि कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र (Manifesto) में अग्निवीर योजना को खत्म करने और वन रैंक वन पेंशन योजना की विसंगति को दूर करने का वादा कर सैनिक बहुल उत्तराखंड में बड़ा दांव खेला है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस अग्निवीर योजना को लेकर हमलावर है। वहीं, भाजपा योजना को बेहतर बता रही है। इसके लिए भाजपा लोकसभा चुनाव से पहले शहीद सम्मान यात्रा निकाल चुकी है तो कांग्रेस की ओर से कई सैनिक सम्मेलन किए जा चुके हैं। कांग्रेस इन मुद्दों को पांचों लोकसभा सीटों पर जोरशोर से उठाने की तैयारी में है।
इसके अलावा सैनिकों की तमाम मांगों पर भी इस समय सियासत उफान पर है। जैसे, सैनिकों के परिवारों को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ, सैनिकों के लिए डॉरमेट्री में रहने की व्यवस्था को समाप्त कर उनके कमरे में अटैच बाथरूम की व्यवस्था। पूर्व सैनिकों की यह भी मांग है कि जिस तरह अधिकारियों और उनके बच्चों के लिए डीएसओआई में वेलफेयर की व्यवस्था है, उसी तरह अधिकारी से नीचे के सैनिकों और उनके बच्चों के लिए कुछ न कुछ वेलफेयर की व्यवस्था की जानी चाहिए। वन रैंक वन पेंशन की विसंगति पर भी रोष है।
उत्तराखंड में सेना,अर्द्धसैनिक बलों में कार्यरत प्रदेश के सैनिकों, अर्द्धसैनिकों, पूर्व सैनिकों अर्द्धसैनिकों, वीर नारियों के साथ उनके स्वजन को मिलाकर करीब 12 प्रतिशत मतदाता हैं। पार्टी के रणनीतिकारों का मनाना है कि अगर इस मुद्दे को सही तरीके से लोगों के बीच उठाया गया तो कांग्रेस को लोकसभा चुनावों के दौरान लाभ मिलना तय है।
क्या है अग्निवीर योजना?
अग्निपथ योजना सशस्त्र बलों की तीन सेवाओं में कमीशन अधिकारियों के पद से नीचे के सैनिकों की भर्ती के लिए भारत सरकार द्वारा शुरू की गई थी। इसकी घोषणा 16 जून 2022 को की गई। इस योजना के तहत सेना में शामिल होने वाले जवानों को ‘अग्निवीर’ के नाम से जाना जाता है। चार वर्ष की सेवा के पश्चात 25 प्रतिशत अग्निवीरों को उनकी कौशलता के आधार पर स्थायी करने की प्रावधान है। स्थायी कैडर का हिस्सा बन जाने के पश्चात अग्निवीरों को बाकी जवानों की ही तरह पेंशन और अन्य सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। सरकार का कहना है कि सेवा समाप्ति के पश्चात अग्निवीरों को उनकी कौशलता के अनुरूप स्किल सर्टिफिकेट दिया जाएगा, जो भविष्य में उनके लिए रोजगार के रास्ते खोलेगा। इस योजना का काफी विरोध हो रहा है, लोगों का कहना है कि इस योजना से सेना में जाने के इच्छुक युवाओं का रुझान घटता है और चार साल के बाद सेना से बाहर होने वाले अग्निवीरों के पुनर्वास को लेकर भी कई तरह के सवाल खड़े होते हैं।
इन जिलों में हैं इतने पूर्व सैनिक
अल्मोड़ा में 9,577, बागेश्वर में 7,837, चमोली में 11,059, चंपावत में 3,694, देहरादून में 29,444, हरिद्वार में 5,458, लैंसडौन में 15,080, पौड़ी में 6,756, नैनीताल में 13,569, पिथौरागढ़ में 18,149, रुद्रप्रयाग में 3,593, टिहरी में 5,143, ऊधमसिंहनगर 8,847 और उत्तरकाशी में 1157 पूर्व सैनिक हैं।
वीर नारियां एवं सैनिक विधवाएं
प्रदेश के अल्मोड़ा जिले में 4,835, बागेश्वर में 3,788, चमोली में 4,876, चंपावत में 1,364, देहरादून में 5,475, हरिद्वार में 1,040, लैंसडौन में 5,598, पौड़ी में 3,250, नैनीताल में 3,885, पिथौरागढ़ में 8,571, रुद्रप्रयाग में 1,740, टिहरी में 2,109, ऊधमसिंहनगर में 2,725 एवं उत्तरकाशी में 279 वीर नारी एवं विधवाएं हैं।
पुरानी पेंशन पर मौन
कांग्रेस अपने न्याय पत्र में पुरानी पेंशन के मुद्दे पर मौन साध रखा है। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हुई शर्मनाक पराजय के बाद शायद उसे लगा कि यह मुद्दा उतना असरकारक नहीं है। अब अहम सवाल यह है कि क्या इन वादों से कांग्रेस अपना पुराना जनाधार वापस पाने में सफल होगी। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा कहते हैं कि न्याय गारंटी आज के माहौल लोगों के लिए जरूरत बन चुका है। युवा, महिला परेशान हैं, हमारे घोषणा पत्र में किसानों और श्रमिकों के बेहतर और सुरक्षित भविष्य का ध्यान रखा गया है। इससे लोगों में उम्मीद जगी है। इसका सकारात्मक असर चुनावों में जरूर दिखेगा।
इसके साथ ही पहाड़ी राज्य के लिए संवेदनशील मुद्दा ‘पर्यावरण’ को भी शामिल किया है। न्याय पत्र में कहा गया है कि पहाड़ी जिलों में भुस्खलन को रोकने के उपाय विकसित किए जाएंगे। यह बात अलग है कि चुनावी समर में उतरे किसी भी दल के प्रत्याशी इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा नहीं कर रहे हैं।